पर्यावरण की सुरक्षा से संबंधित विकास कार्यों के लिए भारत में गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका को किस प्रकार मज़बूत बनाया जा सकता है? मुख्य बाध्यताओं पर प्रकाश डालते हुए चर्चा कीजिए। (200 words) [UPSC 2015]
विकास योजना और बहु-स्तरी योजनाकरण परिचय: विकास योजना के नव-उदारी प्रतिमान के संदर्भ में, आशा की जाती है कि बहु-स्तरी योजनाकरण संक्रियाओं को लागत प्रभावी बना देगा और अनेक क्रियान्वयन रुकावटों को हटा देगा। लागत प्रभावी: नव-उदारी प्रतिमान में, जो की बाजार-निर्धारित नीतियों और निजी क्षेत्र की भागीदारी कRead more
विकास योजना और बहु-स्तरी योजनाकरण
परिचय:
विकास योजना के नव-उदारी प्रतिमान के संदर्भ में, आशा की जाती है कि बहु-स्तरी योजनाकरण संक्रियाओं को लागत प्रभावी बना देगा और अनेक क्रियान्वयन रुकावटों को हटा देगा।
लागत प्रभावी:
नव-उदारी प्रतिमान में, जो की बाजार-निर्धारित नीतियों और निजी क्षेत्र की भागीदारी को बल देता है, बहु-स्तरी योजनाकरण से संसाधन विनियोजन की अनुकूलन करने में मदद मिल सकती है और परियोजना के क्रियान्वयन में लागत प्रभावी बना सकती है।
स्थानीय सहभागिता:
बहु-स्तरी योजनाकरण में निर्णय लेने की प्रक्रियाओं की विस्तारित सहभागिता से, स्थानीय समस्याओं के लिए उपाय ढूंढने और संसाधनों के बेहतर उपयोग की सुनिश्चित करने में सहायक हो सकता है।
क्रियान्वयन की अधिकता:
निर्णय शक्ति को स्थानीय स्तरों में सौंपकर, बहु-स्तरी योजनाकरण क्रियान्वयन की अधिकता में मदद कर सकता है, ब्यूरोक्रेटिक बाधाओं को कम करके और स्थानीय मुद्दों के त्वरित समाधान को सुनिश्चित करके।
हाल के उदाहरण:
नव-उदारी प्रतिमान के अंतर्गत, जैसे की भारत की स्मार्ट सिटीज मिशन और अमृत (अटल मिशन फॉर रिजुविनेशन एंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन), बहु-स्तरी योजनाकरण को महत्व दिया जा रहा है जो शहरी बुनियादी संरचना को सुदृढ़ करने में मदद करता है, दिखाते हैं की यह उपाय क्रियान्वयन की अधिकता में सहायक है।
चुनौतियाँ और विचार:
बहु-स्तरी योजनाकरण के द्वारा आए लाभों को पूरी तरह से प्राप्त करने के लिए विभिन्न स्तरों के बीच समन्वय समस्याएं और स्थानीय स्तरों पर क्षमता निर्माण की आवश्यकता है।
निष्कर्ष:
समाप्ति रूप में, नव-उदारी विकास संदर्भ में, बहु-स्तरी योजनाकरण विकास संक्रियाओं को लागत प्रभावी बनाने और क्रियान्वयन रुकावटों को हटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस दृष्टिकोण को अपनाने से संसाधनों का अधिक उपयोग हो सकता है और स्थानीय आवश्यकताओं के साथ बेहतर संयोजन साधित किया जा सकता है, जिससे सतत विकास को प्रोत्साहित किया जा सकता ह।
भारत में गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) की भूमिका को मज़बूत करने के उपाय और मुख्य बाध्यताएँ **1. वित्तीय संसाधनों और समर्थन में वृद्धि: उपाय: एनजीओ को पर्यावरणीय परियोजनाओं के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन और तकनीकी सहायता उपलब्ध कराना चाहिए। उदाहरण: "ग्रामीन विकास के लिए एनजीओ के पास सीमित फंड होते हैं,Read more
भारत में गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) की भूमिका को मज़बूत करने के उपाय और मुख्य बाध्यताएँ
**1. वित्तीय संसाधनों और समर्थन में वृद्धि:
**2. क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण:
**3. नीति और नियामक समर्थन:
**4. सहयोग और नेटवर्किंग:
**5. जन जागरूकता और प्रचार:
निष्कर्ष: भारत में एनजीओ की पर्यावरणीय विकास कार्यों में प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए वित्तीय, क्षमता निर्माण, नियामक, सहयोग, और जागरूकता के क्षेत्रों में सुधार आवश्यक हैं। इन बाध्यताओं को पार करके, एनजीओ पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।
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