प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं में अन्तर स्पष्ट करें। साथ ही, भारत में आपदा प्रबन्धन प्रणाली की प्रभावशीलता स्पष्ट करें । (200 Words) [UPPSC 2023]
आपदाएँ और उनके प्रबंधन प्रकार: प्राकृतिक आपदाएँ: भूगर्भीय: भूकंप, ज्वालामुखी। मौसमी: चक्रवात, बाढ़, सूखा। जलवायु: हीटवेव, हिमस्खलन। मानव-निर्मित आपदाएँ: प्रौद्योगिकी: औद्योगिक दुर्घटनाएँ, परमाणु दुर्घटनाएँ। पर्यावरणीय: प्रदूषण, वनस्पति कटाई। सामाजिक: आतंकवाद, हिंसा। प्रबंधन: रूपरेखा और योजना: राष्ट्Read more
आपदाएँ और उनके प्रबंधन
प्रकार:
- प्राकृतिक आपदाएँ:
- भूगर्भीय: भूकंप, ज्वालामुखी।
- मौसमी: चक्रवात, बाढ़, सूखा।
- जलवायु: हीटवेव, हिमस्खलन।
- मानव-निर्मित आपदाएँ:
- प्रौद्योगिकी: औद्योगिक दुर्घटनाएँ, परमाणु दुर्घटनाएँ।
- पर्यावरणीय: प्रदूषण, वनस्पति कटाई।
- सामाजिक: आतंकवाद, हिंसा।
प्रबंधन:
- रूपरेखा और योजना: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA) आपदा प्रबंधन के लिए नीतियाँ और योजनाएँ बनाते हैं।
- प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली: मौसम विभाग और जियोलॉजिकल सर्वे द्वारा शुरुआती चेतावनी सेवाएँ प्रदान की जाती हैं, जैसे बाढ़ पूर्वानुमान और भूकंप चेतावनी।
- प्रतिक्रिया और राहत: राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) तत्काल सहायता प्रदान करता है और राहत कार्य के लिए संसाधन जुटाता है।
- पुनर्निर्माण और रिकवरी: आपदा के बाद पुनर्निर्माण और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के माध्यम से प्रभावित लोगों की पुनर्वास प्रक्रिया को सहारा दिया जाता है।
इन प्रबंधन उपायों से भारत में आपदाओं के प्रभाव को कम किया जाता है और प्रभावित क्षेत्रों में त्वरित सहायता प्रदान की जाती है।
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प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं में अन्तर प्राकृतिक आपदाएँ: परिभाषा: ये ऐसी आपदाएँ हैं जो पृथ्वी की प्राकृतिक प्रक्रियाओं के कारण होती हैं, जैसे भूकंप, चक्रवात, सुनामी, मूसलधार बारिश, और आग। उदाहरण: 2019 का केरल बाढ़ और 2004 का भारतीय महासागर सुनामी प्राकृतिक आपदाएँ हैं, जो प्राकृतिक घटनाओं के कारणRead more
प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं में अन्तर
भारत में आपदा प्रबंधन प्रणाली की प्रभावशीलता
निष्कर्ष: भारत की आपदा प्रबंधन प्रणाली ने संस्थागत ढांचे, तैयारी और प्रबंधन में महत्वपूर्ण सुधार किए हैं, जिससे आपदा की स्थिति में प्रभावी प्रतिक्रिया सुनिश्चित की जा रही है। फिर भी, स्थानीय स्तर पर सुधार और सतत निगरानी की आवश्यकता है।
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