Home/आधुनिक भारत/Page 11
Lost your password? Please enter your email address. You will receive a link and will create a new password via email.
Please briefly explain why you feel this question should be reported.
Please briefly explain why you feel this answer should be reported.
Please briefly explain why you feel this user should be reported.
1857 के स्वतंत्रता संग्राम के वैचारिक आयामों को रेखांकित कीजिए । (200 Words) [UPPSC 2023]
1857 के स्वतंत्रता संग्राम के वैचारिक आयाम 1. राष्ट्रवाद और स्वतंत्रता: 1857 का स्वतंत्रता संग्राम भारत में राष्ट्रवाद की जागरूकता का प्रतीक था। यह पहली बार भारतीय जनता के विभिन्न वर्गों का एक साझा लक्ष्य—स्वतंत्रता—के प्रति संघर्ष था। यह संग्राम एक सशक्त भारतीय पहचान और स्वतंत्रता के आदर्श को उजागरRead more
1857 के स्वतंत्रता संग्राम के वैचारिक आयाम
1. राष्ट्रवाद और स्वतंत्रता: 1857 का स्वतंत्रता संग्राम भारत में राष्ट्रवाद की जागरूकता का प्रतीक था। यह पहली बार भारतीय जनता के विभिन्न वर्गों का एक साझा लक्ष्य—स्वतंत्रता—के प्रति संघर्ष था। यह संग्राम एक सशक्त भारतीय पहचान और स्वतंत्रता के आदर्श को उजागर करता है।
2. धार्मिक और सांस्कृतिक पुनरुत्थान: संग्राम ने धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान की रक्षा के लिए संघर्ष को प्रमुखता दी। ब्रिटिश नीतियों के धार्मिक हस्तक्षेप और सांस्कृतिक असम्मान के खिलाफ विद्रोह ने भारतीय सांस्कृतिक अस्मिता की भावना को प्रबल किया।
3. राजनीतिक जागरूकता: इस विद्रोह ने भारतीयों को राजनीतिक जागरूकता और ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ संगठित संघर्ष की आवश्यकता का एहसास कराया। यह विद्रोह भारतीयों के लिए एक राजनीतिक चेतना और संघर्ष की शुरुआत का प्रतीक था।
4. सामाजिक असंतोष: संग्राम ने सामाजिक असंतोष और ब्रिटिश शासन के तहत शोषण के खिलाफ विद्रोह की भावना को प्रकट किया। सामंतवादी व्यवस्था और शोषणकारी नीतियों के खिलाफ एक व्यापक सामाजिक चेतना विकसित हुई।
निष्कर्ष: 1857 का स्वतंत्रता संग्राम भारत में राष्ट्रवाद, धार्मिक पुनरुत्थान, राजनीतिक जागरूकता, और सामाजिक असंतोष की भावना को दर्शाता है। यह संघर्ष भारतीय स्वतंत्रता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।
See lessऔपनिवेशिक भारत की अठारहवीं शताब्दी के मध्य से क्यों अकाल पड़ने में अचानक वृद्धि देखने को मिलती है ? कारण बताएँ। (150 words)[UPSC 2022]
अठारहवीं शताब्दी के मध्य से औपनिवेशिक भारत में अकाल की घटनाओं में अचानक वृद्धि के पीछे कई प्रमुख कारण हैं: आर्थिक नीतियां: ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की आर्थिक नीतियों ने भारतीय कृषि पर नकारात्मक प्रभाव डाला। उच्च करों और अनिवार्य कृषि उत्पादन की नीतियों ने किसानों की स्थिति को कमजोर किया और अकाल कीRead more
अठारहवीं शताब्दी के मध्य से औपनिवेशिक भारत में अकाल की घटनाओं में अचानक वृद्धि के पीछे कई प्रमुख कारण हैं:
इन कारणों से अठारहवीं शताब्दी के मध्य से भारत में अकाल की घटनाओं में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई।
See lessआधुनिक शिक्षा में सर सैयद अहमद खान के योगदान पर एक टिप्पणी लिखिए । (125 Words) [UPPSC 2023]
आधुनिक शिक्षा में सर सैयद अहमद खान के योगदान पर टिप्पणी सर सैयद अहमद खान ने आधुनिक शिक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने मुस्लिम समाज को शिक्षा की महत्वता का एहसास कराया और पारंपरिक शिक्षा को आधुनिक शिक्षा से जोड़ा। **1. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी: 1875 में, उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटीRead more
आधुनिक शिक्षा में सर सैयद अहमद खान के योगदान पर टिप्पणी
सर सैयद अहमद खान ने आधुनिक शिक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने मुस्लिम समाज को शिक्षा की महत्वता का एहसास कराया और पारंपरिक शिक्षा को आधुनिक शिक्षा से जोड़ा।
**1. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी: 1875 में, उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना की, जो आधुनिक शिक्षा के प्रचार का महत्वपूर्ण केंद्र बनी।
**2. प्रेरणा और सुधार: उन्होंने मुस्लिम समाज के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पश्चिमी शिक्षा की आवश्यकता पर जोर दिया।
**3. साहित्य और प्रकाशन: उनके द्वारा संपादित “असारुस सानादीद” जैसे लेखन, और “दस्तरख्वान” जैसी पत्रिकाओं ने शिक्षा और जागरूकता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उनकी शिक्षा नीति और सामाजिक सुधार ने भारतीय शिक्षा प्रणाली को आधुनिक दृष्टिकोण प्रदान किया और समाज में सकारात्मक बदलाव किया।
See lessउन कारणों को सूचीबद्ध कीजिए, जिन्होंने स्थायी बंदोबस्त प्रणाली की शुरुआत को प्रेरित किया। साथ ही, इसके परिणामों की विवेचना कीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
स्थायी बंदोबस्त प्रणाली (Permanent Settlement) की शुरुआत को प्रेरित करने वाले कारण निम्नलिखित थे: स्थिर राजस्व प्रणाली की आवश्यकता: ईस्ट इंडिया कंपनी को एक स्थिर और पूर्वानुमानित राजस्व प्रणाली की आवश्यकता थी ताकि वह प्रशासनिक और सैन्य खर्चों को स्थिर रूप से पूरा कर सके। स्थायित्व और स्थिरता: भूमि रRead more
स्थायी बंदोबस्त प्रणाली (Permanent Settlement) की शुरुआत को प्रेरित करने वाले कारण निम्नलिखित थे:
परिणाम:
इन कारणों और परिणामों ने स्थायी बंदोबस्त प्रणाली की प्रभावशीलता और दीर्घकालिक स्थिरता पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला।
See lessएक लोकप्रिय जन चरित्र होने के बावजूद, स्वदेशी आंदोलन 1908 के मध्य तक आते-आते समाप्त हो गया। स्पष्ट कीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
स्वदेशी आंदोलन का विघटन (1908 के मध्य तक): स्वदेशी आंदोलन, जो ब्रिटिश उपनिवेशी शासन के खिलाफ भारतीय स्वाधीनता की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास था, 1905 में बंगाल विभाजन के विरोध में शुरू हुआ। इसके अंतर्गत भारतीय वस्त्रों और उत्पादों की खरीद को बढ़ावा देने और विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करने का आह्वाRead more
स्वदेशी आंदोलन का विघटन (1908 के मध्य तक):
स्वदेशी आंदोलन, जो ब्रिटिश उपनिवेशी शासन के खिलाफ भारतीय स्वाधीनता की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास था, 1905 में बंगाल विभाजन के विरोध में शुरू हुआ। इसके अंतर्गत भारतीय वस्त्रों और उत्पादों की खरीद को बढ़ावा देने और विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करने का आह्वान किया गया। आंदोलन ने व्यापक समर्थन प्राप्त किया और भारतीयों में एकता और स्वदेशी भावना को प्रोत्साहित किया।
हालांकि, 1908 तक आते-आते आंदोलन की प्रभावशीलता में कमी आ गई। इसके मुख्य कारण थे:
इन कारकों के संयोजन ने स्वदेशी आंदोलन की गतिविधियों को कमजोर कर दिया, और यह 1908 के मध्य तक समाप्त हो गया, हालांकि इसके विचार और उद्देश्य भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के अन्य चरणों में जीवित रहे।
See lessभगत सिंह द्वारा प्रतिपादित 'क्रान्तिकारी दर्शन' पर प्रकाश डालिए। (200 Words) [UPPSC 2022]
भगत सिंह द्वारा प्रतिपादित 'क्रान्तिकारी दर्शन' भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है, जो मुख्यतः निम्नलिखित बिंदुओं पर आधारित है: 1. **आत्मनिर्भर क्रांति**: भगत सिंह ने आत्मनिर्भर क्रांति की आवश्यकता पर जोर दिया। उनका मानना था कि स्वतंत्रता की प्राप्ति और समाज में पRead more
भगत सिंह द्वारा प्रतिपादित ‘क्रान्तिकारी दर्शन’ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है, जो मुख्यतः निम्नलिखित बिंदुओं पर आधारित है:
1. **आत्मनिर्भर क्रांति**: भगत सिंह ने आत्मनिर्भर क्रांति की आवश्यकता पर जोर दिया। उनका मानना था कि स्वतंत्रता की प्राप्ति और समाज में परिवर्तन के लिए एक सशक्त क्रांतिकारी आंदोलन की आवश्यकता है, जो पूरी तरह से विदेशी शासकों के खिलाफ हो।
2. **सामाजिकवाद और समानता**: वे मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित थे और समाजवादी व्यवस्था की ओर उन्मुख थे। उनका उद्देश्य एक ऐसा समाज स्थापित करना था जहाँ वर्ग भेदभाव समाप्त हो, और सभी लोगों को समान अवसर और अधिकार मिलें।
3. **हिंसात्मक क्रांति**: भगत सिंह ने अहिंसात्मक आंदोलनों के प्रभावी होने पर संदेह किया और क्रांतिकारी हिंसा को समाज में बदलाव लाने का एक वैध माध्यम माना। उनका मानना था कि जब अन्य विकल्प असफल हो जाएं, तो सशस्त्र संघर्ष आवश्यक हो जाता है।
4. **युवाओं की भूमिका**: उन्होंने युवाओं को क्रांतिकारी आंदोलन की अग्रिम पंक्ति में देखा। उनका मानना था कि युवा वर्ग ही समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने में सक्षम है और उसे क्रांति की दिशा में प्रेरित किया जाना चाहिए।
5. **धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रीयता**: भगत सिंह ने एक धर्मनिरपेक्ष और एकजुट भारत की आवश्यकता पर बल दिया, जिसमें सभी धर्मों और जातियों का समान अधिकार हो।
भगत सिंह का क्रान्तिकारी दर्शन स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी और सामाजिक दृष्टिकोण को स्पष्ट करता है, जो हिंसा, सामाजिकवाद और युवा सशक्तिकरण पर आधारित था।
See lessसुस्पष्ट कीजिए कि मध्य-अठारहवीं शताब्दी का भारत विखंडित राज्यतंत्र की छाया से किस प्रकार ग्रसित था । (150 words) [UPSC 2017]
मध्य-अठारहवीं शताब्दी का भारत: विखंडित राज्यतंत्र परिचय: मध्य-अठारहवीं शताब्दी के भारत में राजनीतिक परिदृश्य विखंडित और अस्थिर था। इस समय भारत में विभिन्न छोटे-छोटे राज्यों और क्षेत्रीय शक्तियों का उदय हुआ, जिससे एक केंद्रीकृत शासन की कमी महसूस की गई। विखंडित राज्यतंत्र: क्षेत्रीय शक्तियों का उदय: "Read more
मध्य-अठारहवीं शताब्दी का भारत: विखंडित राज्यतंत्र
परिचय: मध्य-अठारहवीं शताब्दी के भारत में राजनीतिक परिदृश्य विखंडित और अस्थिर था। इस समय भारत में विभिन्न छोटे-छोटे राज्यों और क्षेत्रीय शक्तियों का उदय हुआ, जिससे एक केंद्रीकृत शासन की कमी महसूस की गई।
विखंडित राज्यतंत्र:
निष्कर्ष: मध्य-अठारहवीं शताब्दी का भारत विखंडित राज्यतंत्र की छाया से ग्रसित था, जिसमें क्षेत्रीय शक्तियाँ और छोटे-छोटे राज्य एक केंद्रीकृत शासन के अभाव में अपनी स्वायत्तता और शक्ति को बनाए रखने के लिए संघर्षरत थे। यह अस्थिरता और विभाजन बाद में एक एकीकृत भारतीय राष्ट्र के निर्माण में महत्वपूर्ण बाधाओं में से एक बनी।
See less1940 के दशक के दौरान सत्ता हस्तान्तरण की प्रक्रिया को जटिल बनाने में ब्रिटिश साम्राज्यिक सत्ता की भूमिका का आकलन कीजिए। (250 words) [UPSC 2019]
1940 के दशक के दौरान सत्ता हस्तान्तरण की प्रक्रिया में ब्रिटिश साम्राज्यिक सत्ता की भूमिका परिचय: 1940 के दशक का समय भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जब स्वतंत्रता संग्राम ने अपनी चरम अवस्था को छू लिया और ब्रिटिश साम्राज्य ने भारत में सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया को प्रारंभ किया। इस दशक मेंRead more
1940 के दशक के दौरान सत्ता हस्तान्तरण की प्रक्रिया में ब्रिटिश साम्राज्यिक सत्ता की भूमिका
परिचय: 1940 के दशक का समय भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जब स्वतंत्रता संग्राम ने अपनी चरम अवस्था को छू लिया और ब्रिटिश साम्राज्य ने भारत में सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया को प्रारंभ किया। इस दशक में ब्रिटिश साम्राज्य की भूमिका सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया को जटिल बनाने में महत्वपूर्ण रही।
ब्रिटिश साम्राज्य की भूमिका:
हाल की घटनाएँ: हाल ही में, “ब्रिटिश साम्राज्य के आखिरी वर्ष” पर आधारित शोध और ऐतिहासिक विश्लेषण ने इस समय के घटनाक्रमों की जटिलताओं को स्पष्ट किया है। इन विश्लेषणों ने ब्रिटिश साम्राज्य की नीति और भारतीय नेताओं के परस्पर संबंधों की जटिलताओं को उजागर किया है।
निष्कर्ष: 1940 के दशक के दौरान सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया को जटिल बनाने में ब्रिटिश साम्राज्य की भूमिका केंद्रीय रही। उनकी नीतियों और निर्णयों ने स्वतंत्रता की दिशा में आगे बढ़ने की प्रक्रिया को बाधित किया और अंततः भारत के विभाजन और स्वतंत्रता की राह को कठिन बना दिया। ब्रिटिश साम्राज्य की भूमिका की समीक्षा से वर्तमान समय में सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रियाओं को समझने में मदद मिलती है।
See lessउन्नीसवीं शताब्दी के 'भारतीय पुनर्जागरण' और राष्ट्रीय पहचान के उद्भव के मध्य सहलग्नताओं का परीक्षण कीजिए । (250 words) [UPSC 2019]
उन्नीसवीं शताब्दी का भारतीय पुनर्जागरण और राष्ट्रीय पहचान परिचय: उन्नीसवीं शताब्दी के भारतीय पुनर्जागरण ने भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन की शुरुआत की, जिसमें सामाजिक, सांस्कृतिक, और राजनीतिक तत्वों ने मिलकर एक नई राष्ट्रीय पहचान को आकार दिया। यह युग भारतीय समाज की एक नई दिशा और पहचान की खोजRead more
उन्नीसवीं शताब्दी का भारतीय पुनर्जागरण और राष्ट्रीय पहचान
परिचय: उन्नीसवीं शताब्दी के भारतीय पुनर्जागरण ने भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन की शुरुआत की, जिसमें सामाजिक, सांस्कृतिक, और राजनीतिक तत्वों ने मिलकर एक नई राष्ट्रीय पहचान को आकार दिया। यह युग भारतीय समाज की एक नई दिशा और पहचान की खोज का दौर था, जिसमें भारतीय पुनर्जागरण और राष्ट्रीय पहचान के उद्भव के बीच कई सहलग्नताएँ देखी गईं।
भारतीय पुनर्जागरण: भारतीय पुनर्जागरण ने भारतीय समाज को नई दृष्टि और विचारधारा की ओर अग्रसर किया। इसके प्रमुख तत्वों में शामिल हैं:
राष्ट्रीय पहचान का उद्भव: भारतीय पुनर्जागरण ने राष्ट्रीय पहचान के उद्भव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई:
हाल की घटनाएँ: आज के समय में, भारतीय पुनर्जागरण के तत्वों का पुनरावलोकन हो रहा है, जैसे कि पुनर्जागरण नेताओं के योगदान की पुनर्समीक्षा और उनके विचारों का आधुनिक समाज पर प्रभाव। स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों की नयी पीढ़ी को पहचान और राष्ट्रीयता की नई परिभाषा भी इस संदर्भ में महत्वपूर्ण हैं।
निष्कर्ष: उन्नीसवीं शताब्दी का भारतीय पुनर्जागरण और राष्ट्रीय पहचान के उद्भव के बीच सहलग्नताएँ दर्शाती हैं कि कैसे सांस्कृतिक और सामाजिक परिवर्तन ने राजनीतिक जागरूकता को बढ़ावा दिया। यह युग एक सशक्त भारतीय पहचान की नींव रखता है, जो आज भी भारतीय समाज की सामाजिक और राष्ट्रीय भावनाओं को प्रेरित करती है।
See less1857 का विप्लव ब्रिटिश शासन के पूर्ववर्ती सौ वर्षों में बार-बार घटित छोटे एवं बड़े स्थानीय विद्रोहों का चरमोत्कर्ष था । सुस्पष्ट कीजिए । (250 words) [UPSC 2019]
1857 का विप्लव: ब्रिटिश शासन के पूर्ववर्ती विद्रोहों का चरमोत्कर्ष परिचय: 1857 का विप्लव, जिसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पहले महायुद्ध के रूप में भी जाना जाता है, ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक व्यापक जन आंदोलन था। यह विद्रोह ब्रिटिश शासन के पूर्ववर्ती सौ वर्षों में घटित विभिन्न छोटे और बड़े स्थानीय विRead more
1857 का विप्लव: ब्रिटिश शासन के पूर्ववर्ती विद्रोहों का चरमोत्कर्ष
परिचय: 1857 का विप्लव, जिसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पहले महायुद्ध के रूप में भी जाना जाता है, ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक व्यापक जन आंदोलन था। यह विद्रोह ब्रिटिश शासन के पूर्ववर्ती सौ वर्षों में घटित विभिन्न छोटे और बड़े स्थानीय विद्रोहों का चरमोत्कर्ष था। इस विद्रोह ने स्पष्ट किया कि भारतीय समाज में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के प्रति असंतोष और विद्रोह की भावना काफी गहरी और व्यापक थी।
पूर्ववर्ती विद्रोहों का इतिहास:
अंतिम विश्लेषण: 1857 का विप्लव उन सभी स्थानीय विद्रोहों का एकीकरण और ऊर्ध्वगामी परिणति था। यह विद्रोह एक व्यापक सामाजिक और राजनीतिक आंदोलन था, जिसने ब्रिटिश शासन की नीतियों और क्रूरता के खिलाफ भारतीय जनमानस की गहरी असंतोषपूर्ण भावना को व्यक्त किया। इसने ब्रिटिश शासन को यह स्पष्ट किया कि भारतीय समाज में असंतोष की भावना न केवल स्थानीय स्तर पर थी, बल्कि एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन के रूप में भी सामने आई।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य: हाल ही में, 1857 के विद्रोह की 150वीं सालगिरह पर आयोजित कार्यक्रमों और शोध ने इस विद्रोह की ऐतिहासिक महत्वता को पुनः प्रमाणित किया है। विवादास्पद मुद्दे, जैसे कि विद्रोह के नायकों की पुनः मान्यता और उनके योगदान को सही प्रकार से प्रस्तुत करना, आज भी महत्वपूर्ण हैं। इस प्रकार, 1857 का विप्लव ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय समाज के एकता और विरोध की भावना का प्रतीक बना हुआ है।
See less