चूंकि भारत ग्रामीण से शहरी समाज में परिवर्तित हो रहा है, ऐसे में टीयर 2 और टीयर 3 शहर देश की आर्थिक वृद्धि के चालक बन सकते हैं। चर्चा कीजिए। साथ ही, इन शहरों की आर्थिक वृद्धि को बाधित ...
भारत के प्रमुख नगरों में बाढ़ का खतरा तेजी से बढ़ रहा है, जिससे ये नगर बाढ़ दशाओं के प्रति अत्यधिक असुरक्षित हो गए हैं। यह समस्या कई कारकों के संयोजन का परिणाम है: 1. अनियंत्रित शहरीकरण: तेजी से हो रहा अनियंत्रित शहरीकरण बाढ़ की समस्या का प्रमुख कारण है। नगरों का तेजी से विस्तार हो रहा है, जिससे प्रRead more
भारत के प्रमुख नगरों में बाढ़ का खतरा तेजी से बढ़ रहा है, जिससे ये नगर बाढ़ दशाओं के प्रति अत्यधिक असुरक्षित हो गए हैं। यह समस्या कई कारकों के संयोजन का परिणाम है:
1. अनियंत्रित शहरीकरण:
तेजी से हो रहा अनियंत्रित शहरीकरण बाढ़ की समस्या का प्रमुख कारण है। नगरों का तेजी से विस्तार हो रहा है, जिससे प्राकृतिक जल निकासी प्रणालियाँ बाधित हो रही हैं। उदाहरण के लिए, मुंबई और चेन्नई जैसे नगरों में पारंपरिक जल निकासी नालों और जलमार्गों पर अतिक्रमण हो गया है, जिससे भारी वर्षा के समय जल जमाव और बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
2. अपर्याप्त और पुराना बुनियादी ढांचा:
भारत के अधिकांश नगरों में जल निकासी और सीवेज प्रणालियाँ पुरानी और अपर्याप्त हैं। अत्यधिक बारिश के दौरान ये प्रणालियाँ पर्याप्त रूप से काम नहीं कर पातीं, जिससे बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है। कोलकाता और दिल्ली जैसे नगरों में यह समस्या आम है।
3. जलवायु परिवर्तन:
जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम में अस्थिरता बढ़ रही है, जिससे भारी वर्षा और चक्रवात जैसी घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि हो रही है। हाल के वर्षों में बेंगलुरु, गुरुग्राम और पटना जैसे नगरों में असामान्य रूप से भारी बारिश और अचानक बाढ़ की घटनाएँ देखी गई हैं।
4. भूमि उपयोग में बदलाव:
वनों की कटाई, जलाशयों का अतिक्रमण, और भूमि का अनियंत्रित उपयोग बाढ़ के जोखिम को बढ़ाता है। मुंबई के मीठी नदी और चेन्नई के जलाशयों पर हुए अतिक्रमण इसके प्रमुख उदाहरण हैं, जहाँ भारी बारिश के दौरान जलभराव की समस्या उत्पन्न होती है।
5. आपातकालीन प्रतिक्रिया की कमी:
अधिकांश नगरों में बाढ़ से निपटने के लिए पर्याप्त आपातकालीन योजना और तैयारी की कमी है। इसका परिणाम यह होता है कि बाढ़ की स्थिति में त्वरित और प्रभावी प्रतिक्रिया नहीं दी जा सकती, जिससे जन-धन की हानि बढ़ जाती है।
इन कारणों से भारत के प्रमुख नगर बाढ़ के प्रति अत्यधिक असुरक्षित हो गए हैं। बाढ़ की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता से निपटने के लिए शहरी योजना, बुनियादी ढांचे के उन्नयन, और जलवायु अनुकूलन उपायों की तत्काल आवश्यकता है।
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भारत में शहरीकरण तेजी से बढ़ रहा है, और इसके साथ ही टीयर 2 और टीयर 3 शहर देश की आर्थिक वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगे हैं। इन शहरों की जनसंख्या बढ़ रही है, जिससे उपभोक्ता बाजार का विस्तार हो रहा है। कई कंपनियाँ इन क्षेत्रों में निवेश कर रही हैं, जिससे रोजगार के अवसर पैदा हो रहे हैं और स्थानRead more
भारत में शहरीकरण तेजी से बढ़ रहा है, और इसके साथ ही टीयर 2 और टीयर 3 शहर देश की आर्थिक वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगे हैं। इन शहरों की जनसंख्या बढ़ रही है, जिससे उपभोक्ता बाजार का विस्तार हो रहा है। कई कंपनियाँ इन क्षेत्रों में निवेश कर रही हैं, जिससे रोजगार के अवसर पैदा हो रहे हैं और स्थानीय अर्थव्यवस्था को गति मिल रही है। इसके अलावा, सरकार की स्मार्ट सिटी पहल और डिजिटल इंडिया जैसी योजनाओं ने भी इन शहरों के बुनियादी ढांचे में सुधार किया है।
टीयर 2 और टीयर 3 शहरों की आर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहित करने के लिए निम्नलिखित पहलुओं पर ध्यान देना आवश्यक है:
संरचनात्मक सुधार: अच्छी परिवहन सुविधाएं, जल आपूर्ति, बिजली, और अन्य बुनियादी ढांचे का विकास करना आवश्यक है ताकि उद्योग और व्यापार को बढ़ावा मिले।
शिक्षा और कौशल विकास: इन शहरों में युवाओं को बेहतर शिक्षा और तकनीकी कौशल प्रदान करने से स्थानीय उद्योगों को कुशल श्रमशक्ति मिलेगी।
निवेश का आकर्षण: इन शहरों में उद्योगों को आकर्षित करने के लिए अनुकूल नीति और टैक्स प्रोत्साहन आवश्यक हैं।
हालांकि, कई चुनौतियाँ भी हैं:
अपर्याप्त बुनियादी ढांचा: कई शहरों में अभी भी आधारभूत सुविधाओं की कमी है, जिससे उद्योगों को संचालित करने में कठिनाई होती है।
कौशल की कमी: स्थानीय स्तर पर कुशल श्रमिकों की कमी है, जिससे उद्योगों की उत्पादकता प्रभावित हो रही है।
निवेश में कमी: टीयर 1 शहरों की तुलना में निवेशकों की रुचि कम होती है, जिससे इन शहरों में आर्थिक विकास धीमा है।
इन मुद्दों के समाधान के लिए समग्र और दीर्घकालिक योजना की आवश्यकता है, जिससे इन शहरों की पूरी क्षमता का उपयोग किया जा सके और भारत की आर्थिक वृद्धि में योगदान बढ़ाया जा सके।
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