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असहयोग आन्दोलन एवं सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान महात्मा गाँधी के रचनात्मक कार्यक्रमों को स्पष्ट कीजिए । (250 words) [UPSC 2021]
महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन (1920-22) और सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930-34) के दौरान रचनात्मक कार्यक्रमों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य न केवल ब्रिटिश सरकार की नीतियों का विरोध करना था, बल्कि भारतीय समाज में आत्मनिर्भरता और सुधार को भी बढ़ावा देनाRead more
महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन (1920-22) और सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930-34) के दौरान रचनात्मक कार्यक्रमों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य न केवल ब्रिटिश सरकार की नीतियों का विरोध करना था, बल्कि भारतीय समाज में आत्मनिर्भरता और सुधार को भी बढ़ावा देना था।
असहयोग आंदोलन (1920-22):
See lessस्वदेशी आंदोलन: गांधी ने विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करने और स्वदेशी वस्त्रों को अपनाने की अपील की। इसके अंतर्गत भारतीय कपड़े, विशेष रूप से खादी, को प्रोत्साहित किया गया।
शिक्षा सुधार: गांधी ने भारतीय शिक्षा प्रणाली में सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने स्वदेशी स्कूलों और कॉलेजों की स्थापना की, और शिक्षण को स्वदेशी संस्कारों से जोड़ने का प्रयास किया।
स्वच्छता और सामाजिक सुधार: गांधी ने स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया और गांवों में सफाई अभियानों का आयोजन किया। इसके साथ ही, उन्होंने जातिवाद और छुआछूत के खिलाफ संघर्ष किया और सामाजिक सुधारों की दिशा में काम किया।
सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930-34):
नमक सत्याग्रह: गांधी ने नमक कर के खिलाफ अभियान चलाया, जिसके तहत 1930 में दांडी मार्च किया। यह मार्च ब्रिटिश नमक कानून के खिलाफ था और नमक बनाने के अधिकार की मांग की गई।
भूमि सुधार और ग्रामीण विकास: गांधी ने ग्रामीण क्षेत्रों के विकास और भूमि सुधार पर जोर दिया। उन्होंने ग्रामीण आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिए कई कार्यक्रम चलाए।
स्वराज की शिक्षा: सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान, गांधी ने स्वराज के अर्थ और महत्व को स्पष्ट किया और इसके लिए लोगों को जागरूक किया। उन्होंने स्वराज को केवल राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं बल्कि आर्थिक और सामाजिक स्वतंत्रता के रूप में भी परिभाषित किया।
गांधी के इन रचनात्मक कार्यक्रमों ने भारतीय समाज को आत्मनिर्भरता की ओर प्रेरित किया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक मजबूत जनआंदोलन तैयार किया। इन कार्यक्रमों ने न केवल स्वतंत्रता संग्राम को शक्ति प्रदान की, बल्कि भारतीय समाज में स्वदेशी उत्पादों और सामाजिक सुधारों के महत्व को भी रेखांकित किया।
1920 के दशक से राष्ट्रीय आंदोलन ने कई वैचारिक धाराओं को ग्रहण किया और अपना सामाजिक आधार बढ़ाया। विवेचना कीजिए। (250 words) [UPSC 2020]
1920 के दशक से राष्ट्रीय आंदोलन: वैचारिक विविधता और सामाजिक आधार का विस्तार 1920 के दशक में, भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन ने अपने वैचारिक धारणाओं और सामाजिक आधार को काफी विस्तारित किया। इस अवधि में, आंदोलन ने विभिन्न बौद्धिक धाराओं को अपनाया और समाज के कई वर्गों में अपनी अपील बढ़ाई। कुछ प्रमुख बिंदु और हRead more
1920 के दशक से राष्ट्रीय आंदोलन: वैचारिक विविधता और सामाजिक आधार का विस्तार
1920 के दशक में, भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन ने अपने वैचारिक धारणाओं और सामाजिक आधार को काफी विस्तारित किया। इस अवधि में, आंदोलन ने विभिन्न बौद्धिक धाराओं को अपनाया और समाज के कई वर्गों में अपनी अपील बढ़ाई। कुछ प्रमुख बिंदु और हालिया उदाहरण इस प्रकार हैं:
वैचारिक विविधता:
राष्ट्रीय आंदोलन ने कई वैचारिक दृष्टिकोणों को अपनाया, जिनमें शामिल हैं:
सामाजिक आधार का विस्तार:
1920 के दशक में, राष्ट्रीय आंदोलन ने अपने सामाजिक आधार को काफी बढ़ाया, जिसमें शामिल हैं:
क्षेत्रीय विविधता:
राष्ट्रीय आंदोलन ने क्षेत्रीय स्तर पर भी अलग-अलग अभिव्यक्तियों का विकास किया, जैसे कि संयुक्त प्रांतों में खिलाफत आंदोलन, तमिलनाडु में स्वराज्य आंदोलन और बंगाल में अनुशीलन समिति।
अंतरराष्ट्रीयकरण:
राष्ट्रीय आंदोलन ने वैश्विक विरोधी-औपनिवेशिक और विरोधी-साम्राज्यवादी आंदोलनों के साथ संबंध स्थापित करना शुरू कर दिया, जैसा कि लाला लाजपत राय के संयुक्त राज्य अमेरिका की यात्रा और 1931 में आयोजित ऑल एशियन महिला सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधियों की भागीदारी में देखा गया।
संगठनात्मक विकास:
राष्ट्रीय आंदोलन ने राजनीतिक दलों, श्रम संघों और किसान संघठनों जैसी संस्थागत संरचनाओं को मजबूत और विविध किया, जिसने समाज के विभिन्न वर्गों को एकजुट करने और प्रतिनिधित्व करने में मदद की।
संक्षेप में, 1920 का दशक राष्ट्रीय आंदोलन के विकास के एक महत्वपूर्ण चरण के रूप में उभरा, क्योंकि इसने वैचारिक धाराओं और सामाजिक आधारों की एक व्यापक श्रृंखला को अपनाकर, भारतीय उपमहाद्वीप में अपील और प्रभाव को बढ़ाया।
See lessनरमपंथियों की भूमिका ने किस सीमा तक व्यापक स्वतंत्रता आन्दोलन का आधार तैयार किया ? टिप्पणी कीजिए । (250 words) [UPSC 2021]
नरमपंथियों की भूमिका और व्यापक स्वतंत्रता आन्दोलन का आधार नरमपंथियों का उद्देश्य और दृष्टिकोण: संविधानिक सुधार और समन्वय: नरमपंथियों, जिनमें गाँधी, नेहरू, और पटेल जैसे नेता शामिल थे, ने भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन को संवैधानिक सुधारों के माध्यम से गति दी। उन्होंने ब्रिटिश सरकार के साथ बातचीत और सुधारRead more
नरमपंथियों की भूमिका और व्यापक स्वतंत्रता आन्दोलन का आधार
नरमपंथियों का उद्देश्य और दृष्टिकोण:
विस्तार और प्रभाव:
विरोध और विफलताएँ:
निष्कर्ष:
नरमपंथियों ने भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के आधार को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन उनके दृष्टिकोण की सीमाएँ और क्रांतिकारी प्रतिक्रिया ने इस आन्दोलन को कई मोर्चों पर प्रभावित किया। उनके दृष्टिकोण ने एक संवैधानिक आधार प्रदान किया, जो बाद में क्रांतिकारी और कठोर संघर्ष के साथ मिलकर एक स्वतंत्र भारत के निर्माण की दिशा में योगदान दिया।
See lessसांप्रदायिक पंचाट (कम्युनल अवार्ड) की प्रकृति और उस समय की परिस्थितियों तथा इसके प्रति विभिन्न समूहों और दलों की प्रतिक्रियाओं पर चर्चा कीजिए। (उत्तर 150 शब्दों में दें)
सांप्रदायिक पंचाट, या कम्युनल अवार्ड, एक सामाजिक, धार्मिक या नृविग्यानिक समूह के सदस्यों के बीच संबंधों को सुलझाने के लिए एक प्रकार का गरिमामय संबंध है। इसका मुख्य उद्देश्य समस्याओं का समाधान और संघर्ष की भावना को सुलझाना होता है। इसकी प्रकृति अनेकता में एकता को साधारित करना है। सामाजिक और राजनीतिकRead more
सांप्रदायिक पंचाट, या कम्युनल अवार्ड, एक सामाजिक, धार्मिक या नृविग्यानिक समूह के सदस्यों के बीच संबंधों को सुलझाने के लिए एक प्रकार का गरिमामय संबंध है। इसका मुख्य उद्देश्य समस्याओं का समाधान और संघर्ष की भावना को सुलझाना होता है। इसकी प्रकृति अनेकता में एकता को साधारित करना है। सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों में, सांप्रदायिक पंचाट कई समूहों और दलों की प्रतिक्रियाओं का केंद्र बनता है। यह सामाजिक समरसता के लिए एक माध्यम भी हो सकता है या फिर आलोचना का केंद्र भी। इसका सफल अनुमान लगाना अव्यवसायिक हो सकता है, क्योंकि इसमें अनेक तरह की विचारधाराएं समाहित हो सकती हैं।
See lessभारत में स्वराज पार्टी के विकास को वर्णित करते हुए इसकी उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए। साथ ही, इसकी कमियों पर भी चर्चा कीजिए। (उत्तर 150 शब्दों में दें)
स्वराज पार्टी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसने राष्ट्रीय स्वतंत्रता की मांग को मजबूत किया और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को संगठित रूप दिया। स्वराज पार्टी ने भारतीय जनता को एक सामान्य मंच पर एकजुट किया और उनकी आवाज को सुनने का माध्यम प्रदान किया। इसने भारतीय राष्ट्रीय आंदोRead more
स्वराज पार्टी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसने राष्ट्रीय स्वतंत्रता की मांग को मजबूत किया और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को संगठित रूप दिया। स्वराज पार्टी ने भारतीय जनता को एक सामान्य मंच पर एकजुट किया और उनकी आवाज को सुनने का माध्यम प्रदान किया। इसने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत किया।
हालांकि, स्वराज पार्टी की कुछ कमियां भी थीं। इसमें विभाजन के कुछ मुद्दे थे, जिनसे आंदोलन की एकता पर असर पड़ा। स्वराज पार्टी की नेतृत्व में विभिन्न दृष्टिकोण थे, जो कई बार आंदोलन को विवादों में डाल देते थे। कुछ समय के बाद स्वराज पार्टी का अस्तित्व कमजोर पड़ गया और इसने स्वतंत्रता संग्राम में उसी प्रमुख भूमिका निभाने में सक्षम नहीं रहा।
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