संवैधानिक नैतिकता’ की जड़ संविधान में ही निहित है और इसके तात्त्विक फलकों पर आधारित है। ‘संवैधानिक नैतिकता’ के सिद्धांत की प्रासंगिक न्यायिक निर्णयों की सहायता से विवेचना कीजिए। (150 words) [UPSC 2021]
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 72 और 161 के तहत राष्ट्रपति और राज्यपाल को क्षमादान का अधिकार प्राप्त है, लेकिन दोनों के अधिकार में अंतर है। राष्ट्रपति का अधिकार (अनुच्छेद 72): राष्ट्रपति को मृत्यु दंड, उम्रकैद या किसी अन्य दंड को कम करने, स्थगित करने, या माफ करने का अधिकार है। यह अधिकार विशेष रूप से केंRead more
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 72 और 161 के तहत राष्ट्रपति और राज्यपाल को क्षमादान का अधिकार प्राप्त है, लेकिन दोनों के अधिकार में अंतर है।
- राष्ट्रपति का अधिकार (अनुच्छेद 72): राष्ट्रपति को मृत्यु दंड, उम्रकैद या किसी अन्य दंड को कम करने, स्थगित करने, या माफ करने का अधिकार है। यह अधिकार विशेष रूप से केंद्रीय अपराधों के लिए होता है, और राष्ट्रपति का यह निर्णय पूरी तरह से व्यक्तिगत होता है, जिसे राष्ट्रपति की सलाह पर किया जाता है।
- राज्यपाल का अधिकार (अनुच्छेद 161): राज्यपाल को केवल राज्य स्तरीय अपराधों के लिए क्षमादान, दंड कम करने, या स्थगित करने का अधिकार होता है। यह अधिकार राज्य सरकार की सलाह पर प्रयोग में लाया जाता है, और यह केंद्र की विधायिका या कार्यकारी शक्तियों से स्वतंत्र होता है।
इस प्रकार, राष्ट्रपति का क्षमादान का अधिकार केंद्रीय मामलों तक सीमित है, जबकि राज्यपाल का अधिकार केवल राज्य स्तरीय मामलों तक ही सीमित रहता है।
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संवैधानिक नैतिकता का सिद्धांत 1. संवैधानिक नैतिकता का अर्थ: 'संवैधानिक नैतिकता' संविधान के मूल्यों और सिद्धांतों की ओर अनुग्रहित दृष्टिकोण को व्यक्त करती है। यह सुनिश्चित करती है कि संविधान के मूलभूत अधिकार और स्वतंत्रताओं का सम्मान किया जाए और संविधान के तात्त्विक मूल्यों को बनाए रखा जाए। 2. न्यायिRead more
संवैधानिक नैतिकता का सिद्धांत
1. संवैधानिक नैतिकता का अर्थ: ‘संवैधानिक नैतिकता’ संविधान के मूल्यों और सिद्धांतों की ओर अनुग्रहित दृष्टिकोण को व्यक्त करती है। यह सुनिश्चित करती है कि संविधान के मूलभूत अधिकार और स्वतंत्रताओं का सम्मान किया जाए और संविधान के तात्त्विक मूल्यों को बनाए रखा जाए।
2. न्यायिक निर्णयों की प्रासंगिकता
के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ (2017): इस निर्णय में, सुप्रीम कोर्ट ने गोपनीयता को मूलभूत अधिकार मानते हुए कहा कि संवैधानिक नैतिकता संविधान के मूल सिद्धांतों को लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ (2018): कोर्ट ने सहमति से यौन संबंधों को अपराधमुक्त किया, यह बताते हुए कि संवैधानिक नैतिकता समानता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करती है।
3. निष्कर्ष: संवैधानिक नैतिकता संविधान के मूल सिद्धांतों की सुरक्षा और न्यायिक फैसलों में उनके प्रभाव को सुनिश्चित करती है, जो न्याय और समानता को बढ़ावा देती है।
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