महात्मा गाँधी भारतीय राजनीति के मध्यम मार्गी दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करते हैं। तर्कपूर्ण व्याख्या कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2018]
गांधी के वर्ण व्यवस्था पर विचार महात्मा गांधी ने वर्ण व्यवस्था को एक आदर्श सामाजिक प्रणाली के रूप में देखा, जो व्यक्ति की योग्यता और कर्तव्यों पर आधारित थी, न कि जाति या जन्म पर। गांधीजी ने वर्ण व्यवस्था को सामाजिक समरसता और संगठन का साधन माना, जिससे समाज में प्रत्येक व्यक्ति को अपनी क्षमता अनुसार भRead more
गांधी के वर्ण व्यवस्था पर विचार
महात्मा गांधी ने वर्ण व्यवस्था को एक आदर्श सामाजिक प्रणाली के रूप में देखा, जो व्यक्ति की योग्यता और कर्तव्यों पर आधारित थी, न कि जाति या जन्म पर। गांधीजी ने वर्ण व्यवस्था को सामाजिक समरसता और संगठन का साधन माना, जिससे समाज में प्रत्येक व्यक्ति को अपनी क्षमता अनुसार भूमिका निभाने का अवसर मिलता।
हालांकि, गांधी ने जातिवाद और अछूतों के प्रति भेदभाव की निंदा की। उन्होंने अछूतों के सामाजिक और राजनीतिक अधिकारों की रक्षा की और उनकी स्थिति में सुधार के लिए सक्रिय रूप से काम किया।
गांधी का दृष्टिकोण था कि वर्ण व्यवस्था का सुधार और आधुनिकीकरण होना चाहिए, ताकि यह जातिवाद और सामाजिक असमानता को समाप्त कर सके।
निष्कर्ष: गांधी का वर्ण व्यवस्था पर दृष्टिकोण सुधारात्मक था, जिसमें सामाजिक न्याय और समरसता को प्राथमिकता दी गई।
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महात्मा गाँधी और भारतीय राजनीति में मध्यम मार्गी दृष्टिकोण मध्यम मार्ग की अवधारणा: महात्मा गाँधी का मध्यम मार्गी दृष्टिकोण भारतीय राजनीति में अतिवादी विचारधाराओं और प्रतिक्रियात्मक उपायों के बीच संतुलन बनाने पर आधारित था। अहिंसा और सत्याग्रह: गाँधी ने सत्याग्रह (अहिंसात्मक प्रतिरोध) को अपनाया, जो आकRead more
महात्मा गाँधी और भारतीय राजनीति में मध्यम मार्गी दृष्टिकोण
मध्यम मार्ग की अवधारणा: महात्मा गाँधी का मध्यम मार्गी दृष्टिकोण भारतीय राजनीति में अतिवादी विचारधाराओं और प्रतिक्रियात्मक उपायों के बीच संतुलन बनाने पर आधारित था।
अहिंसा और सत्याग्रह: गाँधी ने सत्याग्रह (अहिंसात्मक प्रतिरोध) को अपनाया, जो आक्रामक संघर्ष और निष्क्रिय स्वीकृति के बीच का एक संतुलित रास्ता था। दांडी मार्च (1930) इसका प्रमुख उदाहरण है, जहाँ उन्होंने शांतिपूर्ण विरोध के माध्यम से ब्रिटिश नीतियों का विरोध किया।
आर्थिक और सामाजिक संतुलन: गाँधी ने खादी और स्वदेशी आंदोलन के माध्यम से आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दिया, जो आर्थिक प्रगति और सामाजिक न्याय के बीच संतुलन स्थापित करता है।
हाल के उदाहरण: गाँधी का मध्यम मार्गी दृष्टिकोण आज भी स्वच्छ भारत अभियान जैसी नीतियों में देखा जा सकता है, जो पारंपरिक प्रथाओं को बिना बाधित किए स्वच्छता और विकास को बढ़ावा देता है।
गाँधी का दृष्टिकोण भारतीय राजनीति में संतुलन और सामंजस्य के लिए एक प्रेरणास्त्रोत बना हुआ है।
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