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इस समय जारी अमरीका-ईरान नाभिकीय समझौता विवाद भारत के राष्ट्रीय हितों को किस प्रकार प्रभावित करेगा? भारत को इस स्थिति के प्रति क्या रवैया अपनाना चाहिए? (250 words) [UPSC 2018]
अमरीका-ईरान नाभिकीय समझौता विवाद और भारत के राष्ट्रीय हित अमरीका-ईरान नाभिकीय समझौता विवाद (JCPOA) भारत के राष्ट्रीय हितों को कई तरीकों से प्रभावित कर सकता है: 1. ऊर्जा सुरक्षा: भारत, जो एक प्रमुख ऊर्जा आयातक है, ईरान से तेल और गैस के आपूर्तिकर्ता पर निर्भर है। ईरान पर प्रतिबंधों की स्थिति में ऊर्जाRead more
अमरीका-ईरान नाभिकीय समझौता विवाद और भारत के राष्ट्रीय हित
अमरीका-ईरान नाभिकीय समझौता विवाद (JCPOA) भारत के राष्ट्रीय हितों को कई तरीकों से प्रभावित कर सकता है:
1. ऊर्जा सुरक्षा: भारत, जो एक प्रमुख ऊर्जा आयातक है, ईरान से तेल और गैस के आपूर्तिकर्ता पर निर्भर है। ईरान पर प्रतिबंधों की स्थिति में ऊर्जा कीमतें बढ़ सकती हैं, जो भारत की ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता पर असर डाल सकती है।
2. व्यापार और निवेश: ईरान के साथ वाणिज्यिक संबंधों और निवेश में बाधाएँ उत्पन्न हो सकती हैं। इससे भारतीय कंपनियों की व्यापारिक गतिविधियाँ प्रभावित हो सकती हैं, विशेषकर उद्योगों और बुनियादी ढांचे में।
3. क्षेत्रीय स्थिरता: ईरान और अमरीका के बीच तनाव क्षेत्रीय स्थिरता को प्रभावित कर सकता है, जिससे भारत की सुरक्षा और भूराजनीतिक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, विशेषकर पड़ोसी देशों में।
भारत को अपनाने योग्य रवैया:
1. संतुलित दृष्टिकोण: भारत को संतुलित और तटस्थ दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, जो न केवल अमेरिका और ईरान के साथ अच्छे रिश्ते बनाए रखे, बल्कि भारत की आर्थिक और सुरक्षा आवश्यकताओं को भी ध्यान में रखे।
2. ऊर्जा विविधता: भारत को ऊर्जा स्रोतों का विविधीकरण करना चाहिए, ताकि किसी एक आपूर्तिकर्ता पर निर्भरता कम हो और ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
3. कूटनीतिक सक्रियता: भारत को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सक्रिय रहकर, कूटनीतिक संवाद को बढ़ावा देना चाहिए और वैश्विक सुरक्षा और स्थिरता को बनाए रखने में योगदान देना चाहिए।
इस प्रकार, भारत को एक सवेंदनशील और समाधान-उन्मुख दृष्टिकोण अपनाते हुए अपनी आर्थिक और सुरक्षा प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेना चाहिए।
See lessहाल के समय में भारत और यू.के, की न्यायिक व्यवस्थाएं अभिसरणीय एवं अपसरणीय होती प्रतीत हो रही हैं। दोनों राष्ट्रों की न्यायिक कार्यप्रणालियों के आलोक में अभिसरण तथा अपसरण के मुख्य बिदुओं को आलोकित कीजिये ।(150 words) [UPSC 2020]
भारत और यू.के. की न्यायिक व्यवस्थाओं में ऐतिहासिक रूप से गहरा संबंध रहा है, क्योंकि भारत की न्यायिक प्रणाली ब्रिटिश कानूनी परंपराओं पर आधारित है। हाल के समय में, दोनों देशों की न्यायिक प्रणालियों में अभिसरण (convergence) और अपसरण (divergence) दोनों देखे जा सकते हैं। अभिसरण: विधि की सर्वोच्चता: दोनोंRead more
भारत और यू.के. की न्यायिक व्यवस्थाओं में ऐतिहासिक रूप से गहरा संबंध रहा है, क्योंकि भारत की न्यायिक प्रणाली ब्रिटिश कानूनी परंपराओं पर आधारित है। हाल के समय में, दोनों देशों की न्यायिक प्रणालियों में अभिसरण (convergence) और अपसरण (divergence) दोनों देखे जा सकते हैं।
अभिसरण:
See lessविधि की सर्वोच्चता: दोनों देशों में विधि का शासन (Rule of Law) महत्वपूर्ण सिद्धांत है, जो न्यायपालिका को कार्यपालिका और विधायिका से स्वतंत्र बनाता है।
न्यायिक समीक्षा: भारत और यू.के. दोनों में न्यायालयों को संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों की समीक्षा करने और असंवैधानिक विधानों को निरस्त करने का अधिकार है।
अपसरण:
संविधानिक संरचना: यू.के. का कोई लिखित संविधान नहीं है, जबकि भारत का एक विस्तृत लिखित संविधान है, जो न्यायालयों को व्यापक अधिकार प्रदान करता है।
न्यायिक सक्रियता: भारत में न्यायिक सक्रियता (Judicial Activism) अधिक है, जहां अदालतें सामाजिक और आर्थिक मुद्दों में भी हस्तक्षेप करती हैं, जबकि यू.के. में न्यायालय आमतौर पर विधायिका के फैसलों का सम्मान करते हैं और सीमित हस्तक्षेप करते हैं।
मानवाधिकार: यू.के. में यूरोपीय मानवाधिकार अधिनियम 1998 के तहत न्यायालय मानवाधिकार मामलों में फैसले लेते हैं, जबकि भारत में संविधान के मौलिक अधिकारों के तहत न्यायालय मानवाधिकार की रक्षा करते हैं।
इन अभिसरण और अपसरण के बिंदुओं ने दोनों न्यायिक प्रणालियों को समय के साथ अनोखा और गतिशील बनाया है।
"संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन के रूप में एक ऐसे अस्तित्व के खतरे का सामना कर रहा है जो तत्कालीन सोवियत संघ की तुलना में कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण है।" विवेचना कीजिए। (150 words) [UPSC 2021]
"संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन के रूप में एक ऐसे अस्तित्व के खतरे का सामना कर रहा है जो तत्कालीन सोवियत संघ की तुलना में कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण है" इस कथन की विवेचना करते हुए: सामरिक और आर्थिक दृष्टिकोण: आर्थिक शक्ति: चीन की तेजी से बढ़ती आर्थिक शक्ति और उसकी वैश्विक व्यापारिक उपस्थिति ने अमेरिका के लिएRead more
“संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन के रूप में एक ऐसे अस्तित्व के खतरे का सामना कर रहा है जो तत्कालीन सोवियत संघ की तुलना में कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण है” इस कथन की विवेचना करते हुए:
सामरिक और आर्थिक दृष्टिकोण:
आर्थिक शक्ति: चीन की तेजी से बढ़ती आर्थिक शक्ति और उसकी वैश्विक व्यापारिक उपस्थिति ने अमेरिका के लिए एक प्रमुख चुनौती उत्पन्न की है। चीन की आर्थिक वृद्धि और उसकी वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं पर पकड़ अमेरिका के वैश्विक आर्थिक प्रभुत्व को चुनौती देती है।
सैन्य और तकनीकी विकास: चीन का सैन्य विस्तार और तकनीकी उन्नति, जैसे कि साइबर युद्ध और कृत्रिम बुद्धिमत्ता में प्रगति, अमेरिका के लिए गंभीर सुरक्षा खतरे पैदा कर रही है। सोवियत संघ की तुलना में, चीन की आधुनिक तकनीकी क्षमताएँ और उसके क्षेत्रीय प्रभाव क्षेत्र में व्यापकता अमेरिकी सुरक्षा नीति के लिए अधिक जटिलता उत्पन्न करती हैं।
भौगोलिक और राजनीतिक दृष्टिकोण:
See lessवैश्विक प्रभाव: चीन की बेल्ट और रोड इनिशिएटिव और वैश्विक संस्थानों में बढ़ती भूमिका, अमेरिका की अंतरराष्ट्रीय स्थिति को चुनौती देती है। सोवियत संघ का प्रभाव मुख्यतः यूरोप और मध्य एशिया तक सीमित था, जबकि चीन का प्रभाव व्यापक और रणनीतिक है।
इस प्रकार, चीन के उदय ने अमेरिका के लिए एक नई और जटिल चुनौती उत्पन्न की है, जो सोवियत संघ की तुलना में अधिक व्यापक और बहुपरकारी है।
भारत ने अपनी वैश्विक स्थिति और विदेशों में छवि को बेहतर बनाने के लिए सॉफ्ट पावर को अपनी विदेश नीति के एक महत्वपूर्ण स्तंभ के रूप में स्थापित कर लिया है। सरकार द्वारा की गई विभिन्न पहलों के साथ-साथ इस कथन की विवेचना कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
भारत ने अपनी वैश्विक स्थिति और विदेशों में छवि को बेहतर बनाने के लिए सॉफ्ट पावर को एक प्रमुख विदेश नीति के स्तंभ के रूप में स्थापित किया है। सॉफ्ट पावर का मतलब केवल आर्थिक और सैन्य ताकत से नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक, शैक्षिक, और वैधानिक प्रभाव के माध्यम से अपनी पहचान और प्रभाव बढ़ाने की रणनीति है।Read more
भारत ने अपनी वैश्विक स्थिति और विदेशों में छवि को बेहतर बनाने के लिए सॉफ्ट पावर को एक प्रमुख विदेश नीति के स्तंभ के रूप में स्थापित किया है। सॉफ्ट पावर का मतलब केवल आर्थिक और सैन्य ताकत से नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक, शैक्षिक, और वैधानिक प्रभाव के माध्यम से अपनी पहचान और प्रभाव बढ़ाने की रणनीति है।
भारत की सॉफ्ट पावर पहलों में शामिल हैं:
संस्कृति और कला: भारत ने अपनी सांस्कृतिक धरोहर, जैसे कि योग, आयुर्वेद, बॉलीवुड, और पारंपरिक कला को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत किया है। अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक आदान-प्रदान और भारतीय सांस्कृतिक केंद्रों की स्थापना ने भारतीय संस्कृति की वैश्विक पहचान को बढ़ाया है।
शैक्षिक पहल: भारतीय शैक्षिक संस्थान, जैसे आईआईटी और आईआईएम, अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को आकर्षित कर रहे हैं। भारत सरकार ने विभिन्न स्कॉलरशिप योजनाओं और अंतर्राष्ट्रीय शैक्षिक सहयोग की पहल की है।
डायस्पोरा और सहयोग: भारतीय प्रवासी समुदाय की भूमिका को सशक्त बनाना और उनके साथ मजबूत संबंध बनाना, जैसे कि प्रवासी भारतीयों के लिए विभिन्न पहलें और कार्यक्रम।
विविधता और लोकतंत्र: भारत ने अपने लोकतांत्रिक मूल्यों और बहुलता को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत किया है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में एक सकारात्मक छवि बनी है।
विपणन और ब्रांडिंग: भारत ने अंतर्राष्ट्रीय मीडिया, प्रचार अभियानों, और वैश्विक आयोजनों में सक्रिय भागीदारी के माध्यम से अपनी छवि को उभारने का प्रयास किया है।
इन पहलों ने भारत की सॉफ्ट पावर को सशक्त किया है, जिससे वैश्विक मंच पर भारत की स्थिति मजबूत हुई है और इसके प्रभाव को स्वीकार्यता प्राप्त हुई है। यह रणनीति भारत की विदेश नीति में एक महत्वपूर्ण घटक बन गई है, जो केवल क्षेत्रीय प्रभाव को बढ़ावा देने के बजाय, वैश्विक मान्यता और सहयोग को भी प्रोत्साहित करती है।
See lessरूस-युक्रेन संघर्ष के कारणों की विवेचना कीजिए। (125 Words) [UPPSC 2022]
रूस-युक्रेन संघर्ष के कारण 1. ऐतिहासिक तनाव: रूस और युक्रेन के बीच इतिहासिक विवाद और सांस्कृतिक मतभेद लंबे समय से तनाव का कारण बने हैं। क्राइमिया का 2014 में रूस द्वारा अधिग्रहण ने इन तनावों को बढ़ाया, क्योंकि युक्रेन इसे अपनी क्षेत्रीय संप्रभुता का उल्लंघन मानता है। 2. भू-राजनीतिक संघर्ष: युक्रेन कRead more
रूस-युक्रेन संघर्ष के कारण
1. ऐतिहासिक तनाव:
2. भू-राजनीतिक संघर्ष:
3. नागरिक और जातीय विवाद:
4. आधिकारिक संबंधों में तनाव:
हालिया उदाहरण:
निष्कर्ष
रूस-युक्रेन संघर्ष के कारण ऐतिहासिक तनाव, भू-राजनीतिक संघर्ष, नागरिक विवाद और द्विपक्षीय तनाव के मिश्रण से उत्पन्न हुए हैं। इन कारणों को समझना और समाधान के प्रयास करना क्षेत्रीय और वैश्विक शांति के लिए महत्वपूर्ण है।
See less"विदेशी मामलों का संचालन घरेलू बाध्यताओं और मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय परिवेश के बीच दोतरफा अंतर्संबंध का एक परिणाम है।" 1960 के दशक में भारत के बाह्य संबंधों के संदर्भ में इस कथन पर चर्चा कीजिए।(250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
**1960 के दशक में भारत के बाह्य संबंध** और घरेलू बाध्यताओं के बीच अंतर्संबंध को समझने के लिए हमें उस समय के ऐतिहासिक, राजनीतिक, और सामाजिक संदर्भ को ध्यान में रखना होगा। **घरेलू बाध्यताएँ:** 1. **विकास और गरीबी**: 1960 के दशक में भारत ने स्वतंत्रता के बाद आर्थिक और सामाजिक विकास की दिशा में कई प्रयाRead more
**1960 के दशक में भारत के बाह्य संबंध** और घरेलू बाध्यताओं के बीच अंतर्संबंध को समझने के लिए हमें उस समय के ऐतिहासिक, राजनीतिक, और सामाजिक संदर्भ को ध्यान में रखना होगा।
**घरेलू बाध्यताएँ:**
1. **विकास और गरीबी**: 1960 के दशक में भारत ने स्वतंत्रता के बाद आर्थिक और सामाजिक विकास की दिशा में कई प्रयास किए। गरीबी उन्मूलन, औद्योगिकीकरण, और कृषि सुधार प्राथमिक लक्ष्यों में थे, जो संसाधनों और विदेशी सहायता की मांग को प्रभावित कर रहे थे।
2. **आंतरिक अस्थिरता**: इस समय भारत में कई आंतरिक चुनौतियाँ थीं, जैसे जातीय और धार्मिक तनाव, नक्सल आंदोलन, और राजनीतिक अस्थिरता। ये घरेलू समस्याएँ विदेशी नीति पर ध्यान देने की प्राथमिकताओं को प्रभावित करती थीं।
**अंतर्राष्ट्रीय परिवेश:**
1. **भारत-चीन युद्ध (1962)**: भारत और चीन के बीच युद्ध ने भारतीय सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा दिया और भारत को सोवियत संघ के साथ समीकरण को मजबूत करने की दिशा में प्रेरित किया। यह घटना भारत की विदेश नीति में बदलाव का एक प्रमुख बिंदु थी।
2. **शीत युद्ध का प्रभाव**: 1960 के दशक में शीत युद्ध ने वैश्विक राजनीति को प्रभावित किया। भारत ने निरपेक्षता की नीति अपनाई, लेकिन उसकी विदेश नीति सोवियत संघ के प्रति झुकाव और पश्चिमी शक्तियों के साथ संतुलन बनाने के प्रयासों को दर्शाती थी।
3. **गैर-संरेखित आंदोलन**: भारत ने इस आंदोलन की अगुवाई की, जिसका उद्देश्य उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष था। यह विदेश नीति में एक स्वतंत्र और तटस्थ रुख अपनाने के प्रयास को प्रदर्शित करता था।
**दोतरफा अंतर्संबंध:**
भारत की विदेश नीति 1960 के दशक में घरेलू बाध्यताओं और अंतर्राष्ट्रीय परिवेश के बीच संतुलन बनाने का प्रयास थी। घरेलू चुनौतियों ने भारत की विदेश नीति को आंतरिक सुरक्षा और आर्थिक विकास के संदर्भ में नया दिशा दिया, जबकि अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं ने भारत को वैश्विक राजनीति में अपनी भूमिका को फिर से परिभाषित करने पर मजबूर किया। इस प्रकार, 1960 के दशक में भारत के विदेश मामलों का संचालन घरेलू जरूरतों और अंतर्राष्ट्रीय परिवेश के बीच जटिल अंतर्संबंध को दर्शाता है।
See less'स्वच्छ ऊर्जा आज की ज़रूरत है।' भू-राजनीति के सन्दर्भ में, विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय मंचों में जलवायु परिवर्तन की दिशा में भारत की बदलती नीति का संक्षिप्त वर्णन कीजिए । (250 words) [UPSC 2022]
भू-राजनीति के सन्दर्भ में भारत की बदलती जलवायु नीति 1. नीति में परिवर्तन भारत की जलवायु परिवर्तन नीति ने समय के साथ महत्वपूर्ण बदलाव देखा है। प्रारंभ में विकास पर ध्यान केंद्रित करने के बावजूद, भारत ने अब जलवायु क्रिया को अपनी नीति का केंद्रीय हिस्सा बना लिया है। यह बदलाव अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारRead more
भू-राजनीति के सन्दर्भ में भारत की बदलती जलवायु नीति
1. नीति में परिवर्तन
भारत की जलवायु परिवर्तन नीति ने समय के साथ महत्वपूर्ण बदलाव देखा है। प्रारंभ में विकास पर ध्यान केंद्रित करने के बावजूद, भारत ने अब जलवायु क्रिया को अपनी नीति का केंद्रीय हिस्सा बना लिया है। यह बदलाव अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत की सक्रिय भूमिका और वैश्विक जलवायु लक्ष्यों के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
2. प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय मंच और प्रतिबद्धताएँ
पेरिस समझौता: 2015 में पेरिस समझौते के तहत, भारत ने कार्बन उत्सर्जन में कमी और नवीकरणीय ऊर्जा की क्षमता बढ़ाने के लिए प्रतिबद्धता जताई। इसके तहत, भारत ने 2030 तक 2005 के स्तरों से उत्सर्जन तीव्रता को 33-35% घटाने और अपनी ऊर्जा जरूरतों का 50% नवीकरणीय स्रोतों से पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया।
संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP): COP बैठकों में, भारत ने “सामान्य लेकिन विभाजित जिम्मेदारियाँ” के सिद्धांत पर जोर दिया, जिसमें विकासशील देशों के लिए वित्तीय और प्रौद्योगिकी सहायता की आवश्यकता की बात की। भारत ने विकसित देशों से अधिक जिम्मेदारी की अपील की है, और विकासशील देशों को सहायता प्रदान करने की आवश्यकता को रेखांकित किया है।
G20 सम्मेलन: G20 मंच पर, भारत ने वैश्विक जलवायु लक्ष्यों के समर्थन के साथ-साथ घरेलू विकास के मुद्दों को भी उठाया। भारत ने स्थायी विकास और हरी वित्त व्यवस्था को प्रोत्साहित किया, और वैश्विक हरी अर्थव्यवस्था में नेतृत्व की दिशा में कदम बढ़ाए।
3. भू-राजनीतिक प्रभाव
रणनीतिक साझेदारियाँ: भारत की जलवायु नीतियों ने अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे देशों के साथ रणनीतिक साझेदारियाँ मजबूत की हैं। स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी और जलवायु वित्त में सहयोग ने भारत को वैश्विक जलवायु कार्यों में एक प्रमुख नेता के रूप में स्थापित किया है।
क्षेत्रीय प्रभाव: भारत की जलवायु नेतृत्व क्षमता दक्षिण एशिया और अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) जैसे क्षेत्रीय मंचों पर भी देखी जाती है। क्षेत्रीय सहयोग और स्वच्छ ऊर्जा पहल को बढ़ावा देने से भारत की क्षेत्रीय और विकासशील देशों में प्रभावशीलता बढ़ी है।
4. घरेलू और वैश्विक प्रभाव
घरेलू नीति एकीकरण: भारत ने राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना और राज्य स्तरीय जलवायु क्रियान्वयन योजनाओं के माध्यम से अपनी जलवायु नीतियों को विकास रणनीतियों के साथ एकीकृत किया है। ये नीतियाँ नवीकरणीय ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता, और जलवायु अनुकूलन पर केंद्रित हैं।
वैश्विक मान्यता: भारत की सक्रिय जलवायु नीति ने वैश्विक मंच पर मान्यता प्राप्त की है, जो उसकी पर्यावरणीय स्थिरता और सतत विकास के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
निष्कर्ष
भारत की बदलती जलवायु नीति भू-राजनीति के संदर्भ में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उसकी सक्रिय भागीदारी और रणनीतिक साझेदारियों ने उसे वैश्विक जलवायु नेतृत्व में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित किया है।
See less'भारत विश्व नेतृत्व के लिए तत्पर है।' इस कथन की विवेचना कीजिए। (200 Words) [UPPSC 2023]
भारत का वैश्विक नेतृत्व के लिए तत्पर होना: विवेचना 1. वैश्विक मंच पर बढ़ती भूमिका: आर्थिक वृद्धि: भारत की विवृद्धि दर और वृहद बाजार उसे वैश्विक आर्थिक वर्ग में एक प्रमुख खिलाड़ी बना रही है। मेक इन इंडिया और डिजिटल इंडिया जैसे आर्थिक योजनाओं से भारत आकर्षक निवेश स्थल बन गया है। भूराजनीतिक महत्त्व: भाRead more
भारत का वैश्विक नेतृत्व के लिए तत्पर होना: विवेचना
1. वैश्विक मंच पर बढ़ती भूमिका:
2. वैश्विक मुद्दों में योगदान:
3. चुनौतियाँ:
4. भविष्य की दिशा:
निष्कर्ष: भारत वैश्विक नेतृत्व के लिए तत्पर है, इसके आर्थिक और सामरिक प्रभाव, वैश्विक मुद्दों में योगदान, और भविष्य की दिशा इसे एक प्रमुख वैश्विक खिलाड़ी बना रहे हैं। हालांकि, चुनौतियाँ भी मौजूद हैं जिन्हें सतत प्रयास और संयुक्त रणनीति से पार किया जा सकता है।
See lessपश्चिम एशिया में चीन का बढ़ता प्रभाव यू.एस. के प्रभुत्व के अंत और एक नई बहु-ध्रुवीय व्यवस्था की शुरुवात का संकेत प्रदान करता है। समालोचनात्मक विवेचना कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
पश्चिम एशिया में चीन का बढ़ता प्रभाव वैश्विक राजनीति में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन का संकेत है, जो यू.एस. के एकाधिकार को चुनौती देता है और एक नई बहु-ध्रुवीय व्यवस्था की ओर इशारा करता है। चीन ने इस क्षेत्र में अपने प्रभाव को आर्थिक, राजनीतिक और रणनीतिक मोर्चों पर मजबूत किया है। बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (Read more
पश्चिम एशिया में चीन का बढ़ता प्रभाव वैश्विक राजनीति में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन का संकेत है, जो यू.एस. के एकाधिकार को चुनौती देता है और एक नई बहु-ध्रुवीय व्यवस्था की ओर इशारा करता है। चीन ने इस क्षेत्र में अपने प्रभाव को आर्थिक, राजनीतिक और रणनीतिक मोर्चों पर मजबूत किया है। बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के माध्यम से चीन ने पश्चिम एशियाई देशों में बुनियादी ढांचे के विकास और निवेश को बढ़ावा दिया है, जिससे उसकी आर्थिक पैठ गहरी हुई है।
इसके अतिरिक्त, चीन ने क्षेत्रीय संकटों में मध्यस्थ की भूमिका निभाने की कोशिश की है, जैसे ईरान-सऊदी अरब संबंधों को सुधारने में, जिससे उसकी कूटनीतिक छवि मजबूत हुई है। चीन की ऊर्जा जरूरतों के लिए पश्चिम एशिया का महत्वपूर्ण होना भी उसे इस क्षेत्र में सक्रिय बनाए रखता है।
दूसरी ओर, यू.एस. का पश्चिम एशिया में प्रभुत्व धीरे-धीरे कमजोर हो रहा है। इराक और अफगानिस्तान में लंबे समय तक चले युद्ध और इस क्षेत्र में अमेरिकी नीतियों की विफलताएँ, जैसे अरब स्प्रिंग के बाद उत्पन्न अस्थिरता, ने अमेरिका की साख को नुकसान पहुँचाया है।
चीन का उदय और यू.एस. के प्रभाव का ह्रास एक बहु-ध्रुवीय विश्व व्यवस्था की ओर संकेत करता है, जहाँ शक्तियों का संतुलन अब एक ही ध्रुव पर केंद्रित नहीं रहेगा। यह बदलाव अंतरराष्ट्रीय संबंधों में जटिलताओं को बढ़ाएगा और क्षेत्रीय शक्तियों को नए विकल्प प्रदान करेगा, जिससे वैश्विक राजनीति की दिशा में महत्वपूर्ण बदलाव आएगा।
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