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राष्ट्रीय जल नीति, 2012 पर एक निबन्ध लिखिये।
राष्ट्रीय जल नीति, 2012: एक निबन्ध परिचय जल एक अनमोल संसाधन है जो जीवन के अस्तित्व और विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है। भारत, एक देश जो विविध जलवायु और जल संसाधनों से संपन्न है, जल प्रबंधन की चुनौतियों का सामना कर रहा है। इन चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए, भारत सरकार ने राष्ट्रीय जल नीति, 2012 को अपनाRead more
राष्ट्रीय जल नीति, 2012: एक निबन्ध
परिचय
जल एक अनमोल संसाधन है जो जीवन के अस्तित्व और विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है। भारत, एक देश जो विविध जलवायु और जल संसाधनों से संपन्न है, जल प्रबंधन की चुनौतियों का सामना कर रहा है। इन चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए, भारत सरकार ने राष्ट्रीय जल नीति, 2012 को अपनाया। इस नीति का उद्देश्य जल संसाधनों के समुचित प्रबंधन, संरक्षण, और वितरण को सुनिश्चित करना है।
नीति के प्रमुख उद्देश्य
1. जल संसाधनों का सटीक प्रबंधन
राष्ट्रीय जल नीति, 2012 का मुख्य उद्देश्य जल संसाधनों का प्रभावी और समन्वित प्रबंधन है। इसके अंतर्गत, नदियों, तालाबों, और जलाशयों का बेहतर प्रबंधन सुनिश्चित किया जाएगा। यह नीति जल की मांग और आपूर्ति के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए विभिन्न उपायों की सिफारिश करती है।
2. जल संरक्षण
नीति में जल संरक्षण को प्राथमिकता दी गई है। इसमें जल पुनर्चक्रण, पुन: उपयोग, और वर्षा के पानी का संचयन जैसी योजनाओं को शामिल किया गया है। उदाहरणस्वरूप, भारत सरकार ने कई राज्यों में जल पुनर्चक्रण परियोजनाओं को लागू किया है, जो जल की बर्बादी को कम करने में सहायक रही हैं।
3. जल की गुणवत्ता में सुधार
नीति का एक महत्वपूर्ण पहलू जल की गुणवत्ता में सुधार है। इसमें जल प्रदूषण को नियंत्रित करने और स्वच्छ जल की उपलब्धता को सुनिश्चित करने के लिए कड़े नियम और मानक स्थापित किए गए हैं। उदाहरण के लिए, गंगा नदी की स्वच्छता के लिए केंद्र सरकार ने “नमामि गंगे” योजना को लागू किया है, जो नदी की जल गुणवत्ता को सुधारने के लिए समर्पित है।
4. जल उपयोग की दक्षता
राष्ट्रीय जल नीति, 2012 जल उपयोग में दक्षता को बढ़ाने की दिशा में काम करती है। इसमें कृषि, उद्योग, और घरेलू उपयोग के लिए जल संसाधनों के अधिक प्रभावी उपयोग की सलाह दी गई है। उदाहरण के लिए, कृषि में ड्रिप सिंचाई जैसी प्रौद्योगिकियों को प्रोत्साहित किया गया है, जो जल की उपयोगिता को बढ़ाती हैं।
5. जल विवादों का समाधान
नीति जल विवादों के समाधान के लिए एक सुव्यवस्थित दृष्टिकोण अपनाने की सलाह देती है। विभिन्न राज्यों और केंद्र सरकार के बीच जल विवादों को सुलझाने के लिए एक ठोस और पारदर्शी प्रणाली विकसित करने पर जोर दिया गया है। वर्तमान में, कर्नाटका और तमिलनाडु के बीच कावेरी नदी के पानी को लेकर विवाद को सुलझाने के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं।
6. लोगों की भागीदारी
नीति में लोगों की भागीदारी को भी महत्वपूर्ण माना गया है। इसमें जल प्रबंधन की योजनाओं में समुदायों की सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहित किया गया है। स्थानीय स्तर पर जल संरक्षण और प्रबंधन के लिए लोगों को जागरूक करने के कई कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।
चुनौतियाँ और समाधान
1. पानी की बर्बादी
भारत में पानी की बर्बादी एक बड़ी चुनौती है। नीति के तहत जल उपयोग के मानकों और नियंत्रण उपायों को लागू करने की आवश्यकता है। जन जागरूकता अभियान और सख्त निगरानी तंत्र इस समस्या को कम कर सकते हैं।
2. जल प्रदूषण
जल प्रदूषण एक गंभीर समस्या है, जिसका समाधान नीति के अनुसार स्वच्छता और अपशिष्ट प्रबंधन के प्रभावी उपायों से संभव है। कड़े पर्यावरणीय नियम और मानकों का पालन सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
3. जलवायु परिवर्तन
जलवायु परिवर्तन के कारण जल संसाधनों की उपलब्धता और वितरण में असमानताएँ उत्पन्न हो रही हैं। इसके समाधान के लिए नीति को जलवायु अनुकूलन योजनाओं को भी शामिल करने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
राष्ट्रीय जल नीति, 2012 एक व्यापक दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है जो जल संसाधनों के संरक्षण, प्रबंधन, और समुचित उपयोग को सुनिश्चित करती है। हालांकि इस नीति के कार्यान्वयन में कई चुनौतियाँ हैं, लेकिन इसके उद्देश्यों और उपायों के माध्यम से भारत में जल संकट को नियंत्रित किया जा सकता है। नीति का सफल कार्यान्वयन जल की भविष्यवाणी, गुणवत्ता, और उपलब्धता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
See lessभारत अलवणजल (फैश वाटर) संसाधनों से सुसंपन्न है। समालोचनापूर्वक परीक्षण कीजिये कि क्या कारण है कि भारत इसके बावजूद जलाभाव से ग्रसित है। (200 words) [UPSC 2015]
भारत में अलवणजल संसाधनों की प्रचुरता और जलाभाव: समालोचनात्मक परीक्षण अलवणजल संसाधनों की प्रचुरता भारत अलवणजल (फ्रेश वॉटर) संसाधनों में समृद्ध है, जिसमें प्रमुख नदियाँ जैसे गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र, और दक्खिन की नदियाँ शामिल हैं। देश की कुल जलवायु और भूगोल के कारण यहाँ जल संसाधनों की कोई कमी नहीं है।Read more
भारत में अलवणजल संसाधनों की प्रचुरता और जलाभाव: समालोचनात्मक परीक्षण
अलवणजल संसाधनों की प्रचुरता
भारत अलवणजल (फ्रेश वॉटर) संसाधनों में समृद्ध है, जिसमें प्रमुख नदियाँ जैसे गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र, और दक्खिन की नदियाँ शामिल हैं। देश की कुल जलवायु और भूगोल के कारण यहाँ जल संसाधनों की कोई कमी नहीं है।
जलाभाव के कारण
जलवायु परिवर्तन के कारण असमान वर्षा पैटर्न, बाढ़, और सूखा जैसी समस्याएँ बढ़ी हैं। उदाहरण के लिए, 2022 में बिहार और उत्तर प्रदेश में भारी वर्षा और बाढ़ ने जल संसाधनों की असमानता को उजागर किया।
जल प्रबंधन की कमी और अधिक पानी का व्यय के कारण जल संसाधनों का समुचित उपयोग नहीं हो पा रहा है। जलाशयों और पानी संग्रहीत योजनाओं की कमी भी एक प्रमुख कारण है। पानी की चोरी और अप्रभावी नल जल आपूर्ति प्रणाली समस्याओं को और बढ़ाते हैं।
जनसंख्या वृद्धि और अत्यधिक जल उपयोग के कारण उपलब्ध जल संसाधनों पर भारी दबाव पड़ता है। शहरीकरण और विकास परियोजनाएँ जल संसाधनों की कमी को और बढ़ाती हैं। पानी की मांग और आपूर्ति के बीच असंतुलन एक प्रमुख मुद्दा है।
जल प्रदूषण भी एक गंभीर समस्या है। नदियों में औद्योगिक और घरेलू अपशिष्ट के कारण जल की गुणवत्ता प्रभावित होती है। उदाहरण के लिए, गंगा नदी का प्रदूषण जल की उपलब्धता को और कम करता है।
निष्कर्ष
See lessभले ही भारत में अलवणजल संसाधनों की प्रचुरता है, लेकिन जलाभाव की समस्या कई जटिल कारणों से उत्पन्न हो रही है। इसके समाधान के लिए समन्वित जल प्रबंधन, जल पुनर्चक्रण, सतत विकास योजनाएँ और सामाजिक जागरूकता बढ़ाना आवश्यक है। जल संसाधनों का समुचित उपयोग और संरक्षण ही इस समस्या का समाधान है।
पर्यटन की प्रोन्नति के कारण जम्मू और काश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के राज्य अपनी पारिस्थितिक वहन क्षमता की सीमाओं तक पहुँच रहे हैं ? समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। (200 words) [UPSC 2015]
पर्यटन की प्रोन्नति और पारिस्थितिक वहन क्षमता की सीमाएँ: जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड पर्यटन और पारिस्थितिक वहन क्षमता जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, और उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों में पर्यटन की वृद्धि ने इन क्षेत्रों की पारिस्थितिक वहन क्षमता पर अत्यधिक दबाव डाला है। पर्यटकों की बRead more
पर्यटन की प्रोन्नति और पारिस्थितिक वहन क्षमता की सीमाएँ: जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड
पर्यटन और पारिस्थितिक वहन क्षमता
जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, और उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों में पर्यटन की वृद्धि ने इन क्षेत्रों की पारिस्थितिक वहन क्षमता पर अत्यधिक दबाव डाला है। पर्यटकों की बढ़ती संख्या, संरचनात्मक विकास (जैसे होटलों और सड़कें) और अनियंत्रित पर्यटन गतिविधियाँ प्राकृतिक संसाधनों और पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुँचा रही हैं।
जम्मू और कश्मीर में सोनमर्ग और गुलमर्ग जैसे स्थलों पर बढ़ते पर्यटन ने जलवायु और वनस्पति को प्रभावित किया है। हिमाचल प्रदेश में मनाली और धर्मशाला जैसे स्थानों पर बेतहाशा विकास और पर्यटकों की भीड़ ने पर्यावरणीय संकट उत्पन्न किए हैं। उत्तराखंड में, ऋषिकेश और नैनीताल जैसे पर्यटन स्थल प्रदूषण और संसाधन कमी का सामना कर रहे हैं।
हालिया उदाहरण
2022 में, उत्तराखंड के नैनीताल में लगातार बढ़ते पर्यटकों की संख्या ने पानी की कमी और कचरे की समस्या को बढ़ा दिया। हिमाचल प्रदेश के शिमला में भी असामान्य रूप से बढ़ते पर्यटन की वजह से ठोस कचरे का संकट उत्पन्न हुआ है।
समालोचनात्मक मूल्यांकन
इन क्षेत्रों में पर्यटन की वृद्धि ने आर्थिक लाभ तो दिया है, लेकिन पारिस्थितिकीय संतुलन को बनाए रखना भी आवश्यक है। इसके लिए संवेदनशील पर्यटन नीतियों और स्थायी विकास योजनाओं की आवश्यकता है। पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन और संसाधन प्रबंधन को प्राथमिकता देने से पर्यावरणीय दबाव को कम किया जा सकता है और सतत पर्यटन को बढ़ावा दिया जा सकता है।
इस प्रकार, पर्यटन की प्रोन्नति के साथ-साथ पारिस्थितिकीय स्थिरता की दिशा में ठोस कदम उठाना अनिवार्य है।
See lessनीली क्रांति' को परिभाषित करते हुए भारत में मत्स्यपालन की समस्याओं और रणनीतियों को समझाइये । (250 words) [UPSC 2018]
नीली क्रांति: परिभाषा और भारत में मत्स्यपालन की समस्याएँ एवं रणनीतियाँ नीली क्रांति की परिभाषा 'नीली क्रांति' का तात्पर्य मत्स्यपालन के क्षेत्र में उत्पादकता और तकनीकी सुधार से है, जो कि पानी आधारित संसाधनों के प्रबंधन को प्रभावी बनाने के लिए लागू किया जाता है। इसे 'फिशरी क्रांति' भी कहा जाता है, जिRead more
नीली क्रांति: परिभाषा और भारत में मत्स्यपालन की समस्याएँ एवं रणनीतियाँ
नीली क्रांति की परिभाषा
‘नीली क्रांति’ का तात्पर्य मत्स्यपालन के क्षेत्र में उत्पादकता और तकनीकी सुधार से है, जो कि पानी आधारित संसाधनों के प्रबंधन को प्रभावी बनाने के लिए लागू किया जाता है। इसे ‘फिशरी क्रांति’ भी कहा जाता है, जिसका उद्देश्य मछली उत्पादन में वृद्धि करना और इसे आर्थिक लाभ का स्रोत बनाना है।
भारत में मत्स्यपालन की समस्याएँ
रणनीतियाँ
हालिया उदाहरण
मछली पालन में तकनीकी सुधार: भारत में ‘नीली क्रांति’ के तहत, केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय मत्स्य पालन योजना को लागू किया है, जो आधुनिक तकनीकों और अवसंरचना सुधार को बढ़ावा देती है। इसके अंतर्गत “सागर मित्रा” परियोजना भी शुरू की गई है, जो मछली उत्पादन में वृद्धि और मछुआरों के जीवन स्तर में सुधार के लिए काम कर रही है।
इन रणनीतियों और सुधारों के माध्यम से, भारत में मत्स्यपालन क्षेत्र को अधिक सक्षम और सतत बनाया जा रहा है, जो न केवल उत्पादन को बढ़ाने में मदद कर रहा है, बल्कि आर्थिक और पर्यावरणीय स्थिरता को भी सुनिश्चित कर रहा है।
See lessभारत में बाढ़ों को सिंचाई के और सभी मौसम में अन्तर्देशीय नौसंचालन के एक धारणीय स्रोत में किस प्रकार परिवर्तित किया जा सकता है? (250 words) [UPSC 2017]
भारत में बाढ़ों को सिंचाई और सभी मौसम में अन्तर्देशीय नौसंचालन के एक धारणीय स्रोत में परिवर्तित करने के उपाय 1. बाढ़ जल संचयन और संग्रहण: बाढ़ों के पानी को सिंचाई के लिए उपयोगी संसाधन में बदलने के लिए जल संचयन और संग्रहण ढांचों में निवेश करना आवश्यक है। चेक डैम और पेरकोलेशन टैंक जैसे ढांचे बाढ़ के पRead more
भारत में बाढ़ों को सिंचाई और सभी मौसम में अन्तर्देशीय नौसंचालन के एक धारणीय स्रोत में परिवर्तित करने के उपाय
1. बाढ़ जल संचयन और संग्रहण:
बाढ़ों के पानी को सिंचाई के लिए उपयोगी संसाधन में बदलने के लिए जल संचयन और संग्रहण ढांचों में निवेश करना आवश्यक है। चेक डैम और पेरकोलेशन टैंक जैसे ढांचे बाढ़ के पानी को संग्रहीत कर सकते हैं और इसे भूमिगत जल पुनर्भरण के रूप में उपयोग कर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में छोटे चेक डैम का उपयोग बाढ़ के पानी को संग्रहित करने के लिए किया जाता है, जिससे सिंचाई के लिए जल उपलब्धता में सुधार हुआ है।
2. बाढ़ नियंत्रण जलाशयों का निर्माण:
बाढ़ नियंत्रण जलाशयों और आर्टिफिशियल लेक्स का निर्माण बाढ़ के पानी को भविष्य में उपयोग के लिए संग्रहीत कर सकता है। नर्मदा डैम (गुजरात) इसका एक उदाहरण है, जो बाढ़ के पानी को संग्रहीत करके पूरे वर्ष सिंचाई के लिए एक स्थिर जल स्रोत प्रदान करता है।
3. बाढ़ क्षेत्रों का कृषि में उपयोग:
बाढ़ क्षेत्रों, जो पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं, को कृषि योजनाओं में शामिल किया जा सकता है। इन क्षेत्रों में बाढ़-प्रतिरोधी फसलों और खेती की तकनीकों का उपयोग कर बाढ़ के पानी के पोषक तत्वों को कृषि उत्पादकता में बदला जा सकता है। उदाहरण के तौर पर, ब्रह्मपुत्र घाटी (असम) में बाढ़ के पानी से फसलों की उत्पादकता बढ़ी है।
4. अन्तर्देशीय नौसंचालन के लिए बाढ़ जल का उपयोग:
बाढ़ के पानी का अन्तर्देशीय नौसंचालन के लिए उपयोग में लाने के लिए नदी चैनलों और जलमार्गों का विकास किया जा सकता है। बाढ़ क्षेत्रों और नदी चैनलों को गहरा और बनाए रखा जा सकता है ताकि बाढ़ और बाद में नौसंचालन संभव हो सके। राष्ट्रीय जलमार्ग-1 (गंगा) और राष्ट्रीय जलमार्ग-2 (ब्रह्मपुत्र) इसका उदाहरण हैं।
5. स्मार्ट बाढ़ प्रबंधन प्रणाली:
स्मार्ट बाढ़ प्रबंधन प्रणाली का उपयोग बाढ़ पूर्वानुमान और प्रबंधन के लिए किया जा सकता है। सैटेलाइट तकनीक और जीआईएस (भूगोलिक सूचना प्रणाली) बाढ़ घटनाओं की भविष्यवाणी करने और बाढ़ के पानी के उपयोग की योजना बनाने में सहायक हो सकते हैं।
6. सरकारी योजनाएँ और नीतियाँ:
राष्ट्रीय मिशन फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर (NMSA) और प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) जैसी सरकारी योजनाएँ बाढ़ के पानी का उपयोग प्रभावी ढंग से करने के लिए अवसंरचना और प्रथाओं के विकास का समर्थन करती हैं।
निष्कर्ष:
See lessभारत में बाढ़ों को सिंचाई और अन्तर्देशीय नौसंचालन के लिए धारणीय संसाधन में बदलने के लिए प्रभावी योजना और अवसंरचना विकास की आवश्यकता है। बाढ़ जल संचयन, जलाशय निर्माण, बाढ़ क्षेत्रों का कृषि में उपयोग, और नौसंचालन परियोजनाओं में निवेश बाढ़ के पानी को लाभकारी बनाने में सहायक हो सकते हैं।
भारत में 'महत्त्वाकांक्षी जिलों के कायाकल्प के लिए मूल रणनीतियों का उल्लेख कीजिए और इसकी सफलता के लिए, अभिसरण, सहयोग व प्रतिस्पर्धा की प्रकृति को स्पष्ट कीजिए। (250 words) [UPSC 2018]
भारत में 'महत्त्वाकांक्षी जिलों के कायाकल्प के लिए मूल रणनीतियाँ 1. लक्षित हस्तक्षेप: महत्त्वाकांक्षी जिलों की योजना (2018) स्वास्थ्य, शिक्षा, आधारभूत संरचना और आर्थिक विकास के क्षेत्रों में सुधार पर केंद्रित है। मिवात (हरियाणा) और दंतेवाड़ा (छत्तीसगढ़) जैसे जिलों में शैक्षिक परिणाम और स्वास्थ्य सेवRead more
भारत में ‘महत्त्वाकांक्षी जिलों के कायाकल्प के लिए मूल रणनीतियाँ
1. लक्षित हस्तक्षेप: महत्त्वाकांक्षी जिलों की योजना (2018) स्वास्थ्य, शिक्षा, आधारभूत संरचना और आर्थिक विकास के क्षेत्रों में सुधार पर केंद्रित है। मिवात (हरियाणा) और दंतेवाड़ा (छत्तीसगढ़) जैसे जिलों में शैक्षिक परिणाम और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए विशेष कार्यक्रम लागू किए गए हैं।
2. डेटा-संचालित शासन: वास्तविक समय के डेटा और प्रदर्शन मैट्रिक्स का उपयोग कार्यक्रमों की प्रगति को ट्रैक करने के लिए किया जाता है। NITI Aayog द्वारा प्रस्तुत डेल्टा रैंकिंग प्रणाली जिलों के प्रदर्शन पर तिमाही अद्यतन प्रदान करती है, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित होती है।
3. स्थानीय आवश्यकताओं पर ध्यान: रणनीतियाँ स्थानीय चुनौतियों को संबोधित करने के लिए तैयार की जाती हैं। उदाहरण के लिए, कंधमाल (ओडिशा) में आदिवासी कल्याण और जीविका के अवसरों में सुधार के लिए विशेष प्रयास किए गए हैं।
अभिसरण, सहयोग और प्रतिस्पर्धा की प्रकृति
1. अभिसरण: प्रभावी कायाकल्प के लिए विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों का एकीकृत प्रयास आवश्यक है। केंद्रीय और राज्य योजनाओं का अभिसरण सुनिश्चित करता है कि संसाधन प्रभावी ढंग से उपयोग हों। उदाहरण के लिए, MNREGA और प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना का एकीकरण ग्रामीण आधारभूत संरचना में सुधार करता है।
2. सहयोग: सफल कार्यान्वयन में सरकारी एजेंसियों, स्थानीय निकायों, और नागरिक समाज संगठनों के बीच सहयोग शामिल है। NGOs और निजी क्षेत्र की कंपनियों के साथ साझेदारी अतिरिक्त संसाधन और विशेषज्ञता प्रदान करती है। लाल पथ लैब्स ने ग्रामीण क्षेत्रों में डायग्नोस्टिक सेवाओं में सुधार के लिए स्थानीय स्वास्थ्य विभागों के साथ सहयोग किया है।
3. प्रतिस्पर्धा: जिलों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित करने से प्रगति को बढ़ावा मिलता है। प्रदर्शन सूचकांक और पुरस्कार शीर्ष प्रदर्शन करने वाले जिलों के लिए प्रेरणा उत्पन्न करते हैं। धमतरी (छत्तीसगढ़) जैसे जिलों ने इस प्रतिस्पर्धात्मक भावना के कारण स्वास्थ्य और आधारभूत संरचना में उल्लेखनीय उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं।
इन रणनीतियों और सहयोगात्मक प्रयासों से महत्त्वाकांक्षी जिलों के कायाकल्प में सफलता सुनिश्चित होती है और वे अपनी पूरी क्षमता प्राप्त कर पाते हैं।
See lessभारतीय प्रादेशिक नौपरिवहन उपग्रह प्रणाली (आई. आर. एन. एस. एस.) की आवश्यकता क्यों है ? यह नौपरिवहन में किस प्रकार सहायक है ? (150 words) [UPSC 2018]
भारतीय प्रादेशिक नौपरिवहन उपग्रह प्रणाली (आई. आर. एन. एस. एस.) की आवश्यकता क्यों है? सामरिक स्वायत्तता: भारतीय प्रादेशिक नौपरिवहन उपग्रह प्रणाली (IRNSS), जिसे नाविक (NavIC) भी कहा जाता है, भारत को एक स्वतंत्र नेविगेशन सिस्टम प्रदान करता है, जिससे विदेशी उपग्रह प्रणालियों जैसे GPS पर निर्भरता कम होतीRead more
भारतीय प्रादेशिक नौपरिवहन उपग्रह प्रणाली (आई. आर. एन. एस. एस.) की आवश्यकता क्यों है?
सामरिक स्वायत्तता: भारतीय प्रादेशिक नौपरिवहन उपग्रह प्रणाली (IRNSS), जिसे नाविक (NavIC) भी कहा जाता है, भारत को एक स्वतंत्र नेविगेशन सिस्टम प्रदान करता है, जिससे विदेशी उपग्रह प्रणालियों जैसे GPS पर निर्भरता कम होती है। यह विशेष रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा और सामरिक स्वायत्तता के लिए महत्वपूर्ण है।
क्षेत्रीय सटीकता: IRNSS भारत और उसके आसपास के क्षेत्र में बेहतर सटीकता प्रदान करता है, जो चुनौतीपूर्ण इलाकों और घनी शहरी क्षेत्रों में नेविगेशन के लिए उपयोगी है। हाल ही में 2023 में, IRNSS को उन्नत स्मार्टफोन में शामिल किया गया, जिससे स्थानीय जीपीएस सेवाएं सुदृढ़ हुईं।
ऑपरेशनल दक्षता: IRNSS आपदा प्रबंधन, विमानन और मरीन नेविगेशन में सुधार करता है, जिससे आपातकालीन सेवाओं और सैन्य संचालन की दक्षता में वृद्धि होती है।
See lessजल प्रतिबल (वाटर स्ट्रैस) का क्या मतलब है ? भारत में यह किस प्रकार और किस कारण प्रादेशिकतः भिन्न-भिन्न है ? (250 words) [UPSC 2019]
जल प्रतिबल (वाटर स्ट्रेस) का अर्थ और भारत में प्रादेशिक भिन्नताएँ जल प्रतिबल का अर्थ जल प्रतिबल (Water Stress) उस स्थिति को दर्शाता है जब किसी क्षेत्र में जल की मांग उपलब्ध जल आपूर्ति से अधिक हो जाती है, या जल की गुणवत्ता इतनी खराब हो जाती है कि वह उपयोग के योग्य नहीं रहती। इसका प्रमुख कारण अत्यधिकRead more
जल प्रतिबल (वाटर स्ट्रेस) का अर्थ और भारत में प्रादेशिक भिन्नताएँ
जल प्रतिबल का अर्थ
जल प्रतिबल (Water Stress) उस स्थिति को दर्शाता है जब किसी क्षेत्र में जल की मांग उपलब्ध जल आपूर्ति से अधिक हो जाती है, या जल की गुणवत्ता इतनी खराब हो जाती है कि वह उपयोग के योग्य नहीं रहती। इसका प्रमुख कारण अत्यधिक जल दोहन, जलवायु परिवर्तन और तेजी से बढ़ती जनसंख्या है, जिससे कृषि, उद्योग और घरेलू जरूरतों के लिए जल की कमी हो जाती है। भारत में जल प्रतिबल एक गंभीर समस्या है, जो विभिन्न क्षेत्रों में जल उपलब्धता और उपयोग के आधार पर अलग-अलग है।
भारत में जल प्रतिबल की प्रादेशिक भिन्नताएँ
निष्कर्ष
See lessभारत में जल प्रतिबल जलवायु, भूगोल और जल प्रबंधन प्रणालियों के आधार पर क्षेत्रीय रूप से भिन्न-भिन्न है। इस समस्या से निपटने के लिए जल संरक्षण, सतत कृषि, और नीतिगत सुधारों की आवश्यकता है, ताकि सभी क्षेत्रों में जल सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
भारत के सूखा-प्रवण एवं अर्द्धशुष्क प्रदेशों में लघु जलसंभर विकास परियोजनाएँ किस प्रकार जल संरक्षण में सहायक हैं? (200 words) [UPSC 2016]
भारत के सूखा-प्रवण और अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में लघु जलसंभर विकास परियोजनाएँ (Small Water Harvesting Projects) जल संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इन परियोजनाओं का उद्देश्य सीमित जल संसाधनों का प्रभावी ढंग से उपयोग और प्रबंधन करना है। 1. जल संग्रहण और पुनर्भरण: लघु जलसंभर परियोजनाएँ जैसे किRead more
भारत के सूखा-प्रवण और अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में लघु जलसंभर विकास परियोजनाएँ (Small Water Harvesting Projects) जल संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इन परियोजनाओं का उद्देश्य सीमित जल संसाधनों का प्रभावी ढंग से उपयोग और प्रबंधन करना है।
1. जल संग्रहण और पुनर्भरण:
लघु जलसंभर परियोजनाएँ जैसे कि खेत तालाब, चेक डैम, और नाला बंधन छोटे जलाशयों का निर्माण करती हैं, जो वर्षा के पानी को संचित करते हैं। इससे भूजल स्तर में वृद्धि होती है और सूखा प्रवण क्षेत्रों में पानी की उपलब्धता बेहतर होती है।
2. कृषि में सुधार:
इन परियोजनाओं के माध्यम से सिंचाई के लिए स्थिर जल स्रोत उपलब्ध होते हैं, जो कृषि उत्पादन में सुधार करते हैं। सूखा प्रवण क्षेत्रों में इस प्रकार की सिंचाई प्रणाली फसलों की उर्वरता बढ़ाने में मदद करती है, जिससे खाद्य सुरक्षा में योगदान होता है।
3. भूमि संरक्षण:
लघु जलसंभर परियोजनाएँ भूमि के कटाव को रोकने और मृदा की गुणवत्ता को बनाए रखने में सहायक होती हैं। ये परियोजनाएँ जल प्रवाह को नियंत्रित करती हैं, जिससे भूमि की क्षति और कटाव कम होता है।
4. ग्रामीण आजीविका में सुधार:
इन परियोजनाओं के माध्यम से पानी की उपलब्धता बढ़ने से ग्रामीण इलाकों में जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है। यह पानी की कमी के कारण रोजगार और अन्य सामाजिक समस्याओं को कम करता है।
5. जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करना:
जल संग्रहण और पुनर्भरण की प्रणाली जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती असामान्यता को संतुलित करने में मदद करती है। सूखा प्रवण क्षेत्रों में यह जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में सहायक होती है।
इन परियोजनाओं के सफल कार्यान्वयन से सूखा-प्रवण और अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में जल संकट को कम किया जा सकता है और दीर्घकालिक जल सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है।
See less"सूचना प्रौद्योगिकी केन्द्रों के रूप में नगरों की संवृद्धि ने रोज़गार के नए मार्ग खोल दिए हैं, परन्तु साथ में नई समस्याएँ भी पैदा कर दी हैं।" उदाहरणों सहित इस कथन की पुष्टि कीजिए । (250 words) [UPSC 2017]
सूचना प्रौद्योगिकी (आई.टी.) केन्द्रों के रूप में नगरों की संवृद्धि ने रोजगार के नए अवसर उत्पन्न किए हैं, लेकिन इसके साथ कई समस्याएँ भी उभरकर सामने आई हैं। इस कथन की पुष्टि निम्नलिखित उदाहरणों और विश्लेषण से की जा सकती है: रोज़गार के नए मार्ग: नौकरी के अवसर: उदाहरण: बेंगलुरु, हैदराबाद, और पुणे जैसे शRead more
सूचना प्रौद्योगिकी (आई.टी.) केन्द्रों के रूप में नगरों की संवृद्धि ने रोजगार के नए अवसर उत्पन्न किए हैं, लेकिन इसके साथ कई समस्याएँ भी उभरकर सामने आई हैं। इस कथन की पुष्टि निम्नलिखित उदाहरणों और विश्लेषण से की जा सकती है:
रोज़गार के नए मार्ग:
नई समस्याएँ:
इन समस्याओं को संबोधित करने के लिए शहरी योजना और सतत विकास रणनीतियों की आवश्यकता है, ताकि आई.टी. केन्द्रों के विकास का लाभ व्यापक रूप से समाज के विभिन्न हिस्सों को मिल सके।
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