पर्यटन की प्रोन्नति के कारण जम्मू और काश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के राज्य अपनी पारिस्थितिक वहन क्षमता की सीमाओं तक पहुँच रहे हैं ? समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। (200 words) [UPSC 2015]
Home/भारत का भूगोल/भारत का आर्थिक भूगोल/Page 2
पर्यटन की प्रोन्नति और पारिस्थितिक वहन क्षमता की सीमाएँ: जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड पर्यटन और पारिस्थितिक वहन क्षमता जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, और उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों में पर्यटन की वृद्धि ने इन क्षेत्रों की पारिस्थितिक वहन क्षमता पर अत्यधिक दबाव डाला है। पर्यटकों की बRead more
पर्यटन की प्रोन्नति और पारिस्थितिक वहन क्षमता की सीमाएँ: जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड
पर्यटन और पारिस्थितिक वहन क्षमता
जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, और उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों में पर्यटन की वृद्धि ने इन क्षेत्रों की पारिस्थितिक वहन क्षमता पर अत्यधिक दबाव डाला है। पर्यटकों की बढ़ती संख्या, संरचनात्मक विकास (जैसे होटलों और सड़कें) और अनियंत्रित पर्यटन गतिविधियाँ प्राकृतिक संसाधनों और पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुँचा रही हैं।
जम्मू और कश्मीर में सोनमर्ग और गुलमर्ग जैसे स्थलों पर बढ़ते पर्यटन ने जलवायु और वनस्पति को प्रभावित किया है। हिमाचल प्रदेश में मनाली और धर्मशाला जैसे स्थानों पर बेतहाशा विकास और पर्यटकों की भीड़ ने पर्यावरणीय संकट उत्पन्न किए हैं। उत्तराखंड में, ऋषिकेश और नैनीताल जैसे पर्यटन स्थल प्रदूषण और संसाधन कमी का सामना कर रहे हैं।
हालिया उदाहरण
2022 में, उत्तराखंड के नैनीताल में लगातार बढ़ते पर्यटकों की संख्या ने पानी की कमी और कचरे की समस्या को बढ़ा दिया। हिमाचल प्रदेश के शिमला में भी असामान्य रूप से बढ़ते पर्यटन की वजह से ठोस कचरे का संकट उत्पन्न हुआ है।
समालोचनात्मक मूल्यांकन
इन क्षेत्रों में पर्यटन की वृद्धि ने आर्थिक लाभ तो दिया है, लेकिन पारिस्थितिकीय संतुलन को बनाए रखना भी आवश्यक है। इसके लिए संवेदनशील पर्यटन नीतियों और स्थायी विकास योजनाओं की आवश्यकता है। पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन और संसाधन प्रबंधन को प्राथमिकता देने से पर्यावरणीय दबाव को कम किया जा सकता है और सतत पर्यटन को बढ़ावा दिया जा सकता है।
इस प्रकार, पर्यटन की प्रोन्नति के साथ-साथ पारिस्थितिकीय स्थिरता की दिशा में ठोस कदम उठाना अनिवार्य है।
See less