‘स्मार्ट शहरों’ से क्या तात्पर्य है? भारत के शहरी विकास में इनकी प्रासंगिकता का परीक्षण कीजिए। क्या इससे ग्रामीण तथा शहरी भेदभाव में बढ़ोतरी होगी? पी० यू० आर० ए० एवं आर० यू० आर० बी० ए० एन० मिशन के सन्दर्भ में ...
लैंडलॉर्ड पोर्ट मॉडल एक प्रमुख पत्तन प्रबंधन दृष्टिकोण है जिसमें पत्तन प्राधिकरण का मुख्य कार्य भूमि का मालिक रहना और अवसंरचना प्रदान करना होता है, जबकि पत्तन के संचालन और संचालन की जिम्मेदारी निजी कंपनियों पर होती है। इस मॉडल के तहत, पत्तन प्राधिकरण पत्तन क्षेत्र में भूमि, गोदाम, और बुनियादी ढाँचेRead more
लैंडलॉर्ड पोर्ट मॉडल एक प्रमुख पत्तन प्रबंधन दृष्टिकोण है जिसमें पत्तन प्राधिकरण का मुख्य कार्य भूमि का मालिक रहना और अवसंरचना प्रदान करना होता है, जबकि पत्तन के संचालन और संचालन की जिम्मेदारी निजी कंपनियों पर होती है। इस मॉडल के तहत, पत्तन प्राधिकरण पत्तन क्षेत्र में भूमि, गोदाम, और बुनियादी ढाँचे की सुविधा प्रदान करता है, जबकि निजी क्षेत्र के खिलाड़ी इन सुविधाओं का उपयोग करके कार्गो हैंडलिंग, लोडिंग और अनलोडिंग, और अन्य ऑपरेशनल कार्यों को अंजाम देते हैं।
लैंडलॉर्ड पोर्ट मॉडल की विशेषताएँ:
भूमि स्वामित्व: पत्तन प्राधिकरण भूमि का स्वामित्व बनाए रखता है और इसे विभिन्न निजी ऑपरेटरों को लीज पर देता है।
सुविधाएँ और अवसंरचना: प्राधिकरण पोर्ट की आधारभूत सुविधाओं और अवसंरचना जैसे डॉक, पुल, और वेयरहाउस प्रदान करता है।
निजी ऑपरेटर: निजी कंपनियाँ पत्तन संचालन, कार्गो हैंडलिंग, और संबंधित सेवाओं का प्रबंधन करती हैं।
पत्तनों के प्रबंधन में प्रयुक्त विभित्र मॉडल:
लैंडलॉर्ड मॉडल: जैसा कि उपर्युक्त वर्णित है, इसमें पत्तन प्राधिकरण भूमि का स्वामित्व रखता है और अवसंरचना प्रदान करता है, जबकि संचालन निजी कंपनियों द्वारा किया जाता है।
वेस्टर्न मॉडल: इसमें पत्तन प्राधिकरण और संचालन दोनों का नियंत्रण निजी कंपनियों के हाथ में होता है। निजी कंपनियाँ पूरे पत्तन का प्रबंधन करती हैं, जिसमें भूमि, अवसंरचना और संचालन शामिल हैं।
पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल: इस मॉडल में पत्तन प्राधिकरण और निजी कंपनियाँ मिलकर पत्तन के विभिन्न हिस्सों का प्रबंधन करती हैं। इसमें निवेश, संचालन, और जोखिम को साझा किया जाता है।
पब्लिक पोर्ट मॉडल: इसमें पत्तन प्राधिकरण पूरी तरह से पत्तन के संचालन और प्रबंधन का जिम्मा लेता है। यह मॉडल सरकारी नियंत्रण के तहत काम करता है और निजी क्षेत्र की भागीदारी सीमित होती है।
जवाहरलाल नेहरू पत्तन (JNP) के 100% लैंडलॉर्ड पोर्ट बनने का मतलब है कि इस पत्तन में भूमि का स्वामित्व और अवसंरचना प्रबंधन पत्तन प्राधिकरण के हाथ में रहेगा, जबकि संचालन और कार्गो हैंडलिंग जैसी गतिविधियाँ निजी कंपनियों द्वारा की जाएंगी। यह मॉडल पत्तन के विकास और कार्यक्षमता को सुधारने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, जो कि दक्षता, प्रतिस्पर्धा और निवेश को प्रोत्साहित करता है।
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स्मार्ट शहर वे शहरी क्षेत्र हैं जो डिजिटल तकनीक और सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) का उपयोग करके अपने प्रदर्शन, जीवन की गुणवत्ता और संसाधनों के प्रबंधन में सुधार करते हैं। इसमें स्मार्ट बुनियादी ढाँचा, स्मार्ट ट्रैफिक प्रबंधन, ऊर्जा दक्षता और सार्वजनिक सेवाओं की बेहतरी शामिल होती है। उदाहरण केRead more
स्मार्ट शहर वे शहरी क्षेत्र हैं जो डिजिटल तकनीक और सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) का उपयोग करके अपने प्रदर्शन, जीवन की गुणवत्ता और संसाधनों के प्रबंधन में सुधार करते हैं। इसमें स्मार्ट बुनियादी ढाँचा, स्मार्ट ट्रैफिक प्रबंधन, ऊर्जा दक्षता और सार्वजनिक सेवाओं की बेहतरी शामिल होती है। उदाहरण के लिए, स्मार्ट दिल्ली में ट्रैफिक प्रबंधन के लिए स्मार्ट सिग्नल और ऊर्जा प्रबंधन के लिए सोलर पैनल लगाए गए हैं।
भारत के शहरी विकास में प्रासंगिकता
स्मार्ट शहर सार्वजनिक सेवाओं की दक्षता बढ़ाते हैं, जैसे स्वच्छ जल, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, और सहज परिवहन। स्मार्ट बेंगलुरु ने ट्रैफिक जाम कम करने के लिए स्मार्ट ट्रैफिक सिग्नल लागू किए हैं।
ये हरित प्रौद्योगिकियाँ और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को अपनाते हैं, जिससे पर्यावरणीय प्रभाव कम होता है। अहमदाबाद में सोलर पैनल और इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिंग स्टेशन स्थापित किए गए हैं।
स्मार्ट शहर निवेश और रोजगार के अवसर उत्पन्न करते हैं, जैसे पुणे में आईटी और टेक्नोलॉजी सेक्टर में वृद्धि।
ग्रामीण-शहरी भेदभाव में वृद्धि
स्मार्ट शहरों पर ध्यान केंद्रित करने से ग्रामीण क्षेत्रों में संसाधनों और विकास की कमी हो सकती है, जिससे ग्रामीण-शहरी भेदभाव बढ़ सकता है। यह ग्रामीण क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाओं की अनदेखी कर सकता है।
‘स्मार्ट गाँवों’ के लिए तर्क
पी.यू.आर.ए. का लक्ष्य ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी जैसी सुविधाएँ उपलब्ध कराना है, जिससे जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो। स्मार्ट गाँव इन सुविधाओं को बढ़ावा दे सकते हैं और ग्रामीण पलायन को रोक सकते हैं।
आर.यू.आर.बी.एएन मिशन का उद्देश्य सभी सुविधाएँ और आर्थिक विकास को ग्रामीण क्षेत्रों में लाना है। स्मार्ट गाँव इस दृष्टिकोण को आगे बढ़ा सकते हैं और सतत विकास को बढ़ावा दे सकते हैं।
निष्कर्ष
स्मार्ट शहरों का विकास भारत के शहरी क्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन स्मार्ट गाँवों को भी उतना ही महत्व देना चाहिए ताकि ग्रामीण-शहरी भेदभाव कम हो सके और सतत विकास संभव हो सके। पी.यू.आर.ए. और आर.यू.आर.बी.एएन मिशन जैसे कार्यक्रम इस प्रक्रिया में सहायक हो सकते हैं।
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