असहयोग आन्दोलन एवं सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान महात्मा गाँधी के रचनात्मक कार्यक्रमों को स्पष्ट कीजिए । (250 words) [UPSC 2021]
सविनय अवज्ञा आंदोलन का मूल्यांकन सविनय अवज्ञा आंदोलन, जिसे सिविल डिसऑबीडियंस मूवमेंट के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक महत्वपूर्ण क्रांतिकारी पहल थी। महात्मा गांधी के नेतृत्व में चलाए गए इस आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई। इस आंदोलन का मूल्यांकन करतेRead more
सविनय अवज्ञा आंदोलन का मूल्यांकन
सविनय अवज्ञा आंदोलन, जिसे सिविल डिसऑबीडियंस मूवमेंट के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक महत्वपूर्ण क्रांतिकारी पहल थी। महात्मा गांधी के नेतृत्व में चलाए गए इस आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई। इस आंदोलन का मूल्यांकन करते समय इसके उद्देश्य, कार्यान्वयन, प्रभाव, और हाल की ऐतिहासिक पुनर्मूल्यांकन पर ध्यान देना आवश्यक है।
1. आंदोलन के उद्देश्य:
- ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध: सविनय अवज्ञा आंदोलन का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश औपनिवेशिक कानूनों और नीतियों, विशेषकर उन कानूनों के खिलाफ विरोध करना था जो भारतीयों के अधिकारों का उल्लंघन करते थे। इसका प्रमुख लक्ष्य ब्रिटिश नमक कर का विरोध करना था।
- स्वराज (आत्म-शासन): आंदोलन का एक बड़ा लक्ष्य भारत में आत्म-शासन प्राप्त करना था। गांधीजी ने एक व्यापक आंदोलन का आह्वान किया जिसमें विभिन्न वर्गों और समाज के लोगों को स्वतंत्रता संघर्ष में शामिल किया जा सके।
2. आंदोलन का कार्यान्वयन:
- नमक सत्याग्रह: आंदोलन की शुरुआत 12 मार्च 1930 को गांधीजी द्वारा दांडी मार्च से की गई, जिसमें उन्होंने 240 मील की यात्रा की और समुद्र के पानी से नमक बनाया, ब्रिटिश नमक मोनोपली का उल्लंघन किया। यह कदम अत्यधिक प्रतीकात्मक था और भारतीय जनता के बीच गहरा प्रभाव डाला।
- जन भागीदारी: इस आंदोलन में भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों ने भाग लिया, जिसमें किसान, श्रमिक, और शहरी नागरिक शामिल थे। लोगों ने करों का भुगतान न करने, ब्रिटिश वस्त्रों का बहिष्कार करने और नमक कानूनों का उल्लंघन करने जैसे कार्य किए।
3. प्रभाव और परिणाम:
- राजनीतिक प्रभाव: इस आंदोलन ने ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन को कड़ी चुनौती दी। इसने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का ध्यान भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष की ओर आकर्षित किया और ब्रिटिश सरकार को बातचीत के लिए मजबूर किया। इसके परिणामस्वरूप गांधी-इरविन संधि (1931) हुई, जिसमें कई कांग्रेस मांगें स्वीकार की गईं, जैसे राजनीतिक बंदियों की रिहाई और गांधीजी को गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने की अनुमति।
- सामाजिक प्रभाव: आंदोलन ने भारतीयों के बीच राष्ट्रीय एकता और राजनीतिक जागरूकता को बढ़ावा दिया। इसने औपनिवेशिक शोषण और आर्थिक असमानताओं को उजागर किया, जिससे स्वतंत्रता आंदोलन के प्रति जनसमर्थन बढ़ा।
- दमन और सुधार: आंदोलन के जवाब में ब्रिटिश सरकार ने दमनात्मक उपायों को अपनाया, जिसमें बड़े पैमाने पर गिरफ्तारी और पुलिस अत्याचार शामिल थे। बावजूद इसके, आंदोलन ने स्वतंत्रता संग्राम के एजेंडे को जीवित रखा और इसके महत्व को साबित किया।
4. हाल की ऐतिहासिक पुनर्मूल्यांकन:
- यथार्थवादी विश्लेषण: हाल के वर्षों में, सविनय अवज्ञा आंदोलन की भूमिका और रणनीतियों की पुनर्मूल्यांकन की गई है। हालांकि इसने जन समर्थन जुटाने में सफलता प्राप्त की, लेकिन इसकी आलोचना भी की गई है कि यह आर्थिक मुद्दों और सभी वर्गों की आवश्यकताओं को पूरी तरह से संबोधित नहीं कर सका।
- विरासत और प्रभाव: सविनय अवज्ञा आंदोलन अहिंसात्मक प्रतिरोध का एक महत्वपूर्ण उदाहरण बना और इसके सिद्धांत ने अन्य वैश्विक न्याय और नागरिक अधिकार आंदोलनों को प्रभावित किया। आधुनिक आंदोलनों, जैसे पर्यावरण न्याय या लोकतांत्रिक अधिकारों के आंदोलन, अक्सर गांधीजी के अहिंसात्मक प्रतिरोध के सिद्धांतों से प्रेरित होते हैं।
5. तुलनात्मक विश्लेषण:
- अन्य आंदोलनों के साथ तुलना: अन्य स्वतंत्रता आंदोलनों, जैसे कि सुभाष चंद्र बोस द्वारा नेतृत्व किए गए सशस्त्र संघर्ष या क्रांतिकारी गुटों द्वारा चलाए गए आंदोलनों के साथ तुलना की जाए तो, सविनय अवज्ञा आंदोलन ने अहिंसा और जन आंदोलन पर जोर दिया। यह विविध रणनीतियों के तहत स्वतंत्रता संघर्ष की विभिन्न परतों को दर्शाता है।
निष्कर्ष
सविनय अवज्ञा आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली चरण था। महात्मा गांधी के नेतृत्व में यह आंदोलन न केवल ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक व्यापक जन प्रतिरोध का प्रतीक बना, बल्कि यह अहिंसात्मक प्रतिरोध के सिद्धांत को भी वैश्विक मंच पर प्रस्तुत किया। हाल की ऐतिहासिक पुनर्मूल्यांकन ने इसके योगदान और सीमाओं को उजागर किया है, जिससे इसका महत्व स्वतंत्रता संग्राम की व्यापक कथा में और भी स्पष्ट हो गया है।
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महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन (1920-22) और सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930-34) के दौरान रचनात्मक कार्यक्रमों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य न केवल ब्रिटिश सरकार की नीतियों का विरोध करना था, बल्कि भारतीय समाज में आत्मनिर्भरता और सुधार को भी बढ़ावा देनाRead more
महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन (1920-22) और सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930-34) के दौरान रचनात्मक कार्यक्रमों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य न केवल ब्रिटिश सरकार की नीतियों का विरोध करना था, बल्कि भारतीय समाज में आत्मनिर्भरता और सुधार को भी बढ़ावा देना था।
असहयोग आंदोलन (1920-22):
See lessस्वदेशी आंदोलन: गांधी ने विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करने और स्वदेशी वस्त्रों को अपनाने की अपील की। इसके अंतर्गत भारतीय कपड़े, विशेष रूप से खादी, को प्रोत्साहित किया गया।
शिक्षा सुधार: गांधी ने भारतीय शिक्षा प्रणाली में सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने स्वदेशी स्कूलों और कॉलेजों की स्थापना की, और शिक्षण को स्वदेशी संस्कारों से जोड़ने का प्रयास किया।
स्वच्छता और सामाजिक सुधार: गांधी ने स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया और गांवों में सफाई अभियानों का आयोजन किया। इसके साथ ही, उन्होंने जातिवाद और छुआछूत के खिलाफ संघर्ष किया और सामाजिक सुधारों की दिशा में काम किया।
सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930-34):
नमक सत्याग्रह: गांधी ने नमक कर के खिलाफ अभियान चलाया, जिसके तहत 1930 में दांडी मार्च किया। यह मार्च ब्रिटिश नमक कानून के खिलाफ था और नमक बनाने के अधिकार की मांग की गई।
भूमि सुधार और ग्रामीण विकास: गांधी ने ग्रामीण क्षेत्रों के विकास और भूमि सुधार पर जोर दिया। उन्होंने ग्रामीण आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिए कई कार्यक्रम चलाए।
स्वराज की शिक्षा: सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान, गांधी ने स्वराज के अर्थ और महत्व को स्पष्ट किया और इसके लिए लोगों को जागरूक किया। उन्होंने स्वराज को केवल राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं बल्कि आर्थिक और सामाजिक स्वतंत्रता के रूप में भी परिभाषित किया।
गांधी के इन रचनात्मक कार्यक्रमों ने भारतीय समाज को आत्मनिर्भरता की ओर प्रेरित किया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक मजबूत जनआंदोलन तैयार किया। इन कार्यक्रमों ने न केवल स्वतंत्रता संग्राम को शक्ति प्रदान की, बल्कि भारतीय समाज में स्वदेशी उत्पादों और सामाजिक सुधारों के महत्व को भी रेखांकित किया।