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धारा 370 पर भारत सरकार की कार्यवाही ने जम्मू-कश्मीर की यथास्थिति को परिवर्तित कर दिया है। यह इस क्षेत्र के विकास को किस प्रकार से प्रभावित कर सकता हैं? चर्चा कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2018]
धारा 370 पर भारत सरकार की कार्यवाही और जम्मू-कश्मीर के विकास पर प्रभाव **1. धारा 370 की समाप्ति का पृष्ठभूमि: 5 अगस्त 2019 को भारत सरकार ने धारा 370 को समाप्त कर दिया, जो जम्मू-कश्मीर को विशेष स्वायत्ता प्रदान करता था। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किया गया।Read more
धारा 370 पर भारत सरकार की कार्यवाही और जम्मू-कश्मीर के विकास पर प्रभाव
**1. धारा 370 की समाप्ति का पृष्ठभूमि: 5 अगस्त 2019 को भारत सरकार ने धारा 370 को समाप्त कर दिया, जो जम्मू-कश्मीर को विशेष स्वायत्ता प्रदान करता था। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किया गया।
**2. विकास पर प्रभाव:
**3. चुनौतियाँ और चिंताएँ:
निष्कर्ष: धारा 370 की समाप्ति जम्मू-कश्मीर के विकास के लिए आधारभूत संरचना, आर्थिक निवेश, और शासन सुधार के माध्यम से महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करती है, लेकिन इसे सुरक्षा और स्थानीय संवेदनाओं के मुद्दों का समाधान भी करना होगा।
See lessभारतीय संविधान के अनुच्छेद 72 के अंतर्गत राज्यपाल की क्षमादान का अधिकार राष्ट्रपति की अधिकार से किस प्रकार भिन्न है ? (125 Words) [UPPSC 2023]
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 72 और 161 के तहत राष्ट्रपति और राज्यपाल को क्षमादान का अधिकार प्राप्त है, लेकिन दोनों के अधिकार में अंतर है। राष्ट्रपति का अधिकार (अनुच्छेद 72): राष्ट्रपति को मृत्यु दंड, उम्रकैद या किसी अन्य दंड को कम करने, स्थगित करने, या माफ करने का अधिकार है। यह अधिकार विशेष रूप से केंRead more
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 72 और 161 के तहत राष्ट्रपति और राज्यपाल को क्षमादान का अधिकार प्राप्त है, लेकिन दोनों के अधिकार में अंतर है।
इस प्रकार, राष्ट्रपति का क्षमादान का अधिकार केंद्रीय मामलों तक सीमित है, जबकि राज्यपाल का अधिकार केवल राज्य स्तरीय मामलों तक ही सीमित रहता है।
See lessभारतीय संविधान का ढाँचा संघात्मक है, परंतु उसकी आत्मा एकात्मक हैं।' स्पष्ट कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2021]
भारतीय संविधान का ढाँचा संघात्मक है, परंतु उसकी आत्मा एकात्मक है 1. संघात्मक ढाँचा (Federal Structure): शक्ति का विभाजन: भारतीय संविधान संघात्मक ढाँचा स्थापित करता है, जिसमें केंद्रीय और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का विभाजन होता है। यह विभाजन संघ सूची, राज्य सूची, और सांझी सूची में निर्धारित है।Read more
भारतीय संविधान का ढाँचा संघात्मक है, परंतु उसकी आत्मा एकात्मक है
1. संघात्मक ढाँचा (Federal Structure):
2. एकात्मक विशेषताएँ (Unitary Features):
3. केंद्रीय सरकार की प्रधानता (Central Supremacy):
4. न्यायिक व्याख्या (Judicial Interpretation):
निष्कर्ष: भारतीय संविधान संघात्मक ढाँचा स्थापित करता है, लेकिन उसकी एकात्मक विशेषताएँ जैसे केंद्रीय शक्ति और आपातकालीन प्रावधान यह सुनिश्चित करती हैं कि केंद्र सरकार राष्ट्रीय एकता और अखंडता बनाए रख सके और समस्त देश के लिए चुनौतीपूर्ण स्थितियों का समाधान कर सके।
See lessअनुच्छेद 32 भारत के संविधान की आत्मा है।' संक्षेप में व्याख्या कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2020]
"अनुच्छेद 32 भारत के संविधान की आत्मा है": संक्षेप में व्याख्या 1. अनुच्छेद 32 का महत्व: अनुच्छेद 32 भारतीय संविधान का अत्यंत महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो मूलभूत अधिकारों की सुरक्षा की गारंटी प्रदान करता है। इसके तहत, नागरिक सुप्रीम कोर्ट में हैबियस कॉर्पस याचिका दाखिल कर सकते हैं यदि उनके मूलभूत अधिकRead more
“अनुच्छेद 32 भारत के संविधान की आत्मा है”: संक्षेप में व्याख्या
1. अनुच्छेद 32 का महत्व:
अनुच्छेद 32 भारतीय संविधान का अत्यंत महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो मूलभूत अधिकारों की सुरक्षा की गारंटी प्रदान करता है। इसके तहत, नागरिक सुप्रीम कोर्ट में हैबियस कॉर्पस याचिका दाखिल कर सकते हैं यदि उनके मूलभूत अधिकार का उल्लंघन हो।
2. संविधान की आत्मा:
3. हालिया उदाहरण:
2020 में कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में मूलभूत अधिकारों की रक्षा की, जैसे वेतन और कार्यस्थल सुरक्षा को लेकर निर्णय, जो अनुच्छेद 32 के महत्व को दर्शाता है।
निष्कर्ष:
See lessअनुच्छेद 32 भारतीय संविधान का मूल आधार है क्योंकि यह नागरिकों को मूलभूत अधिकारों की सुरक्षा प्रदान करता है और सुप्रीम कोर्ट को अधिकारों की रक्षा में सशक्त बनाता है।
संसद और उसके सदस्यों की शक्तियां, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां (इम्यूनिटीज़), जैसे कि वे संविधान की धारा 105 में परिकल्पित हैं, अनेकों असंहिताबद्ध (अन-कोडिफाइड) और अ-परिगणित विशेषाधिकारों के जारी रहने का स्थान खाली छोड़ देती हैं। संसदीय विशेषाधिकारों के विधिक संहिताकरण की अनुपस्थिति के कारणों का आकलन कीजिये। इस समस्या का क्या समाधान निकाला जा सकता है ? (200 words) [UPSC 2014]
भारतीय संविधान की धारा 105 संसद और उसके सदस्यों को विशेषाधिकार और उन्मुक्तियों (इम्यूनिटीज़) की सुरक्षा प्रदान करती है, लेकिन इन विशेषाधिकारों का विधिक संहिताकरण (कोडिफिकेशन) की अनुपस्थिति ने कई समस्याएँ उत्पन्न की हैं। विशेषाधिकारों के विधिक संहिताकरण की अनुपस्थिति के कारण: परंपरागत दृष्टिकोण: संसदRead more
भारतीय संविधान की धारा 105 संसद और उसके सदस्यों को विशेषाधिकार और उन्मुक्तियों (इम्यूनिटीज़) की सुरक्षा प्रदान करती है, लेकिन इन विशेषाधिकारों का विधिक संहिताकरण (कोडिफिकेशन) की अनुपस्थिति ने कई समस्याएँ उत्पन्न की हैं।
विशेषाधिकारों के विधिक संहिताकरण की अनुपस्थिति के कारण:
समाधान:
इन उपायों से संसदीय विशेषाधिकारों को स्पष्ट और व्यवस्थित किया जा सकता है, जिससे कानूनी पारदर्शिता और कार्यकुशलता में सुधार होगा।
See lessचर्चा कीजिए कि वे कौन-से संभावित कारक हैं जो भारत को राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व में प्रदत्त के अनुसार अपने नागरिकों के लिए समान सिविल संहिता को अभिनियमित करने से रोकते हैं। (200 words) [UPSC 2015]
भारत में समान सिविल संहिता (UCC) को लागू करने में कई कारक बाधा डालते हैं: धार्मिक विविधता: भारत में विभिन्न धर्मों के अनुयायी अपने-अपने व्यक्तिगत कानूनों का पालन करते हैं, जैसे हिंदू कानून, मुस्लिम कानून, और ईसाई कानून। इन विविधताओं को एक समान संहिता में समेटना कठिन है, क्योंकि प्रत्येक समुदाय अपनेRead more
भारत में समान सिविल संहिता (UCC) को लागू करने में कई कारक बाधा डालते हैं:
धार्मिक विविधता: भारत में विभिन्न धर्मों के अनुयायी अपने-अपने व्यक्तिगत कानूनों का पालन करते हैं, जैसे हिंदू कानून, मुस्लिम कानून, और ईसाई कानून। इन विविधताओं को एक समान संहिता में समेटना कठिन है, क्योंकि प्रत्येक समुदाय अपने पारंपरिक कानूनों को संरक्षित रखना चाहता है।
राजनीतिक संवेदनशीलता: UCC एक संवेदनशील राजनीतिक मुद्दा है। राजनीतिक दल अपने वोट बैंक को ध्यान में रखते हुए इस मुद्दे पर एकराय नहीं बना पाते। खासकर धार्मिक आधार पर वोटिंग के चलते किसी भी बदलाव से राजनीतिक हानि का डर होता है।
सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यता: कई समुदाय अपने धार्मिक कानूनों को सांस्कृतिक और पहचान से जुड़े मुद्दों के रूप में देखते हैं। UCC के माध्यम से इन कानूनों में बदलाव करने से इन समुदायों के पहचान पर खतरा माना जाता है।
कानूनी और व्यवस्थागत चुनौतियाँ: समान सिविल संहिता को लागू करने के लिए जटिल कानूनी और व्यवस्थागत ढांचे की आवश्यकता होती है। इसके लिए सभी समुदायों का समर्थन और व्यापक सलाह-मशविरा आवश्यक है, जो कठिन हो सकता है।
इन कारकों के कारण, भारत में UCC को लागू करने में कठिनाई आती है, जिससे समानता और न्याय की दिशा में कदम उठाना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
See lessभारतीय संविधान का अनुच्छेद 370, जिसके साथ हाशिया नोट "जम्मू-कश्मीर राज्य के सम्बन्ध में अस्थायी उपबन्ध” लगा हुआ है, किस सीमा तक अस्थायी है ? भारतीय राज्य-व्यवस्था के संदर्भ में इस उपबन्ध की भावी सम्भावनाओं पर चर्चा कीजिए । (200 words) [UPSC 2016]
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370, जिसका हाशिया नोट "जम्मू-कश्मीर राज्य के सम्बन्ध में अस्थायी उपबन्ध" है, जम्मू और कश्मीर को विशेष स्वायत्तता प्रदान करता था। इसका उद्देश्य जम्मू और कश्मीर के भारत में विलय की विशिष्ट परिस्थितियों को संबोधित करना था। अस्थायीता की सीमा: प्रारंभिक उद्देश्य: अनुच्छेद 370 कRead more
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370, जिसका हाशिया नोट “जम्मू-कश्मीर राज्य के सम्बन्ध में अस्थायी उपबन्ध” है, जम्मू और कश्मीर को विशेष स्वायत्तता प्रदान करता था। इसका उद्देश्य जम्मू और कश्मीर के भारत में विलय की विशिष्ट परिस्थितियों को संबोधित करना था।
अस्थायीता की सीमा:
प्रारंभिक उद्देश्य: अनुच्छेद 370 को अस्थायी रूप से स्थापित किया गया था ताकि जम्मू और कश्मीर की विशेष परिस्थितियों के अनुसार एक स्वायत्त व्यवस्था बनाई जा सके। इसके तहत राज्य की अपनी संविधान और अधिकांश प्रशासनिक स्वतंत्रताएँ थीं, जबकि रक्षा, विदेश मामले, और संचार जैसे कुछ विषयों पर केंद्रीय नियंत्रण था।
स्वायत्तता: अनुच्छेद 370 ने जम्मू और कश्मीर को अपने संविधान और विधायिका की स्वतंत्रता प्रदान की, लेकिन यह सीमित था और किसी भी बदलाव के लिए राज्य सरकार की सहमति आवश्यक थी।
उन्मूलन: 2019 में, भारतीय सरकार ने जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के माध्यम से अनुच्छेद 370 को समाप्त कर दिया। इसके तहत जम्मू और कश्मीर को दो संघीय क्षेत्रों में विभाजित किया गया—जम्मू और कश्मीर, और लद्दाख। इस कदम ने विशेष स्वायत्तता और अनुच्छेद 370 द्वारा प्रदान की गई व्यवस्था को समाप्त कर दिया।
भावी सम्भावनाएँ:
संवैधानिक और राजनीतिक प्रभाव: अनुच्छेद 370 के उन्मूलन से जम्मू और कश्मीर की राज्य-व्यवस्था और राजनीति में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं। केंद्रीय नियंत्रण में वृद्धि और नई प्रशासनिक संरचना की शुरुआत ने राज्य के साथ संबंधों में नई दिशा दी है।
क्षेत्रीय और राष्ट्रीय प्रभाव: यह परिवर्तन क्षेत्रीय राजनीति और राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ में नई प्राथमिकताएँ और नीतियाँ ला सकता है, जो भारतीय संघीय ढाँचे पर प्रभाव डालेगा।
कानूनी और राजनयिक प्रतिक्रियाएँ: अनुच्छेद 370 के उन्मूलन ने कानूनी और राजनयिक स्तर पर विविध प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न की हैं, जो भारत के आंतरिक और बाहरी संबंधों पर प्रभाव डालेंगी।
सारांश में, अनुच्छेद 370 एक अस्थायी उपबन्ध के रूप में स्थापित था, लेकिन इसके लंबे समय तक प्रभावी रहने के बाद 2019 में इसके उन्मूलन ने जम्मू और कश्मीर के प्रशासनिक और राजनीतिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण परिवर्तन किए हैं।
See lessभारतीय संविधान में संसद के दोनों सदनों का संयुक्त सत्र बुलाने का प्रावधान है। उन अवसरों को गिनाइए जब सामान्यतः यह होता है तथा उन अवसरों को भी जब यह नहीं किया जा सकता, और इसके कारण भी बताइए। (250 words) [UPSC 2017]
भारतीय संविधान में संसद के दोनों सदनों, लोकसभा और राज्यसभा, का संयुक्त सत्र बुलाने का प्रावधान अनुच्छेद 108 में किया गया है। यह संयुक्त सत्र संसद के दोनों सदनों के बीच सामान्यतः होने वाली गतिरोधों को सुलझाने के लिए बुलाया जाता है। संयुक्त सत्र बुलाने के सामान्य अवसर: कानूनी गतिरोध: जब कोई विधेयक लोकRead more
भारतीय संविधान में संसद के दोनों सदनों, लोकसभा और राज्यसभा, का संयुक्त सत्र बुलाने का प्रावधान अनुच्छेद 108 में किया गया है। यह संयुक्त सत्र संसद के दोनों सदनों के बीच सामान्यतः होने वाली गतिरोधों को सुलझाने के लिए बुलाया जाता है।
संयुक्त सत्र बुलाने के सामान्य अवसर:
कानूनी गतिरोध: जब कोई विधेयक लोकसभा द्वारा पारित हो जाता है, लेकिन राज्यसभा द्वारा अस्वीकार कर दिया जाता है या राज्यसभा इसमें 14 दिनों के भीतर कोई निर्णय नहीं लेती है, तब संयुक्त सत्र बुलाया जा सकता है। यह विधेयक की प्रक्रिया में गतिरोध को समाप्त करने के लिए किया जाता है।
विधेयक की पुनरावृत्ति: यदि राज्यसभा एक विधेयक को लोकसभा द्वारा भेजे जाने के बाद 14 दिनों के भीतर पास नहीं करती या वापस नहीं भेजती है, तो लोकसभा संयुक्त सत्र की मांग कर सकती है।
संयुक्त सत्र नहीं बुलाए जा सकते:
मनी बिल: मनी बिलों पर संयुक्त सत्र नहीं बुलाया जा सकता। मनी बिल पर राज्यसभा केवल सिफारिशें कर सकती है, और लोकसभा को अंतिम निर्णय लेने का अधिकार है। राज्यसभा को मनी बिल को 14 दिनों के भीतर वापस करना होता है, और लोकसभा की अनुमति से ही इसे पारित किया जा सकता है।
अनुदान विधेयक: अनुदान विधेयक, जो सरकारी खर्च से संबंधित होते हैं, संयुक्त सत्र का हिस्सा नहीं हो सकते। इन पर लोकसभा का विशेष अधिकार होता है।
संविधान संशोधन विधेयक: संविधान संशोधन विधेयक भी संयुक्त सत्र के दायरे में नहीं आते। इन्हें संसद में दोनों सदनों द्वारा पारित किया जाना होता है और इसके साथ-साथ कुछ राज्यों द्वारा भी अनुमोदित किया जाना आवश्यक है।
निष्कर्ष
See lessसंविधान के अनुसार, संयुक्त सत्र विशेष परिस्थितियों में बुलाया जाता है, जैसे कि विधेयकों पर गतिरोध को समाप्त करने के लिए। मनी बिल, अनुदान विधेयक और संविधान संशोधन विधेयक जैसे विशेष मामलों में संयुक्त सत्र का प्रावधान नहीं होता, ताकि प्रत्येक सदन की विशेष भूमिका और प्रक्रियाओं की रक्षा की जा सके।
क्या आपके विचार में भारत का संविधान शक्तियों के कठोर पृथक्करण के सिद्धान्त को स्वीकार नहीं करता है, बल्कि यह 'नियंत्रण एवं संतुलन' के सिद्धान्त पर आधारित है ? व्याख्या कीजिए । (150 words) [UPSC 2019]
भारत का संविधान शक्तियों के कठोर पृथक्करण के सिद्धान्त को पूर्णतः स्वीकार नहीं करता है, बल्कि यह 'नियंत्रण एवं संतुलन' के सिद्धान्त पर आधारित है। व्याख्या: 1. शक्ति का पृथक्करण: भारतीय संविधान में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का वितरण किया गया है, लेकिन इसे कठोर पृथक्करण के बजाय लचीले तरीRead more
भारत का संविधान शक्तियों के कठोर पृथक्करण के सिद्धान्त को पूर्णतः स्वीकार नहीं करता है, बल्कि यह ‘नियंत्रण एवं संतुलन’ के सिद्धान्त पर आधारित है।
व्याख्या:
1. शक्ति का पृथक्करण: भारतीय संविधान में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का वितरण किया गया है, लेकिन इसे कठोर पृथक्करण के बजाय लचीले तरीके से लागू किया गया है। संघीय ढांचा शक्तियों के विभाजन को मान्यता देता है, परंतु कुछ क्षेत्रों में केंद्र को अधिक प्रभावी प्राधिकरण प्रदान किया गया है।
2. नियंत्रण और संतुलन: संविधान में ‘नियंत्रण और संतुलन’ का सिद्धान्त लागू होता है, जहाँ विभिन्न अंग (विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका) एक-दूसरे की शक्तियों की निगरानी और संतुलन बनाए रखते हैं। उदाहरण के लिए, राष्ट्रपति का वीटो अधिकार, उच्चतम न्यायालय की समीक्षा शक्ति, और संसद द्वारा विधायकों की नियुक्ति यह सुनिश्चित करते हैं कि कोई भी अंग अत्यधिक शक्ति का प्रयोग न करे और सभी अंग आपस में संतुलित रहें।
इस प्रकार, भारतीय संविधान शक्तियों के कठोर पृथक्करण के बजाय एक समन्वित और संतुलित दृष्टिकोण को अपनाता है, जिससे प्रशासनिक और न्यायिक प्रणाली की कार्यप्रणाली को सुचारु रूप से संचालित किया जा सके।
See lessराष्ट्र की एकता और अखण्डता बनाये रखने के लिये भारतीय संविधान केन्द्रीयकरण करने की प्रवृत्ति प्रदर्शित करता है। महामारी अधिनियम, 1897; आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 तथा हाल में पारित किये गये कृषि क्षेत्र के अधिनियमों के परिप्रेक्ष्य में सुस्पष्ट कीजिये । (250 words) [UPSC 2020]
भारतीय संविधान की केंद्रीयकरण की प्रवृत्ति राष्ट्र की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है। यह प्रवृत्ति विशेष रूप से महामारी अधिनियम, 1897; आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005; और हाल के कृषि क्षेत्र के अधिनियमों के संदर्भ में स्पष्ट होती है। 1. महामारी अधिनियम, 1897: यह अधिनियम महामारी की स्थितRead more
भारतीय संविधान की केंद्रीयकरण की प्रवृत्ति राष्ट्र की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है। यह प्रवृत्ति विशेष रूप से महामारी अधिनियम, 1897; आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005; और हाल के कृषि क्षेत्र के अधिनियमों के संदर्भ में स्पष्ट होती है।
1. महामारी अधिनियम, 1897:
यह अधिनियम महामारी की स्थिति में तात्कालिक और प्रभावी उपायों की सुविधा प्रदान करता है। इस अधिनियम के तहत केंद्र सरकार को व्यापक शक्तियाँ मिलती हैं, जिससे वह महामारी की रोकथाम के लिए राज्यों के साथ समन्वय कर सके। इसमें केंद्र की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, जो एकता बनाए रखने के लिए राज्यों को निर्देशित और नियंत्रित कर सकती है।
2. आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005:
इस अधिनियम के तहत, आपदाओं के प्रबंधन के लिए केंद्र और राज्य दोनों की जिम्मेदारियाँ निर्धारित की गई हैं। हालांकि, केंद्र सरकार को आपदा प्रबंधन के लिए व्यापक नीति निर्माण और समन्वय की शक्तियाँ दी गई हैं। इस अधिनियम के माध्यम से केंद्र ने आपदा प्रबंधन के मामले में राज्यों के साथ मिलकर एक एकीकृत और समन्वित दृष्टिकोण अपनाया है, जो राष्ट्रीय एकता को प्रोत्साहित करता है।
3. कृषि क्षेत्र के अधिनियम:
हाल के कृषि अधिनियमों ने केंद्रीयकरण की प्रवृत्ति को और स्पष्ट किया। इन अधिनियमों के अंतर्गत, केंद्र ने कृषि विपणन और अनुबंध खेती में सुधार के लिए कानूनी ढांचा तैयार किया है। हालांकि, इन कानूनों पर विवाद भी हुआ है, लेकिन इनका उद्देश्य राष्ट्रीय कृषि बाजार को एकीकृत करना और एकत्रित नीतियों के माध्यम से एकता और समानता को बढ़ावा देना है।
इन अधिनियमों के संदर्भ में, केंद्रीयकरण की प्रवृत्ति स्पष्ट है, क्योंकि ये राष्ट्रीय समस्याओं को संबोधित करने और एकीकृत दृष्टिकोण सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार को व्यापक शक्तियाँ प्रदान करते हैं। यह प्रवृत्ति संविधान की केंद्रीयता को बनाए रखने में सहायक होती है और राष्ट्र की एकता और अखंडता को सुदृढ़ करती है।
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