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"1857 का विद्रोह भारतीय इतिहास में एक निर्णायक मोड़ था।" विश्लेषण कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2018]
1857 का विद्रोह: एक निर्णायक मोड़ कारण: विद्रोह का मुख्य कारण था राजनीतिक, आर्थिक, और सामाजिक अत्याचार। भारतीय सैनिकों को कम वेतन, पदों में बढ़ोत्तरी की कमी, और जानवरी तेल से चिकित्सा किये गए एनफील्ड राइफल कार्ट्रिज की विवादास्पद उपयोग के कारण असंतोष था। विविध समूहों के बीच एकता: 1857 का विद्रोह ने Read more
1857 का विद्रोह: एक निर्णायक मोड़
कारण:
विद्रोह का मुख्य कारण था राजनीतिक, आर्थिक, और सामाजिक अत्याचार। भारतीय सैनिकों को कम वेतन, पदों में बढ़ोत्तरी की कमी, और जानवरी तेल से चिकित्सा किये गए एनफील्ड राइफल कार्ट्रिज की विवादास्पद उपयोग के कारण असंतोष था।
विविध समूहों के बीच एकता:
1857 का विद्रोह ने सेपाइयों, किसानों, और शासकों के बीच अभूतपूर्व एकता को दिखाया, जो ब्रिटिश उपनिवेशी शासन के खिलाफ साथ में आये, भारतीय राष्ट्रवाद की एक मूल संज्ञा को प्रस्तुत किया।
ब्रिटिश नीतियों पर प्रभाव:
विद्रोह के ब्रिटिश द्वारा क्रूर दमन ने उनकी भारत के प्रति नीतियों में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाया। ब्रिटिश मुकुट ने पूर्व भारत कंपनी से सीधा नियंत्रण हासिल किया, कंपनी के शासन का अंत किया।
राष्ट्रीय जागरूकता की उत्थान:
1857 का विद्रोह भारतीयों में राष्ट्रीय जागरूकता के उत्थान का कारक बना, जो भारतीय राष्ट्रवाद और उपनिवेशी दमन के खिलाफ एक भावना को बढ़ावा दिया।
विरासत और दीर्घकालिक प्रभाव:
विद्रोह ने भविष्य की पीढ़ियों के स्वतंत्रता सेनानियों और राष्ट्रवादियों को प्रेरित किया, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए आधार रखा। इसने भारतीयों की ब्रिटिश उपनिवेशी शासन के खिलाफ गहरे असंतोष को दिखाया, जो भविष्य की आंदोलनीय संघर्षों के लिए मूलभूत आधार दिया।
निष्कर्ष:
See lessसमाप्त में, 1857 का विद्रोह वास्तव में भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण निर्णायक मोड़ था, क्योंकि यह न केवल ब्रिटिश शासन को चुनौती देता था बल्कि भारतीय राष्ट्रवाद और स्वतंत्रता की बीज बोता, जो भविष्य के स्वतंत्रता संघर्ष की दिशा को आकार देने में महत्वपूर्ण था।
"200 वर्षों के ब्रिटिश शासन ने भारतीय अर्थव्यवस्था के मेरुदण्ड की क्षतिग्रस्त कर दिया था।" व्याख्या कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2018]
ब्रिटिश शासन और भारतीय अर्थव्यवस्था: प्रस्तावना: ब्रिटिश शासन ने भारतीय अर्थव्यवस्था को अपनी आवश्यकताओं के अनुसार पुनर्गठित करने के लिए अपनी नीतियों को लागू किया। व्याख्या: ब्रिटिश शासन के दौरान, भारतीय अर्थव्यवस्था को उसके स्वाभाविक मार्ग से हटाकर नए मार्गों पर ले जाने का प्रयास किया गया। इसका एक उRead more
ब्रिटिश शासन और भारतीय अर्थव्यवस्था:
प्रस्तावना:
ब्रिटिश शासन ने भारतीय अर्थव्यवस्था को अपनी आवश्यकताओं के अनुसार पुनर्गठित करने के लिए अपनी नीतियों को लागू किया।
व्याख्या:
ब्रिटिश शासन के दौरान, भारतीय अर्थव्यवस्था को उसके स्वाभाविक मार्ग से हटाकर नए मार्गों पर ले जाने का प्रयास किया गया। इसका एक उदाहरण है ब्रिटिश शासन की नीतियां जैसे व्यापारिकीकरण, उद्यमिता को बढ़ावा देना, और भारतीय उत्पादन को विदेशी बाजारों के साथ मिलान।
क्षतिग्रस्त कारण:
इस प्रक्रिया ने भारतीय अर्थव्यवस्था के मेरुदण्ड को अध:रूप में क्षतिग्रस्त किया। यहाँ तक कि भारतीय उद्यमिता को भी नुकसान पहुंचा, क्योंकि उन्हें विदेशी उत्पादों के साथ मुकाबला करना पड़ा।
नए मार्ग:
इसके विपरीत, अब भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था को आधुनिकीकृत किया है और उद्यमिता को बढ़ावा दिया है। वर्तमान में, भारत आत्मनिर्भर भारत के दिशानिर्देश में अग्रणी भूमिका निभा रहा है।
समाप्ति:
See lessइस प्रक्रिया में, ब्रिटिश शासन ने भारतीय अर्थव्यवस्था को पुनर्गठित करने का प्रयास किया, जिससे उसने उसके मेरुदण्ड को क्षतिग्रस्त कर दिया। यह एक महत्वपूर्ण शिक्षाग्रंथ है जो भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के साथ एक प्रेरणा स्रोत भी है।
महात्मा गाँधी भारतीय राजनीति के मध्यम मार्गी दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करते हैं। तर्कपूर्ण व्याख्या कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2018]
महात्मा गाँधी और भारतीय राजनीति में मध्यम मार्गी दृष्टिकोण मध्यम मार्ग की अवधारणा: महात्मा गाँधी का मध्यम मार्गी दृष्टिकोण भारतीय राजनीति में अतिवादी विचारधाराओं और प्रतिक्रियात्मक उपायों के बीच संतुलन बनाने पर आधारित था। अहिंसा और सत्याग्रह: गाँधी ने सत्याग्रह (अहिंसात्मक प्रतिरोध) को अपनाया, जो आकRead more
महात्मा गाँधी और भारतीय राजनीति में मध्यम मार्गी दृष्टिकोण
मध्यम मार्ग की अवधारणा: महात्मा गाँधी का मध्यम मार्गी दृष्टिकोण भारतीय राजनीति में अतिवादी विचारधाराओं और प्रतिक्रियात्मक उपायों के बीच संतुलन बनाने पर आधारित था।
अहिंसा और सत्याग्रह: गाँधी ने सत्याग्रह (अहिंसात्मक प्रतिरोध) को अपनाया, जो आक्रामक संघर्ष और निष्क्रिय स्वीकृति के बीच का एक संतुलित रास्ता था। दांडी मार्च (1930) इसका प्रमुख उदाहरण है, जहाँ उन्होंने शांतिपूर्ण विरोध के माध्यम से ब्रिटिश नीतियों का विरोध किया।
आर्थिक और सामाजिक संतुलन: गाँधी ने खादी और स्वदेशी आंदोलन के माध्यम से आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दिया, जो आर्थिक प्रगति और सामाजिक न्याय के बीच संतुलन स्थापित करता है।
हाल के उदाहरण: गाँधी का मध्यम मार्गी दृष्टिकोण आज भी स्वच्छ भारत अभियान जैसी नीतियों में देखा जा सकता है, जो पारंपरिक प्रथाओं को बिना बाधित किए स्वच्छता और विकास को बढ़ावा देता है।
गाँधी का दृष्टिकोण भारतीय राजनीति में संतुलन और सामंजस्य के लिए एक प्रेरणास्त्रोत बना हुआ है।
See lessभारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भारत छोड़ों आंदोलन के योगदान का परीक्षण कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2019]
भारत छोड़ो आंदोलन में योगदान 1. आंदोलन की पृष्ठभूमि भारत छोड़ो आंदोलन, जिसे Quit India Movement भी कहा जाता है, 15 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी द्वारा शुरू किया गया था। यह आंदोलन द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक निर्णायक संघर्ष था। 2. जनांदोलन का स्वरूप इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्Read more
भारत छोड़ो आंदोलन में योगदान
1. आंदोलन की पृष्ठभूमि
भारत छोड़ो आंदोलन, जिसे Quit India Movement भी कहा जाता है, 15 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी द्वारा शुरू किया गया था। यह आंदोलन द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक निर्णायक संघर्ष था।
2. जनांदोलन का स्वरूप
इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश सरकार को भारत से बाहर निकालना और स्वतंत्रता प्राप्त करना था। गांधीजी ने सत्याग्रह और अहिंसा के माध्यम से स्वतंत्रता की मांग की।
3. सामूहिक समर्थन और प्रतिक्रिया
भारत छोड़ो आंदोलन ने देशव्यापी समर्थन प्राप्त किया। इसमें कांग्रेस और अन्य राष्ट्रीय नेताओं ने सक्रिय भाग लिया, और सभी वर्गों और सामाजिक समूहों ने इसका समर्थन किया। आंदोलन के दौरान नगरीय अशांति, सार्वजनिक हड़तालें, और असंतोष का फैलाव हुआ।
4. ब्रिटिश प्रशासन की प्रतिक्रिया
ब्रिटिश सरकार ने इस आंदोलन को दबाने के लिए अत्यधिक बल का प्रयोग किया। प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया, और सैन्य बल को तैनात किया गया।
5. स्वतंत्रता के प्रति योगदान
यह आंदोलन स्वतंत्रता संग्राम की एक निर्णायक घटना थी। इसकी प्रेरणा और जनसंपर्क ने स्वतंत्रता संग्राम की गति को तेज किया। अंततः, 15 अगस्त 1947 को भारत ने स्वतंत्रता प्राप्त की, जो कि इस आंदोलन के प्रभाव का प्रतिफल था।
6. हाल की टिप्पणियाँ
हाल ही में, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी और अनेक इतिहासकारों ने इस आंदोलन के महत्व को स्वीकार किया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी इसके योगदान को सम्मानित करते हुए अगस्त क्रांति दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव दिया।
इस प्रकार, भारत छोड़ो आंदोलन ने स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ प्रदान किया और भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
See lessबैदिक शिक्षा व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिये एवं वर्तमान में इसकी सार्थकता का समीक्षा कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2019]
बैदिक शिक्षा व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ 1. वेदांत पर आधारित शिक्षा बैदिक शिक्षा व्यवस्था का आधार वेदों और उपनिषदों पर होता था। यह शिक्षा प्रणाली मुख्य रूप से धार्मिक और दार्शनिक विचारों को प्रोत्साहित करती थी, जिनमें ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, और अथर्ववेद शामिल हैं। 2. गुरु-शिष्य परंपरा इस व्यवस्थाRead more
बैदिक शिक्षा व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ
1. वेदांत पर आधारित शिक्षा
बैदिक शिक्षा व्यवस्था का आधार वेदों और उपनिषदों पर होता था। यह शिक्षा प्रणाली मुख्य रूप से धार्मिक और दार्शनिक विचारों को प्रोत्साहित करती थी, जिनमें ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, और अथर्ववेद शामिल हैं।
2. गुरु-शिष्य परंपरा
इस व्यवस्था में गुरु-शिष्य परंपरा का प्रमुख स्थान था। शिक्षा का प्रसार गुरुकुलों के माध्यम से होता था, जहां गुरु अपने शिष्यों को शास्त्रों और जीवन की नैतिकताओं की शिक्षा देते थे।
3. जीवन के विभिन्न पहलुओं की शिक्षा
वेदों में केवल धार्मिक शिक्षा ही नहीं, बल्कि अर्थशास्त्र, राजनीति, अध्यात्म, और संगीत जैसे विषयों पर भी ध्यान केंद्रित किया जाता था।
वर्तमान में सार्थकता की समीक्षा
1. सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व
वर्तमान में बैदिक शिक्षा व्यवस्था का सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व बना हुआ है। यह प्राचीन भारतीय ज्ञान और परंपराओं को संरक्षित करने में सहायक है। हाल ही में आयुष मंत्रालय और सरकारी योजनाएँ वेदों और संस्कृत की शिक्षा को बढ़ावा दे रही हैं।
2. नैतिक और आध्यात्मिक शिक्षा
बैदिक शिक्षा प्रणाली की नैतिकता और आध्यात्मिकता आज भी समाज में प्रासंगिक हैं। उदाहरण के लिए, आत्मसुधार और समाज सेवा के सिद्धांतों को आज भी कई धार्मिक और सामाजिक संगठन अपनाते हैं।
3. शिक्षा में समकालीन प्रभाव
हालांकि, आधुनिक शिक्षा प्रणाली की विभिन्न आवश्यकताएँ हैं, लेकिन गुरु-शिष्य परंपरा और आध्यात्मिक शिक्षा के तत्व आज भी मनोवैज्ञानिक और व्यक्तित्व विकास में मददगार हो सकते हैं।
इस प्रकार, बैदिक शिक्षा प्रणाली का आधुनिक संदर्भ में एक विशेष स्थान है, जो ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण है।
See lessभारत में गवर्नर लॉर्ड वेलेजली के काल में ब्रिटिश शासन के प्रसार की विवेचना कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2020]
लॉर्ड वेलेजली के काल में ब्रिटिश शासन का प्रसार लॉर्ड वेलेजली का काल लॉर्ड वेलेजली (1805-1807) भारतीय उपमहाद्वीप में ब्रिटिश शासन के प्रसार के लिए एक महत्वपूर्ण गवर्नर जनरल थे। उनका कार्यकाल ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार और सशक्तिकरण के लिए महत्वपूर्ण था। ब्रिटिश शासन का प्रसार आक्रामक नीति: वेलेजलीRead more
लॉर्ड वेलेजली के काल में ब्रिटिश शासन का प्रसार
लॉर्ड वेलेजली का काल
लॉर्ड वेलेजली (1805-1807) भारतीय उपमहाद्वीप में ब्रिटिश शासन के प्रसार के लिए एक महत्वपूर्ण गवर्नर जनरल थे। उनका कार्यकाल ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार और सशक्तिकरण के लिए महत्वपूर्ण था।
ब्रिटिश शासन का प्रसार
हाल के उदाहरण
निष्कर्ष
लॉर्ड वेलेजली के कार्यकाल में ब्रिटिश शासन ने अपनी आक्रामक नीति और प्रशासनिक सुधारों के माध्यम से भारतीय उपमहाद्वीप में अपने प्रभाव को व्यापक रूप से फैलाया। उनका कार्यकाल ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार और भारतीय राज्यों की संप्रभुता को कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण चरण था।
See lessभारतीय शिक्षा के क्षेत्र में पाश्चात्य प्रभावों का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2020]
भारतीय शिक्षा के क्षेत्र में पाश्चात्य प्रभावों का आलोचनात्मक परीक्षण पाश्चात्य प्रभाव: ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली का भारत पर प्रभाव ब्रिटिश शासन के दौरान शुरू हुआ। विद्यालयों और महाविद्यालयों की स्थापना, सिलेबस में पश्चिमी विषयों का समावेश, और अंग्रेजी भाषा का प्रचार भारतीय शिक्Read more
भारतीय शिक्षा के क्षेत्र में पाश्चात्य प्रभावों का आलोचनात्मक परीक्षण
पाश्चात्य प्रभाव: ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली का भारत पर प्रभाव ब्रिटिश शासन के दौरान शुरू हुआ। विद्यालयों और महाविद्यालयों की स्थापना, सिलेबस में पश्चिमी विषयों का समावेश, और अंग्रेजी भाषा का प्रचार भारतीय शिक्षा प्रणाली में महत्वपूर्ण बदलाव लाए।
सकारात्मक प्रभाव
नकारात्मक प्रभाव
हाल के उदाहरण
निष्कर्ष
पाश्चात्य प्रभावों ने भारतीय शिक्षा प्रणाली को आधुनिक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लेकिन इसने कुछ सांस्कृतिक और सामाजिक असमानताओं को भी जन्म दिया है। समावेशी और संतुलित शिक्षा प्रणाली की दिशा में सुधार आवश्यक है।
See lessमहात्मा गांधी द्वारा राष्ट्रीय आंदोलन में जनता को लामबद्ध करने हेतु और सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध, दोनों के लिए किए गए प्रतीकों और प्रतीकात्मक भाषा के उपयोग पर प्रकाश डालिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
महात्मा गांधी ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और सामाजिक सुधारों के लिए प्रतीकों और प्रतीकात्मक भाषा का कुशलता से उपयोग किया। ये प्रतीकात्मक उपाय न केवल आंदोलन की पहचान बने बल्कि जनसामान्य को लामबद्ध करने और सामाजिक बुराइयों के खिलाफ जागरूकता फैलाने में भी महत्वपूर्ण साबित हुए। राष्ट्रीय आंदोलन में प्रतRead more
महात्मा गांधी ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और सामाजिक सुधारों के लिए प्रतीकों और प्रतीकात्मक भाषा का कुशलता से उपयोग किया। ये प्रतीकात्मक उपाय न केवल आंदोलन की पहचान बने बल्कि जनसामान्य को लामबद्ध करने और सामाजिक बुराइयों के खिलाफ जागरूकता फैलाने में भी महत्वपूर्ण साबित हुए।
राष्ट्रीय आंदोलन में प्रतीकों का उपयोग: गांधीजी ने सरल और प्रभावी प्रतीकों का चयन किया जो जनता के दिलों में गहरे उतरे। उदाहरण के लिए, खादी को उन्होंने स्वदेशी और आत्मनिर्भरता का प्रतीक बनाया। खादी की वकालत करते हुए, उन्होंने ब्रिटिश वस्त्रों के बहिष्कार के लिए ‘नमक सत्याग्रह’ जैसी आंदोलनों का नेतृत्व किया। इसके अलावा, चक (घरेलू चरखा) भी एक प्रमुख प्रतीक था, जो न केवल आर्थिक आत्मनिर्भरता का प्रतीक था बल्कि ब्रिटिश औपनिवेशिक नीति के खिलाफ एक प्रतीकात्मक विरोध भी था।
सामाजिक बुराइयों के खिलाफ प्रतीकों का उपयोग: गांधीजी ने सामाजिक सुधारों के लिए भी प्रतीकात्मक भाषा का प्रभावी उपयोग किया। हरिजन शब्द का उपयोग कर उन्होंने जातिवाद के खिलाफ मुहिम चलायी और अस्पृश्यता के खिलाफ आह्वान किया। ‘अहिंसा’ और ‘सत्याग्रह’ जैसे सिद्धांतों का उपयोग कर उन्होंने शांति और सत्य के माध्यम से परिवर्तन की आवश्यकता को रेखांकित किया।
गांधीजी ने सत्याग्रह के माध्यम से जमीनी स्तर पर संघर्ष का आह्वान किया, जिसमें सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों को प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया गया। उनका यह तरीका जनता को संगठित करने और सामाजिक बदलाव के लिए प्रेरित करने में अत्यंत प्रभावी था। इन प्रतीकों और प्रतीकात्मक भाषाओं ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को एक सामाजिक और राजनीतिक शक्ति प्रदान की और जनता की भावनाओं को आंदोलित किया।
See less19वीं सदी के सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश के संदर्भ में, शिक्षा और महिला अधिकारों के क्षेत्र में ईश्वर चंद्र विद्यासागर का योगदान अतुलनीय है। विवेचना कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
19वीं सदी के सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश में, ईश्वर चंद्र विद्यासागर का योगदान शिक्षा और महिला अधिकारों के क्षेत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण और अतुलनीय रहा है। उस समय भारतीय समाज में जातिवाद, अंधविश्वास, और महिला अधिकारों की कमी ने सामाजिक संरचना को प्रभावित किया था। विद्यासागर ने इस परिदृश्य को बदलने केRead more
19वीं सदी के सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश में, ईश्वर चंद्र विद्यासागर का योगदान शिक्षा और महिला अधिकारों के क्षेत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण और अतुलनीय रहा है। उस समय भारतीय समाज में जातिवाद, अंधविश्वास, और महिला अधिकारों की कमी ने सामाजिक संरचना को प्रभावित किया था। विद्यासागर ने इस परिदृश्य को बदलने के लिए कई क्रांतिकारी कदम उठाए।
शिक्षा के क्षेत्र में: विद्यासागर ने शिक्षा के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने बंगाली भाषा में आधुनिक शिक्षा के लिए पाठ्यक्रम तैयार किया और स्कूलों की स्थापना की। उनके प्रयासों से शिक्षा के क्षेत्र में सुधार हुआ और उन्होंने महिला शिक्षा को प्रोत्साहित किया। विद्यासागर ने “बांग्ला ग्रामर” और “बांग्ला सर्कुलर” जैसे शिक्षण सामग्री का प्रकाशन किया, जिससे शिक्षा का स्तर उन्नत हुआ।
महिला अधिकारों के क्षेत्र में: विद्यासागर ने महिला अधिकारों के प्रति गहरी संवेदनशीलता दिखाई। उन्होंने सती प्रथा और बाल विवाह के खिलाफ संघर्ष किया। 1856 में, उनके प्रयासों से विधवा पुनर्विवाह अधिनियम (Act XV) पारित हुआ, जिसने विधवाओं के लिए पुनर्विवाह की अनुमति दी और समाज में महिला स्थिति में सुधार किया। उन्होंने महिलाओं के शिक्षा और स्वतंत्रता के समर्थन में कई भाषण और लेख लिखे, जिससे समाज में जागरूकता फैली।
विद्यासागर का सामाजिक सुधार कार्य उनके समय के पारंपरिक मान्यताओं को चुनौती देते हुए एक प्रगतिशील दिशा की ओर इशारा करता है। उनकी शिक्षाओं और सुधारात्मक उपायों ने न केवल तत्कालीन समाज को प्रभावित किया बल्कि आधुनिक भारत के सामाजिक ताने-बाने पर भी गहरा प्रभाव डाला। उनकी प्रतिबद्धता और दूरदर्शिता ने भारतीय समाज में शिक्षा और महिला अधिकारों के क्षेत्र में स्थायी परिवर्तन किया।
See lessवर्ण व्यवस्था पर गाँधी के विचारों का मूल्यांकन कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2020]
गांधी के वर्ण व्यवस्था पर विचार महात्मा गांधी ने वर्ण व्यवस्था को एक आदर्श सामाजिक प्रणाली के रूप में देखा, जो व्यक्ति की योग्यता और कर्तव्यों पर आधारित थी, न कि जाति या जन्म पर। गांधीजी ने वर्ण व्यवस्था को सामाजिक समरसता और संगठन का साधन माना, जिससे समाज में प्रत्येक व्यक्ति को अपनी क्षमता अनुसार भRead more
गांधी के वर्ण व्यवस्था पर विचार
महात्मा गांधी ने वर्ण व्यवस्था को एक आदर्श सामाजिक प्रणाली के रूप में देखा, जो व्यक्ति की योग्यता और कर्तव्यों पर आधारित थी, न कि जाति या जन्म पर। गांधीजी ने वर्ण व्यवस्था को सामाजिक समरसता और संगठन का साधन माना, जिससे समाज में प्रत्येक व्यक्ति को अपनी क्षमता अनुसार भूमिका निभाने का अवसर मिलता।
हालांकि, गांधी ने जातिवाद और अछूतों के प्रति भेदभाव की निंदा की। उन्होंने अछूतों के सामाजिक और राजनीतिक अधिकारों की रक्षा की और उनकी स्थिति में सुधार के लिए सक्रिय रूप से काम किया।
गांधी का दृष्टिकोण था कि वर्ण व्यवस्था का सुधार और आधुनिकीकरण होना चाहिए, ताकि यह जातिवाद और सामाजिक असमानता को समाप्त कर सके।
निष्कर्ष: गांधी का वर्ण व्यवस्था पर दृष्टिकोण सुधारात्मक था, जिसमें सामाजिक न्याय और समरसता को प्राथमिकता दी गई।
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