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2019 के मानसून सत्र में संसद ने आतंक विरोधी कानून और सूचना के अधिकार में संशोधन किया है। इन संशोधनों के फलस्वरूप क्या महत्त्वपूर्ण बदलाव लाए गए है? विश्लेषण करें। (200 Words) [UPPSC 2018]
2019 के मानसून सत्र में संशोधन के महत्त्वपूर्ण बदलाव 1. आतंकवाद विरोधी कानून में संशोधन: 2019 के मानसून सत्र में लोकसभा ने आतंकवाद विरोधी कानून में महत्वपूर्ण संशोधन किए। गैरकानूनी गतिविधि (निवारण) अधिनियम (UAPA) में किए गए संशोधनों के तहत, टेररिस्ट एक्टिविटीज को व्यापक रूप से परिभाषित किया गया। विशRead more
2019 के मानसून सत्र में संशोधन के महत्त्वपूर्ण बदलाव
1. आतंकवाद विरोधी कानून में संशोधन: 2019 के मानसून सत्र में लोकसभा ने आतंकवाद विरोधी कानून में महत्वपूर्ण संशोधन किए। गैरकानूनी गतिविधि (निवारण) अधिनियम (UAPA) में किए गए संशोधनों के तहत, टेररिस्ट एक्टिविटीज को व्यापक रूप से परिभाषित किया गया। विशेष रूप से, यह संशोधन संशयित व्यक्तियों को आतंकवादी घोषित करने की प्रक्रिया को आसान बनाता है। 2020 में, दिल्ली में CAA और NRC विरोधी दंगों के संदर्भ में, UAPA के तहत कई आरोपियों को गिरफ्तार किया गया, जिससे इस कानून की प्रभावशीलता और विवादित पहलू पर चर्चा बढ़ी।
2. सूचना के अधिकार (RTI) में संशोधन: RTI अधिनियम में संशोधन से सार्वजनिक सूचना अधिकारियों के वेतन और कार्यकाल में बदलाव आया। यह संशोधन राज्य सूचना आयोग और केंद्र सूचना आयोग के अध्यक्षों और सदस्यों के वेतन को केंद्र सरकार के मंत्रालयों के वरिष्ठ अधिकारियों के समान कर देता है। इसके परिणामस्वरूप, RTI कार्यकर्ताओं ने इसे सार्वजनिक सूचना के अधिकार में हस्तक्षेप के रूप में देखा। 2020 में, RTI एक्टिविस्टों ने संशोधनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया, जिससे अधिनियम की पारदर्शिता और प्रभावशीलता पर सवाल उठे।
इन संशोधनों ने सुरक्षा और सूचना पारदर्शिता के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश की है, लेकिन उनके लागू होने पर प्रभाव और समाज पर असर को लेकर चल रही बहस ने इन कानूनों की प्रभावशीलता को लेकर प्रश्न उठाए हैं।
See lessआणविक प्रसार के मुद्दों पर भारत का दृष्टिकोण क्या है ? स्पष्ट कीजिये । (125 Words) [UPPSC 2023]
भारत का दृष्टिकोण आणविक प्रसार के मुद्दों पर स्पष्ट रूप से सुरक्षा, असैन्य और व्यापक निरस्त्रीकरण पर आधारित है। भारत ने आणविक अप्रसार संधि (NPT) पर हस्ताक्षर नहीं किया है, क्योंकि इसे भेदभावपूर्ण मानता है, जो वर्तमान परमाणु शक्ति संपन्न देशों को मान्यता देता है जबकि नए देशों को परमाणु हथियार विकसितRead more
भारत का दृष्टिकोण आणविक प्रसार के मुद्दों पर स्पष्ट रूप से सुरक्षा, असैन्य और व्यापक निरस्त्रीकरण पर आधारित है। भारत ने आणविक अप्रसार संधि (NPT) पर हस्ताक्षर नहीं किया है, क्योंकि इसे भेदभावपूर्ण मानता है, जो वर्तमान परमाणु शक्ति संपन्न देशों को मान्यता देता है जबकि नए देशों को परमाणु हथियार विकसित करने से रोकता है। भारत का मानना है कि परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए एक समावेशी और गैर-भेदभावपूर्ण ढांचा आवश्यक है।
भारत ने “नो-फर्स्ट-यूज़” (NFU) की नीति अपनाई है, जिसका मतलब है कि वह केवल परमाणु हमले के प्रतिशोध में परमाणु हथियार का उपयोग करेगा। इसके अतिरिक्त, भारत ने व्यापक परमाणु परीक्षण संधि (CTBT) पर एक स्वैच्छिक मोराटोरियम की नीति अपनाई है और विश्व स्तर पर परमाणु हथियारों के पूर्ण निरस्तीकरण की दिशा में काम कर रहा है।
See lessअफगानिस्तान से अमेरिका की सैन्य वापसी भारत को किस प्रकार प्रभावित करेगी? टिप्पणी कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2018]
अफगानिस्तान से अमेरिका की सैन्य वापसी: भारत पर प्रभाव 1. सुरक्षा और रणनीतिक स्थिति अमेरिका की सैन्य वापसी से अफगानिस्तान में सुरक्षा की स्थिति अस्थिर हो गई है। भारत के लिए यह स्थिति चिंता का विषय है क्योंकि तालिबान के सत्ता में आने से आतंकवाद और अस्थिरता में वृद्धि हो सकती है। भारत की पूर्वोत्तर क्षRead more
अफगानिस्तान से अमेरिका की सैन्य वापसी: भारत पर प्रभाव
1. सुरक्षा और रणनीतिक स्थिति
अमेरिका की सैन्य वापसी से अफगानिस्तान में सुरक्षा की स्थिति अस्थिर हो गई है। भारत के लिए यह स्थिति चिंता का विषय है क्योंकि तालिबान के सत्ता में आने से आतंकवाद और अस्थिरता में वृद्धि हो सकती है। भारत की पूर्वोत्तर क्षेत्र में विद्रोही समूहों की गतिविधियों को तालिबान से समर्थन मिलने का खतरा है।
2. क्षेत्रीय शक्ति संतुलन
अफगानिस्तान में अमेरिकी सैन्य उपस्थिति की कमी से चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों की क्षेत्रीय रणनीति पर प्रभाव पड़ सकता है। चीन ने अफगानिस्तान में आर्थिक निवेश बढ़ाया है और पाकिस्तान का तालिबान पर प्रभाव बढ़ा है, जो भारत के लिए भूराजनीतिक चुनौतियाँ पैदा कर सकता है।
3. मानवाधिकार और आतंकवाद
तालिबान के सत्ता में आने से मानवाधिकार उल्लंघनों की आशंका है, विशेषकर महिलाओं और अल्पसंख्यकों के अधिकारों को लेकर। भारत ने अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अफगानिस्तान के नागरिकों के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए आवाज उठाई है, लेकिन स्थिति की अस्थिरता इन प्रयासों को जटिल बना सकती है।
4. शरणार्थी समस्या
अमेरिका की वापसी के बाद अफगान शरणार्थियों की संख्या बढ़ सकती है, जिससे भारत के लिए आश्रय और सुरक्षा के मामलों में चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। भारत को संभावित शरणार्थियों के प्रबंधन और मानवitari सहायता में भूमिका निभानी पड़ सकती है।
निष्कर्ष
अमेरिका की सैन्य वापसी से भारत को क्षेत्रीय सुरक्षा, भूराजनीतिक संतुलन, मानवाधिकार और शरणार्थी मुद्दों पर व्यापक प्रभाव का सामना करना पड़ सकता है। इन चुनौतियों का सामना करने के लिए भारत को सावधानीपूर्वक रणनीति और आंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता होगी।
See lessसंयुक्त राज्य अमेरिका एवं ईरान के मध्य हालिया तनाव के के क्या कारण हैं? इस तनाव का भारत के राष्ट्रीय हितों पर क्या प्रभाव पड़ेगा? भारत को इस परिस्थिति से कैसे निपटना चाहिये? विवेचना कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2019]
संयुक्त राज्य अमेरिका और ईरान के मध्य हालिया तनाव के कारण **1. न्यूक्लियर प्रोग्राम विवाद संयुक्त राज्य अमेरिका और ईरान के बीच हालिया तनाव का मुख्य कारण ईरान का न्यूक्लियर प्रोग्राम है। अमेरिका ने 2018 में जॉइंट कॉम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन (JCPOA) से बाहर निकलते हुए ईरान पर फिर से प्रतिबंध लगाए, जRead more
संयुक्त राज्य अमेरिका और ईरान के मध्य हालिया तनाव के कारण
**1. न्यूक्लियर प्रोग्राम विवाद
संयुक्त राज्य अमेरिका और ईरान के बीच हालिया तनाव का मुख्य कारण ईरान का न्यूक्लियर प्रोग्राम है। अमेरिका ने 2018 में जॉइंट कॉम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन (JCPOA) से बाहर निकलते हुए ईरान पर फिर से प्रतिबंध लगाए, जिससे तनाव बढ़ गया। ईरान ने अपने न्यूक्लियर कार्यक्रम को आगे बढ़ाया, जिससे स्थिति और तनावपूर्ण हो गई।
**2. क्षेत्रीय प्रभाव और संघर्ष
दोनों देशों के बीच मध्य पूर्व में प्रभाव के लिए प्रतिस्पर्धा है। ईरान की सीरिया, इराक, और यमन में सैन्य भागीदारी और हिजबुल्ला जैसे समूहों का समर्थन अमेरिकी हितों और सहयोगियों को चुनौती देता है। हाल के दिनों में इराक में अमेरिकी हितों और सहयोगी स्थलों पर हमले ने तनाव को बढ़ाया है।
**3. आर्थिक प्रतिबंध और कूटनीतिक तनाव
अमेरिका ने ईरान पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं, जिसका उद्देश्य ईरान की अर्थव्यवस्था को कमजोर करना और उसकी क्षेत्रीय प्रभाव को सीमित करना है। ईरान की प्रतिक्रिया में तेल टैंकरों और सैन्य ठिकानों पर हमले हुए हैं, जिससे तनाव और बढ़ गया है।
भारत के राष्ट्रीय हितों पर प्रभाव
**1. आर्थिक प्रभाव
भारत ईरानी तेल पर निर्भर है, और बढ़ते तनाव ने तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव को जन्म दिया है, जो भारत की ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता को प्रभावित करता है। प्रतिबंधों ने भारत के ईरान के तेल और गैस क्षेत्र में निवेश को भी प्रभावित किया है।
**2. क्षेत्रीय स्थिरता
मध्य पूर्व में अस्थिरता वैश्विक सुरक्षा और व्यापार मार्गों को प्रभावित करती है। भारत के लिए पर्सियन गल्फ के माध्यम से व्यापारिक मार्ग महत्वपूर्ण हैं, और किसी भी विघटन से भारत की आर्थिक हितों और आपूर्ति श्रृंखलाओं पर असर पड़ सकता है।
**3. कूटनीतिक संबंध
भारत को अमेरिका और ईरान दोनों के साथ सावधानीपूर्वक संबंध बनाए रखने की आवश्यकता है। बढ़ते तनाव भारत को कठिन विकल्पों का सामना करवा सकते हैं।
भारत की प्रतिक्रिया
**1. कूटनीतिक सगाई
भारत को कूटनीतिक प्रयासों के माध्यम से तनाव कम करने और दोनों देशों के साथ संवाद बनाए रखने की कोशिश करनी चाहिए।
**2. ऊर्जा विविधीकरण
भारत को ईरानी तेल पर निर्भरता कम करने के लिए ऊर्जा स्रोतों का विविधीकरण करना चाहिए, ताकि आर्थिक संवेदनशीलता को कम किया जा सके।
**3. क्षेत्रीय सहयोग
क्षेत्रीय सहयोगियों के साथ संबंधों को मजबूत करना और बहुपरकारीय मंचों में भागीदारी बढ़ाना भारत को मध्य पूर्व की भू-राजनीति की जटिलताओं से निपटने में मदद कर सकता है।
निष्कर्ष
संयुक्त राज्य अमेरिका और ईरान के बीच तनाव भारत के आर्थिक और रणनीतिक हितों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है। एक संतुलित दृष्टिकोण जिसमें कूटनीतिक सगाई, ऊर्जा विविधीकरण, और क्षेत्रीय सहयोग शामिल हो, भारत के राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण होगा।
See lessजलवायु परिवर्तन का विकासशील देशों पर पड़ने वाले प्रभाव का विवेचन कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2019]
जलवायु परिवर्तन का विकासशील देशों पर प्रभाव परिचय जलवायु परिवर्तन विकासशील देशों के लिए एक गंभीर चुनौती प्रस्तुत करता है, जो उनकी सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय स्थिरता को प्रभावित करता है। इन देशों की संवेदनशीलता और सीमित संसाधन उन्हें अधिक प्रभावी बनाते हैं। **1. आर्थिक प्रभाव विकासशील देश अक्सर जलRead more
जलवायु परिवर्तन का विकासशील देशों पर प्रभाव
परिचय
जलवायु परिवर्तन विकासशील देशों के लिए एक गंभीर चुनौती प्रस्तुत करता है, जो उनकी सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय स्थिरता को प्रभावित करता है। इन देशों की संवेदनशीलता और सीमित संसाधन उन्हें अधिक प्रभावी बनाते हैं।
**1. आर्थिक प्रभाव
विकासशील देश अक्सर जलवायु-संवेदनशील क्षेत्रों जैसे कृषि और पर्यटन पर निर्भर होते हैं। उदाहरण के लिए, बांग्लादेश और भारत में बाढ़ और चक्रवात जैसी चरम मौसम घटनाओं से फसलों को भारी नुकसान होता है, जिससे खाद्य सुरक्षा और कृषि आधारित आजीविका पर प्रभाव पड़ता है। विश्व बैंक का अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन 2030 तक 100 मिलियन से अधिक लोगों को गरीबी में धकेल सकता है, जिनमें अधिकांश विकासशील देशों में हैं।
**2. स्वास्थ्य पर प्रभाव
जलवायु परिवर्तन स्वास्थ्य समस्याओं को बढ़ाता है। उप-सहारा अफ्रीका में, गर्म तापमान और असामान्य वर्षा के पैटर्न से मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों का क्षेत्र बढ़ गया है। इसके अलावा, हीटवेव और बाढ़ से जलजनित बीमारियों जैसे कोलेरा की घटनाएं बढ़ रही हैं, जो कमजोर आबादी को प्रभावित करती हैं।
**3. पर्यावरणीय विघटन
विकासशील देशों में जलवायु परिवर्तन के कारण पर्यावरणीय विघटन तेज हो रहा है। उदाहरण के लिए, पेसिफिक के छोटे द्वीप राष्ट्र जैसे कि किरीबाती में समुद्र स्तर में वृद्धि हो रही है, जो उनके अस्तित्व को खतरे में डाल रही है। तटीय कटाव और लवणीय जल प्रवेश कृषि उत्पादकता और अवसंरचना को प्रभावित कर रहे हैं।
**4. सामाजिक विस्थापन
चरम मौसम घटनाएँ और पर्यावरणीय परिवर्तन मजबूरन प्रवास का कारण बनते हैं। सीरिया जैसे देशों में, लंबे समय तक सूखा सामाजिक अशांति और संघर्ष का कारण बना है, जिससे आंतरिक विस्थापन और सीमा पार प्रवास हुआ है।
निष्कर्ष
जलवायु परिवर्तन विकासशील देशों को विभिन्न मोर्चों पर प्रभावित करता है, जो उनके आर्थिक स्थिरता, स्वास्थ्य, पर्यावरण और सामाजिक ढांचे को प्रभावित करता है। इन प्रभावों का समाधान अंतर्राष्ट्रीय समर्थन और प्रभावी अनुकूलन रणनीतियों की आवश्यकता है।
See lessभारत एवं नेपाल के मध्य तनावपूर्ण संबंधों के पीछे चीनी कारक की भूमिका की विवेचना कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2021]
भारत-नेपाल के तनावपूर्ण संबंधों में चीनी कारक की भूमिका 1. सीमा विवाद और चीनी प्रभाव (Boundary Disputes and Chinese Influence): चीनी अवसंरचना परियोजनाएँ: नेपाल में चीन की टिब्बत-नेपाल रेलवे जैसी परियोजनाएँ भारत के लिए चिंता का विषय हैं, क्योंकि ये परियोजनाएँ नेपाल की सामरिक स्थिति को प्रभावित करती हRead more
भारत-नेपाल के तनावपूर्ण संबंधों में चीनी कारक की भूमिका
1. सीमा विवाद और चीनी प्रभाव (Boundary Disputes and Chinese Influence):
2. स्ट्रैटेजिक गठबंधनों का विस्तार (Strategic Alliances):
3. भारत-नेपाल संबंधों पर प्रभाव (Impact on India-Nepal Relations):
निष्कर्ष: चीन के बढ़ते प्रभाव ने भारत-नेपाल संबंधों में तनाव को बढ़ावा दिया है, जो रणनीतिक गठबंधनों और सीमा विवादों को प्रभावित करता है।
See lessवर्तमान समय में अंतर्राष्ट्रीय संघर्षों के प्रबंधन में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की प्रभावशीलता पर टिप्पणी कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दीजिए)
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) अंतर्राष्ट्रीय संघर्षों के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, लेकिन इसकी प्रभावशीलता सीमित भी हो सकती है। सकारात्मक पहलू: शांति रक्षण: UNSC ने कई संघर्षों में शांति रक्षक मिशनों को तैनात किया है, जैसे कि सियर्रा लियोन और दक्षिण सूडान में। संकट समाधान: UNSCRead more
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) अंतर्राष्ट्रीय संघर्षों के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, लेकिन इसकी प्रभावशीलता सीमित भी हो सकती है।
सकारात्मक पहलू:
शांति रक्षण: UNSC ने कई संघर्षों में शांति रक्षक मिशनों को तैनात किया है, जैसे कि सियर्रा लियोन और दक्षिण सूडान में।
संकट समाधान: UNSC ने आर्थिक और सैन्य प्रतिबंधों के माध्यम से कई देशों पर दबाव डाला है, जैसे कि उत्तर कोरिया पर।
सीमाएँ:
वेटो पावर: UNSC के स्थायी सदस्यों के पास वेटो शक्ति है, जो कभी-कभी विवादों को हल करने में बाधा डालती है, जैसे कि सीरिया संघर्ष में।
See lessनिर्णायक कार्रवाई की कमी: कभी-कभी UNSC की कार्रवाइयाँ धीमी या अपर्याप्त साबित होती हैं, जिससे संघर्षों के समाधान में देरी होती है।
इन चुनौतियों के बावजूद, UNSC वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण मंच बनी हुई है।
"चीन अपने आर्थिक संबंधों एवं सकारात्मक व्यापार अधिशेष को, एशिया में संभाव्य सैनिक शक्ति हैसियत को विकसित करने के लिए, उपकरणों के रूप में इस्तेमाल कर रहा है।" इस कथन के प्रकाश में, उसके पड़ोसी के रूप में भारत पर इसके प्रभाव पर चर्चा कीजिए। (150 words) [UPSC 2017]
चीन अपने आर्थिक संबंधों और व्यापार अधिशेष का उपयोग एशिया में अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाने के लिए कर रहा है, जिससे क्षेत्रीय संतुलन में बदलाव आ रहा है। चीन की आर्थिक शक्ति उसे विशाल रक्षा बजट और सैन्य आधुनिकीकरण की क्षमता देती है, जिससे वह दक्षिण चीन सागर, पूर्वी चीन सागर, और भारतीय महासागर में अपनी उपस्थRead more
चीन अपने आर्थिक संबंधों और व्यापार अधिशेष का उपयोग एशिया में अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाने के लिए कर रहा है, जिससे क्षेत्रीय संतुलन में बदलाव आ रहा है। चीन की आर्थिक शक्ति उसे विशाल रक्षा बजट और सैन्य आधुनिकीकरण की क्षमता देती है, जिससे वह दक्षिण चीन सागर, पूर्वी चीन सागर, और भारतीय महासागर में अपनी उपस्थिति को मजबूत कर रहा है।
भारत के लिए, यह स्थिति चिंताजनक है क्योंकि चीन का बढ़ता सैन्य प्रभाव उसकी सुरक्षा और रणनीतिक हितों के लिए खतरा पैदा कर सकता है। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) और चीन की “String of Pearls” रणनीति भारत को घेरने का प्रयास मानी जाती है।
इसके जवाब में, भारत को अपनी सैन्य तैयारियों को बढ़ाना होगा, पड़ोसी देशों के साथ मजबूत रणनीतिक साझेदारी करनी होगी, और अपने आर्थिक और कूटनीतिक संबंधों को सुदृढ़ करना होगा। इसके अलावा, भारत को अपनी ‘एक्ट ईस्ट’ नीति को भी और अधिक प्रभावी बनाना चाहिए ताकि क्षेत्र में संतुलन कायम रखा जा सके।
See lessमध्य एशिया, जो भारत के लिए एक हित क्षेत्र है, में अनेक बाह्य शक्तियों ने अपने-आप को संस्थापित कर लिया है। इस संदर्भ में, भारत द्वारा अश्गाबात करार, 2018 में शामिल होने के निहितार्थों पर चर्चा कीजिए। (150 words) [UPSC 2018]
अश्गाबात करार 2018 और भारत के हित अश्गाबात करार 2018: अश्गाबात करार 2018, जिसे ‘ट्रांस-अफगानिस्तान पाइपलाइन’ (TAPI) समझौते के रूप में भी जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जिसमें भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, और हाल ही में इस पर हस्ताक्षर किए गए अन्य देशों को शामिलRead more
अश्गाबात करार 2018 और भारत के हित
अश्गाबात करार 2018: अश्गाबात करार 2018, जिसे ‘ट्रांस-अफगानिस्तान पाइपलाइन’ (TAPI) समझौते के रूप में भी जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जिसमें भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, और हाल ही में इस पर हस्ताक्षर किए गए अन्य देशों को शामिल किया गया है। इसका उद्देश्य तुर्कमेनिस्तान से अफगानिस्तान और पाकिस्तान के माध्यम से भारत तक गैस पाइपलाइन का निर्माण करना है।
भारत के लिए निहितार्थ:
उपसंहार: अश्गाबात करार 2018 भारत के ऊर्जा सुरक्षा, भूराजनीतिक स्थिति, और आर्थिक विकास के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, और यह मध्य एशिया में भारतीय उपस्थिति को बढ़ाने में सहायक होगा।
See less'उभरती हुई वैश्विक व्यवस्था में, भारत द्वारा प्राप्त नव-भूमिका के कारण, उत्पीड़ित एवं उपेक्षित राष्ट्रों के मुखिया के रूप में दीर्घ काल से संपोषित भारत की पहचान लुप्त हो गई है।' विस्तार से समझाइये । (250 words) [UPSC 2019]
भारत की उभरती वैश्विक भूमिका और उसकी दीर्घकालिक पहचान के बीच का संबंध एक जटिल और महत्वपूर्ण मुद्दा है। यहाँ पर विस्तार से इस मुद्दे की विवेचना की जा सकती है: 1. भारत की नव-भूमिका: हाल के वर्षों में, भारत ने वैश्विक मंच पर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आर्थिक वृद्धि, सामरिक शक्ति, और अंतर्राष्ट्रीयRead more
भारत की उभरती वैश्विक भूमिका और उसकी दीर्घकालिक पहचान के बीच का संबंध एक जटिल और महत्वपूर्ण मुद्दा है। यहाँ पर विस्तार से इस मुद्दे की विवेचना की जा सकती है:
1. भारत की नव-भूमिका:
हाल के वर्षों में, भारत ने वैश्विक मंच पर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आर्थिक वृद्धि, सामरिक शक्ति, और अंतर्राष्ट्रीय मंच पर सक्रियता के कारण भारत एक प्रमुख वैश्विक खिलाड़ी बन चुका है। भारत की नव-भूमिका ने उसे एक महत्वपूर्ण आर्थिक और सामरिक शक्ति के रूप में स्थापित किया है, जिससे वह वैश्विक निर्णय-निर्माण प्रक्रिया में एक प्रमुख भूमिका निभाता है।
2. उत्पीड़ित और उपेक्षित राष्ट्रों की पहचान:
विगत दशकों में, भारत ने उत्पीड़ित और उपेक्षित राष्ट्रों के अधिकारों की रक्षा और उनकी सहायता के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। भारत ने वैश्विक दक्षिण (Global South) के प्रमुख देश के रूप में विकासशील देशों के मुद्दों को प्रोत्साहित किया और उनके हितों की रक्षा की। इस संदर्भ में, भारत ने दक्षिण-सुत्र सहयोग, विकास सहायता, और अंतर्राष्ट्रीय मंच पर उनकी आवाज उठाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
3. नव-भूमिका के प्रभाव:
भारत की नई वैश्विक भूमिका ने उसकी पुरानी पहचान को प्रभावित किया है। उसकी बढ़ती आर्थिक और सामरिक शक्ति ने उसे एक प्रमुख शक्ति बना दिया है, जिससे उसका ध्यान अब बड़े वैश्विक मुद्दों और भू-राजनीतिक खेलों पर केंद्रित हो गया है। इस प्रक्रिया में, उत्पीड़ित और उपेक्षित राष्ट्रों के प्रति भारत की पारंपरिक पहचान और भूमिका कम हो गई है।
4. संतुलन बनाए रखने की चुनौती:
भारत को अपनी वैश्विक भूमिका और पारंपरिक पहचान के बीच संतुलन बनाए रखने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। वैश्विक शक्तियों के साथ रणनीतिक साझेदारी और आर्थिक सहयोग के बावजूद, भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह उत्पीड़ित और उपेक्षित राष्ट्रों के प्रति अपनी ऐतिहासिक प्रतिबद्धता को बनाए रखे।
5. आगे की दिशा:
भारत को अपने नव-भूमिका के साथ-साथ अपनी पारंपरिक पहचान को पुनर्जीवित करने के प्रयास करने होंगे। यह आवश्यक है कि भारत अपने विकासशील देशों के साथ सहयोग, सहायता और समर्थन की नीतियों को मजबूत करे और वैश्विक मंच पर उनके अधिकारों की रक्षा में सक्रिय भूमिका निभाए।
इस प्रकार, भारत की उभरती वैश्विक भूमिका ने उसके उत्पीड़ित और उपेक्षित राष्ट्रों के मुखिया के रूप में दीर्घकालिक पहचान को प्रभावित किया है, लेकिन इसे संतुलित करने और समग्र वैश्विक राजनीति में अपने ऐतिहासिक दृष्टिकोण को बनाए रखने की आवश्यकता है।
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