भारत में जनजातियों के सशक्तिकरण में मूल बाधाओं का परीक्षण कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2019]
मलिन बस्तियों में मूलभूत नागरिक सुविधाओं के विकास हेतु नगर नियोजन की भूमिका 1. संरचनात्मक सुधार: नगर नियोजन मलिन बस्तियों में सड़क, नल जल आपूर्ति, और स्वच्छता की बुनियादी सुविधाओं को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्रयासों जैसे मुंबई के स्लम पुनर्वास प्राधिकरण (SRA) द्वारा मलिन बस्तियों काRead more
मलिन बस्तियों में मूलभूत नागरिक सुविधाओं के विकास हेतु नगर नियोजन की भूमिका
1. संरचनात्मक सुधार: नगर नियोजन मलिन बस्तियों में सड़क, नल जल आपूर्ति, और स्वच्छता की बुनियादी सुविधाओं को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्रयासों जैसे मुंबई के स्लम पुनर्वास प्राधिकरण (SRA) द्वारा मलिन बस्तियों का पुनर्विकास इन क्षेत्रों में सुविधाओं की स्थिति को सुधारता है।
2. आवासीय सुधार: नगर नियोजन बेहतर आवास और पुनर्विकास योजनाओं के माध्यम से मलिन बस्तियों में सुरक्षित और स्थायी आवास प्रदान करता है। दिल्ली की राजीव आवास योजना ने मलिन बस्तियों को संगठित आवास में परिवर्तित किया है।
3. स्वास्थ्य और शिक्षा: नगर नियोजन के माध्यम से स्वास्थ्य केन्द्र और शैक्षिक संस्थान स्थापित किए जाते हैं, जो मलिन बस्तियों में समाज कल्याण को बढ़ावा देते हैं। कोलकाता का “स्कूल ऑन व्हील्स” कार्यक्रम शिक्षा के अवसर बढ़ाने का उदाहरण है।
निष्कर्ष: नगर नियोजन मलिन बस्तियों में मूलभूत नागरिक सुविधाओं के विकास के लिए संरचनात्मक सुधार, आवासीय सुधार, और स्वास्थ्य-शिक्षा की व्यवस्था सुनिश्चित करके जीवन की गुणवत्ता को सुधारने में अहम भूमिका निभाता है।
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1. आर्थिक पिछड़ापन: जनजातियों का आर्थिक पिछड़ापन उनकी विकास में सबसे बड़ी बाधा है। परंपरागत जीवनशैली और अवसंरचना की कमी के कारण वे अक्सर निम्न आय और सीमित रोजगार अवसर का सामना करते हैं। उदाहरणस्वरूप, छत्तीसगढ़ की आदिवासी बस्तियाँ बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रही हैं। 2. शैक्षिक चुनौतियाँ: जनजातियRead more
1. आर्थिक पिछड़ापन: जनजातियों का आर्थिक पिछड़ापन उनकी विकास में सबसे बड़ी बाधा है। परंपरागत जीवनशैली और अवसंरचना की कमी के कारण वे अक्सर निम्न आय और सीमित रोजगार अवसर का सामना करते हैं। उदाहरणस्वरूप, छत्तीसगढ़ की आदिवासी बस्तियाँ बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रही हैं।
2. शैक्षिक चुनौतियाँ: जनजातियों में शिक्षा की पहुँच सीमित है, जिसके परिणामस्वरूप उच्च शिक्षा और साक्षरता दर में कमी है। आंध्र प्रदेश के कोंडागांव जैसे क्षेत्रों में विद्यालयों की कमी और शिक्षण संसाधनों की कमी ने शिक्षा में बाधाएँ उत्पन्न की हैं।
3. स्वास्थ्य असमानता: स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी और मूलभूत स्वास्थ्य सेवाओं की अनुपलब्धता जनजातीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य असमानता को बढ़ावा देती है। मध्य प्रदेश के बांसवाड़ा जिले में स्वास्थ्य सेवाओं की कमी एक प्रमुख समस्या है।
**4. सामाजिक बहिष्कार: जनजातियों का सामाजिक बहिष्कार और विभाजन भी उनके सशक्तिकरण में रुकावट डालता है। संस्कृतिक भिन्नताएँ और भेदभाव उनकी सामाजिक समावेशिता में बाधा उत्पन्न करते हैं।
निष्कर्ष: भारत में जनजातियों के सशक्तिकरण में आर्थिक पिछड़ापन, शैक्षिक चुनौतियाँ, स्वास्थ्य असमानता, और सामाजिक बहिष्कार जैसी मूल बाधाएँ हैं, जिनका समाधान समग्र विकास योजनाओं और संवेदनशील नीतियों के माध्यम से किया जा सकता है।
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