भगत सिंह द्वारा प्रतिपादित ‘क्रान्तिकारी दर्शन’ पर प्रकाश डालिए। (200 Words) [UPPSC 2022]
सरदार वल्लभभाई पटेल, जिन्हें "लौह पुरुष" के रूप में जाना जाता है, का भारत की एकता में योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, पटेल ने भारतीय राज्य व्यवस्था को एकजुट करने और विभाजन के दौर में देश की अखंडता बनाए रखने के लिए अभूतपूर्व प्रयास किए। विभाजन और एकीकरण: 1947 में स्वतंत्रताRead more
सरदार वल्लभभाई पटेल, जिन्हें “लौह पुरुष” के रूप में जाना जाता है, का भारत की एकता में योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, पटेल ने भारतीय राज्य व्यवस्था को एकजुट करने और विभाजन के दौर में देश की अखंडता बनाए रखने के लिए अभूतपूर्व प्रयास किए।
विभाजन और एकीकरण: 1947 में स्वतंत्रता के बाद, भारत में 565 स्वतंत्र रियासतें थीं। पटेल ने अपनी राजनीतिक सूझबूझ और कूटनीति का उपयोग कर इन्हें भारतीय संघ में शामिल किया। उन्होंने रियासतों के शासकों से प्रभावी बातचीत की और उन्हें भारतीय संघ में शामिल होने के लिए राजी किया, जिससे एक सशक्त और एकीकृत भारत का निर्माण हुआ।
सैनिक और प्रशासनिक उपाय: पटेल ने भारतीय सेना और प्रशासन का उपयोग करके कई रियासतों को शांतिपूर्वक भारतीय संघ में लाने में मदद की, जैसे जम्मू-कश्मीर और हैदराबाद।
पटेल की नेतृत्व क्षमता और दृढ़ संकल्प ने एक सशक्त और एकीकृत भारत की नींव रखी, और उन्हें भारतीय एकता के वास्तुकार के रूप में मान्यता प्राप्त है।
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भगत सिंह का 'क्रान्तिकारी दर्शन' भगत सिंह भारत की स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। उनका 'क्रान्तिकारी दर्शन' मार्क्सवाद, समाजवाद और साम्राज्यवाद-विरोधी विचारों से प्रभावित था। इसके कुछ प्रमुख पहलु हैं: साम्राज्यवाद-विरोध और राष्ट्रवाद: भगत सिंह ब्रिटिशRead more
भगत सिंह का ‘क्रान्तिकारी दर्शन’
भगत सिंह भारत की स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। उनका ‘क्रान्तिकारी दर्शन’ मार्क्सवाद, समाजवाद और साम्राज्यवाद-विरोधी विचारों से प्रभावित था। इसके कुछ प्रमुख पहलु हैं:
भगत सिंह के आदर्शों को दर्शाने वाले हालिया उदाहरण:
संक्षेप में, भगत सिंह का ‘क्रान्तिकारी दर्शन’ भारत में सामाजिक और आर्थिक न्याय के लिए चलने वाले चल रहे संघर्ष को प्रेरित और मार्गदर्शित करता है। उनका साम्राज्यवाद-विरोध, समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता के प्रति प्रतिबद्धता आज भी प्रासंगिक है।
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