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संचार नेटवर्क में डेटा गोपनीयता और सुरक्षा के मुद्दों का आंतरिक सुरक्षा पर क्या प्रभाव पड़ता है? इसके समाधान के लिए क्या नीतिगत कदम उठाए जा सकते हैं?
डेटा गोपनीयता और सुरक्षा के मुद्दे: संचार नेटवर्क और आंतरिक सुरक्षा पर प्रभाव परिचय संचार नेटवर्क में डेटा गोपनीयता और सुरक्षा के मुद्दे आंतरिक सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण चुनौतियाँ प्रस्तुत करते हैं। इन समस्याओं का प्रभाव और समाधान के लिए उठाए जा सकने वाले नीतिगत कदमों पर चर्चा करना आवश्यक है। डेटा गRead more
डेटा गोपनीयता और सुरक्षा के मुद्दे: संचार नेटवर्क और आंतरिक सुरक्षा पर प्रभाव
परिचय
संचार नेटवर्क में डेटा गोपनीयता और सुरक्षा के मुद्दे आंतरिक सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण चुनौतियाँ प्रस्तुत करते हैं। इन समस्याओं का प्रभाव और समाधान के लिए उठाए जा सकने वाले नीतिगत कदमों पर चर्चा करना आवश्यक है।
डेटा गोपनीयता और सुरक्षा के मुद्दों का आंतरिक सुरक्षा पर प्रभाव
समाधान के लिए नीतिगत कदम
निष्कर्ष
See lessसंचार नेटवर्क में डेटा गोपनीयता और सुरक्षा के मुद्दों का आंतरिक सुरक्षा पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इन समस्याओं का समाधान करने के लिए सुरक्षा मानकों में सुधार, जागरूकता और प्रशिक्षण, प्रभावी प्रतिक्रियात्मक योजनाओं, और नियमित निगरानी की आवश्यकता है। उचित नीतिगत कदम उठाकर इन समस्याओं का सामना किया जा सकता है।
आंतरिक सुरक्षा को चुनौती देने वाले साइबर हमलों की बढ़ती संख्या का क्या कारण है? इन हमलों के प्रभाव और रोकथाम के उपायों पर चर्चा करें।
साइबर हमलों की बढ़ती संख्या और आंतरिक सुरक्षा को चुनौती परिचय साइबर हमलों की बढ़ती संख्या आंतरिक सुरक्षा के लिए एक गंभीर चुनौती बन चुकी है। इन हमलों के कारण, प्रभाव और रोकथाम के उपायों को समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है। साइबर हमलों की बढ़ती संख्या के कारण तकनीकी विकास और डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर डिजिटल इRead more
साइबर हमलों की बढ़ती संख्या और आंतरिक सुरक्षा को चुनौती
परिचय
साइबर हमलों की बढ़ती संख्या आंतरिक सुरक्षा के लिए एक गंभीर चुनौती बन चुकी है। इन हमलों के कारण, प्रभाव और रोकथाम के उपायों को समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
साइबर हमलों की बढ़ती संख्या के कारण
साइबर हमलों के प्रभाव
रोकथाम के उपाय
निष्कर्ष
See lessसाइबर हमलों की बढ़ती संख्या आंतरिक सुरक्षा के लिए एक गंभीर चुनौती प्रस्तुत करती है। इसके प्रभावी रोकथाम के लिए मजबूत सुरक्षा उपाय, जागरूकता और प्रभावी प्रतिक्रियात्मक योजनाओं की आवश्यकता है। उचित रणनीतियों और सतर्कता से इस चुनौती का सामना किया जा सकता है।
सोशल मीडिया प्लेटफार्मों का आंतरिक सुरक्षा में क्या योगदान है? ये प्लेटफार्म किस प्रकार असामाजिक गतिविधियों को बढ़ावा दे सकते हैं?
सोशल मीडिया प्लेटफार्मों का आंतरिक सुरक्षा में योगदान और असामाजिक गतिविधियाँ परिचय सोशल मीडिया प्लेटफार्मों ने सूचना के प्रसार और जनसंचार के क्षेत्र में महत्वपूर्ण बदलाव किया है। इन प्लेटफार्मों का आंतरिक सुरक्षा में योगदान सकारात्मक और नकारात्मक दोनों दृष्टिकोण से देखा जा सकता है। सोशल मीडिया प्लेटRead more
सोशल मीडिया प्लेटफार्मों का आंतरिक सुरक्षा में योगदान और असामाजिक गतिविधियाँ
परिचय
सोशल मीडिया प्लेटफार्मों ने सूचना के प्रसार और जनसंचार के क्षेत्र में महत्वपूर्ण बदलाव किया है। इन प्लेटफार्मों का आंतरिक सुरक्षा में योगदान सकारात्मक और नकारात्मक दोनों दृष्टिकोण से देखा जा सकता है।
सोशल मीडिया प्लेटफार्मों का आंतरिक सुरक्षा में योगदान
सोशल मीडिया प्लेटफार्मों द्वारा असामाजिक गतिविधियों को बढ़ावा
निष्कर्ष
See lessसोशल मीडिया प्लेटफार्मों का आंतरिक सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान है, लेकिन इनका दुरुपयोग भी गंभीर असामाजिक गतिविधियों को बढ़ावा दे सकता है। इसलिए, इन प्लेटफार्मों के सकारात्मक उपयोग को बढ़ावा देने और नकारात्मक प्रभावों को नियंत्रित करने के लिए प्रभावी नीतियों और सुरक्षा उपायों की आवश्यकता है।
संचार नेटवर्क के माध्यम से सूचनाओं का प्रसार आंतरिक सुरक्षा को कैसे प्रभावित करता है? इसके सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं का विश्लेषण करें।
संचार नेटवर्क और आंतरिक सुरक्षा पर प्रभाव परिचय संचार नेटवर्क का सूचना प्रसारण में महत्वपूर्ण स्थान है। यह आंतरिक सुरक्षा पर गहरा असर डालता है, जिसमें सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं दोनों का विश्लेषण किया जा सकता है। सकारात्मक पहलू सामान्य जनता की सूचनाओं तक पहुँच संचार नेटवर्क, जैसे कि मोबाइल फोन औरRead more
संचार नेटवर्क और आंतरिक सुरक्षा पर प्रभाव
परिचय
संचार नेटवर्क का सूचना प्रसारण में महत्वपूर्ण स्थान है। यह आंतरिक सुरक्षा पर गहरा असर डालता है, जिसमें सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं दोनों का विश्लेषण किया जा सकता है।
सकारात्मक पहलू
नकारात्मक पहलू
निष्कर्ष
See lessसंचार नेटवर्क की भूमिका आंतरिक सुरक्षा में एकदम महत्वपूर्ण है, लेकिन इसके उपयोग में सावधानी और सुरक्षा के उपायों की आवश्यकता है। सकारात्मक पहलुओं के बावजूद, नकारात्मक पहलुओं से निपटने के लिए आवश्यक सुरक्षा उपायों को लागू करना अनिवार्य है।
भारत की समकालीन गैर-पारंपरिक सुरक्षा चुनौतियों पर चर्चा करें।
भारत की समकालीन गैर-पारंपरिक सुरक्षा चुनौतियाँ पारंपरिक सैन्य सुरक्षा से परे जाती हैं और अनेक नए खतरे और संकटों को शामिल करती हैं। ये चुनौतियाँ भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित कर रही हैं और इसके लिए एक समग्र और बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। यहां कुछ प्रमुख गैर-पारंपरिक सुरक्षा चुनौतियाँ दRead more
भारत की समकालीन गैर-पारंपरिक सुरक्षा चुनौतियाँ पारंपरिक सैन्य सुरक्षा से परे जाती हैं और अनेक नए खतरे और संकटों को शामिल करती हैं। ये चुनौतियाँ भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित कर रही हैं और इसके लिए एक समग्र और बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। यहां कुछ प्रमुख गैर-पारंपरिक सुरक्षा चुनौतियाँ दी गई हैं:
1. आतंकवाद और उग्रवाद
आंतरिक आतंकवाद: भारत के विभिन्न हिस्सों में आतंकवाद और उग्रवाद की गतिविधियाँ जारी हैं, जैसे कि कश्मीर में आतंकवादी हमले, उत्तर-पूर्वी राज्यों में उग्रवादी गतिविधियाँ, और नक्सलवाद से जुड़ी हिंसा। ये गतिविधियाँ राज्य की स्थिरता और विकास को प्रभावित करती हैं।
सर्विलांस और डिजिटल आतंकवाद: आतंकवादी संगठन डिजिटल माध्यमों का उपयोग करके भर्ती और संचार करते हैं। साइबर स्पेस का दुरुपयोग करके आतंकी गतिविधियों को फैलाने की कोशिशें बढ़ रही हैं, जैसे कि सोशल मीडिया पर प्रोपेगंडा फैलाना।
2. साइबर सुरक्षा
साइबर हमले: भारत को विभिन्न प्रकार के साइबर हमलों का सामना करना पड़ता है, जिनमें सरकारी, निजी और अवसंरचनात्मक बुनियादी ढांचे पर हमले शामिल हैं। डेटा चोरी, हैकिंग, और साइबर स्पायिंग जैसे खतरे बढ़ रहे हैं।
साइबर युद्ध: साइबर युद्ध के खतरे ने भी चिंता बढ़ा दी है, जिसमें न केवल डेटा चोरी बल्कि महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को भी निशाना बनाया जा सकता है, जैसे बिजली ग्रिड और संचार नेटवर्क।
3. जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय संकट
प्राकृतिक आपदाएँ: जलवायु परिवर्तन के कारण प्राकृतिक आपदाएँ, जैसे बाढ़, सूखा, और चक्रवात, अधिक频频 हो रही हैं। ये आपदाएँ जीवन, संपत्ति और आर्थिक संसाधनों को नुकसान पहुंचाती हैं और मानव सुरक्षा को खतरे में डालती हैं।
पर्यावरणीय विस्थापन: जलवायु परिवर्तन के कारण कुछ क्षेत्रों में लोगों का विस्थापन बढ़ रहा है। यह विस्थापन सामाजिक तनाव और सुरक्षा के मुद्दों को जन्म देता है, खासकर सीमावर्ती क्षेत्रों में।
4. स्वास्थ्य संकट
महामारी: COVID-19 जैसी वैश्विक महामारियाँ स्वास्थ्य प्रणालियों पर भारी दबाव डालती हैं और अर्थव्यवस्था, समाज, और सुरक्षा को प्रभावित करती हैं। ऐसी महामारियाँ वैश्विक और राष्ट्रीय सुरक्षा की चुनौती बन सकती हैं।
संक्रामक रोगों की वृद्धि: नई और पुनरुत्थानकारी संक्रामक बीमारियाँ जैसे कि एबोला, हिपेटाइटिस, और अन्य संक्रमण रोगों का प्रसार भी एक गंभीर चिंता का विषय है।
5. आर्थिक असमानता और सामाजिक असंतोष
आर्थिक असमानता: आर्थिक असमानता और गरीबी की समस्याएँ सामाजिक असंतोष को जन्म देती हैं, जिससे आंतरिक स्थिरता और सामाजिक शांति प्रभावित होती है। यह असंतोष आतंकवाद, उग्रवाद, और अन्य अस्थिरता का कारण बन सकता है।
शहरीकरण और सामाजिक तनाव: तेज़ी से बढ़ते शहरीकरण से जुड़े मुद्दे, जैसे अनियंत्रित झुग्गी-झोपड़ी, प्रदूषण, और अवसंरचनात्मक समस्याएँ, सामाजिक तनाव और संघर्ष को बढ़ावा देती हैं।
6. मानवाधिकार और शरणार्थी संकट
शरणार्थी संकट: नागरिक संघर्ष और प्राकृतिक आपदाओं के कारण बड़े पैमाने पर शरणार्थियों की आमद होती है, जो सीमा प्रबंधन और संसाधनों पर दबाव डालती है।
मानवाधिकार उल्लंघन: मानवाधिकार उल्लंघन और असमानता से जुड़े मुद्दे सामाजिक अस्थिरता को बढ़ावा देते हैं, जो राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित कर सकते हैं।
7. विदेशी हस्तक्षेप और जियो-पॉलिटिकल तनाव
सुरक्षा साझेदारी और रणनीतिक प्रतिस्पर्धा: भारत के पड़ोसी देशों के साथ जियो-पॉलिटिकल तनाव और सुरक्षा साझेदारी की रणनीतियाँ भारत की सुरक्षा नीति को प्रभावित करती हैं। सीमा विवाद और क्षेत्रीय प्रभाव क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा सुरक्षा चुनौतियाँ पैदा कर सकती हैं।
संप्रभुता और संप्रभुता पर खतरे: विदेशी हस्तक्षेप और संप्रभुता की समस्याएँ भी चिंता का विषय हैं, जो क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता को प्रभावित करती हैं।
इन चुनौतियों का प्रभावी रूप से मुकाबला करने के लिए एक समग्र और बहुआयामी सुरक्षा रणनीति की आवश्यकता है, जिसमें तकनीकी, सामरिक, सामाजिक, और आर्थिक पहलुओं को शामिल किया जाए। इस तरह की रणनीति से भारत इन गैर-पारंपरिक सुरक्षा चुनौतियों का सामना कर सकता है और एक सुरक्षित और स्थिर राष्ट्र की दिशा में अग्रसर हो सकता है।
See lessभारतीय संसद के 'सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून' की आलोचना राज्यों द्वारा इसकी कठोरता एवं कभी-कभी असंवैधानिकता के लिये की जाती रही है। विवेचना कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2019]
सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून (AFSPA) की आलोचना: विवेचना **1. AFSPA का अवलोकन: सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून (AFSPA), भारतीय संसद द्वारा पारित, विशेष शक्तियों को सशस्त्र बलों को प्रदान करता है जब कोई क्षेत्र “व disturbed” घोषित किया जाता है। यह बल प्रयोग, बिना मुकदमे के हिरासत, और कार्यवाही से छूटRead more
सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून (AFSPA) की आलोचना: विवेचना
**1. AFSPA का अवलोकन: सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून (AFSPA), भारतीय संसद द्वारा पारित, विशेष शक्तियों को सशस्त्र बलों को प्रदान करता है जब कोई क्षेत्र “व disturbed” घोषित किया जाता है। यह बल प्रयोग, बिना मुकदमे के हिरासत, और कार्यवाही से छूट की अनुमति देता है।
**2. आलोचना:
**3. हालिया घटनाक्रम: सुप्रीम कोर्ट ने AFSPA के अंतर्गत जिम्मेदारी और मानवाधिकार सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए सुधारों की सिफारिश की है।
निष्कर्ष: AFSPA को उग्रवाद और अशांति से निपटने के लिए लागू किया गया है, लेकिन इसकी विवादास्पद प्रावधानों और ऐतिहासिक दुरुपयोग ने मानवाधिकार और संवैधानिक स्वतंत्रताओं पर प्रभाव को लेकर महत्वपूर्ण आलोचना उत्पन्न की है।
See lessभारत का उत्तर-पूर्वीय प्रदेश बहुत लम्बे समय से विद्रोह ग्रसित है। इस प्रदेश में सशस्त्र विद्रोह की अतिजीविता के मुख्य कारणों का विश्लेषण कीजिए। (150 words) [UPSC 2017]
परिचय भारत का उत्तर-पूर्वीय क्षेत्र लंबे समय से सशस्त्र विद्रोहों का शिकार रहा है। विभिन्न सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक कारण इन विद्रोहों की निरंतरता को बनाए रखते हैं। सशस्त्र विद्रोह की अतिजीविता के मुख्य कारण जातीय विविधता और पहचान की राजनीति इस क्षेत्र में कई जातीय समूह हैं, जिनकी अलग-अलग सांस्कृतRead more
परिचय
भारत का उत्तर-पूर्वीय क्षेत्र लंबे समय से सशस्त्र विद्रोहों का शिकार रहा है। विभिन्न सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक कारण इन विद्रोहों की निरंतरता को बनाए रखते हैं।
सशस्त्र विद्रोह की अतिजीविता के मुख्य कारण
इस क्षेत्र में कई जातीय समूह हैं, जिनकी अलग-अलग सांस्कृतिक और भाषाई पहचान है। अधिक स्वायत्तता या स्वतंत्रता की मांग विद्रोह को बढ़ावा देती है, जैसे एनएससीएन (नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड) और उल्फा (यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम) द्वारा।
उत्तर-पूर्व को भौगोलिक अलगाव और केंद्र सरकार द्वारा उपेक्षा का अहसास होता है। इससे अलगाव की भावना और स्वतंत्रता की मांग उत्पन्न होती है।
प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर होते हुए भी, इस क्षेत्र की आर्थिक स्थिति खराब है। आवश्यक आधारभूत संरचना और रोजगार की कमी विद्रोहियों के लिए एक मजबूत आधार बनाती है।
उत्तर-पूर्व की पारगम्य सीमाएं जैसे म्यांमार, बांग्लादेश, और चीन के साथ सशस्त्र विद्रोहियों को हथियारों की तस्करी और आसानी से आवाजाही की सुविधा देती हैं।
कुछ विद्रोही समूहों को पड़ोसी देशों से सहायता मिलती है, जिससे उन्हें हथियार, प्रशिक्षण, और वित्तीय सहायता प्राप्त होती है, जिससे विद्रोह की निरंतरता बनाए रहती है।
निष्कर्ष
See lessउत्तर-पूर्व के सशस्त्र विद्रोह की निरंतरता की जटिलता जातीय तनाव, ऐतिहासिक उपेक्षा, अविकास, और बाहरी समर्थन के कारण है। इसका समाधान आर्थिक विकास, समावेशी शासन, और सुरक्षा उपायों के समन्वित प्रयासों के माध्यम से किया जा सकता है।
आतंकवाद-प्रभावित क्षेत्रों में जनसमुदाय का विश्वास बहाल करने में 'दिल और दिमाग' जीतना एक आवश्यक कदम है। इस संबंध में जम्मू और कश्मीर में संघर्ष समाधान के भाग के रूप में सरकार द्वारा अपनाए गए उपायों पर चर्चा कीजिए। (150 words)[UPSC 2023]
परिचय आतंकवाद-प्रभावित क्षेत्रों में जनसमुदाय का विश्वास बहाल करने के लिए 'दिल और दिमाग' जीतना एक महत्वपूर्ण रणनीति है। जम्मू और कश्मीर में, सरकार ने विकास, संवाद और युवाओं के सशक्तिकरण पर आधारित विभिन्न उपाय अपनाए हैं ताकि लोगों का विश्वास जीता जा सके और शांति स्थापित हो सके। विकासात्मक पहल सरकार नRead more
परिचय
आतंकवाद-प्रभावित क्षेत्रों में जनसमुदाय का विश्वास बहाल करने के लिए ‘दिल और दिमाग’ जीतना एक महत्वपूर्ण रणनीति है। जम्मू और कश्मीर में, सरकार ने विकास, संवाद और युवाओं के सशक्तिकरण पर आधारित विभिन्न उपाय अपनाए हैं ताकि लोगों का विश्वास जीता जा सके और शांति स्थापित हो सके।
विकासात्मक पहल
सरकार ने जम्मू-कश्मीर में प्रधानमंत्री विकास पैकेज (PMDP) के तहत बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य और शिक्षा में सुधार के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं। हाल के वर्षों में नए मेडिकल कॉलेजों और सड़क संपर्क परियोजनाओं की शुरुआत से क्षेत्र में जीवन स्तर और रोजगार के अवसरों में वृद्धि हुई है, जिससे आतंकवाद का समर्थन कम हुआ है।
युवाओं के साथ जुड़ाव
युवाओं को आतंकवाद से दूर रखने के लिए “मिशन यूथ” जैसी योजनाओं के माध्यम से कौशल विकास, छात्रवृत्ति और रोजगार के अवसर प्रदान किए जा रहे हैं। इसके अलावा, उड़ान योजना के तहत युवाओं को प्रशिक्षण और नौकरी के अवसर दिए जा रहे हैं, जिससे उनकी आकांक्षाओं को एक सकारात्मक दिशा मिल रही है।
संवाद और सामान्य स्थिति बहाल करना
सरकार ने स्थानीय नेताओं और समुदायों के साथ बैक-चैनल वार्ता शुरू की है, जिससे विश्वास बहाली हो सके। इसके अलावा, “स्पोर्ट्स फॉर पीस” जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से खेल और सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया गया है, जो सामान्य स्थिति और एकता की भावना को पुनः स्थापित कर रहे हैं।
निष्कर्ष
See lessजम्मू-कश्मीर में जनसमुदाय का विश्वास जीतने के लिए सरकार द्वारा अपनाए गए विकास, संवाद और सशक्तिकरण के उपाय शांति और स्थिरता लाने में सहायक सिद्ध हो रहे हैं।
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सी० पी० ई० सी०) को चीन की अपेक्षाकृत अधिक विशाल 'एक पट्टी एक सड़क' पहल के एक मूलभूत भाग के रूप में देखा जा रहा है। सी० पी० ई० सी० का एक संक्षिप्त वर्णन प्रस्तुत कीजिए और भारत द्वारा उससे किनारा करने के कारण गिनाइए। (150 words) [UPSC 2018]
प्रस्तावना चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC), चीन की 'एक पट्टी एक सड़क' पहल का एक प्रमुख घटक है, जिसका उद्देश्य पाकिस्तान में बुनियादी ढाँचा विकसित करना और चीन को पाकिस्तान के माध्यम से पश्चिम एशिया से जोड़ना है। CPEC की प्रमुख विशेषताएँ बुनियादी ढाँचा विकास: CPEC में $60 बिलियन से अधिक का निवेश शRead more
प्रस्तावना
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC), चीन की ‘एक पट्टी एक सड़क’ पहल का एक प्रमुख घटक है, जिसका उद्देश्य पाकिस्तान में बुनियादी ढाँचा विकसित करना और चीन को पाकिस्तान के माध्यम से पश्चिम एशिया से जोड़ना है।
CPEC की प्रमुख विशेषताएँ
भारत द्वारा किनारा करने के कारण
निष्कर्ष
See lessइस प्रकार, जबकि CPEC आर्थिक विकास को बढ़ावा देने का प्रयास करता है, भारत की संप्रभुता, सामरिक चिंताओं और पारदर्शिता की कमी के कारण इससे किनारा करने की स्थिति स्पष्ट है।
भारत की 'राष्ट्रीय रक्षा परिषद' पर प्रकाश डालें। (125 Words) [UPPSC 2018]
भारत की राष्ट्रीय रक्षा परिषद परिचय राष्ट्रीय रक्षा परिषद (NDC) भारत का एक उच्चस्तरीय निकाय है जो रक्षा संबंधित मुद्दों पर सरकार को सलाह देता है। इसका उद्देश्य राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा की रणनीतियों को सुदृढ़ करना है। संरचना NDC की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं और इसमें रक्षा मंत्री, मुख्य रक्षा.Read more
भारत की राष्ट्रीय रक्षा परिषद
परिचय राष्ट्रीय रक्षा परिषद (NDC) भारत का एक उच्चस्तरीय निकाय है जो रक्षा संबंधित मुद्दों पर सरकार को सलाह देता है। इसका उद्देश्य राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा की रणनीतियों को सुदृढ़ करना है।
संरचना NDC की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं और इसमें रक्षा मंत्री, मुख्य रक्षा.staff (CDS), और थलसेना, नौसेना और वायुसेना के प्रमुख शामिल होते हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) भी एक महत्वपूर्ण सदस्य हैं जो रणनीतिक सलाह प्रदान करते हैं।
कार्य
हालिया उदाहरण CDS की नियुक्ति और सशस्त्र बलों के बीच समन्वय को बेहतर बनाने के लिए रक्षा विभाग का गठन NDC के तहत किया गया, जो नई रणनीतिक पहल का प्रतीक है।
निष्कर्ष राष्ट्रीय रक्षा परिषद भारत की रक्षा योजनाओं और राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जो देश की सुरक्षा को सुनिश्चित करती है।
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