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न्यायिक समीक्षा के तीन महत्व क्या हैं?
न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रक्रिया है जो यह सुनिश्चित करती है कि सरकारी प्राधिकरण और कानून संविधान के अनुसार हों। इसके तीन प्रमुख महत्व निम्नलिखित हैं: संविधान की रक्षा: न्यायिक समीक्षा का सबसे महत्वपूर्ण कार्य संविधान की रक्षा करना है। जब भी किसी कानून, आदेश, या सरकारीRead more
न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रक्रिया है जो यह सुनिश्चित करती है कि सरकारी प्राधिकरण और कानून संविधान के अनुसार हों। इसके तीन प्रमुख महत्व निम्नलिखित हैं:
जनहित याचिका के तीन मुख्य उद्देश्य क्या हैं?
जनहित याचिका (PIL) के तीन मुख्य उद्देश्य 1. कमज़ोर वर्गों के लिए न्याय सुनिश्चित करना उद्देश्य: जनहित याचिका का एक प्रमुख उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि न्याय उन लोगों तक पहुँचे जो स्वयं कानूनी उपाय नहीं कर सकते, विशेषकर समाज के कमज़ोर और गरीब वर्गों के लिए। उदाहरण: 2020 में COVID-19 लॉकडाउन के दौRead more
जनहित याचिका (PIL) के तीन मुख्य उद्देश्य
1. कमज़ोर वर्गों के लिए न्याय सुनिश्चित करना
2. संस्थानिक और प्रणालीगत विफलताओं का समाधान
3. सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों को बढ़ावा देना
निष्कर्ष
जनहित याचिका का उद्देश्य न्याय की पहुंच को बढ़ाना, प्रणालीगत विफलताओं को ठीक करना और सामाजिक न्याय तथा मानवाधिकारों को प्रोत्साहित करना है। यह एक प्रभावी साधन है जो व्यापक सामाजिक मुद्दों को हल करने और संवैधानिक अधिकारों को लागू करने में सहायक है।
See less"लोकहित का प्रत्येक मामला, लोकहित वाद का मामला नहीं होता।" मूल्यांकन कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2020]
"लोकहित का प्रत्येक मामला, लोकहित वाद का मामला नहीं होता": मूल्यांकन 1. लोकहित वाद (Public Interest Litigation - PIL): लोकहित वाद एक कानूनी उपकरण है जो न्यायपालिका को समाज के सामान्य हित और मूलभूत अधिकारों की रक्षा के लिए सक्रिय भूमिका निभाने की अनुमति देता है। इसका उद्देश्य सामाजिक न्याय और पारदर्शRead more
“लोकहित का प्रत्येक मामला, लोकहित वाद का मामला नहीं होता”: मूल्यांकन
1. लोकहित वाद (Public Interest Litigation – PIL):
लोकहित वाद एक कानूनी उपकरण है जो न्यायपालिका को समाज के सामान्य हित और मूलभूत अधिकारों की रक्षा के लिए सक्रिय भूमिका निभाने की अनुमति देता है। इसका उद्देश्य सामाजिक न्याय और पारदर्शिता को बढ़ावा देना है।
2. लोकहित और लोकहित वाद में अंतर:
3. प्रभाव और चुनौतियाँ:
निष्कर्ष:
See lessलोकहित का हर मामला लोकहित वाद का मामला नहीं होता। PIL को सामाजिक कल्याण और मूलभूत अधिकारों की रक्षा के लिए ही सीमित करना चाहिए, ताकि इसका उचित प्रभाव और सकारात्मक उपयोग सुनिश्चित हो सके।
न्यायिक सक्रियतावाद की व्याख्या कीजिये तथा भारत में कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के पारस्परिक संबंधों पर इसके प्रभाव का मूल्यांकन कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2020]
न्यायिक सक्रियतावाद और भारत में कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के पारस्परिक संबंधों पर इसका प्रभाव 1. न्यायिक सक्रियतावाद की व्याख्या: न्यायिक सक्रियतावाद वह न्यायिक दृष्टिकोण है जिसमें न्यायपालिका सामाजिक और संवैधानिक मुद्दों में सक्रिय रूप से हस्तक्षेप करती है। इसका उद्देश्य मूलभूत अधिकारों की रक्षाRead more
न्यायिक सक्रियतावाद और भारत में कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के पारस्परिक संबंधों पर इसका प्रभाव
1. न्यायिक सक्रियतावाद की व्याख्या:
न्यायिक सक्रियतावाद वह न्यायिक दृष्टिकोण है जिसमें न्यायपालिका सामाजिक और संवैधानिक मुद्दों में सक्रिय रूप से हस्तक्षेप करती है। इसका उद्देश्य मूलभूत अधिकारों की रक्षा और संविधान की व्याख्या के माध्यम से सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना है।
2. भारत में प्रभाव:
निष्कर्ष:
See lessन्यायिक सक्रियतावाद ने कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच संतुलन को नया रूप दिया है, जिससे न्यायपालिका को सशक्त और सक्रिय भूमिका निभाने का अवसर मिला है, और संविधानिक अधिकारों की रक्षा की जा रही है।
'आधारिक संरचना' के सिद्धांत से प्रारंभ करते हुए, न्यायपालिका ने यह सुनिश्चित करने के लिए कि भारत एक उन्नतिशील लोकतंत्र के रूप में विकसित करे, एक उच्चतः अग्रलक्षी (प्रोऐक्टिव) भूमिका निभाई है। इस कथन के प्रकाश में, लोकतंत्र के आदर्शों की प्राप्ति के लिए, हाल के समय में 'न्यायिक सक्रियतावाद' द्वारा निभाई भूमिका का मूल्यांकन कीजिये। (200 words) [UPSC 2014]
'आधारिक संरचना' के सिद्धांत के अंतर्गत, न्यायपालिका ने भारत के लोकतंत्र की संरचना और उसकी मूलभूत मान्यताओं की रक्षा के लिए एक सक्रिय भूमिका निभाई है। इस सिद्धांत के अनुसार, संविधान के मूलभूत ढांचे को किसी भी विधायिका या कार्यपालिका द्वारा संशोधित नहीं किया जा सकता। इस दृष्टिकोण से, न्यायपालिका ने 'नRead more
‘आधारिक संरचना’ के सिद्धांत के अंतर्गत, न्यायपालिका ने भारत के लोकतंत्र की संरचना और उसकी मूलभूत मान्यताओं की रक्षा के लिए एक सक्रिय भूमिका निभाई है। इस सिद्धांत के अनुसार, संविधान के मूलभूत ढांचे को किसी भी विधायिका या कार्यपालिका द्वारा संशोधित नहीं किया जा सकता। इस दृष्टिकोण से, न्यायपालिका ने ‘न्यायिक सक्रियतावाद’ (Judicial Activism) को अपनाते हुए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं, जो लोकतंत्र के आदर्शों की प्राप्ति में सहायक रहे हैं।
हाल के समय में, न्यायिक सक्रियतावाद ने कई प्रमुख क्षेत्रों में अपनी भूमिका निभाई है। उदाहरण के लिए, ‘विवाह के अधिकार’ और ‘स्वतंत्रता के अधिकार’ पर न्यायालय ने विस्तार से विचार किया है। ‘आधार’ और ‘प्रवासी श्रमिकों के अधिकार’ पर न्यायालय के फैसलों ने सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने और असमानताओं को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
न्यायिक सक्रियतावाद ने सार्वजनिक हित में सरकार की नीतियों पर नजर रखने और संविधान की मूलभूत संरचना की रक्षा करने में योगदान दिया है। हालांकि, इसके साथ ही न्यायपालिका को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि इसका हस्तक्षेप विधायिका और कार्यपालिका की स्वायत्तता में हस्तक्षेप न करे, ताकि लोकतंत्र का संतुलन बना रहे।
इस प्रकार, न्यायिक सक्रियतावाद ने भारत के उन्नतिशील लोकतंत्र के निर्माण में एक प्रमुख भूमिका निभाई है, लेकिन इसके उपयोग में संतुलन और सावधानी की आवश्यकता है।
See lessपृथक्करणीयता का सिद्धांत क्या है? प्रासंगिक न्यायिक निर्णयों की सहायता से विवेचना कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दीजिए)
पृथक्करणीयता (Separation of Powers) का सिद्धांत एक संविधानिक सिद्धांत है जो सरकारी शक्तियों के विभाजन को सुनिश्चित करता है। इसका उद्देश्य सरकार के तीन मुख्य अंगों—विधायिका, कार्यपालिका, और न्यायपालिका—के बीच शक्ति का संतुलन बनाए रखना है, ताकि कोई एक अंग अधिक शक्तिशाली न हो जाए और सरकार की गतिविधियोंRead more
पृथक्करणीयता (Separation of Powers) का सिद्धांत एक संविधानिक सिद्धांत है जो सरकारी शक्तियों के विभाजन को सुनिश्चित करता है। इसका उद्देश्य सरकार के तीन मुख्य अंगों—विधायिका, कार्यपालिका, और न्यायपालिका—के बीच शक्ति का संतुलन बनाए रखना है, ताकि कोई एक अंग अधिक शक्तिशाली न हो जाए और सरकार की गतिविधियों पर प्रभावी निगरानी रखी जा सके।
प्रासंगिक न्यायिक निर्णयों:
ये निर्णय सिद्धांत को समर्थन देते हैं और सुनिश्चित करते हैं कि भारतीय लोकतंत्र में विभिन्न सरकारी अंग स्वतंत्र और प्रभावी रूप से कार्य करें।
See lessक्या उच्चतम न्यायालय का निर्णय (जुलाई 2018) दिल्ली के उप-राज्यपाल और निर्वाचित सरकार के बीच राजनैतिक कशमकश को निपटा सकता है? परीक्षण कीजिए। (250 words) [UPSC 2018]
उच्चतम न्यायालय का जुलाई 2018 का निर्णय: दिल्ली के उप-राज्यपाल और निर्वाचित सरकार के बीच राजनैतिक कशमकश पृष्ठभूमि: जुलाई 2018 में, उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली के उप-राज्यपाल (LG) और दिल्ली सरकार के बीच अधिकार क्षेत्र और कार्यक्षेत्र को लेकर महत्वपूर्ण निर्णय दिया। यह मामला मुख्यतः दिल्ली सरकार और उप-रRead more
उच्चतम न्यायालय का जुलाई 2018 का निर्णय: दिल्ली के उप-राज्यपाल और निर्वाचित सरकार के बीच राजनैतिक कशमकश
पृष्ठभूमि: जुलाई 2018 में, उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली के उप-राज्यपाल (LG) और दिल्ली सरकार के बीच अधिकार क्षेत्र और कार्यक्षेत्र को लेकर महत्वपूर्ण निर्णय दिया। यह मामला मुख्यतः दिल्ली सरकार और उप-राज्यपाल के बीच सत्ता संघर्ष से संबंधित था, जिसमें दोनों पक्षों के बीच विभिन्न मुद्दों पर विवाद था, विशेष रूप से नीति निर्माण, प्रशासनिक अधिकार और कार्यक्षेत्र की सीमाओं को लेकर।
निर्णय की मुख्य बातें:
प्रभाव और विश्लेषण:
उपसंहार: उच्चतम न्यायालय का जुलाई 2018 का निर्णय दिल्ली के उप-राज्यपाल और निर्वाचित सरकार के बीच अधिकार विवाद को स्पष्ट रूप से सुलझाने में महत्वपूर्ण था। इसने सरकार की स्वायत्तता को मान्यता दी और उप-राज्यपाल की भूमिका को सीमित किया, लेकिन संविधानिक विवादों को पूरी तरह समाप्त नहीं किया। यह निर्णय एक दिशा निर्देश प्रदान करता है, लेकिन भविष्य में उत्पन्न होने वाले विवादों को सुलझाने के लिए न्यायिक हस्तक्षेप की संभावना बनी रहती है।
See lessभारत में उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति के संदर्भ में 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014' पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए। (150 words) [UPSC 2017]
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014 पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय: समालोचनात्मक परीक्षण राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) अधिनियम, 2014 का उद्देश्य भारत की उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया को पारदर्शी और व्यावसायिक बनाना था। अधिनियम के तहत एक आयोग गठित कियाRead more
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014 पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय: समालोचनात्मक परीक्षण
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) अधिनियम, 2014 का उद्देश्य भारत की उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया को पारदर्शी और व्यावसायिक बनाना था। अधिनियम के तहत एक आयोग गठित किया गया जिसमें प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश, और विधायी प्रतिनिधि शामिल थे, जो न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए जिम्मेदार थे।
सर्वोच्च न्यायालय ने इस अधिनियम को असंवैधानिक घोषित कर दिया। न्यायालय ने तर्क किया कि NJAC अधिनियम न्यायपालिका की स्वतंत्रता और स्वायत्तता को कमजोर करता है। कोर्ट ने कहा कि आयोग में कार्यपालिका की अधिकतम भागीदारी न्यायपालिका के स्वतंत्र निर्णय लेने की प्रक्रिया में हस्तक्षेप कर सकती है, जो संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है।
इस निर्णय ने न्यायपालिका की स्वायत्तता की रक्षा की और Collegium प्रणाली को बनाए रखा, जो न्यायाधीशों की नियुक्ति में पारदर्शिता और स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है। हालांकि, इस प्रणाली में सुधार की आवश्यकता पर विवाद जारी है।
See lessक्या आप इस विचार से सहमत हैं कि भारत में न्यायिक जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए एक नया कानून बनाने की आवश्यकता है? (150 शब्दों में उत्तर दें)
भारत में न्यायिक जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए एक नए कानून की आवश्यकता एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। न्यायपालिका के प्रति जवाबदेही और पारदर्शिता को सुनिश्चित करना न्यायिक प्रणाली की प्रभावशीलता और जनता के विश्वास को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक है। वर्तमान में, न्यायिक जवाबदेही के लिए कई आंतरिक और बाहरी तंRead more
भारत में न्यायिक जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए एक नए कानून की आवश्यकता एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। न्यायपालिका के प्रति जवाबदेही और पारदर्शिता को सुनिश्चित करना न्यायिक प्रणाली की प्रभावशीलता और जनता के विश्वास को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक है। वर्तमान में, न्यायिक जवाबदेही के लिए कई आंतरिक और बाहरी तंत्र मौजूद हैं, लेकिन अक्सर प्रक्रियात्मक जटिलताओं और समस्याओं के कारण इनका प्रभावी कार्यान्वयन नहीं हो पाता।
एक नया कानून न्यायिक जवाबदेही को मजबूत कर सकता है, जैसे कि न्यायाधीशों की नियुक्ति, पदोन्नति और कार्यकुशलता की निगरानी के लिए स्पष्ट मानदंड स्थापित करना। इसके अतिरिक्त, न्यायिक भ्रष्टाचार और व्यस्तता के मामलों की त्वरित और प्रभावी जांच के लिए भी उपाय किए जा सकते हैं।
इससे न्यायपालिका की पारदर्शिता और जनता का विश्वास बढ़ेगा, जिससे न्याय व्यवस्था की प्रभावशीलता और साख में सुधार होगा। इसलिए, एक नया कानून इस दिशा में एक सकारात्मक कदम हो सकता है।
See lessन्यायिक सक्रियता और न्यायिक अतिक्रमण से आप क्या समझते हैं? साथ ही, इससे संबंधित चिंताओं की भी विवेचना कीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
न्यायिक सक्रियता और न्यायिक अतिक्रमण: न्यायिक सक्रियता: यह अवधारणा है कि न्यायिक प्रक्रिया और न्यायिक निर्णय तत्परता और शीघ्रता के साथ संपन्न होनी चाहिए। इससे न्यायिक सिस्टम का विश्वास बढ़ता है। न्यायिक अतिक्रमण: यह उस स्थिति को सूचित करता है जब किसी न्यायिक निर्णय पर विरोध होता है और न्यायिक प्रक्रRead more
न्यायिक सक्रियता और न्यायिक अतिक्रमण:
चिंताएं:
न्यायिक सक्रियता और न्यायिक अतिक्रमण न्यायिक प्रणाली की सराहनीयता और प्रभावकारीता को प्रभावित कर सकते हैं। इन मुद्दों पर गंभीर चिंता करना आवश्यक है ताकि न्यायिक सिस्टम की विश्वासयोग्यता और न्यायिक सक्षमता बनाए रखा जा सके।
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