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पिछली शताब्दी के तीसरे दशक से भारतीय स्वतंत्रता की स्वप्न दृष्टि के साथ सम्बद्ध हो गए नए उद्देश्यों के महत्त्व को उजागर कीजिए। (250 words) [UPSC 2017]
पिछली शताब्दी के तीसरे दशक के नए उद्देश्यों की महत्ता पिछली शताब्दी के तीसरे दशक (1930-1940) में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक नया मोड़ आया, जिसमें नए उद्देश्यों और दृष्टिकोणों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन नए उद्देश्यों ने स्वतंत्रता संग्राम को न केवल एक नई दिशा दी, बल्कि इसे व्यापक और प्रभावशालRead more
पिछली शताब्दी के तीसरे दशक के नए उद्देश्यों की महत्ता
पिछली शताब्दी के तीसरे दशक (1930-1940) में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक नया मोड़ आया, जिसमें नए उद्देश्यों और दृष्टिकोणों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन नए उद्देश्यों ने स्वतंत्रता संग्राम को न केवल एक नई दिशा दी, बल्कि इसे व्यापक और प्रभावशाली बना दिया।
**1. नवीन दृष्टिकोण और आंदोलन
1930 में महात्मा गांधी ने नमक सत्याग्रह के माध्यम से अंग्रेजी सरकार के खिलाफ व्यापक जन आंदोलन शुरू किया। यह आंदोलन सविनय अवज्ञा आंदोलन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था, जिसने जनसाधारण को सीधे संघर्ष में शामिल किया। इस प्रकार, गांधीजी ने स्वतंत्रता संग्राम को केवल एक राजनीतिक संघर्ष नहीं, बल्कि एक सामाजिक और आर्थिक आंदोलन भी बना दिया।
**2. आर्थिक स्वतंत्रता की दिशा
1930 के दशक में गांधीजी ने स्वदेशी वस्त्र और स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा देने पर जोर दिया। इससे भारतीय जनता की आर्थिक आत्मनिर्भरता के प्रति जागरूकता बढ़ी और औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था के खिलाफ एक महत्वपूर्ण संघर्ष छेड़ा गया। हाल ही में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत अभियान का उद्देश्य भी इसी सोच को आगे बढ़ाता है, जिससे देश की आर्थिक स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिलता है।
**3. राजनीतिक गोलबंदी और समाज सुधार
1935 का भारत सरकार अधिनियम और असंतोष की प्रवृत्तियाँ ने भारतीय राजनीति में नए लक्ष्य और दृष्टिकोण पेश किए। विशेष रूप से, इस दशक में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच विभाजन और अलगाववादी आंदोलन ने भारतीय राजनीति को प्रभावित किया। यह समय भारतीय समाज में एक नए राजनीतिक चिह्न और दिशा की ओर संकेत करता है, जो आज भी विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों में देखा जा सकता है।
**4. नये नेतृत्व की उपस्थिति
इस समय ने नेहरूवादी विकास दृष्टिकोण और सामाजिक न्याय के महत्व को उजागर किया, जो स्वतंत्रता संग्राम के बाद स्वतंत्र भारत की नीतियों का आधार बने। जवाहरलाल नेहरू की समाजवादी दृष्टिकोण और औद्योगिकीकरण की योजनाओं ने भारतीय राजनीति में नये उद्देश्यों को स्थापित किया।
इन उद्देश्यों ने स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा और प्रासंगिकता दी, जो आज भी भारतीय राजनीति और समाज में गहराई से विद्यमान है।
See lessअंग्रेज़ किस कारण भारत से करारबद्ध श्रमिक अन्य उपनिवेशों में ले गए थे ? क्या वे वहां पर अपनी सांस्कृतिक पहचान को परिरक्षित रखने में सफल रहे हैं ?(250 words) [UPSC 2018]
अंग्रेज़ किस कारण भारत से करारबद्ध श्रमिक अन्य उपनिवेशों में ले गए थे? 1. श्रमिकों की कमी: ब्रिटिश उपनिवेशों में, विशेषकर चीनी बागानों और खनन उद्योगों में श्रमिकों की कमी थी। इसे पूरा करने के लिए, अंग्रेज़ों ने भारत से करारबद्ध श्रमिक लाने का निर्णय लिया। इससे उपनिवेशों में आवश्यक श्रम की कमी को पूरRead more
अंग्रेज़ किस कारण भारत से करारबद्ध श्रमिक अन्य उपनिवेशों में ले गए थे?
1. श्रमिकों की कमी: ब्रिटिश उपनिवेशों में, विशेषकर चीनी बागानों और खनन उद्योगों में श्रमिकों की कमी थी। इसे पूरा करने के लिए, अंग्रेज़ों ने भारत से करारबद्ध श्रमिक लाने का निर्णय लिया। इससे उपनिवेशों में आवश्यक श्रम की कमी को पूरा किया जा सका।
2. आर्थिक लाभ: करारबद्ध श्रमिकों का उपयोग सस्ते श्रम के रूप में किया गया। भारत से लाए गए श्रमिकों को कठिन परिस्थितियों में काम करने के लिए अनुबंधित किया गया, जिससे उपनिवेशों के लिए आर्थिक रूप से लाभदायक साबित हुआ।
3. पहले से मौजूद व्यापारिक मार्ग: ब्रिटिशों ने भारत से अन्य उपनिवेशों में श्रमिकों को लाने के लिए पहले से स्थापित व्यापारिक मार्ग और प्रवासन नेटवर्क का उपयोग किया, जिससे प्रक्रिया को अधिक प्रभावी और सस्ता बनाया गया।
सांस्कृतिक पहचान की परिरक्षा
1. सांस्कृतिक संरक्षित करना: कठिन परिस्थितियों के बावजूद, कई करारबद्ध श्रमिक अपनी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने में सफल रहे। उदाहरण के लिए, त्रिनिदाद और टोबैगो में भारतीय त्योहार जैसे दीवाली और होली आज भी बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं।
2. सांस्कृतिक अनुकूलन: समय के साथ, भारतीय समुदाय ने स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार अपनी सांस्कृतिक पहचान को अनुकूलित किया। फिजी में भारतीय परंपराओं का स्थानीय रीति-रिवाजों के साथ मिश्रण देखने को मिलता है, जैसे नृत्य और संगीत में भारतीय प्रभाव।
3. चुनौतियाँ: सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने में चुनौतियाँ भी आईं। समेकन का दबाव और संस्कृतिक विरूपण भी हुआ। उदाहरण के लिए, दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदायों को स्थानीय समाज के साथ समेकित होते समय अपनी सांस्कृतिक प्रथाओं को बनाए रखने में कठिनाई का सामना करना पड़ा।
हाल के उदाहरण: कैरेबियाई देशों और फिजी में हाल की सांस्कृतिक गतिविधियाँ और अध्ययन इस बात को दर्शाते हैं कि करारबद्ध श्रमिकों की सांस्कृतिक धरोहर को बनाए रखने के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं, बावजूद इसके कि उन्होंने ऐतिहासिक चुनौतियों का सामना किया है।
निष्कर्ष: ब्रिटिशों ने भारत से करारबद्ध श्रमिकों का उपयोग आर्थिक लाभ के लिए किया, जबकि श्रमिकों ने अपने सांस्कृतिक पहचान को विभिन्न उपनिवेशों में संजोने और अनुकूलित करने में सफलता प्राप्त की।
See lessविश्व में घटित कौन-सी मुख्य राजनीतिक, आर्थिक औरः सामाजिक गतिविधियों ने भारत में उपनिवेश-विरोधी (ऐंटी-कॉलोनियल) संघर्ष को प्रेरित किया ? (150 words) [UPSC 2014]
भारत में उपनिवेश-विरोधी संघर्ष को प्रेरित करने वाली प्रमुख वैश्विक गतिविधियाँ **1. राजनीतिक गतिविधियाँ द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) ने वैश्विक शक्ति संतुलन को बदल दिया और भारत में उपनिवेश-विरोधी भावना को तेज किया। युद्ध के दौरान, ब्रिटिश साम्राज्य की कमजोरी स्पष्ट हुई और भारत के स्वतंत्रता संग्राRead more
भारत में उपनिवेश-विरोधी संघर्ष को प्रेरित करने वाली प्रमुख वैश्विक गतिविधियाँ
**1. राजनीतिक गतिविधियाँ
द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) ने वैश्विक शक्ति संतुलन को बदल दिया और भारत में उपनिवेश-विरोधी भावना को तेज किया। युद्ध के दौरान, ब्रिटिश साम्राज्य की कमजोरी स्पष्ट हुई और भारत के स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं ने इसका लाभ उठाया। अटलांटिक चार्टर (1941) और ब्रिटिश राष्ट्रीय धारा (1942) ने आत्मनिर्णय और स्वतंत्रता के लिए वैश्विक समर्थन को बढ़ावा दिया, जिससे भारतीय नेताओं को अपने अभियान को और तेज करने में मदद मिली।
**2. आर्थिक गतिविधियाँ
महामंदी (1929-1939) ने वैश्विक आर्थिक संकट को जन्म दिया, जिसने उपनिवेशीय अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित किया। भारतीय अर्थव्यवस्था भी संकट में आई, जिससे स्थानीय व्यापारियों और किसानों के बीच असंतोष बढ़ा। इसने उपनिवेश-विरोधी आंदोलन को बल प्रदान किया, क्योंकि आर्थिक कठिनाइयों ने ब्रिटिश शासन की विफलताओं को उजागर किया।
**3. सामाजिक गतिविधियाँ
अंतरराष्ट्रीय सामाजिक आंदोलनों जैसे कि अफ्रीकी अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलन और स्वतंत्रता संग्राम ने भारतीय समाज को प्रेरित किया। महात्मा गांधी और अन्य नेताओं ने इन आंदोलनों से प्रेरणा लेकर समाजवादी और समानता की विचारधाराओं को अपनाया। भारत में सामाजिक सुधार और स्वतंत्रता की मांग में तेजी आई।
**4. उपनिवेश-विरोधी संघर्ष
वैश्विक उपनिवेश-विरोधी संघर्ष जैसे कि सुप्रेमे कोर्ट के विरोध और गांधीजी के नेतृत्व वाले असहमति आंदोलन ने भारतीय उपनिवेश-विरोधी आंदोलनों को प्रेरित किया और उनके संघर्ष को वैश्विक समर्थन मिला।
इन गतिविधियों ने भारत में उपनिवेश-विरोधी संघर्ष को प्रेरित किया और स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा और ऊर्जा प्रदान की।
See lessकिन प्रकारों से नौसैनिक विद्रोह भारत में अंग्रेज़ों की औपनिवेशिक महत्त्वाकांक्षाओं की शव-पेटिका में लगी अंतिम कील साबित हुआ था ? (150 words) [UPSC 2014]
नौसैनिक विद्रोह और अंग्रेज़ों की औपनिवेशिक महत्त्वाकांक्षाओं पर इसका प्रभाव **1. राष्ट्रवादी आंदोलन को प्रेरणा 1946 का नौसैनिक विद्रोह (रॉयल इंडियन नेवी रिवोल्ट) ने भारत में राष्ट्रवादी भावना को जोरदार प्रेरणा दी। विद्रोह ने खराब स्थितियों और नस्लीय भेदभाव के खिलाफ विरोध जताया, जिससे पूरे देश में असRead more
नौसैनिक विद्रोह और अंग्रेज़ों की औपनिवेशिक महत्त्वाकांक्षाओं पर इसका प्रभाव
**1. राष्ट्रवादी आंदोलन को प्रेरणा
1946 का नौसैनिक विद्रोह (रॉयल इंडियन नेवी रिवोल्ट) ने भारत में राष्ट्रवादी भावना को जोरदार प्रेरणा दी। विद्रोह ने खराब स्थितियों और नस्लीय भेदभाव के खिलाफ विरोध जताया, जिससे पूरे देश में असंतोष फैल गया और विभिन्न राष्ट्रवादी ताकतें एकजुट हो गईं, जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष को और तीव्र बना दीं।
**2. ब्रिटिश नियंत्रण में कमजोरी
विद्रोह ने ब्रिटिश नियंत्रण की कमजोरी को उजागर किया। नौसेना की इस बगावत के कारण ब्रिटिश प्रशासन को भारी चुनौती का सामना करना पड़ा, जो दिखाता है कि वे अब भारत में पूरी तरह से नियंत्रण में नहीं थे। इसके परिणामस्वरूप, ब्रिटिश प्रशासन की क्षमता में कमी आई।
**3. राजनीतिक रियायतें
असंतोष और विद्रोह को देखते हुए, ब्रिटिश सरकार ने भारतीय स्वतंत्रता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए। ब्रिटिश लेबर सरकार ने भारतीय स्वशासन पर चर्चा को तेज किया, जिसके परिणामस्वरूप कैबिनेट मिशन प्लान 1946 और अंततः भारत की स्वतंत्रता की प्रक्रिया तेज हो गई।
**4. जनता की सक्रियता
विद्रोह ने पूरे देश में व्यापक असंतोष और सक्रियता को प्रेरित किया। स्वतंत्रता आंदोलन के नेताओं जैसे जवाहरलाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस ने विद्रोह के साथ उत्पन्न असंतोष का उपयोग ब्रिटिश शासन को समाप्त करने के लिए किया, जो स्वतंत्रता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ।
संक्षेप में, नौसैनिक विद्रोह ने ब्रिटिश शासन की कमजोरियों को उजागर किया, राष्ट्रवादी ताकतों को एकजुट किया, और स्वतंत्रता की प्रक्रिया को तेज किया, जिससे यह ब्रिटिश औपनिवेशिक महत्त्वाकांक्षाओं की शव-पेटिका में अंतिम कील साबित हुआ।
See lessवर्तमान समय में महात्मा गाँधी के विचारों के महत्व पर प्रकाश डालिए। (150 words) [UPSC 2018]
वर्तमान समय में महात्मा गांधी के विचारों के महत्व 1. नैतिक नेतृत्व: महात्मा गांधी के सत्य और अहिंसा (सत्याग्रह) पर जोर आज के राजनीतिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य में अत्यंत महत्वपूर्ण है। 'मी टू' आंदोलन जैसे वैश्विक आंदोलनों में सत्य और न्याय की मांग ने गांधी के सिद्धांतों को पुनर्जीवित किया है। 2. पर्यRead more
वर्तमान समय में महात्मा गांधी के विचारों के महत्व
1. नैतिक नेतृत्व: महात्मा गांधी के सत्य और अहिंसा (सत्याग्रह) पर जोर आज के राजनीतिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य में अत्यंत महत्वपूर्ण है। ‘मी टू’ आंदोलन जैसे वैश्विक आंदोलनों में सत्य और न्याय की मांग ने गांधी के सिद्धांतों को पुनर्जीवित किया है।
2. पर्यावरणीय स्थिरता: गांधी का साधारण जीवन और आत्मनिर्भरता का सिद्धांत वर्तमान पर्यावरणीय समस्याओं के संदर्भ में प्रासंगिक है। स्थानीय खाद्य आंदोलन और जिरो-वेस्ट जीवनशैली जैसी पहल गांधी के स्वदेशी विचारों को दर्शाती हैं।
3. सामाजिक न्याय: गांधी का सामाजिक असमानताओं और भेदभाव के खिलाफ संघर्ष आज के सामाजिक आंदोलनों में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। एससी/एसटी अधिकार और लिंग समानता के लिए जारी संघर्ष उनके सिद्धांतों का अनुकरण करते हैं।
4. शिक्षा के माध्यम से सशक्तिकरण: गांधी का समग्र शिक्षा के प्रति दृष्टिकोण आज के शैक्षिक सुधारों में परिलक्षित होता है। हाल के सुधारों में मूल्य आधारित शिक्षा को प्रोत्साहन दिया जा रहा है, जो गांधी के आदर्शों के साथ मेल खाता है।
सारांश में, गांधी के सिद्धांत आज की नैतिक प्रथाओं, पर्यावरणीय स्थिरता, सामाजिक न्याय और शिक्षा सुधारों में प्रासंगिक हैं।
See lessसविनय अवज्ञा आंदोलन का मूल्यांकन कीजिए।
सविनय अवज्ञा आंदोलन का मूल्यांकन सविनय अवज्ञा आंदोलन, जिसे सिविल डिसऑबीडियंस मूवमेंट के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक महत्वपूर्ण क्रांतिकारी पहल थी। महात्मा गांधी के नेतृत्व में चलाए गए इस आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई। इस आंदोलन का मूल्यांकन करतेRead more
सविनय अवज्ञा आंदोलन का मूल्यांकन
सविनय अवज्ञा आंदोलन, जिसे सिविल डिसऑबीडियंस मूवमेंट के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक महत्वपूर्ण क्रांतिकारी पहल थी। महात्मा गांधी के नेतृत्व में चलाए गए इस आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई। इस आंदोलन का मूल्यांकन करते समय इसके उद्देश्य, कार्यान्वयन, प्रभाव, और हाल की ऐतिहासिक पुनर्मूल्यांकन पर ध्यान देना आवश्यक है।
1. आंदोलन के उद्देश्य:
2. आंदोलन का कार्यान्वयन:
3. प्रभाव और परिणाम:
4. हाल की ऐतिहासिक पुनर्मूल्यांकन:
5. तुलनात्मक विश्लेषण:
निष्कर्ष
सविनय अवज्ञा आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली चरण था। महात्मा गांधी के नेतृत्व में यह आंदोलन न केवल ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक व्यापक जन प्रतिरोध का प्रतीक बना, बल्कि यह अहिंसात्मक प्रतिरोध के सिद्धांत को भी वैश्विक मंच पर प्रस्तुत किया। हाल की ऐतिहासिक पुनर्मूल्यांकन ने इसके योगदान और सीमाओं को उजागर किया है, जिससे इसका महत्व स्वतंत्रता संग्राम की व्यापक कथा में और भी स्पष्ट हो गया है।
See lessराष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में नेतृत्वकर्ता के रूप में 'चापेकर बंधु' की भूमिका को स्पष्ट करें।
राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में चापेकर बंधु की भूमिका चापेकर बंधु—चंद्रशेखर, बालकृष्ण, और विष्णु—भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण क्रांतिकारी नेता थे। उनकी भूमिकाएँ और योगदान स्वतंत्रता आंदोलन के क्रांतिकारी पहलू को दर्शाते हैं। उनके कार्यों और विरासत को समझने के लिए निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यRead more
राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में चापेकर बंधु की भूमिका
चापेकर बंधु—चंद्रशेखर, बालकृष्ण, और विष्णु—भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण क्रांतिकारी नेता थे। उनकी भूमिकाएँ और योगदान स्वतंत्रता आंदोलन के क्रांतिकारी पहलू को दर्शाते हैं। उनके कार्यों और विरासत को समझने के लिए निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान देना आवश्यक है:
1. पृष्ठभूमि और प्रारंभिक जीवन:
2. क्रांतिकारी गतिविधियाँ:
3. प्रभाव और विरासत:
4. हाल की ऐतिहासिक पुनर्मूल्यांकन:
5. तुलनात्मक महत्व:
निष्कर्ष
चापेकर बंधु भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन के महत्वपूर्ण नेता थे। उनका साहस, बलिदान, और क्रांतिकारी गतिविधियाँ स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हाल की ऐतिहासिक पुनर्मूल्यांकन ने उनके योगदान को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की व्यापक कथा में एक महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया है।
See lessमुगलकालीन समाज में महिलाओं की स्थिति को स्पष्ट कीजिए।
मुगलकालीन समाज में महिलाओं की स्थिति मुगलकालीन समाज में महिलाओं की स्थिति जटिल और बहुपरकारी थी, जो सामाजिक वर्ग, धर्म, और विभिन्न मुग़ल सम्राटों की नीतियों से प्रभावित थी। इस स्थिति को समझने के लिए निम्नलिखित पहलुओं पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है: 1. सामाजिक स्थिति: राजघराने की महिलाएँ: मुग़ल राजघरानेRead more
मुगलकालीन समाज में महिलाओं की स्थिति
मुगलकालीन समाज में महिलाओं की स्थिति जटिल और बहुपरकारी थी, जो सामाजिक वर्ग, धर्म, और विभिन्न मुग़ल सम्राटों की नीतियों से प्रभावित थी। इस स्थिति को समझने के लिए निम्नलिखित पहलुओं पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है:
1. सामाजिक स्थिति:
2. शिक्षा और सांस्कृतिक भागीदारी:
3. विवाह और पारिवारिक जीवन:
4. कानूनी और सामाजिक अधिकार:
5. हाल की ऐतिहासिक पुनर्मूल्यांकन:
निष्कर्ष
मुग़लकालीन समाज में महिलाओं की स्थिति सामाजिक वर्गों के आधार पर भिन्न थी। जबकि राजघराने और उच्चवर्गीय महिलाओं के पास शिक्षा, शक्ति और सांस्कृतिक प्रभाव था, सामान्य महिलाओं की स्थिति अधिक सीमित थी और उनकी भूमिकाएँ मुख्यतः पारिवारिक और घरेलू जिम्मेदारियों तक सीमित थीं। हाल के शोध और पुनर्मूल्यांकन ने इस स्थिति को अधिक व्यापक रूप से समझने में मदद की है।
See lessइजारा प्रणाली क्या थी?
इजारा प्रणाली एक ऐतिहासिक राजस्व प्रथा थी जिसका उपयोग भारत में मुग़ल काल और उसके बाद के काल में हुआ। इस प्रणाली के अंतर्गत, सरकार ने भूमि कर (राजस्व) का संग्रह एक मध्यस्थ को सौंप दिया। इस मध्यस्थ को "इजारा" कहा जाता था। इजारा प्रणाली में, सरकार ने एक निश्चित समयावधि के लिए, जैसे कि एक वर्ष, भूमि करRead more
इजारा प्रणाली एक ऐतिहासिक राजस्व प्रथा थी जिसका उपयोग भारत में मुग़ल काल और उसके बाद के काल में हुआ। इस प्रणाली के अंतर्गत, सरकार ने भूमि कर (राजस्व) का संग्रह एक मध्यस्थ को सौंप दिया। इस मध्यस्थ को “इजारा” कहा जाता था।
इजारा प्रणाली में, सरकार ने एक निश्चित समयावधि के लिए, जैसे कि एक वर्ष, भूमि कर का पूरा अधिकार एक ठेकेदार को दे दिया। ठेकेदार (या इजारा) को अपने ऊपर निर्भर क्षेत्रों से कर इकट्ठा करने और उसे सरकार को जमा करने की जिम्मेदारी दी जाती थी। इसके बदले में, ठेकेदार को कर संग्रहण से प्राप्त राशि में से एक हिस्सा लाभ के रूप में मिलता था।
इस प्रणाली के फायदे और नुकसान दोनों थे:
समय के साथ, इस प्रणाली की आलोचना हुई और अन्य राजस्व प्रणालियों ने इसे प्रतिस्थापित किया, लेकिन इसका प्रभाव और स्वरूप भारतीय प्रशासनिक इतिहास में महत्वपूर्ण था।
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The 1857 Indian Rebellion, often referred to as the First War of Indian Independence, first broke out in the city of Meerut. Located in present-day Uttar Pradesh, Meerut was a key military garrison of the British East India Company. The immediate cause of the rebellion was the introduction of the neRead more
The 1857 Indian Rebellion, often referred to as the First War of Indian Independence, first broke out in the city of Meerut. Located in present-day Uttar Pradesh, Meerut was a key military garrison of the British East India Company. The immediate cause of the rebellion was the introduction of the new Enfield rifle, which required soldiers to bite off the ends of cartridges greased with animal fat, an action deeply offensive to both Hindu and Muslim religious practices. Hindus were offended by the use of cow fat, while Muslims objected to pig fat, leading to widespread anger among the sepoys (Indian soldiers) serving in the British army.
On May 10, 1857, the sepoys in Meerut revolted against their British officers. They freed their imprisoned comrades, who had been punished for refusing to use the new cartridges, and attacked British officers and civilians. This mutiny quickly spread to other parts of northern and central India, including Delhi, where the sepoys marched and declared Bahadur Shah II, the last Mughal emperor, as their leader.
Meerut’s uprising marked the beginning of a widespread and violent rebellion against British rule, which would eventually spread across much of India, challenging British dominance and altering the course of Indian history.
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