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भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के आरंभिक चरण में प्रेस द्वारा निभाई गई भूमिका का परीक्षण कीजिए। साथ ही, इस अवधि के दौरान भारतीय प्रेस के सामने आने वाली चुनौतियों का भी वर्णन कीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के आरंभिक चरण में प्रेस ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्रेस ने जनता को जागरूक किया, उन्हें संघर्ष की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान किया और अंधकार की जगह जागरूकता और स्वाधीनता की भावना फैलाई। इस अवधि के दौरान, भारतीय प्रेस को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। ब्रिटिश सरकार ने प्रेसRead more
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के आरंभिक चरण में प्रेस ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्रेस ने जनता को जागरूक किया, उन्हें संघर्ष की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान किया और अंधकार की जगह जागरूकता और स्वाधीनता की भावना फैलाई।
इस अवधि के दौरान, भारतीय प्रेस को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। ब्रिटिश सरकार ने प्रेस को नियंत्रित करने का प्रयास किया, सेंसरशिप लगाई, और स्वतंत्रता को दबाने की कोशिश की। प्रेस को निषेधित किया गया, उसकी स्वतंत्रता को कम किया गया और उसे सरकारी प्रभाव के तहत लाने की कोशिश की गई।
भारतीय प्रेस ने इन चुनौतियों का मुकाबला किया और स्वतंत्रता की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई। प्रेस ने सत्य को सामने रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया और जनता को एकजुट करने में मदद की।
See lessभारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा निभाई गई भूमिका का परीक्षण कीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में एक महत्वपूर्ण और प्रेरणास्त्रोत रहे हैं। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता के लिए अपने जीवन की कठिन परिस्थितियों का सामना किया और देश को स्वतंत्र कराने के लिए अपनी भूमिका निभाई। नेताजी ने भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में एक ऊर्जावान और प्रेरणास्त्रोत नेता केRead more
नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में एक महत्वपूर्ण और प्रेरणास्त्रोत रहे हैं। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता के लिए अपने जीवन की कठिन परिस्थितियों का सामना किया और देश को स्वतंत्र कराने के लिए अपनी भूमिका निभाई।
नेताजी ने भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में एक ऊर्जावान और प्रेरणास्त्रोत नेता के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने भारतीयों को स्वतंत्रता के लिए उत्साहित किया और उन्हें ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ एकजुट होने के लिए प्रेरित किया।
नेताजी ने भारतीय राष्ट्रीय सेना की स्थापना की और भारत के स्वतंत्रता संघर्ष को एक नया दिशा दी। उनके नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष की आग में नयी ऊर्जा और साहस आया। नेताजी का योगदान भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में अविस्मरणीय है और उन्होंने देश को स्वतंत्रता की ओर एक नयी दिशा दी।
See less1765 से 1833 तक ब्रिटिश राज के साथ ईस्ट इंडिया कंपनी के संबंधों के विकास का पता लगाइए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
1765 से 1833 तक, ब्रिटिश राज के साथ ईस्ट इंडिया कंपनी के संबंधों का विकास एक महत्वपूर्ण अध्याय था। इस अवधि में कंपनी ने भारत में अपनी धार्मिक, सामाजिक, और आर्थिक शक्ति को मजबूत किया। 1765 में कंपनी को बिहार, उड़ीसा, और बंगाल के सम्राट की दरबारी आदेश से व्यवस्था करने का अधिकार मिला। इससे कंपनी की आर्Read more
1765 से 1833 तक, ब्रिटिश राज के साथ ईस्ट इंडिया कंपनी के संबंधों का विकास एक महत्वपूर्ण अध्याय था। इस अवधि में कंपनी ने भारत में अपनी धार्मिक, सामाजिक, और आर्थिक शक्ति को मजबूत किया।
1765 में कंपनी को बिहार, उड़ीसा, और बंगाल के सम्राट की दरबारी आदेश से व्यवस्था करने का अधिकार मिला। इससे कंपनी की आर्थिक शक्ति में वृद्धि हुई।
1784 में पास हुए पिट्स अधिनियम के बाद कंपनी का शासनिक अधिकार कम हो गया और ब्रिटिश सरकार की निगरानी में आ गई।
कंपनी के साथ संबंध अधिक दक्षिण भारत में मजबूत थे। इस अवधि में कंपनी ने व्यापार, कृषि, और राजनीति में अपनी उपस्थिति को मजबूत किया।
1833 में गोलीय कानून के बाद, ब्रिटिश सरकार ने ईस्ट इंडिया कंपनी के सारे शासन को खत्म कर दिया और भारत पर सीधा नियंत्रण स्थापित किया।
See lessअसहयोग आंदोलन के पश्चात् क्रांतिकारी गतिविधियों के उदय के पीछे निहित कारणों को उदाहरण सहित समझाइए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
असहयोग आंदोलन के पश्चात् क्रांतिकारी गतिविधियों के उदय के पीछे कई कारण थे। नेतृत्व की अभाव: असहयोग आंदोलन के दौरान नेतृत्व की कमी थी, लेकिन इसके बाद कुछ नेताओं ने अभियानों का संचालन किया जो लोगों को ध्यान में रखने में माहिर थे। उत्पीड़न और अत्याचार: सामाजिक वर्गों के उत्पीड़न और अत्याचार के कारण लोगRead more
असहयोग आंदोलन के पश्चात् क्रांतिकारी गतिविधियों के उदय के पीछे कई कारण थे।
इन कारणों के संयोजन से क्रांतिकारी गतिविधियों में वृद्धि हुई और लोगों के बीच एक नया जागरूकता स्तर उत्पन्न हुआ।
See lessचंपारण, अहमदाबाद और खेड़ा में की गई पहलों ने गांधीजी को गरीबों के प्रति गहरी सहानुभूति वाले एक राष्ट्रवादी के रूप में चिन्हित किया। विवेचना कीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
चंपारण, अहमदाबाद और खेड़ा जैसे स्थानों पर की गई पहलों ने महात्मा गांधी को गरीबों के प्रति गहरी सहानुभूति और एक राष्ट्रवादी के रूप में चिन्हित किया। चंपारण: चंपारण आंदोलन ने गांधीजी के राष्ट्रीय धार्मिकता और गरीबी के खिलाफ उनकी अभिलाषा के विचारों को प्रकट किया। यहां गांधीजी गरीब किसानों के साथ खड़े हRead more
चंपारण, अहमदाबाद और खेड़ा जैसे स्थानों पर की गई पहलों ने महात्मा गांधी को गरीबों के प्रति गहरी सहानुभूति और एक राष्ट्रवादी के रूप में चिन्हित किया।
चंपारण: चंपारण आंदोलन ने गांधीजी के राष्ट्रीय धार्मिकता और गरीबी के खिलाफ उनकी अभिलाषा के विचारों को प्रकट किया। यहां गांधीजी गरीब किसानों के साथ खड़े होकर उनकी मदद करने के लिए आए थे।
अहमदाबाद: अहमदाबाद के तापमानुं में विविधता और सद्भावना की भावना गांधीजी के द्वारा बढ़ाई गई थी। इसे उनके नैतिक और धार्मिक सिद्धांतों का प्रदर्शन माना गया।
खेड़ा: खेड़ा आंदोलन ने गांधीजी के आध्यात्मिकता और अहिंसा के सिद्धांत को उनकी नेतृत्व में प्रकट किया। यहां गांधीजी ने अहिंसा के माध्यम से आजादी के लिए लड़ने का संदेश दिया।
इन स्थानों पर हुए आंदोलन गांधीजी के विचारों और दृष्टिकोण को समर्थन करते हुए उन्हें गरीबों के मसीहा और एक सच्चे राष्ट्रवादी के रूप में प्रशंसा की गई।
See lessभारत में होमरूल आंदोलन के विकास और साथ ही इसके योगदानों का विवरण दीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
होमरूल आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का महत्वपूर्ण अध्याय था जो 1942 में आयोजित किया गया था। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य से आजादी प्राप्त करना था। होमरूल आंदोलन का उद्देश्य ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध प्रकट करना और स्वतंत्रता की मांग को मजबूत करना था। इस आंदोलन का आरंभ गांधीजी कRead more
होमरूल आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का महत्वपूर्ण अध्याय था जो 1942 में आयोजित किया गया था। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य से आजादी प्राप्त करना था।
होमरूल आंदोलन का उद्देश्य ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध प्रकट करना और स्वतंत्रता की मांग को मजबूत करना था। इस आंदोलन का आरंभ गांधीजी के आह्वान पर हुआ था और यह अंग्रेजों के खिलाफ विरोध और स्वतंत्रता की मांग को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न राष्ट्रीय संगठनों द्वारा समर्थित किया गया।
होमरूल आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया और इसने भारतीय जनता की सामर्थ्य और एकता को दिखाया। इस आंदोलन ने भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन को एक मजबूत संदेश दिया कि भारतीय लोग विद्रोह और स्वतंत्रता के लिए एकजुट हो सकते हैं।
See lessभारत में 19वीं शताब्दी में प्रचलित सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन में समाज सुधारकों के योगदान का संक्षिप्त विवरण दीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
19वीं शताब्दी भारत में सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन में समाज सुधारकों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस समय के समाज सुधारकों ने विभिन्न क्षेत्रों में कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर काम किया। राजा राममोहन राय: उन्होंने समाज में सुधार के लिए स्वदेशी शिक्षा, विदेशी वस्त्र त्याग, विधवा पुनर्विवाह आदि के मुद्दों परRead more
19वीं शताब्दी भारत में सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन में समाज सुधारकों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस समय के समाज सुधारकों ने विभिन्न क्षेत्रों में कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर काम किया।
इन समाज सुधारकों के प्रयासों से भारतीय समाज में कई सामाजिक कुरीतियाँ समाप्त हुईं और नई सोच और अद्यतन मूल्यों की दिशा में गम्भीर प्रयास किए गए।
See lessप्रेस की आजादी के लिये संघर्ष में राष्ट्रवादी नेता बाल गंगाधर तिलक के योगदान का वर्णन कीजिए। (125 Words) [UPPSC 2022]
बाल गंगाधर तिलक का प्रेस की आज़ादी के संघर्ष में योगदान 1. पत्रकारिता का प्रचार: पत्रिकाएँ: बाल गंगाधर तिलक ने केसरी (मराठी) और द महरट्टा (अंग्रेज़ी) जैसे समाचार पत्रों के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम को गति दी। इन पत्रिकाओं के माध्यम से उन्होंने ब्रिटिश शासन की आलोचना की और राष्ट्रीय भावनाओं को प्रRead more
बाल गंगाधर तिलक का प्रेस की आज़ादी के संघर्ष में योगदान
1. पत्रकारिता का प्रचार:
2. प्रेस सेंसरशिप के खिलाफ संघर्ष:
3. सार्वजनिक जागरूकता:
4. कानूनी संघर्ष:
निष्कर्ष: बाल गंगाधर तिलक का प्रेस की आज़ादी के लिए संघर्ष ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, और उन्होंने स्वतंत्र पत्रकारिता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम को प्रेरित किया।
See lessअसहयोग आन्दोलन एवं सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान महात्मा गाँधी के रचनात्मक कार्यक्रमों को स्पष्ट कीजिए । (250 words) [UPSC 2021]
महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन (1920-22) और सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930-34) के दौरान रचनात्मक कार्यक्रमों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य न केवल ब्रिटिश सरकार की नीतियों का विरोध करना था, बल्कि भारतीय समाज में आत्मनिर्भरता और सुधार को भी बढ़ावा देनाRead more
महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन (1920-22) और सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930-34) के दौरान रचनात्मक कार्यक्रमों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य न केवल ब्रिटिश सरकार की नीतियों का विरोध करना था, बल्कि भारतीय समाज में आत्मनिर्भरता और सुधार को भी बढ़ावा देना था।
असहयोग आंदोलन (1920-22):
See lessस्वदेशी आंदोलन: गांधी ने विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करने और स्वदेशी वस्त्रों को अपनाने की अपील की। इसके अंतर्गत भारतीय कपड़े, विशेष रूप से खादी, को प्रोत्साहित किया गया।
शिक्षा सुधार: गांधी ने भारतीय शिक्षा प्रणाली में सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने स्वदेशी स्कूलों और कॉलेजों की स्थापना की, और शिक्षण को स्वदेशी संस्कारों से जोड़ने का प्रयास किया।
स्वच्छता और सामाजिक सुधार: गांधी ने स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया और गांवों में सफाई अभियानों का आयोजन किया। इसके साथ ही, उन्होंने जातिवाद और छुआछूत के खिलाफ संघर्ष किया और सामाजिक सुधारों की दिशा में काम किया।
सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930-34):
नमक सत्याग्रह: गांधी ने नमक कर के खिलाफ अभियान चलाया, जिसके तहत 1930 में दांडी मार्च किया। यह मार्च ब्रिटिश नमक कानून के खिलाफ था और नमक बनाने के अधिकार की मांग की गई।
भूमि सुधार और ग्रामीण विकास: गांधी ने ग्रामीण क्षेत्रों के विकास और भूमि सुधार पर जोर दिया। उन्होंने ग्रामीण आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिए कई कार्यक्रम चलाए।
स्वराज की शिक्षा: सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान, गांधी ने स्वराज के अर्थ और महत्व को स्पष्ट किया और इसके लिए लोगों को जागरूक किया। उन्होंने स्वराज को केवल राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं बल्कि आर्थिक और सामाजिक स्वतंत्रता के रूप में भी परिभाषित किया।
गांधी के इन रचनात्मक कार्यक्रमों ने भारतीय समाज को आत्मनिर्भरता की ओर प्रेरित किया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक मजबूत जनआंदोलन तैयार किया। इन कार्यक्रमों ने न केवल स्वतंत्रता संग्राम को शक्ति प्रदान की, बल्कि भारतीय समाज में स्वदेशी उत्पादों और सामाजिक सुधारों के महत्व को भी रेखांकित किया।
राज्यों एवं प्रदेशों का राजनीतिक और प्रशासनिक पुनर्गठन उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य से निरंतर चल रही एक प्रक्रिया है। उदाहरण सहित विचार करें। (250 words) [UPSC 2022]
राज्यों और प्रदेशों का राजनीतिक और प्रशासनिक पुनर्गठन उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य से एक निरंतर प्रक्रिया रही है, जिसने भारत के राजनीतिक और प्रशासनिक ढांचे को कई बार बदल दिया है। उन्नीसवीं शताब्दी का पुनर्गठन: उन्नीसवीं सदी में, ब्रिटिश शासन के तहत भारत में प्रशासनिक पुनर्गठन की कई घटनाएँ हुईं। 1857 केRead more
राज्यों और प्रदेशों का राजनीतिक और प्रशासनिक पुनर्गठन उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य से एक निरंतर प्रक्रिया रही है, जिसने भारत के राजनीतिक और प्रशासनिक ढांचे को कई बार बदल दिया है।
उन्नीसवीं शताब्दी का पुनर्गठन: उन्नीसवीं सदी में, ब्रिटिश शासन के तहत भारत में प्रशासनिक पुनर्गठन की कई घटनाएँ हुईं। 1857 के विद्रोह के बाद, ब्रिटिश सरकार ने प्रशासनिक नियंत्रण को मजबूत किया और विभिन्न प्रांतों में बदलाव किए। 1861 में, भारतीय परिषद अधिनियम ने प्रांतों के प्रशासन को अधिक स्वायत्तता दी और प्रांतीय विधान परिषदों का गठन किया।
बीसवीं सदी का पुनर्गठन: स्वतंत्रता के बाद, भारत में कई महत्वपूर्ण पुनर्गठन किए गए। 1956 में, भारतीय राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों पर राज्यों की सीमाओं को भाषाई आधार पर पुनर्व्यवस्थित किया गया। इस प्रक्रिया के तहत, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, और गुजरात जैसे नए राज्यों का निर्माण हुआ, जिससे राज्यों का आकार और प्रशासनिक संरचना अधिक सुसंगठित और स्थानीय भाषाओं के अनुरूप हो गई।
वर्तमान समय का पुनर्गठन: हाल ही में, 2000 में झारखंड, उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ का गठन हुआ, जो पहले बड़े राज्यों के हिस्से थे। यह पुनर्गठन स्थानीय प्रशासन को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने और क्षेत्रीय असंतोष को कम करने के उद्देश्य से किया गया।
ये सभी परिवर्तन भारत की विविधताओं और प्रशासनिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए किए गए हैं। इन पुनर्गठनों ने स्थानीय प्रशासन को अधिक प्रभावी और जन-संवेदनशील बनाने में मदद की है, जिससे क्षेत्रीय विकास और प्रशासनिक दक्षता में सुधार हुआ है।
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