संयुक्त परिवार का जीवन चक्र सामाजिक मूल्यों के बजाय आर्थिक कारकों पर निर्भर करता है। चर्चा कीजिए । (150 words) [UPSC 2014]
सहिष्णुता और प्रेम की भावना: भारतीय समाज की प्राचीन परंपरा और वर्तमान महत्व परिचय: भारतीय समाज का एक प्रमुख अभिलक्षण सहिष्णुता और प्रेम की भावना रही है, जो प्राचीन काल से लेकर वर्तमान समय तक एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह भावना भारतीय सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन का अभिन्न हिस्सा रही है। प्राचीन कRead more
सहिष्णुता और प्रेम की भावना: भारतीय समाज की प्राचीन परंपरा और वर्तमान महत्व
परिचय: भारतीय समाज का एक प्रमुख अभिलक्षण सहिष्णुता और प्रेम की भावना रही है, जो प्राचीन काल से लेकर वर्तमान समय तक एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह भावना भारतीय सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन का अभिन्न हिस्सा रही है।
प्राचीन काल में सहिष्णुता और प्रेम:
- धार्मिक सहिष्णुता:
- प्राचीन भारत में विभिन्न धर्मों और संप्रदायों के बीच सहिष्णुता का आदान-प्रदान देखा गया। “अशोक का धर्मनिरपेक्षता” और “मौर्य साम्राज्य” के समय में विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच सम्मान और सहिष्णुता को प्रोत्साहित किया गया। “जैन धर्म” और “बौद्ध धर्म” ने भी अहिंसा और सहिष्णुता के सिद्धांतों को अपनाया।
- साहित्य और कला में प्रेम:
- भारतीय साहित्य और कला में प्रेम और सहिष्णुता की भावना व्यापक रूप से परिलक्षित होती है। “रवींद्रनाथ ठाकुर” और “कबीर” जैसे कवियों ने अपनी रचनाओं में प्रेम, मानवता, और सहिष्णुता के संदेश को फैलाया।
वर्तमान समय में सहिष्णुता और प्रेम:
- समाज में विविधता का सम्मान:
- आज भी भारत में “धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता” के बावजूद सहिष्णुता एक महत्वपूर्ण तत्व है। “आधुनिक भारत” में विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के बीच सम्मान और सहयोग को बढ़ावा दिया जाता है। “गांधीजी के विचार” और “पंचायती राज संस्थाओं” का सहयोग सहिष्णुता की भावना को साकार करता है।
- वर्तमान सामाजिक प्रयास:
- “भारत सरकार” और “सामाजिक संगठनों” द्वारा “समावेशी विकास” और “धार्मिक सहिष्णुता” के लिए अनेक योजनाएँ और पहल की जाती हैं। “सभी धर्मों और जातियों के लिए समान अवसर” और “सांस्कृतिक आदान-प्रदान” की गतिविधियाँ इस भावना को जीवित रखती हैं।
निष्कर्ष: सहिष्णुता और प्रेम की भावना भारतीय समाज की प्राचीन परंपरा का महत्वपूर्ण हिस्सा रही है और वर्तमान में भी यह विभिन्न धार्मिक, सांस्कृतिक, और सामाजिक विविधताओं के बीच सामंजस्य बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह भावना समाज में एकता, शांति, और सहयोग को प्रोत्साहित करती है, जो भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर है।
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संयुक्त परिवार का जीवन चक्र पारंपरिक सामाजिक मूल्यों और आर्थिक कारकों दोनों से प्रभावित होता है, लेकिन आज के संदर्भ में आर्थिक कारकों की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण होती जा रही है। आर्थिक कारक: वित्तीय सहारा: संयुक्त परिवारों में आर्थिक संसाधनों का साझा उपयोग परिवार की आर्थिक स्थिरता को सुनिश्चित करता हैRead more
संयुक्त परिवार का जीवन चक्र पारंपरिक सामाजिक मूल्यों और आर्थिक कारकों दोनों से प्रभावित होता है, लेकिन आज के संदर्भ में आर्थिक कारकों की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण होती जा रही है।
आर्थिक कारक:
वित्तीय सहारा: संयुक्त परिवारों में आर्थिक संसाधनों का साझा उपयोग परिवार की आर्थिक स्थिरता को सुनिश्चित करता है। घर के विभिन्न सदस्यों की आय और खर्च मिलाकर परिवार आर्थिक संकट का सामना कर सकता है।
भरण-पोषण की लागत: बढ़ती लागत और महंगाई के कारण परिवार आर्थिक रूप से एकजुट रहना पसंद करते हैं। यह विशेष रूप से वृद्ध माता-पिता की देखभाल और बच्चों की शिक्षा के लिए महत्वपूर्ण होता है।
सामाजिक मूल्य:
परंपरा और संस्कृति: पारंपरिक भारतीय समाज में संयुक्त परिवार सामाजिक मूल्यों जैसे परिवार की एकता, देखभाल और सम्मान को बढ़ावा देता है।
समाज में स्वीकार्यता: कुछ मामलों में, संयुक्त परिवार का अस्तित्व सामाजिक मान्यताओं और पारंपरिक धारणाओं पर निर्भर करता है।
हालांकि सामाजिक मूल्यों का महत्व रहता है, आर्थिक कारक आज के समय में संयुक्त परिवार की स्थिरता और अस्तित्व में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
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