Home/आधुनिक भारत/भारत के राष्ट्रवादी आन्दोलन (1919-1939)
Lost your password? Please enter your email address. You will receive a link and will create a new password via email.
Please briefly explain why you feel this question should be reported.
Please briefly explain why you feel this answer should be reported.
Please briefly explain why you feel this user should be reported.
पिछली शताब्दी के तीसरे दशक से भारतीय स्वतंत्रता की स्वप्न दृष्टि के साथ सम्बद्ध हो गए नए उद्देश्यों के महत्त्व को उजागर कीजिए। (250 words) [UPSC 2017]
पिछली शताब्दी के तीसरे दशक के नए उद्देश्यों की महत्ता पिछली शताब्दी के तीसरे दशक (1930-1940) में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक नया मोड़ आया, जिसमें नए उद्देश्यों और दृष्टिकोणों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन नए उद्देश्यों ने स्वतंत्रता संग्राम को न केवल एक नई दिशा दी, बल्कि इसे व्यापक और प्रभावशालRead more
पिछली शताब्दी के तीसरे दशक के नए उद्देश्यों की महत्ता
पिछली शताब्दी के तीसरे दशक (1930-1940) में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक नया मोड़ आया, जिसमें नए उद्देश्यों और दृष्टिकोणों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन नए उद्देश्यों ने स्वतंत्रता संग्राम को न केवल एक नई दिशा दी, बल्कि इसे व्यापक और प्रभावशाली बना दिया।
**1. नवीन दृष्टिकोण और आंदोलन
1930 में महात्मा गांधी ने नमक सत्याग्रह के माध्यम से अंग्रेजी सरकार के खिलाफ व्यापक जन आंदोलन शुरू किया। यह आंदोलन सविनय अवज्ञा आंदोलन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था, जिसने जनसाधारण को सीधे संघर्ष में शामिल किया। इस प्रकार, गांधीजी ने स्वतंत्रता संग्राम को केवल एक राजनीतिक संघर्ष नहीं, बल्कि एक सामाजिक और आर्थिक आंदोलन भी बना दिया।
**2. आर्थिक स्वतंत्रता की दिशा
1930 के दशक में गांधीजी ने स्वदेशी वस्त्र और स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा देने पर जोर दिया। इससे भारतीय जनता की आर्थिक आत्मनिर्भरता के प्रति जागरूकता बढ़ी और औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था के खिलाफ एक महत्वपूर्ण संघर्ष छेड़ा गया। हाल ही में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत अभियान का उद्देश्य भी इसी सोच को आगे बढ़ाता है, जिससे देश की आर्थिक स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिलता है।
**3. राजनीतिक गोलबंदी और समाज सुधार
1935 का भारत सरकार अधिनियम और असंतोष की प्रवृत्तियाँ ने भारतीय राजनीति में नए लक्ष्य और दृष्टिकोण पेश किए। विशेष रूप से, इस दशक में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच विभाजन और अलगाववादी आंदोलन ने भारतीय राजनीति को प्रभावित किया। यह समय भारतीय समाज में एक नए राजनीतिक चिह्न और दिशा की ओर संकेत करता है, जो आज भी विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों में देखा जा सकता है।
**4. नये नेतृत्व की उपस्थिति
इस समय ने नेहरूवादी विकास दृष्टिकोण और सामाजिक न्याय के महत्व को उजागर किया, जो स्वतंत्रता संग्राम के बाद स्वतंत्र भारत की नीतियों का आधार बने। जवाहरलाल नेहरू की समाजवादी दृष्टिकोण और औद्योगिकीकरण की योजनाओं ने भारतीय राजनीति में नये उद्देश्यों को स्थापित किया।
इन उद्देश्यों ने स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा और प्रासंगिकता दी, जो आज भी भारतीय राजनीति और समाज में गहराई से विद्यमान है।
See lessसविनय अवज्ञा आंदोलन का मूल्यांकन कीजिए।
सविनय अवज्ञा आंदोलन का मूल्यांकन सविनय अवज्ञा आंदोलन, जिसे सिविल डिसऑबीडियंस मूवमेंट के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक महत्वपूर्ण क्रांतिकारी पहल थी। महात्मा गांधी के नेतृत्व में चलाए गए इस आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई। इस आंदोलन का मूल्यांकन करतेRead more
सविनय अवज्ञा आंदोलन का मूल्यांकन
सविनय अवज्ञा आंदोलन, जिसे सिविल डिसऑबीडियंस मूवमेंट के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक महत्वपूर्ण क्रांतिकारी पहल थी। महात्मा गांधी के नेतृत्व में चलाए गए इस आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई। इस आंदोलन का मूल्यांकन करते समय इसके उद्देश्य, कार्यान्वयन, प्रभाव, और हाल की ऐतिहासिक पुनर्मूल्यांकन पर ध्यान देना आवश्यक है।
1. आंदोलन के उद्देश्य:
2. आंदोलन का कार्यान्वयन:
3. प्रभाव और परिणाम:
4. हाल की ऐतिहासिक पुनर्मूल्यांकन:
5. तुलनात्मक विश्लेषण:
निष्कर्ष
सविनय अवज्ञा आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली चरण था। महात्मा गांधी के नेतृत्व में यह आंदोलन न केवल ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक व्यापक जन प्रतिरोध का प्रतीक बना, बल्कि यह अहिंसात्मक प्रतिरोध के सिद्धांत को भी वैश्विक मंच पर प्रस्तुत किया। हाल की ऐतिहासिक पुनर्मूल्यांकन ने इसके योगदान और सीमाओं को उजागर किया है, जिससे इसका महत्व स्वतंत्रता संग्राम की व्यापक कथा में और भी स्पष्ट हो गया है।
See less1930-34 के सविनय अवज्ञा आंदोलन को एक अद्वितीय विशेषता, क्षेत्रीय स्थानिक पैटर्न और लामबंदी के नए तरीकों को शामिल करने के लिए जाना जाता है। स्पष्ट कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
1930-34 का सविनय अवज्ञा आंदोलन (Civil Disobedience Movement) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण और बहुपरकारी चरण था। इस आंदोलन की अद्वितीय विशेषता उसकी व्यापकता, क्षेत्रीय विविधता और नवीन लामबंदी के तरीकों में निहित है। अद्वितीय विशेषता: इस आंदोलन की मुख्य विशेषता इसका शांतिपूर्ण प्रतिरोध थाRead more
1930-34 का सविनय अवज्ञा आंदोलन (Civil Disobedience Movement) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण और बहुपरकारी चरण था। इस आंदोलन की अद्वितीय विशेषता उसकी व्यापकता, क्षेत्रीय विविधता और नवीन लामबंदी के तरीकों में निहित है।
अद्वितीय विशेषता: इस आंदोलन की मुख्य विशेषता इसका शांतिपूर्ण प्रतिरोध था, जिसमें ब्रिटिश शासन की अवैध नीतियों के खिलाफ सीधी अवज्ञा की गई। महात्मा गांधी ने इस आंदोलन के अंतर्गत ब्रिटिश शासित कानूनों और नियमों को जानबूझकर न मानने की नीति अपनाई, जो आम लोगों को प्रेरित करने और जन जागरूकता बढ़ाने के लिए एक शक्तिशाली साधन साबित हुई।
क्षेत्रीय स्थानिक पैटर्न: इस आंदोलन ने पूरे भारत में विविध क्षेत्रीय विशेषताओं को उजागर किया। उदाहरण के लिए, गांधीजी ने 1930 में दांडी यात्रा की, जो नमक कानून का उल्लंघन करने का प्रतीकात्मक विरोध था और इसने समूचे देश में सविनय अवज्ञा की लहर को जन्म दिया। इसी प्रकार, कर्नाटका, बंगाल, और पंजाब में भी स्थानीय नेतृत्व और संघर्षों ने आंदोलन को एक व्यापक पैमाने पर फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
लामबंदी के नए तरीके: सविनय अवज्ञा आंदोलन में गांधीजी ने नए और प्रभावी लामबंदी के तरीके अपनाए। जनसहयोग और सामाजिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया गया। आंदोलन में स्थानीय नेतृत्व को बढ़ावा दिया गया और नागरिकों को स्थानीय स्तर पर समस्याओं के समाधान में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया गया। इसके अलावा, महिलाओं और किसानों को भी आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए लामबंद किया गया।
इन विशेषताओं के माध्यम से, सविनय अवज्ञा आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष को नई दिशा दी और सामूहिक आंदोलन की शक्ति को सिद्ध किया। यह आंदोलन न केवल ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ जन आंदोलन का एक प्रेरणादायक उदाहरण था, बल्कि इसने भारतीय समाज को राजनीतिक सक्रियता और सामाजिक न्याय की दिशा में भी जागरूक किया।
See lessचौरी चौरा की घटना द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष की गति को कुछ समय के लिए धीमा कर देने के बावजूद, असहयोग आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास में एक निर्णायक मोड़ के रूप में बना रहा है। चर्चा कीजिए। (उत्तर 250 शब्दों में दें)
चौरी चौरा की घटना (5 फरवरी 1922) भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई, जो असहयोग आंदोलन की गति को कुछ समय के लिए धीमा कर दी थी। इस घटना में, उत्तर प्रदेश के चौरी चौरा गांव में ब्रिटिश पुलिस की एक थाने पर हिंसक हमला हुआ, जिसमें कई पुलिसकर्मी मारे गए। इसके परिणामस्वरूप,Read more
चौरी चौरा की घटना (5 फरवरी 1922) भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई, जो असहयोग आंदोलन की गति को कुछ समय के लिए धीमा कर दी थी। इस घटना में, उत्तर प्रदेश के चौरी चौरा गांव में ब्रिटिश पुलिस की एक थाने पर हिंसक हमला हुआ, जिसमें कई पुलिसकर्मी मारे गए। इसके परिणामस्वरूप, महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन को तत्काल स्थगित करने का निर्णय लिया।
असहयोग आंदोलन (1920-22) का उद्देश्य ब्रिटिश शासन के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रतिरोध और नागरिक अवज्ञा के माध्यम से स्वाधीनता की दिशा में बढ़ना था। गांधीजी ने जनसाधारण को इस आंदोलन में शामिल होकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ व्यापक जनमत तैयार करने के लिए प्रेरित किया। आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार की नीतियों और उनके औपनिवेशिक नियंत्रण के खिलाफ एक विशाल जनगोष्ठी का रूप लिया।
हालांकि चौरी चौरा की हिंसात्मक घटना ने आंदोलन की गति को अवश्य धीमा किया, लेकिन यह घटना स्वतंत्रता संघर्ष की रणनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में उभरी। गांधीजी ने हिंसा के खिलाफ अपनी मजबूत स्थिति को दोहराया और अहिंसात्मक आंदोलन के सिद्धांत को बनाए रखा। इसने यह स्पष्ट किया कि स्वतंत्रता संघर्ष का मार्ग केवल अहिंसा और सत्याग्रह के माध्यम से ही संभव है।
आखिरकार, इस घटना ने भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष को एक नई दिशा दी, जिसमें गांधीजी के अहिंसात्मक सिद्धांत को अपनाया गया। यह भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण अनुभव साबित हुआ और आगे चलकर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की रणनीति और दृष्टिकोण को आकार देने में योगदान दिया।
See lessस्वतंत्रता संग्राम में, विशेष तौर पर गाँधीवादी चरण के दौरान महिलाओं की भूमिका का विवेचन कीजिए। (200 words) [UPSC 2016]
गाँधीवादी चरण के दौरान स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण और परिवर्तनकारी रही। महात्मा गांधी ने अहिंसात्मक प्रतिरोध और जनसमूह को सक्रिय करने की विधियों को अपनाया, जिससे महिलाओं को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। महिलाओं ने विभिन्न आंदोलनों में सक्रिय भागीRead more
गाँधीवादी चरण के दौरान स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण और परिवर्तनकारी रही। महात्मा गांधी ने अहिंसात्मक प्रतिरोध और जनसमूह को सक्रिय करने की विधियों को अपनाया, जिससे महिलाओं को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।
महिलाओं ने विभिन्न आंदोलनों में सक्रिय भागीदारी की। उन्होंने नमक सत्याग्रह में हिस्सा लिया, नागरिक अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया और ब्रिटिश नीतियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों में शामिल हुईं। सरोजिनी नायडू, कस्तूरबा गांधी और विजयलक्ष्मी पंडित जैसी नेताओं ने इस समय की प्रमुख हस्तियों के रूप में कार्य किया, जिन्होंने अन्य महिलाओं को प्रेरित किया।
गांधीजी ने महिलाओं को आंदोलन में शामिल होने की प्रेरणा दी, और उनकी सामाजिक सुधारों तथा राष्ट्र निर्माण में भूमिका को मान्यता दी। महिलाएँ न केवल सक्रिय नेता के रूप में सामने आईं, बल्कि स्थानीय स्तर पर संगठन और जन जागरूकता में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने चंदा जुटाने, जनसंपर्क बढ़ाने और समुदायों को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
महिलाओं की इस सक्रिय भागीदारी ने न केवल स्वतंत्रता संग्राम को बल प्रदान किया, बल्कि समाज में उनके अधिकारों और स्थान में भी बदलाव की दिशा भी स्थापित की।
See lessगाँधीवादी प्रावस्था के दौरान विभिन्न स्वरों ने राष्ट्रवादी आन्दोलन को सुदृढ़ एवं समृद्ध बनाया था । विस्तारपूर्वक स्पष्ट कीजिए। (250 words) [UPSC 2019]
गाँधीवादी प्रावस्था (1917-1947) के दौरान राष्ट्रवादी आंदोलन में विभिन्न स्वरों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के संघर्ष को और मजबूत एवं समृद्ध बनाया। इन स्वरों में प्रमुख हैं: महिलाओं की भागीदारी: सरोजिनी नायडू, कस्तूरबा गांधी, अरुणा आसफ अली और विजयलक्ष्मी पंडित जैसी प्रमुRead more
गाँधीवादी प्रावस्था (1917-1947) के दौरान राष्ट्रवादी आंदोलन में विभिन्न स्वरों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के संघर्ष को और मजबूत एवं समृद्ध बनाया। इन स्वरों में प्रमुख हैं:
महिलाओं की भागीदारी:
सरोजिनी नायडू, कस्तूरबा गांधी, अरुणा आसफ अली और विजयलक्ष्मी पंडित जैसी प्रमुख महिला नेताओं ने नागरिक अवज्ञा, असहयोग और भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई।
महिलाओं की इस भागीदारी ने न केवल राष्ट्रवादी संघर्ष में लिंग समानता लाई, बल्कि महिला अधिकारों और सशक्तिकरण के मुद्दों को भी प्रमुखता दी।
रैडिकल क्रांतिकारी:
भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद और सुभाष चंद्र बोस जैसे नेताओं ने अंग्रेजों के खिलाफ अधिक आक्रामक, सशस्त्र संघर्ष का समर्थन किया।
उनके क्रांतिकारी कार्यकलापों और शहादत ने युवाओं को प्रेरित किया और राष्ट्रवादी आंदोलन में तीव्रता का संचार किया।
समाजवादी और कम्युनिस्ट स्वर:
जवाहरलाल नेहरू, जयप्रकाश नारायण और राममनोहर लोहिया जैसे नेताओं ने समाजवादी और मार्क्सवादी विचारधारा को राष्ट्रवादी वार्ता में शामिल किया।
उन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त आर्थिक और सामाजिक असमानताओं को संबोधित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
दलित दावे:
बी.आर. आंबेडकर दलितों और समाज के वंचित वर्गों के अधिकारों के लिए एक शक्तिशाली आवाज़ बने।
जाति-आधारित भेदभाव के खिलाफ उनका संघर्ष और दलितों के लिए अलग निर्वाचन मण्डल की मांग ने राष्ट्रवादी आंदोलन की समावेशी प्रकृति को मज़बूत किया।
क्षेत्रीय आंदोलन:
See lessतमिलनाडु में ई.वी. रामास्वामी (पेरियार), केरल में कोकिलामेडु विद्रोह और बंगाल में तेभागा आंदोलन जैसे नेताओं ने क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं और स्थानीय पहचानों के दावों को प्रतिनिधित्व दिया।
ये आंदोलन राष्ट्रवादी दृष्टिकोण को क्षेत्रीय विविधताओं को समायोजित करने की आवश्यकता पर जोर देकर समृद्ध बनाते हैं।
गाँधीवादी प्रावस्था के दौरान, इन विभिन्न स्वरों का संगम जो एक विशिष्ट दृष्टिकोण और アDृष्टीकरण प्रस्तुत करते थे, ने राष्ट्रवादी आंदोलन को और मज़बूत और समावेशी बनाया। यह आंदोलन भारतीय जनता की विविध चिंताओं को संबोधित करने वाले एक व्यापक संघर्ष में विकसित हुआ, जिसका अंततः स्वतंत्रता प्राप्ति में परिणाम हुआ।
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के आरंभिक चरण में प्रेस द्वारा निभाई गई भूमिका का परीक्षण कीजिए। साथ ही, इस अवधि के दौरान भारतीय प्रेस के सामने आने वाली चुनौतियों का भी वर्णन कीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के आरंभिक चरण में प्रेस ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्रेस ने जनता को जागरूक किया, उन्हें संघर्ष की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान किया और अंधकार की जगह जागरूकता और स्वाधीनता की भावना फैलाई। इस अवधि के दौरान, भारतीय प्रेस को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। ब्रिटिश सरकार ने प्रेसRead more
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के आरंभिक चरण में प्रेस ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्रेस ने जनता को जागरूक किया, उन्हें संघर्ष की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान किया और अंधकार की जगह जागरूकता और स्वाधीनता की भावना फैलाई।
इस अवधि के दौरान, भारतीय प्रेस को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। ब्रिटिश सरकार ने प्रेस को नियंत्रित करने का प्रयास किया, सेंसरशिप लगाई, और स्वतंत्रता को दबाने की कोशिश की। प्रेस को निषेधित किया गया, उसकी स्वतंत्रता को कम किया गया और उसे सरकारी प्रभाव के तहत लाने की कोशिश की गई।
भारतीय प्रेस ने इन चुनौतियों का मुकाबला किया और स्वतंत्रता की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई। प्रेस ने सत्य को सामने रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया और जनता को एकजुट करने में मदद की।
See lessअसहयोग आंदोलन के पश्चात् क्रांतिकारी गतिविधियों के उदय के पीछे निहित कारणों को उदाहरण सहित समझाइए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
असहयोग आंदोलन के पश्चात् क्रांतिकारी गतिविधियों के उदय के पीछे कई कारण थे। नेतृत्व की अभाव: असहयोग आंदोलन के दौरान नेतृत्व की कमी थी, लेकिन इसके बाद कुछ नेताओं ने अभियानों का संचालन किया जो लोगों को ध्यान में रखने में माहिर थे। उत्पीड़न और अत्याचार: सामाजिक वर्गों के उत्पीड़न और अत्याचार के कारण लोगRead more
असहयोग आंदोलन के पश्चात् क्रांतिकारी गतिविधियों के उदय के पीछे कई कारण थे।
इन कारणों के संयोजन से क्रांतिकारी गतिविधियों में वृद्धि हुई और लोगों के बीच एक नया जागरूकता स्तर उत्पन्न हुआ।
See lessचंपारण, अहमदाबाद और खेड़ा में की गई पहलों ने गांधीजी को गरीबों के प्रति गहरी सहानुभूति वाले एक राष्ट्रवादी के रूप में चिन्हित किया। विवेचना कीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
चंपारण, अहमदाबाद और खेड़ा जैसे स्थानों पर की गई पहलों ने महात्मा गांधी को गरीबों के प्रति गहरी सहानुभूति और एक राष्ट्रवादी के रूप में चिन्हित किया। चंपारण: चंपारण आंदोलन ने गांधीजी के राष्ट्रीय धार्मिकता और गरीबी के खिलाफ उनकी अभिलाषा के विचारों को प्रकट किया। यहां गांधीजी गरीब किसानों के साथ खड़े हRead more
चंपारण, अहमदाबाद और खेड़ा जैसे स्थानों पर की गई पहलों ने महात्मा गांधी को गरीबों के प्रति गहरी सहानुभूति और एक राष्ट्रवादी के रूप में चिन्हित किया।
चंपारण: चंपारण आंदोलन ने गांधीजी के राष्ट्रीय धार्मिकता और गरीबी के खिलाफ उनकी अभिलाषा के विचारों को प्रकट किया। यहां गांधीजी गरीब किसानों के साथ खड़े होकर उनकी मदद करने के लिए आए थे।
अहमदाबाद: अहमदाबाद के तापमानुं में विविधता और सद्भावना की भावना गांधीजी के द्वारा बढ़ाई गई थी। इसे उनके नैतिक और धार्मिक सिद्धांतों का प्रदर्शन माना गया।
खेड़ा: खेड़ा आंदोलन ने गांधीजी के आध्यात्मिकता और अहिंसा के सिद्धांत को उनकी नेतृत्व में प्रकट किया। यहां गांधीजी ने अहिंसा के माध्यम से आजादी के लिए लड़ने का संदेश दिया।
इन स्थानों पर हुए आंदोलन गांधीजी के विचारों और दृष्टिकोण को समर्थन करते हुए उन्हें गरीबों के मसीहा और एक सच्चे राष्ट्रवादी के रूप में प्रशंसा की गई।
See lessभारत में होमरूल आंदोलन के विकास और साथ ही इसके योगदानों का विवरण दीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
होमरूल आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का महत्वपूर्ण अध्याय था जो 1942 में आयोजित किया गया था। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य से आजादी प्राप्त करना था। होमरूल आंदोलन का उद्देश्य ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध प्रकट करना और स्वतंत्रता की मांग को मजबूत करना था। इस आंदोलन का आरंभ गांधीजी कRead more
होमरूल आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का महत्वपूर्ण अध्याय था जो 1942 में आयोजित किया गया था। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य से आजादी प्राप्त करना था।
होमरूल आंदोलन का उद्देश्य ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध प्रकट करना और स्वतंत्रता की मांग को मजबूत करना था। इस आंदोलन का आरंभ गांधीजी के आह्वान पर हुआ था और यह अंग्रेजों के खिलाफ विरोध और स्वतंत्रता की मांग को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न राष्ट्रीय संगठनों द्वारा समर्थित किया गया।
होमरूल आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया और इसने भारतीय जनता की सामर्थ्य और एकता को दिखाया। इस आंदोलन ने भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन को एक मजबूत संदेश दिया कि भारतीय लोग विद्रोह और स्वतंत्रता के लिए एकजुट हो सकते हैं।
See less