भारत में उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति के संदर्भ में ‘राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014’ पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए। (150 words) [UPSC 2017]
उच्चतम न्यायालय का जुलाई 2018 का निर्णय: दिल्ली के उप-राज्यपाल और निर्वाचित सरकार के बीच राजनैतिक कशमकश पृष्ठभूमि: जुलाई 2018 में, उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली के उप-राज्यपाल (LG) और दिल्ली सरकार के बीच अधिकार क्षेत्र और कार्यक्षेत्र को लेकर महत्वपूर्ण निर्णय दिया। यह मामला मुख्यतः दिल्ली सरकार और उप-रRead more
उच्चतम न्यायालय का जुलाई 2018 का निर्णय: दिल्ली के उप-राज्यपाल और निर्वाचित सरकार के बीच राजनैतिक कशमकश
पृष्ठभूमि: जुलाई 2018 में, उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली के उप-राज्यपाल (LG) और दिल्ली सरकार के बीच अधिकार क्षेत्र और कार्यक्षेत्र को लेकर महत्वपूर्ण निर्णय दिया। यह मामला मुख्यतः दिल्ली सरकार और उप-राज्यपाल के बीच सत्ता संघर्ष से संबंधित था, जिसमें दोनों पक्षों के बीच विभिन्न मुद्दों पर विवाद था, विशेष रूप से नीति निर्माण, प्रशासनिक अधिकार और कार्यक्षेत्र की सीमाओं को लेकर।
निर्णय की मुख्य बातें:
- संसदीय सत्ता: उच्चतम न्यायालय ने माना कि दिल्ली सरकार को कार्यकारी शक्ति के तहत पूर्ण अधिकार प्राप्त है, जब तक कि ये अधिकार केंद्र सरकार के अधीन न हों। इसका मतलब है कि दिल्ली सरकार को उन मामलों में स्वायत्तता मिली है, जो राज्य के विषयों के अंतर्गत आते हैं, जैसे कि शिक्षा, स्वास्थ्य और स्थानीय प्रशासन।
- उप-राज्यपाल की भूमिका: न्यायालय ने उप-राज्यपाल की भूमिका को संवैधानिक प्रतिनिधि के रूप में मान्यता दी, लेकिन उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उप-राज्यपाल को अपने अधिकारों का प्रयोग सरकार की कार्यप्रणाली में बाधा डालने के रूप में नहीं करना चाहिए। उप-राज्यपाल को दिल्ली सरकार के प्रस्तावों पर केवल सलाह देने का अधिकार है, और उन्हें सरकार के सामान्य कामकाज में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
- संविधानिक संतुलन: अदालत ने संविधानिक संतुलन को बनाए रखने की आवश्यकता को रेखांकित किया। इससे यह स्पष्ट होता है कि उप-राज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच विवादों को सुलझाने के लिए संविधानिक प्रावधानों के अनुसार काम करना होगा, जिससे दोनों पक्षों के अधिकार और कर्तव्यों के बीच संतुलन बना रहे।
प्रभाव और विश्लेषण:
- राजनैतिक कशमकश में कमी: इस निर्णय से दिल्ली सरकार को उसके कार्यक्षेत्र में स्वायत्तता मिली, और उप-राज्यपाल की भूमिका को सीमित किया गया। इससे दिल्ली सरकार की कार्यप्रणाली में स्पष्टता आई, जो राजनैतिक कशमकश को कुछ हद तक कम कर सकती है।
- संविधानिक विवादों की संभावना: हालांकि निर्णय ने कुछ स्पष्टता प्रदान की, लेकिन संविधानिक विवाद और राजनीतिक मतभेद पूरी तरह समाप्त नहीं हुए हैं। किसी भी नए विवाद की स्थिति में, अदालत को फिर से हस्तक्षेप करने की आवश्यकता हो सकती है।
उपसंहार: उच्चतम न्यायालय का जुलाई 2018 का निर्णय दिल्ली के उप-राज्यपाल और निर्वाचित सरकार के बीच अधिकार विवाद को स्पष्ट रूप से सुलझाने में महत्वपूर्ण था। इसने सरकार की स्वायत्तता को मान्यता दी और उप-राज्यपाल की भूमिका को सीमित किया, लेकिन संविधानिक विवादों को पूरी तरह समाप्त नहीं किया। यह निर्णय एक दिशा निर्देश प्रदान करता है, लेकिन भविष्य में उत्पन्न होने वाले विवादों को सुलझाने के लिए न्यायिक हस्तक्षेप की संभावना बनी रहती है।
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राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014 पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय: समालोचनात्मक परीक्षण राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) अधिनियम, 2014 का उद्देश्य भारत की उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया को पारदर्शी और व्यावसायिक बनाना था। अधिनियम के तहत एक आयोग गठित कियाRead more
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014 पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय: समालोचनात्मक परीक्षण
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) अधिनियम, 2014 का उद्देश्य भारत की उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया को पारदर्शी और व्यावसायिक बनाना था। अधिनियम के तहत एक आयोग गठित किया गया जिसमें प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश, और विधायी प्रतिनिधि शामिल थे, जो न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए जिम्मेदार थे।
सर्वोच्च न्यायालय ने इस अधिनियम को असंवैधानिक घोषित कर दिया। न्यायालय ने तर्क किया कि NJAC अधिनियम न्यायपालिका की स्वतंत्रता और स्वायत्तता को कमजोर करता है। कोर्ट ने कहा कि आयोग में कार्यपालिका की अधिकतम भागीदारी न्यायपालिका के स्वतंत्र निर्णय लेने की प्रक्रिया में हस्तक्षेप कर सकती है, जो संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है।
इस निर्णय ने न्यायपालिका की स्वायत्तता की रक्षा की और Collegium प्रणाली को बनाए रखा, जो न्यायाधीशों की नियुक्ति में पारदर्शिता और स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है। हालांकि, इस प्रणाली में सुधार की आवश्यकता पर विवाद जारी है।
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