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इसकी स्पष्ट स्वीकृति है कि विशेष आर्थिक ज़ोन (एस.इ. जैड.) औद्योगिक विकास, विनिर्माण और निर्यातों के एक साधन हैं। इस संभाव्यता को मान्यता देते हुए, एस.ई.जैड. के संपूर्ण करणत्व में वृद्धि करने की आवश्यकता है। कराधान, नियंत्रक कानूनों और प्रशासन के संबंध में एस.ई. जैडों. की सफलता को परेशान करने वाले मुद्दों पर चर्चा कीजिए । (200 words) [UPSC 2015]
विशेष आर्थिक ज़ोन (एस.ई.जेड.) की सफलता के मुद्दे: कराधान, नियंत्रक कानून और प्रशासन परिचय विशेष आर्थिक ज़ोन (एस.ई.जेड.) औद्योगिक विकास, विनिर्माण और निर्यात के लिए महत्वपूर्ण उपकरण हैं। हालांकि, इनकी सफलता कुछ प्रमुख मुद्दों के कारण प्रभावित हो रही है। कराधान संबंधित मुद्दे जटिल कराधान संरचना: एस.ई.Read more
विशेष आर्थिक ज़ोन (एस.ई.जेड.) की सफलता के मुद्दे: कराधान, नियंत्रक कानून और प्रशासन
परिचय विशेष आर्थिक ज़ोन (एस.ई.जेड.) औद्योगिक विकास, विनिर्माण और निर्यात के लिए महत्वपूर्ण उपकरण हैं। हालांकि, इनकी सफलता कुछ प्रमुख मुद्दों के कारण प्रभावित हो रही है।
कराधान संबंधित मुद्दे
नियंत्रक कानूनों के मुद्दे
प्रशासनिक मुद्दे
निष्कर्ष एस.ई.जेड. की सफलता के लिए कराधान प्रणाली की पुनरावृत्ति, नियंत्रक कानूनों में स्पष्टता और प्रशासनिक दक्षता में सुधार आवश्यक है। इन मुद्दों को सुलझाकर एस.ई.जेड. को औद्योगिक विकास और निर्यात में अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है।
See lessभारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में एफ० डी० आइ० की आवश्यकता की पुष्टि कीजिए। हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापनों तथा वास्तविक एफ० डी० आइ० के बीच अन्तर क्यों है? भारत में वास्तविक एफ० डी० आइ० को बढ़ाने के लिए सुधारात्मक कदम सुझाइए। (200 words) [UPSC 2016]
भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में एफ.डी.आई. की आवश्यकता विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफ.डी.आई.) भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है: पूंजी प्रवाह एफ.डी.आई. से पूंजी प्राप्त होती है, जो अवसंरचना परियोजनाओं और औद्योगिक विकास के लिए आवश्यक है। हाल ही में, गूगल ने ग्रामीन क्षेत्रों मेRead more
भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में एफ.डी.आई. की आवश्यकता
विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफ.डी.आई.) भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है:
एफ.डी.आई. से पूंजी प्राप्त होती है, जो अवसंरचना परियोजनाओं और औद्योगिक विकास के लिए आवश्यक है। हाल ही में, गूगल ने ग्रामीन क्षेत्रों में डिजिटल अवसंरचना के विकास के लिए निवेश किया है।
एफ.डी.आई. से अधिक उन्नत तकनीक और बेहतर प्रथाएँ मिलती हैं, जो उत्पादकता और दक्षता को बढ़ाती हैं। एप्पल और सैमसंग जैसे कंपनियों ने भारतीय बाजार में उन्नत तकनीक प्रस्तुत की है।
विदेशी निवेश रोजगार के अवसर प्रदान करता है, जो बेरोज़गारी को कम करता है। अमेज़न के विस्तार से लाखों प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार उत्पन्न हुए हैं।
एफ.डी.आई. आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देता है और निर्यात संभावनाएँ बढ़ाता है। ह्यूंदै और टोयोटा जैसी कंपनियाँ भारत के निर्यात आंकड़ों में योगदान कर रही हैं।
हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापनों तथा वास्तविक एफ.डी.आई. के बीच अन्तर
जटिल और कठिन नियम और प्रशासनिक बाधाएँ निवेशकों को हतोत्साहित करती हैं। नीति में बदलाव और ब्यूरोक्रेटिक देरी से निवेश में देरी होती है।
अवसंरचना की कमी, जैसे ऊर्जा की कमी और लॉजिस्टिक्स समस्याएँ, परियोजनाओं के सफल कार्यान्वयन में बाधक बनती हैं।
राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक अनिश्चितताएँ निवेशकों को असंवेदनशील बना सकती हैं।
वास्तविक एफ.डी.आई. को बढ़ाने के लिए सुधारात्मक कदम
नियमों और विनियमों को सरल और पारदर्शी बनाएं। सिंगल विंडो क्लीयरेंस सिस्टम लागू करने से प्रशासनिक बाधाएँ कम की जा सकती हैं।
ऊर्जा, परिवहन, और लॉजिस्टिक्स जैसे अवसंरचनात्मक सुधारों में निवेश करें, जिससे परियोजनाओं का कार्यान्वयन आसान हो सके।
राजनीतिक स्थिरता और आर्थिक पारदर्शिता सुनिश्चित करें। नीति रूपरेखाएँ स्पष्ट और स्थिर होनी चाहिए ताकि निवेशकों को विश्वास हो।
निवेशकों को आकर्षित करने के लिए डिप्लोमेटिक चैनल और निवेश सम्मेलनों के माध्यम से भारत को प्रोत्साहित करें। मेक इन इंडिया जैसे अभियानों के माध्यम से विदेशी निवेश को बढ़ावा दें।
निष्कर्ष
एफ.डी.आई. भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। नियमों, अवसंरचना, और स्थिरता में सुधार कर वास्तविक एफ.डी.आई. को बढ़ावा दिया जा सकता है, जिससे निवेश का वातावरण और अधिक अनुकूल बनेगा।
See less'स्मार्ट शहरों' से क्या तात्पर्य है? भारत के शहरी विकास में इनकी प्रासंगिकता का परीक्षण कीजिए। क्या इससे ग्रामीण तथा शहरी भेदभाव में बढ़ोतरी होगी? पी० यू० आर० ए० एवं आर० यू० आर० बी० ए० एन० मिशन के सन्दर्भ में 'स्मार्ट गाँवों' के लिए तर्क प्रस्तुत कीजिए। (200 words) [UPSC 2016]
स्मार्ट शहर वे शहरी क्षेत्र हैं जो डिजिटल तकनीक और सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) का उपयोग करके अपने प्रदर्शन, जीवन की गुणवत्ता और संसाधनों के प्रबंधन में सुधार करते हैं। इसमें स्मार्ट बुनियादी ढाँचा, स्मार्ट ट्रैफिक प्रबंधन, ऊर्जा दक्षता और सार्वजनिक सेवाओं की बेहतरी शामिल होती है। उदाहरण केRead more
स्मार्ट शहर वे शहरी क्षेत्र हैं जो डिजिटल तकनीक और सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) का उपयोग करके अपने प्रदर्शन, जीवन की गुणवत्ता और संसाधनों के प्रबंधन में सुधार करते हैं। इसमें स्मार्ट बुनियादी ढाँचा, स्मार्ट ट्रैफिक प्रबंधन, ऊर्जा दक्षता और सार्वजनिक सेवाओं की बेहतरी शामिल होती है। उदाहरण के लिए, स्मार्ट दिल्ली में ट्रैफिक प्रबंधन के लिए स्मार्ट सिग्नल और ऊर्जा प्रबंधन के लिए सोलर पैनल लगाए गए हैं।
भारत के शहरी विकास में प्रासंगिकता
स्मार्ट शहर सार्वजनिक सेवाओं की दक्षता बढ़ाते हैं, जैसे स्वच्छ जल, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, और सहज परिवहन। स्मार्ट बेंगलुरु ने ट्रैफिक जाम कम करने के लिए स्मार्ट ट्रैफिक सिग्नल लागू किए हैं।
ये हरित प्रौद्योगिकियाँ और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को अपनाते हैं, जिससे पर्यावरणीय प्रभाव कम होता है। अहमदाबाद में सोलर पैनल और इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिंग स्टेशन स्थापित किए गए हैं।
स्मार्ट शहर निवेश और रोजगार के अवसर उत्पन्न करते हैं, जैसे पुणे में आईटी और टेक्नोलॉजी सेक्टर में वृद्धि।
ग्रामीण-शहरी भेदभाव में वृद्धि
स्मार्ट शहरों पर ध्यान केंद्रित करने से ग्रामीण क्षेत्रों में संसाधनों और विकास की कमी हो सकती है, जिससे ग्रामीण-शहरी भेदभाव बढ़ सकता है। यह ग्रामीण क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाओं की अनदेखी कर सकता है।
‘स्मार्ट गाँवों’ के लिए तर्क
पी.यू.आर.ए. का लक्ष्य ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी जैसी सुविधाएँ उपलब्ध कराना है, जिससे जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो। स्मार्ट गाँव इन सुविधाओं को बढ़ावा दे सकते हैं और ग्रामीण पलायन को रोक सकते हैं।
आर.यू.आर.बी.एएन मिशन का उद्देश्य सभी सुविधाएँ और आर्थिक विकास को ग्रामीण क्षेत्रों में लाना है। स्मार्ट गाँव इस दृष्टिकोण को आगे बढ़ा सकते हैं और सतत विकास को बढ़ावा दे सकते हैं।
निष्कर्ष
स्मार्ट शहरों का विकास भारत के शहरी क्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन स्मार्ट गाँवों को भी उतना ही महत्व देना चाहिए ताकि ग्रामीण-शहरी भेदभाव कम हो सके और सतत विकास संभव हो सके। पी.यू.आर.ए. और आर.यू.आर.बी.एएन मिशन जैसे कार्यक्रम इस प्रक्रिया में सहायक हो सकते हैं।
See lessएक अर्थव्यवस्था में पूँजी निर्माण के रूप में विनियोग के अर्थ की व्याख्या कीजिए। उन कारकों की विवेचना कीजिए, जिन पर एक सार्वजनिक एवं एक निजी निकाय के मध्य रिआयत अनुबन्ध (कॉन्सेशन एग्रिमेन्ट) तैयार करते समय विचार किया जाना चाहिए। (250 words) [UPSC 2020]
एक अर्थव्यवस्था में पूँजी निर्माण के रूप में विनियोग के अर्थ की व्याख्या विनियोग और पूँजी निर्माण विनियोग अर्थव्यवस्था में संसाधनों को नए पूँजीगत वस्तुओं के निर्माण या मौजूदा पूँजीगत वस्तुओं की उन्नति में लगाने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है। यह पूँजी निर्माण से जुड़ा होता है, जो भौतिक संपत्तियोंRead more
एक अर्थव्यवस्था में पूँजी निर्माण के रूप में विनियोग के अर्थ की व्याख्या
विनियोग और पूँजी निर्माण
विनियोग अर्थव्यवस्था में संसाधनों को नए पूँजीगत वस्तुओं के निर्माण या मौजूदा पूँजीगत वस्तुओं की उन्नति में लगाने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है। यह पूँजी निर्माण से जुड़ा होता है, जो भौतिक संपत्तियों जैसे मशीनरी, भवन और अवसंरचना के संचय के साथ-साथ मानव पूँजी में सुधार के लिए शिक्षा और प्रशिक्षण के निवेश को भी शामिल करता है।
उदाहरण के लिए, भारत का राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP), जो परिवहन और ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में निवेश की योजना बनाता है, इस प्रक्रिया के तहत आर्थिक वृद्धि को समर्थन देने के लिए पूँजी निर्माण को प्रोत्साहित करता है।
पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) के तहत रिआयत अनुबंध तैयार करते समय विचार करने योग्य कारक
अनुबंध में उद्देश्य और दायरा स्पष्ट रूप से परिभाषित होना चाहिए। जैसे कि दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे परियोजना में निर्माण, रखरखाव और टोल संग्रह के दायरे को स्पष्ट किया गया है।
जोखिम आवंटन को सही तरीके से प्रबंधित किया जाना चाहिए। अनुबंध को यह निर्दिष्ट करना चाहिए कि लागत अधिक होने, देरी या परिचालन चुनौतियों से संबंधित जोखिम किसे उठाना है। उदाहरण के लिए, मुंबई मेट्रो लाइन 3 परियोजना में भूमि अधिग्रहण और परियोजना देरी से जुड़े जोखिमों को विशेष प्रावधानों के माध्यम से प्रबंधित किया गया है।
वित्तीय शर्तें परियोजना की व्यवहार्यता सुनिश्चित करनी चाहिए, जिसमें राजस्व-साझेदारी मॉडल, निवेश प्रतिबद्धताएँ, और प्रदर्शन आधारित प्रोत्साहन शामिल हैं। सिनगर-जम्मू राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजना में वित्तीय शर्तों को सार्वजनिक निवेश और निजी क्षेत्र की लाभप्रदता के बीच संतुलन बनाने के लिए निर्दिष्ट किया गया है।
अनुबंध को संबंधित नियमों और मानकों का पालन करना चाहिए, जिसमें पर्यावरण कानून, सुरक्षा मानक, और स्थानीय विनियम शामिल हैं। उदाहरण के लिए, ग्रीन बिल्डिंग स्टैंडर्ड अक्सर अवसंरचना परियोजनाओं में स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए शामिल किए जाते हैं।
निगरानी तंत्र स्थापित किए जाने चाहिए ताकि प्रगति और प्रदर्शन का मूल्यांकन किया जा सके। अनुबंध में परियोजना के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए नियमित समीक्षा और ऑडिट की व्यवस्था होनी चाहिए।
निष्कर्ष
See lessविनियोग पूँजी निर्माण को प्रोत्साहित करता है, जो अर्थव्यवस्था की वृद्धि क्षमता को बढ़ाता है। सार्वजनिक और निजी निकायों के बीच रिआयत अनुबंध तैयार करते समय स्पष्ट उद्देश्य, जोखिम आवंटन, वित्तीय व्यवहार्यता, नियामक अनुपालन, और निगरानी महत्वपूर्ण कारक होते हैं।
समझाइए कि दीर्घकालिक पक्कनावधि (जेस्टेशन) आधारिक संरचना परियोजनाओं में निजी लोक भागीदारी (प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप) किस प्रकार अधारणीय (अन्सस्टेनेबल) देयताओं को भविष्य पर अन्तरित कर सकती है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि उत्तरोत्तर पीढ़ियों की सक्षमताओं के साथ कोई समझौता न हो, क्या व्यवस्थाएँ स्थापित की जानी चाहिए? (200 words) [UPSC 2014]
परिचय: दीर्घकालिक पक्कनावधि (जेस्टेशन) आधारिक संरचना परियोजनाओं में निजी लोक भागीदारी (PPP) मॉडल ने बुनियादी ढांचे के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालांकि, यदि इनका सही प्रबंधन न किया जाए, तो ये भविष्य की पीढ़ियों पर अधारणीय (अन्सस्टेनेबल) देयताओं का बोझ डाल सकती हैं। अधारणीय देयताओं के हस्Read more
परिचय: दीर्घकालिक पक्कनावधि (जेस्टेशन) आधारिक संरचना परियोजनाओं में निजी लोक भागीदारी (PPP) मॉडल ने बुनियादी ढांचे के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालांकि, यदि इनका सही प्रबंधन न किया जाए, तो ये भविष्य की पीढ़ियों पर अधारणीय (अन्सस्टेनेबल) देयताओं का बोझ डाल सकती हैं।
अधारणीय देयताओं के हस्तांतरण के जोखिम:
सतत PPP व्यवस्थाएँ सुनिश्चित करने के उपाय:
निष्कर्ष: भविष्य की पीढ़ियों पर अधारणीय देयताओं के हस्तांतरण से बचने के लिए, PPP व्यवस्थाओं में मजबूत संस्थागत ढांचे, पारदर्शी शासन, और समान जोखिम साझेदारी तंत्र स्थापित किए जाने चाहिए। यह दृष्टिकोण यह सुनिश्चित करेगा कि आधारिक संरचना का विकास सतत और भविष्य की पीढ़ियों के लिए लाभकारी हो।
See lessसार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) माडल के अधीन संयुक्त उपक्रमों के माध्यम से भारत में विमानपत्तनों के विकास का परीक्षण कीजिए। इस संबंध में प्राधिकरणों के समक्ष कौन सी चुनौतियां हैं ? (150 words) [UPSC 2017]
भारत में पीपीपी मॉडल के अधीन विमानपत्तनों के विकास: **1. पीपीपी के माध्यम से विकास: सफल परियोजनाएँ: भारत ने सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल के तहत कई विमानपत्तनों के विकास में सफलता देखी है। इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय विमानपत्तन (दिल्ली) और राजीव गांधी अंतर्राष्ट्रीय विमानपत्तन (हैदराबाद) इसकRead more
भारत में पीपीपी मॉडल के अधीन विमानपत्तनों के विकास:
**1. पीपीपी के माध्यम से विकास:
**2. चुनौतियाँ:
**1. भूमि अधिग्रहण की समस्याएँ:
**2. नियमिती बाधाएँ:
**3. आर्थिक स्थिरता:
**4. ऑपरेशनल दक्षता:
इस प्रकार, पीपीपी मॉडल ने भारत में विमानपत्तन विकास को आगे बढ़ाया है, लेकिन भूमि अधिग्रहण, नियामक बाधाएँ, वित्तीय स्थिरता, और ऑपरेशनल दक्षता जैसी चुनौतियों का समाधान आवश्यक है।
See less"तीव्रतर एवं समावेशी आर्थिक संवृद्धि के लिए आधारिक-अवसंरचना में निवेश आवश्यक है।" भारतीय अनुभव के परिप्रेक्ष्य में विवेचना कीजिए। (250 words) [UPSC 2021]
आधारिक-अवसंरचना में निवेश और समावेशी आर्थिक संवृद्धि आधारिक-अवसंरचना का महत्व: आधारिक-अवसंरचना में निवेश आर्थिक संवृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उत्पादन और वितरण क्षमताओं को बढ़ाता है, रोजगार सृजन करता है, और समग्र जीवन गुणवत्ता में सुधार करता है। इसके अलावा, यह आर्थिक विकास के लिए एक मजबूतRead more
आधारिक-अवसंरचना में निवेश और समावेशी आर्थिक संवृद्धि
आधारिक-अवसंरचना का महत्व: आधारिक-अवसंरचना में निवेश आर्थिक संवृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उत्पादन और वितरण क्षमताओं को बढ़ाता है, रोजगार सृजन करता है, और समग्र जीवन गुणवत्ता में सुधार करता है। इसके अलावा, यह आर्थिक विकास के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करता है।
भारतीय अनुभव:
चुनौतियाँ और सुझाव:
निष्कर्ष: भारत में आधारिक अवसंरचना में निवेश ने समावेशी आर्थिक संवृद्धि को प्रोत्साहित किया है, लेकिन असमान विकास और वित्तीय चुनौतियों को संबोधित करने के लिए सतत और समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है। यह निवेश न केवल आर्थिक विकास को तेज करता है बल्कि सामाजिक समावेश और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करता है।
See lessबुनियादी ढाँचागत परियोजनाओं में सार्वजनिक निजी साझेदारी (पी.पी.पी.) की आवश्यकता क्यों है ? भारत में रेलवे स्टेशनों के पुनर्विकास में पी.पी.पी. मॉडल की भूमिका का परीक्षण कीजिए । (150 words)[UPSC 2022]
बुनियादी ढाँचागत परियोजनाओं में पी.पी.पी. की आवश्यकता 1. वित्तीय संसाधन और विशेषज्ञता: पी.पी.पी. मॉडल से प्राइवेट सेक्टर की वित्तीय संसाधनों और विशेषज्ञता का लाभ मिलता है। सार्वजनिक धन की कमी के कारण, निजी क्षेत्र के निवेश और इनोवेटिव सॉल्यूशंस से परियोजनाओं को साकार किया जा सकता है। 2. जोखिम साझा कRead more
बुनियादी ढाँचागत परियोजनाओं में पी.पी.पी. की आवश्यकता
1. वित्तीय संसाधन और विशेषज्ञता: पी.पी.पी. मॉडल से प्राइवेट सेक्टर की वित्तीय संसाधनों और विशेषज्ञता का लाभ मिलता है। सार्वजनिक धन की कमी के कारण, निजी क्षेत्र के निवेश और इनोवेटिव सॉल्यूशंस से परियोजनाओं को साकार किया जा सकता है।
2. जोखिम साझा करना: पी.पी.पी. से जोखिम का साझा करने की सुविधा मिलती है। निजी क्षेत्र वित्तीय और परिचालन संबंधी जोखिम उठाता है, जिससे सार्वजनिक वित्त पर दबाव कम होता है।
3. दक्षता और नवाचार: निजी कंपनियाँ दक्षता और नवाचार को बढ़ावा देती हैं, जिससे परियोजनाओं का प्रबंधन और प्रदर्शन बेहतर होता है।
भारत में रेलवे स्टेशनों के पुनर्विकास में पी.पी.पी. मॉडल की भूमिका
1. आधुनिककरण: पी.पी.पी. मॉडल ने हबीबगंज (भोपाल) और गोरखपुर जैसे रेलवे स्टेशनों के पुनर्विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिससे स्टेशनों की सुविधाओं और सेवाओं में सुधार हुआ है।
2. निवेश और प्रबंधन: नई दिल्ली रेलवे स्टेशन का पुनर्विकास पी.पी.पी. मॉडल के तहत किया जा रहा है, जो निजी निवेश और पेशेवर प्रबंधन को सुनिश्चित करता है।
संक्षेप में, पी.पी.पी. बुनियादी ढाँचागत परियोजनाओं के लिए आवश्यक है क्योंकि यह वित्तीय संसाधन, जोखिम साझा करने और दक्षता में सुधार प्रदान करता है। भारत में रेलवे स्टेशनों के पुनर्विकास में यह मॉडल आधुनिककरण और प्रभावी प्रबंधन में सहायक है।
See lessपीएम गति शक्ति योजना के स्तम्भों को बताइये आपके विचार में क्या इससे प्रतियोगिता नेयाविष्ठ संयोजकता जनित होगी ? विवेचना कीजिए। (125 Words) [UPPSC 2022]
पीएम गति शक्ति योजना के स्तम्भ और उनकी विवेचना स्तम्भ: आधारभूत ढांचा: सड़कों, रेलवे, बंदरगाहों, और हवाई अड्डों का एकीकृत विकास, जो “राष्ट्रीय मास्टर प्लान” के तहत किया जाएगा। समन्वय और एकीकरण: विभिन्न मंत्रालयों और राज्य सरकारों के बीच समन्वय स्थापित करने के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग। प्रौद्योगRead more
पीएम गति शक्ति योजना के स्तम्भ और उनकी विवेचना
स्तम्भ:
विचार: पीएम गति शक्ति योजना से प्रतिस्पर्धात्मकता और संयोजकता में वृद्धि होने की संभावना है क्योंकि यह आधारभूत ढांचा और विभिन्न क्षेत्रों के बीच बेहतर समन्वय सुनिश्चित करती है। यह योजना क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर लॉजिस्टिक कुशलता को बढ़ाकर व्यापार और औद्योगिक विकास को प्रोत्साहित करेगी। सड़क, रेलवे, और अन्य परिवहन नेटवर्क के एकीकृत विकास से आपूर्ति श्रृंखला की दक्षता बढ़ेगी, जिससे आर्थिक विकास में तेजी आएगी।
इस प्रकार, योजना भारत में समग्र संयोजकता और प्रतिस्पर्धात्मकता को प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
See lessजवाहरलाल नेहरू पत्तन (JNP) भारत का पहला 100% लैंडलॉर्ड पोर्ट बन गया है। लैंडलॉर्ड पोर्ट मॉडल से आप क्या समझते हैं? पत्तनों के प्रबंधन में प्रयुक्त विभित्र मॉडल कौन-से हैं? (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
लैंडलॉर्ड पोर्ट मॉडल एक प्रमुख पत्तन प्रबंधन दृष्टिकोण है जिसमें पत्तन प्राधिकरण का मुख्य कार्य भूमि का मालिक रहना और अवसंरचना प्रदान करना होता है, जबकि पत्तन के संचालन और संचालन की जिम्मेदारी निजी कंपनियों पर होती है। इस मॉडल के तहत, पत्तन प्राधिकरण पत्तन क्षेत्र में भूमि, गोदाम, और बुनियादी ढाँचेRead more
लैंडलॉर्ड पोर्ट मॉडल एक प्रमुख पत्तन प्रबंधन दृष्टिकोण है जिसमें पत्तन प्राधिकरण का मुख्य कार्य भूमि का मालिक रहना और अवसंरचना प्रदान करना होता है, जबकि पत्तन के संचालन और संचालन की जिम्मेदारी निजी कंपनियों पर होती है। इस मॉडल के तहत, पत्तन प्राधिकरण पत्तन क्षेत्र में भूमि, गोदाम, और बुनियादी ढाँचे की सुविधा प्रदान करता है, जबकि निजी क्षेत्र के खिलाड़ी इन सुविधाओं का उपयोग करके कार्गो हैंडलिंग, लोडिंग और अनलोडिंग, और अन्य ऑपरेशनल कार्यों को अंजाम देते हैं।
लैंडलॉर्ड पोर्ट मॉडल की विशेषताएँ:
भूमि स्वामित्व: पत्तन प्राधिकरण भूमि का स्वामित्व बनाए रखता है और इसे विभिन्न निजी ऑपरेटरों को लीज पर देता है।
सुविधाएँ और अवसंरचना: प्राधिकरण पोर्ट की आधारभूत सुविधाओं और अवसंरचना जैसे डॉक, पुल, और वेयरहाउस प्रदान करता है।
निजी ऑपरेटर: निजी कंपनियाँ पत्तन संचालन, कार्गो हैंडलिंग, और संबंधित सेवाओं का प्रबंधन करती हैं।
पत्तनों के प्रबंधन में प्रयुक्त विभित्र मॉडल:
लैंडलॉर्ड मॉडल: जैसा कि उपर्युक्त वर्णित है, इसमें पत्तन प्राधिकरण भूमि का स्वामित्व रखता है और अवसंरचना प्रदान करता है, जबकि संचालन निजी कंपनियों द्वारा किया जाता है।
वेस्टर्न मॉडल: इसमें पत्तन प्राधिकरण और संचालन दोनों का नियंत्रण निजी कंपनियों के हाथ में होता है। निजी कंपनियाँ पूरे पत्तन का प्रबंधन करती हैं, जिसमें भूमि, अवसंरचना और संचालन शामिल हैं।
पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल: इस मॉडल में पत्तन प्राधिकरण और निजी कंपनियाँ मिलकर पत्तन के विभिन्न हिस्सों का प्रबंधन करती हैं। इसमें निवेश, संचालन, और जोखिम को साझा किया जाता है।
पब्लिक पोर्ट मॉडल: इसमें पत्तन प्राधिकरण पूरी तरह से पत्तन के संचालन और प्रबंधन का जिम्मा लेता है। यह मॉडल सरकारी नियंत्रण के तहत काम करता है और निजी क्षेत्र की भागीदारी सीमित होती है।
जवाहरलाल नेहरू पत्तन (JNP) के 100% लैंडलॉर्ड पोर्ट बनने का मतलब है कि इस पत्तन में भूमि का स्वामित्व और अवसंरचना प्रबंधन पत्तन प्राधिकरण के हाथ में रहेगा, जबकि संचालन और कार्गो हैंडलिंग जैसी गतिविधियाँ निजी कंपनियों द्वारा की जाएंगी। यह मॉडल पत्तन के विकास और कार्यक्षमता को सुधारने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, जो कि दक्षता, प्रतिस्पर्धा और निवेश को प्रोत्साहित करता है।
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