भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के आरंभिक चरण में प्रेस द्वारा निभाई गई भूमिका का परीक्षण कीजिए। साथ ही, इस अवधि के दौरान भारतीय प्रेस के सामने आने वाली चुनौतियों का भी वर्णन कीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
पिछली शताब्दी के तीसरे दशक के नए उद्देश्यों की महत्ता पिछली शताब्दी के तीसरे दशक (1930-1940) में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक नया मोड़ आया, जिसमें नए उद्देश्यों और दृष्टिकोणों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन नए उद्देश्यों ने स्वतंत्रता संग्राम को न केवल एक नई दिशा दी, बल्कि इसे व्यापक और प्रभावशालRead more
पिछली शताब्दी के तीसरे दशक के नए उद्देश्यों की महत्ता
पिछली शताब्दी के तीसरे दशक (1930-1940) में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक नया मोड़ आया, जिसमें नए उद्देश्यों और दृष्टिकोणों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन नए उद्देश्यों ने स्वतंत्रता संग्राम को न केवल एक नई दिशा दी, बल्कि इसे व्यापक और प्रभावशाली बना दिया।
**1. नवीन दृष्टिकोण और आंदोलन
1930 में महात्मा गांधी ने नमक सत्याग्रह के माध्यम से अंग्रेजी सरकार के खिलाफ व्यापक जन आंदोलन शुरू किया। यह आंदोलन सविनय अवज्ञा आंदोलन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था, जिसने जनसाधारण को सीधे संघर्ष में शामिल किया। इस प्रकार, गांधीजी ने स्वतंत्रता संग्राम को केवल एक राजनीतिक संघर्ष नहीं, बल्कि एक सामाजिक और आर्थिक आंदोलन भी बना दिया।
**2. आर्थिक स्वतंत्रता की दिशा
1930 के दशक में गांधीजी ने स्वदेशी वस्त्र और स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा देने पर जोर दिया। इससे भारतीय जनता की आर्थिक आत्मनिर्भरता के प्रति जागरूकता बढ़ी और औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था के खिलाफ एक महत्वपूर्ण संघर्ष छेड़ा गया। हाल ही में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत अभियान का उद्देश्य भी इसी सोच को आगे बढ़ाता है, जिससे देश की आर्थिक स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिलता है।
**3. राजनीतिक गोलबंदी और समाज सुधार
1935 का भारत सरकार अधिनियम और असंतोष की प्रवृत्तियाँ ने भारतीय राजनीति में नए लक्ष्य और दृष्टिकोण पेश किए। विशेष रूप से, इस दशक में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच विभाजन और अलगाववादी आंदोलन ने भारतीय राजनीति को प्रभावित किया। यह समय भारतीय समाज में एक नए राजनीतिक चिह्न और दिशा की ओर संकेत करता है, जो आज भी विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों में देखा जा सकता है।
**4. नये नेतृत्व की उपस्थिति
इस समय ने नेहरूवादी विकास दृष्टिकोण और सामाजिक न्याय के महत्व को उजागर किया, जो स्वतंत्रता संग्राम के बाद स्वतंत्र भारत की नीतियों का आधार बने। जवाहरलाल नेहरू की समाजवादी दृष्टिकोण और औद्योगिकीकरण की योजनाओं ने भारतीय राजनीति में नये उद्देश्यों को स्थापित किया।
इन उद्देश्यों ने स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा और प्रासंगिकता दी, जो आज भी भारतीय राजनीति और समाज में गहराई से विद्यमान है।
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भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के आरंभिक चरण में प्रेस ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्रेस ने जनता को जागरूक किया, उन्हें संघर्ष की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान किया और अंधकार की जगह जागरूकता और स्वाधीनता की भावना फैलाई। इस अवधि के दौरान, भारतीय प्रेस को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। ब्रिटिश सरकार ने प्रेसRead more
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के आरंभिक चरण में प्रेस ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्रेस ने जनता को जागरूक किया, उन्हें संघर्ष की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान किया और अंधकार की जगह जागरूकता और स्वाधीनता की भावना फैलाई।
इस अवधि के दौरान, भारतीय प्रेस को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। ब्रिटिश सरकार ने प्रेस को नियंत्रित करने का प्रयास किया, सेंसरशिप लगाई, और स्वतंत्रता को दबाने की कोशिश की। प्रेस को निषेधित किया गया, उसकी स्वतंत्रता को कम किया गया और उसे सरकारी प्रभाव के तहत लाने की कोशिश की गई।
भारतीय प्रेस ने इन चुनौतियों का मुकाबला किया और स्वतंत्रता की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई। प्रेस ने सत्य को सामने रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया और जनता को एकजुट करने में मदद की।
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