भारत के प्रमुख नगर बाढ़ दशाओं से अधिक असुरक्षित होते जा रहे हैं। विवेचना कीजिए। (200 words) [UPSC 2016]
भारत में शहरी क्षेत्रों में अवक्षयी भौम जल संसाधनों के संरक्षण के उपाय परिचय: भारत में अवक्षयी (डिप्लीटिंग) भौम जल संसाधनों की समस्या गंभीर होती जा रही है। शहरीकरण और जल की अधिक खपत के कारण इन संसाधनों का स्तर लगातार घट रहा है। शहरी क्षेत्रों में जल संरक्षण प्रणाली को प्रभावी बनाने के लिए कुछ महत्वपRead more
भारत में शहरी क्षेत्रों में अवक्षयी भौम जल संसाधनों के संरक्षण के उपाय
परिचय: भारत में अवक्षयी (डिप्लीटिंग) भौम जल संसाधनों की समस्या गंभीर होती जा रही है। शहरीकरण और जल की अधिक खपत के कारण इन संसाधनों का स्तर लगातार घट रहा है। शहरी क्षेत्रों में जल संरक्षण प्रणाली को प्रभावी बनाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण उपाय किए जा सकते हैं।
जल पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग:
- वृष्टि जल संचयन:
- “रेन वॉटर हार्वेस्टिंग” (Rain Water Harvesting) के माध्यम से शहरी क्षेत्रों में वर्षा के पानी को संचित और पुनः उपयोग किया जा सकता है। “दिल्ली सरकार की ‘रेन वॉटर हार्वेस्टिंग पॉलिसी'” ने नई बिल्डिंग्स के लिए इस प्रणाली को अनिवार्य किया है, जिससे भूजल स्तर में सुधार हुआ है।
- वेस्ट वॉटर रीसाइक्लिंग:
- “सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में वेस्ट वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट्स” की स्थापना से अपशिष्ट जल को साफ करके पुनः उपयोग में लाया जा सकता है। “पुणे नगर निगम” ने इस प्रणाली को लागू कर अपशिष्ट जल का पुनर्चक्रण शुरू किया है, जिससे जल की बर्बादी कम हुई है।
सतत जल उपयोग:
- पानी की बचत करने वाले उपकरण:
- “स्मार्ट मीटर” और “पानी की बचत करने वाले फिटिंग्स” जैसे उपकरणों के प्रयोग से जल की खपत को नियंत्रित किया जा सकता है। “मुंबई में स्मार्ट वाटर मीटरिंग” परियोजना ने पानी की खपत पर नज़र रखने में मदद की है।
- पुनर्निर्माण और पुनः उपयोग:
- “ग्रीन बिल्डिंग स्टैंडर्ड्स” के अनुसार, जल पुनर्चक्रण और बचत के लिए “लिड” (Leadership in Energy and Environmental Design) मानकों को अपनाया जाना चाहिए। “बेंगलुरू के ग्रीन बिल्डिंग्स” ने जल संरक्षण के उपायों को अपनाया है, जिससे जल की बचत में सुधार हुआ है।
सार्वजनिक जागरूकता और नीति समर्थन:
- जागरूकता अभियान:
- “जल बचत अभियान” और “सार्वजनिक शिक्षण कार्यक्रम” के माध्यम से नागरिकों को जल संरक्षण के महत्व के बारे में जागरूक किया जा सकता है। “स्वच्छ भारत मिशन” और “जल शक्ति अभियान” ने इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- नीति और विनियम:
- “केंद्र और राज्य सरकारें” जल संरक्षण के लिए सख्त नीतियों और विनियमों को लागू कर सकती हैं। “जल शक्ति मंत्रालय” ने जल प्रबंधन और संरक्षण के लिए नई नीतियाँ पेश की हैं, जिनका प्रभावी कार्यान्वयन आवश्यक है।
निष्कर्ष: शहरी क्षेत्रों में अवक्षयी भौम जल संसाधनों का आदर्श समाधान जल संरक्षण प्रणाली है। इसके लिए वृष्टि जल संचयन, वेस्ट वॉटर रीसाइक्लिंग, पानी की बचत करने वाले उपकरण, और सार्वजनिक जागरूकता जैसे उपाय प्रभावी हो सकते हैं। इन उपायों के माध्यम से जल संसाधनों के संरक्षण में महत्वपूर्ण सुधार लाया जा सकता है।
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भारत के प्रमुख नगरों में बाढ़ का खतरा तेजी से बढ़ रहा है, जिससे ये नगर बाढ़ दशाओं के प्रति अत्यधिक असुरक्षित हो गए हैं। यह समस्या कई कारकों के संयोजन का परिणाम है: 1. अनियंत्रित शहरीकरण: तेजी से हो रहा अनियंत्रित शहरीकरण बाढ़ की समस्या का प्रमुख कारण है। नगरों का तेजी से विस्तार हो रहा है, जिससे प्रRead more
भारत के प्रमुख नगरों में बाढ़ का खतरा तेजी से बढ़ रहा है, जिससे ये नगर बाढ़ दशाओं के प्रति अत्यधिक असुरक्षित हो गए हैं। यह समस्या कई कारकों के संयोजन का परिणाम है:
1. अनियंत्रित शहरीकरण:
तेजी से हो रहा अनियंत्रित शहरीकरण बाढ़ की समस्या का प्रमुख कारण है। नगरों का तेजी से विस्तार हो रहा है, जिससे प्राकृतिक जल निकासी प्रणालियाँ बाधित हो रही हैं। उदाहरण के लिए, मुंबई और चेन्नई जैसे नगरों में पारंपरिक जल निकासी नालों और जलमार्गों पर अतिक्रमण हो गया है, जिससे भारी वर्षा के समय जल जमाव और बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
2. अपर्याप्त और पुराना बुनियादी ढांचा:
भारत के अधिकांश नगरों में जल निकासी और सीवेज प्रणालियाँ पुरानी और अपर्याप्त हैं। अत्यधिक बारिश के दौरान ये प्रणालियाँ पर्याप्त रूप से काम नहीं कर पातीं, जिससे बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है। कोलकाता और दिल्ली जैसे नगरों में यह समस्या आम है।
3. जलवायु परिवर्तन:
जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम में अस्थिरता बढ़ रही है, जिससे भारी वर्षा और चक्रवात जैसी घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि हो रही है। हाल के वर्षों में बेंगलुरु, गुरुग्राम और पटना जैसे नगरों में असामान्य रूप से भारी बारिश और अचानक बाढ़ की घटनाएँ देखी गई हैं।
4. भूमि उपयोग में बदलाव:
वनों की कटाई, जलाशयों का अतिक्रमण, और भूमि का अनियंत्रित उपयोग बाढ़ के जोखिम को बढ़ाता है। मुंबई के मीठी नदी और चेन्नई के जलाशयों पर हुए अतिक्रमण इसके प्रमुख उदाहरण हैं, जहाँ भारी बारिश के दौरान जलभराव की समस्या उत्पन्न होती है।
5. आपातकालीन प्रतिक्रिया की कमी:
अधिकांश नगरों में बाढ़ से निपटने के लिए पर्याप्त आपातकालीन योजना और तैयारी की कमी है। इसका परिणाम यह होता है कि बाढ़ की स्थिति में त्वरित और प्रभावी प्रतिक्रिया नहीं दी जा सकती, जिससे जन-धन की हानि बढ़ जाती है।
इन कारणों से भारत के प्रमुख नगर बाढ़ के प्रति अत्यधिक असुरक्षित हो गए हैं। बाढ़ की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता से निपटने के लिए शहरी योजना, बुनियादी ढांचे के उन्नयन, और जलवायु अनुकूलन उपायों की तत्काल आवश्यकता है।
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