भारतीय संविधान की मूल संरचना (बेसिक स्ट्रक्चर) का सिद्धांत एक न्यायिक नवाचार है। विश्लेषण कीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
राजद्रोह कानून, जिसे भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A के तहत परिभाषित किया गया है, एक विवादास्पद प्रावधान है जो देश के प्रति निष्ठा को चुनौती देने वाले आचरण को दंडनीय बनाता है। भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों और उदार लोकतांत्रिक सिद्धांतों के संदर्भ में, यह कानून कई सवाल उठाता है और इसकी आलोचनाRead more
राजद्रोह कानून, जिसे भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A के तहत परिभाषित किया गया है, एक विवादास्पद प्रावधान है जो देश के प्रति निष्ठा को चुनौती देने वाले आचरण को दंडनीय बनाता है। भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों और उदार लोकतांत्रिक सिद्धांतों के संदर्भ में, यह कानून कई सवाल उठाता है और इसकी आलोचना की जाती है।
संविधानिक दृष्टिकोण: भारतीय संविधान, जो एक उदार लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों पर आधारित है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देता है। अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत, नागरिकों को अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार है, जो लोकतंत्र के केंद्रीय तत्वों में से एक है। राजद्रोह कानून, जो सरकार की आलोचना या विरोध को दंडनीय बनाता है, इस स्वतंत्रता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
उदार लोकतांत्रिक सिद्धांतों के खिलाफ: राजद्रोह कानून का दुरुपयोग लोकतंत्र के आधारभूत सिद्धांतों को खतरे में डाल सकता है। इसका दुरुपयोग राजनीतिक असहमति या सामाजिक आलोचना को दंडित करने के लिए किया जा सकता है, जो कि खुले और स्वस्थ लोकतांत्रिक संवाद के विपरीत है। कई विशेषज्ञ और अधिकार समूह मानते हैं कि इस कानून का प्रयोग आलोचना को दबाने और राजनीतिक असंतोष को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है, जिससे कि सरकार की आलोचना करने वालों को चुप कराया जा सकता है।
संविधानिक सुधार की आवश्यकता: सुप्रीम कोर्ट ने भी इस कानून के दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त की है और इसके अनुप्रयोग को अधिक सख्त मानदंडों के तहत रखने की सलाह दी है। अदालत ने यह माना है कि इस कानून का उपयोग केवल तभी किया जा सकता है जब किसी के कार्य वास्तव में राष्ट्र के खिलाफ सीधे खतरा पैदा करते हों, न कि सामान्य आलोचना या असहमति को दंडित करने के लिए।
निष्कर्ष: राजद्रोह कानून भारतीय संविधान के उदार लोकतांत्रिक सिद्धांतों की नींव पर हमला करने की क्षमता रखता है यदि इसका दुरुपयोग किया जाए। हालांकि यह कानून राष्ट्र की सुरक्षा और एकता को बनाए रखने के लिए बनाया गया है, लेकिन इसकी संकीर्ण व्याख्या और दुरुपयोग से संविधान द्वारा सुनिश्चित किए गए मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए, इस कानून की समीक्षा और सुधार की आवश्यकता है ताकि यह लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ संगत रहे और असहमति की आवाज़ को दबाने के लिए न उपयोग किया जाए।
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भारतीय संविधान की मूल संरचना का सिद्धांत एक महत्वपूर्ण न्यायिक नवाचार है, जो संविधान के मूलभूत और अविभाज्य अंगों की सुरक्षा करता है। यह सिद्धांत भारतीय उच्चतम न्यायालय द्वारा विकसित किया गया है और इसका मूल उद्देश्य संविधान की मौलिक विशेषताओं और मूल्यों को बरकरार रखना है। इस सिद्धांत के अनुसार, संविधRead more
भारतीय संविधान की मूल संरचना का सिद्धांत एक महत्वपूर्ण न्यायिक नवाचार है, जो संविधान के मूलभूत और अविभाज्य अंगों की सुरक्षा करता है। यह सिद्धांत भारतीय उच्चतम न्यायालय द्वारा विकसित किया गया है और इसका मूल उद्देश्य संविधान की मौलिक विशेषताओं और मूल्यों को बरकरार रखना है।
इस सिद्धांत के अनुसार, संविधान के कुछ अवयव जैसे लोकतंत्र, न्यायिक स्वतंत्रता, मौलिक अधिकार और संघीय ढांचा संविधान की मूल संरचना का हिस्सा हैं और इन्हें संशोधन द्वारा बदला या परिवर्तित नहीं किया जा सकता। यह सुनिश्चित करता है कि संविधान की मूल विशेषताएं सुरक्षित रहें और भविष्य में संविधान को कमजोर या धीमा न किया जा सके।
इस सिद्धांत ने भारतीय न्यायपालिका को संविधान के मूलभूत संरचना को बचाने के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका दी है। यह न्यायिक समीक्षा की शक्ति का उपयोग करके संविधान के मूलभूत सिद्धांतों और मूल्यों की रक्षा करता है।
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