उत्तर भारत में फसल अवशेष और पराली दहन की प्रथा से उत्पन्न होने वाले वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने हेतु समग्र समाधान विकसित करने की आवश्यकता है। चर्चा कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
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1960 के दशक में शुद्ध खाद्य आयातक से भारत के विश्व में एक शुद्ध खाद्य निर्यातक के रूप में उभरने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
- हरित क्रांति: 1960 के दशक के अंत में, हरित क्रांति के अंतर्गत नई कृषि तकनीकों और उच्च उपज वाली किस्मों का परिचय हुआ। इससे भारत ने खाद्य उत्पादन में तेजी से वृद्धि की। विशेष रूप से, गेहूं और चावल की फसल में सुधार हुआ, जिससे खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हुई और अधिशेष उत्पादन हुआ।
- सिंचाई परियोजनाएँ: बड़े पैमाने पर सिंचाई परियोजनाओं का कार्यान्वयन, जैसे कि नहरों और जलाशयों का निर्माण, ने कृषि उत्पादन को बढ़ाया। इससे भूमि की अधिकतम उपयोगिता और वर्षा के आधार पर निर्भरता कम हुई, जिससे स्थिर और बढ़ी हुई फसलें सुनिश्चित हुईं।
- कृषि अनुसंधान और प्रौद्योगिकी: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) और अन्य संस्थानों द्वारा कृषि अनुसंधान और विकास ने नई तकनीकों, उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग को बढ़ावा दिया। इससे उत्पादकता में सुधार हुआ और उत्पादन की लागत कम हुई।
- सरकारी नीतियाँ: भारतीय सरकार ने कृषि क्षेत्र में समर्थन मूल्य योजनाओं, सब्सिडी और क्रेडिट सुविधाओं के माध्यम से किसानों को प्रोत्साहित किया। इन नीतियों ने उत्पादन बढ़ाने में मदद की और किसानों को लाभकारी कीमतों पर फसल बेचने के लिए प्रेरित किया।
- उत्पादन की विविधता: भारत ने केवल खाद्यान्नों का उत्पादन नहीं बढ़ाया, बल्कि अन्य फसलों जैसे कि दालें, तेल बीज, और ताजे फल भी उगाए, जो निर्यात के लिए उपलब्ध थे।
- वैश्विक बाजार में प्रवेश: भारत ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार समझौतों और वैश्विक बाजार में अपनी उपस्थिति को बढ़ावा दिया। इसके परिणामस्वरूप, भारत ने खाद्य उत्पादों के निर्यात में वृद्धि की और एक शुद्ध खाद्य निर्यातक के रूप में उभरा।
इन कारणों के परिणामस्वरूप, भारत ने खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त की और वैश्विक खाद्य बाजार में एक महत्वपूर्ण स्थान हासिल किया।
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उत्तर भारत में फसल अवशेष और पराली दहन वायु प्रदूषण की महामारी के रूप में सामान्य हो गया है, खासकर शीतकालीन महीनों में। यह वायु प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और एक सामाजिक-आर्थिक मुद्दा भी बन चुका है। समस्या का समाधान तकनीकी, सामाजिक और सांस्कृतिक पहलों से होना चाहिए। पहले, कृषि प्रौद्योगिकियोRead more
उत्तर भारत में फसल अवशेष और पराली दहन वायु प्रदूषण की महामारी के रूप में सामान्य हो गया है, खासकर शीतकालीन महीनों में। यह वायु प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और एक सामाजिक-आर्थिक मुद्दा भी बन चुका है।
समस्या का समाधान तकनीकी, सामाजिक और सांस्कृतिक पहलों से होना चाहिए। पहले, कृषि प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके फसल अवशेष को नष्ट करने के लिए उन्नत तरीके विकसित करने चाहिए। दूसरे, किसानों की जागरूकता बढ़ानी चाहिए ताकि उन्हें पराली का सही तरीके से प्रबंधन करने के लिए जागरूक किया जा सके।
समाज में जागरूकता फैलाने के लिए सरकार को जन साझेदारी योजनाएं चलानी चाहिए। इसके साथ ही, स्थानीय स्तर पर सामुदायिक संगठनों को समर्थित करना चाहिए ताकि उन्हें स्थानीय स्तर पर समस्या का सामना करने में मदद मिल सके।
इस समस्या का समाधान केवल स्थानीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी होना चाहिए। सरकार को नीतियों और योजनाओं के माध्यम से समस्या का समाधान करने में सक्षम होना चाहिए, जैसे कि पराली का उपयोग और उसके प्रबंधन के लिए निर्देशिकाएं जारी करना।
इस प्रकार, तकनीकी, सामाजिक और आर्थिक पहलों को मिलाकर एक समग्र समाधान विकसित किया जा सकता है जो उत्तर भारत में फसल अवशेष और पराली दहन से उत्पन्न होने वाले वायु प्रदूषण की समस्या का समाधान कर सकता है।
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