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“स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं में महिलाओं के लिए सीटों के आरक्षण का भारत के राजनीतिक प्रक्रम के पितृतंत्रात्मक अभिलक्षण पर एक सीमित प्रभाव पड़ा है।" टिप्पणी कीजिए । (250 words) [UPSC 2019]
भारत में स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं में महिलाओं के लिए सीटों के आरक्षण के बावजूद, इसका पितृतंत्रात्मक राजनीतिक प्रक्रम पर सीमित प्रभाव पड़ा है। इस स्थिति की विवेचना निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से की जा सकती है: 1. आरक्षण की प्रक्रिया और प्रभाव: स्थानीय स्वशासन के लिए महिलाओं के लिए 33% सीटों का आरRead more
भारत में स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं में महिलाओं के लिए सीटों के आरक्षण के बावजूद, इसका पितृतंत्रात्मक राजनीतिक प्रक्रम पर सीमित प्रभाव पड़ा है। इस स्थिति की विवेचना निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से की जा सकती है:
1. आरक्षण की प्रक्रिया और प्रभाव:
स्थानीय स्वशासन के लिए महिलाओं के लिए 33% सीटों का आरक्षण संविधान के 73वें और 74वें संशोधनों के तहत किया गया है। इसका उद्देश्य महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी को बढ़ाना और उन्हें निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में शामिल करना है। हालांकि, आरक्षण ने महिलाओं की संख्या में वृद्धि की है, लेकिन यह पितृतंत्रात्मक संरचना के प्रभाव को पूरी तरह समाप्त नहीं कर पाया है।
2. पितृतंत्रात्मक बाधाएँ:
अनेक मामलों में, आरक्षित सीटों पर महिलाओं को नामांकित किया जाता है, लेकिन वास्तविक राजनीतिक शक्ति उनके हाथ में नहीं होती। अक्सर, महिलाओं को पितृसत्तात्मक परिवारों द्वारा उम्मीदवार के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जहां वे खुद चुनावी प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभाने की बजाय, परिवार के पुरुष सदस्य की ओर से प्रतिनिधित्व करती हैं। इस प्रकार, महिला आरक्षण के बावजूद, पारंपरिक पितृतंत्रात्मक संरचनाएँ कायम रहती हैं।
3. सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव:
महिलाओं के लिए आरक्षण के बावजूद, भारतीय समाज में गहरी जड़ी हुई पितृसत्तात्मक धारणाएँ और सांस्कृतिक मान्यताएँ महिलाओं की प्रभावी भागीदारी में बाधक बनती हैं। इन सामाजिक बाधाओं के कारण, महिलाओं की वास्तविक स्थिति में सुधार नहीं हो पाता और उनके निर्णय लेने की क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
4. प्रशासनिक और कानूनी समर्थन की कमी:
स्थानीय स्वशासन संस्थाओं में महिलाओं को सशक्त करने के लिए पर्याप्त प्रशासनिक और कानूनी समर्थन की कमी भी है। प्रशिक्षण, संसाधनों और अधिकारों की कमी महिलाओं की राजनीतिक प्रभावशीलता को सीमित करती है।
इस प्रकार, जबकि महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण एक महत्वपूर्ण कदम है, पितृतंत्रात्मक अवशेष और सामाजिक बाधाएँ महिलाओं की राजनीतिक स्थिति पर सीमित प्रभाव डालती हैं। इन समस्याओं के समाधान के लिए और अधिक सशक्तिकरण और समर्थन की आवश्यकता है।
See lessभारत में स्थानीय शासन के एक भाग के रूप में पंचायत प्रणाली के महत्त्व का आकलन कीजिए। विकास परियोजनाओं के वित्तीयन के लिए पंचायतें सरकारी अनुदानों के अलावा और किन स्रोतों को खोज सकती है? (250 words) [UPSC 2018]
भारत में पंचायत प्रणाली का महत्व पंचायत प्रणाली भारत में स्थानीय शासन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो स्थानीय स्वशासन और स्थानीय विकास को सशक्त बनाता है। इसके महत्व को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है: 1. स्थानीय स्वशासन: पंचायतें स्थानीय लोगों को निर्णय लेने और सुविधाओं की योजना बनानेRead more
भारत में पंचायत प्रणाली का महत्व
पंचायत प्रणाली भारत में स्थानीय शासन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो स्थानीय स्वशासन और स्थानीय विकास को सशक्त बनाता है। इसके महत्व को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है:
1. स्थानीय स्वशासन: पंचायतें स्थानीय लोगों को निर्णय लेने और सुविधाओं की योजना बनाने में शामिल करती हैं, जिससे स्थानीय समस्याओं का स्थानीय स्तर पर समाधान संभव होता है। यह लोकतंत्र की गहराई को बढ़ाती है और लोगों को सशक्त बनाती है।
2. विकास की गति में सुधार: पंचायतें स्थानीय विकास परियोजनाओं के कार्यान्वयन में सहायक होती हैं। ये परियोजनाएँ सामुदायिक आवश्यकताओं के अनुरूप होती हैं, जिससे विकास की गति और प्रभावशीलता में सुधार होता है।
3. समुदाय की भागीदारी: पंचायतों के माध्यम से समुदाय की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की जाती है। इससे स्थानीय मुद्दों और समस्याओं को समझा और सुलझाया जा सकता है, और विकास योजनाओं को बेहतर तरीके से लागू किया जा सकता है।
विकास परियोजनाओं के वित्तीयन के वैकल्पिक स्रोत:
1. स्थानीय संसाधनों का उपयोग: पंचायतें स्थानीय संसाधनों जैसे खनिज, वन उत्पाद, और जल संसाधनों का उपयोग कर सकती हैं। ये संसाधन स्थानीय राजस्व का एक महत्वपूर्ण स्रोत हो सकते हैं।
2. सार्वजनिक-निजी भागीदारी: सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल को अपनाकर, पंचायतें निजी कंपनियों और उद्यमियों के साथ सहयोग कर सकती हैं। इससे विकास परियोजनाओं के लिए अतिरिक्त वित्तीय संसाधन उपलब्ध हो सकते हैं।
3. स्थानीय कर और शुल्क: पंचायतें स्थानीय करों और सेवा शुल्क को लागू कर सकती हैं। जैसे व्यापार लाइसेंस शुल्क, जल उपयोग शुल्क, और पार्किंग शुल्क से स्थानीय राजस्व बढ़ाया जा सकता है।
4. वित्तीय सहायता और अनुदान: केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा वित्तीय सहायता और अनुदान के अलावा, पंचायतें अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, एनजीओ, और फाउंडेशनों से भी वित्तीय सहायता प्राप्त कर सकती हैं।
5. सामुदायिक योगदान: स्वयंसेवी सेवाओं और सामुदायिक योगदान को बढ़ावा देकर, पंचायतें विकास परियोजनाओं के लिए अतिरिक्त संसाधन जुटा सकती हैं।
उपसंहार: पंचायत प्रणाली भारत में स्थानीय विकास और स्वशासन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके प्रभावी संचालन और वित्तीय स्थिरता के लिए, पंचायतें सरकारी अनुदानों के अलावा स्थानीय संसाधनों, सार्वजनिक-निजी भागीदारी, स्थानीय कर और शुल्क, तथा अन्य वैकल्पिक स्रोतों का उपयोग कर सकती हैं।
See lessसूचना और संप्रेषण प्रौद्योगिकी (आई.सी.टी.) आधारित परियोजनाओं /कार्यक्रमों का कार्यान्वयन आम तौर पर कुछ विशेष महत्वपूर्ण कारकों की दृष्टि से ठीक नहीं रहता है। इन कारकों की पहचान कीजिए और उनके प्रभावी कार्यान्वयन के उपाय सुझाइए । (150 words) [UPSC 2019]
सूचना और संप्रेषण प्रौद्योगिकी (आई.सी.टी.) आधारित परियोजनाओं के कार्यान्वयन में आमतौर पर निम्नलिखित महत्वपूर्ण कारक प्रभावित करते हैं: 1. संसाधनों की कमी: आई.सी.टी. परियोजनाओं के लिए आवश्यक वित्तीय और तकनीकी संसाधनों की कमी अक्सर कार्यान्वयन में बाधा डालती है। उपाय: परियोजनाओं के लिए स्थिर वित्तीय आRead more
सूचना और संप्रेषण प्रौद्योगिकी (आई.सी.टी.) आधारित परियोजनाओं के कार्यान्वयन में आमतौर पर निम्नलिखित महत्वपूर्ण कारक प्रभावित करते हैं:
1. संसाधनों की कमी:
आई.सी.टी. परियोजनाओं के लिए आवश्यक वित्तीय और तकनीकी संसाधनों की कमी अक्सर कार्यान्वयन में बाधा डालती है।
उपाय: परियोजनाओं के लिए स्थिर वित्तीय आवंटन और संसाधन प्रबंधन की योजना बनानी चाहिए।
2. तकनीकी जटिलता:
नई तकनीकी प्रणालियों को अपनाना और उन्हें एकीकृत करना जटिल हो सकता है, जिससे प्रौद्योगिकी की उचित तैनाती में समस्याएँ आती हैं।
उपाय: प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण कार्यक्रम आयोजित किए जाएँ ताकि संबंधित कर्मी तकनीकी प्रणालियों को समझ सकें और सही तरीके से उपयोग कर सकें।
3. डिजिटल साक्षरता की कमी:
लोगों की डिजिटल साक्षरता की कमी के कारण आई.सी.टी. परियोजनाओं का प्रभाव सीमित हो सकता है।
उपाय: व्यापक डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम और जागरूकता अभियान चलाए जाएँ।
4. प्रवर्तन और निगरानी की कमी:
परियोजनाओं की प्रगति पर निगरानी और प्रवर्तन की कमी से कार्यान्वयन में ढिलाई होती है।
उपाय: सख्त निगरानी तंत्र और प्रगति रिपोर्टिंग प्रणाली स्थापित की जानी चाहिए।
इन उपायों के माध्यम से आई.सी.टी. आधारित परियोजनाओं का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जा सकता है।
See lessनागरिक चार्टर संगठनात्मक पारदर्शिता एवं उत्तरदायित्व का एक आदर्श उपकरण है, परन्तु इसकी अपनी परिसीमाएँ हैं। परिसीमाओं की पहचान कीजिए तथा नागरिक चार्टर की अधिक प्रभाविता के लिए उपायों का सुझाव दीजिए। (250 words) [UPSC 2018]
नागरिक चार्टर: परिसीमाएँ और प्रभाविता में सुधार के उपाय नागरिक चार्टर (Citizen's Charter) संगठनों में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने का एक महत्वपूर्ण उपकरण है। यह चार्टर नागरिकों को सेवा मानक, प्रक्रिया, और उपलब्ध सेवाओं के बारे में जानकारी प्रदान करता है। हालांकि, इसके कुछ महत्वपूर्ण परिRead more
नागरिक चार्टर: परिसीमाएँ और प्रभाविता में सुधार के उपाय
नागरिक चार्टर (Citizen’s Charter) संगठनों में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने का एक महत्वपूर्ण उपकरण है। यह चार्टर नागरिकों को सेवा मानक, प्रक्रिया, और उपलब्ध सेवाओं के बारे में जानकारी प्रदान करता है। हालांकि, इसके कुछ महत्वपूर्ण परिसीमाएँ भी हैं:
1. लागू होने की सीमा: नागरिक चार्टर की नियमित निगरानी और निष्पादन की कमी के कारण यह सभी क्षेत्रों में प्रभावी नहीं होता। केवल कुछ प्रमुख विभागों में ही इसकी प्रभावशीलता देखी जाती है।
2. बौद्धिकता की कमी: कई बार चार्टर में अस्पष्ट और सारांश जानकारी होती है, जिससे नागरिकों को सेवाओं के अधिकार और प्रक्रियाओं को समझने में कठिनाई होती है।
3. शिकायत निवारण: नागरिक चार्टर में शिकायत निवारण की प्रक्रिया अक्सर लंबी और जटिल होती है, जिससे नागरिकों को समस्या समाधान में समस्याएँ आती हैं।
4. कार्यान्वयन की कमी: चार्टर के सुपरविजन और समय पर लागू होने की कमी के कारण, संगठनों में सच्ची पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित नहीं हो पाती।
प्रभाविता के उपाय:
1. नियमित समीक्षा और निगरानी: नागरिक चार्टर की नियमित समीक्षा और प्रभावशीलता की निगरानी के लिए स्वतंत्र अधिकारियों या समितियों का गठन किया जाना चाहिए।
2. स्पष्ट और संक्षिप्त जानकारी: चार्टर को स्पष्ट, संक्षिप्त, और समझने योग्य भाषा में तैयार किया जाना चाहिए, ताकि नागरिक आसानी से सेवाओं और अधिकारों को समझ सकें।
3. प्रभावी शिकायत निवारण: त्वरित और पारदर्शी शिकायत निवारण तंत्र विकसित किया जाना चाहिए, जिससे नागरिकों की समस्याओं का त्वरित समाधान किया जा सके।
4. प्रशिक्षण और जागरूकता: सरकारी और निजी संगठनों को नागरिक चार्टर की प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करने चाहिए।
5. इलेक्ट्रॉनिक और ऑनलाइन प्लेटफार्म: नागरिक चार्टर को ऑनलाइन और डिजिटल प्लेटफार्मों पर उपलब्ध कराया जाना चाहिए, जिससे नागरिक आसानी से सूचना प्राप्त कर सकें और शिकायतें दर्ज कर सकें।
इन उपायों को लागू करके नागरिक चार्टर की प्रभावशीलता को बढ़ाया जा सकता है, जिससे संगठनात्मक पारदर्शिता और उत्तरदायित्व को बेहतर तरीके से सुनिश्चित किया जा सके।
See less"भारत में स्थानीय स्वशासन पद्धति, शासन का प्रभावी साधन साबित नहीं हुई है।" इस कथन का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए तथा स्थिति में सुधार के लिए अपने विचार प्रस्तुत कीजिए। (150 words) [UPSC 2017]
स्थानीय स्वशासन पद्धति की प्रभावशीलता: समालोचनात्मक परीक्षण स्थानीय स्वशासन (Panchayati Raj और नगर निगम) भारत में शासन का प्रभावी साधन बनने में कई चुनौतियों का सामना कर रहा है: 1. वित्तीय संसाधनों की कमी: स्थानीय निकायों को अक्सर अपर्याप्त बजट और संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ता है, जिससे वे बुनिRead more
स्थानीय स्वशासन पद्धति की प्रभावशीलता: समालोचनात्मक परीक्षण
स्थानीय स्वशासन (Panchayati Raj और नगर निगम) भारत में शासन का प्रभावी साधन बनने में कई चुनौतियों का सामना कर रहा है:
1. वित्तीय संसाधनों की कमी: स्थानीय निकायों को अक्सर अपर्याप्त बजट और संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ता है, जिससे वे बुनियादी सेवाएँ और विकास योजनाएँ प्रभावी ढंग से लागू नहीं कर पाते।
2. शक्तियों का संकुचन: स्थानीय निकायों को आवश्यक शक्ति और स्वायत्तता नहीं दी गई है। राज्य सरकारें कई बार स्थानीय स्वायत्तता पर अंकुश लगाती हैं।
3. प्रशासनिक अक्षमता: स्थानीय निकायों में प्रशासनिक क्षमता और तकनीकी विशेषज्ञता की कमी होती है, जो उनकी कार्यक्षमता को प्रभावित करती है।
स्थिति में सुधार के सुझाव:
1. वित्तीय स्वायत्तता: स्थानीय निकायों को अधिक वित्तीय स्वायत्तता और संसाधन प्रदान किए जाएं, जैसे कि केंद्रीय और राज्य वित्तीय सहायता।
2. शक्तियों का विकेंद्रीकरण: स्थानीय निकायों को अधिक शक्ति और निर्णय लेने की स्वतंत्रता दी जाए।
3. क्षमता निर्माण: प्रशासनिक और तकनीकी प्रशिक्षण प्रदान कर स्थानीय निकायों की क्षमता और कार्यकुशलता को बढ़ाया जाए।
इन सुधारों से स्थानीय स्वशासन पद्धति को अधिक प्रभावी और नागरिकों के प्रति जवाबदेह बनाया जा सकता है।
See lessजनता के प्रति सरकार की जवाबदेही स्थापित करने में लोक लेखा समिति की भूमिका की विवेचना कीजिए। (150 words) [UPSC 2017]
लोक लेखा समिति की भूमिका और जवाबदेही स्थापित करना लोक लेखा समिति (Public Accounts Committee - PAC), संसद की एक महत्वपूर्ण समिति है, जिसकी मुख्य भूमिका सरकार की वित्तीय रिपोर्टों और खर्चों की समीक्षा करना है। यह समिति वित्तीय अनुशासन और जवाबदेही सुनिश्चित करती है, जिससे जनता के प्रति सरकार की पारदर्शRead more
लोक लेखा समिति की भूमिका और जवाबदेही स्थापित करना
लोक लेखा समिति (Public Accounts Committee – PAC), संसद की एक महत्वपूर्ण समिति है, जिसकी मुख्य भूमिका सरकार की वित्तीय रिपोर्टों और खर्चों की समीक्षा करना है। यह समिति वित्तीय अनुशासन और जवाबदेही सुनिश्चित करती है, जिससे जनता के प्रति सरकार की पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ती है।
1. वित्तीय जांच: लोक लेखा समिति ऑडिट रिपोर्टों की जांच करती है और सुनिश्चित करती है कि सरकारी खर्चें संविधान और कानूनों के अनुसार हैं।
2. जवाबदेही: यह समिति सरकारी अधिकारियों और मंत्रालयों को जवाबदेह ठहराने के लिए सिफारिशें प्रस्तुत करती है, जैसे कि हाल की रिपोर्ट में पुनर्वितरण और अनियमितताओं पर ध्यान देने की आवश्यकता बताई गई है।
3. सार्वजनिक जागरूकता: इसके द्वारा किए गए खुलासे और सिफारिशें जनता के बीच जागरूकता बढ़ाती हैं और सरकारी कार्यों में पारदर्शिता सुनिश्चित करती हैं।
इस प्रकार, लोक लेखा समिति सरकारी खर्चों और कार्यों की समीक्षा करके सरकार की जवाबदेही स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
See lessभारत में स्थानीय निकायों की सुदृढ़ता एवं संपोषिता 'प्रकार्य, कार्यकर्ता व कोष' की अपनी रचनात्मक प्रावस्था से 'प्रकार्यात्मकता' की समकालिक अवस्था की ओर स्थानान्तरित हुई हाल के समय में प्रकार्यात्मकता की दृष्टि से स्थानीय निकायों द्वारा सामना की जा रही अहम् चुनौतियों को आलोकित कीजिए। (250 words) [UPSC 2020]
भारत में स्थानीय निकायों की सुदृढ़ता और संपोषिता को सुनिश्चित करने के लिए 'प्रकार्य, कार्यकर्ता व कोष' की रचनात्मक व्यवस्था से 'प्रकार्यात्मकता' की ओर स्थानांतरित किया गया है। हालांकि, इस प्रक्रिया के दौरान स्थानीय निकायों को कई महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। मुख्य चुनौतियाँ: आर्थिकRead more
भारत में स्थानीय निकायों की सुदृढ़ता और संपोषिता को सुनिश्चित करने के लिए ‘प्रकार्य, कार्यकर्ता व कोष’ की रचनात्मक व्यवस्था से ‘प्रकार्यात्मकता’ की ओर स्थानांतरित किया गया है। हालांकि, इस प्रक्रिया के दौरान स्थानीय निकायों को कई महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
मुख्य चुनौतियाँ:
आर्थिक संसाधनों की कमी: स्थानीय निकायों को स्थिर और पर्याप्त कोष की कमी का सामना करना पड़ता है। निधियों की अपर्याप्तता और वित्तीय प्रबंधन की कमी के कारण वे आवश्यक बुनियादी ढांचे और सेवाओं को प्रभावी ढंग से संचालित नहीं कर पाते हैं।
प्रबंधन और प्रशिक्षण:कर्मचारी स्थानीय निकायों में कर्मचारी की कमी और प्रशिक्षण की कमी से कार्यप्रणाली प्रभावित होती है। कर्मचारियों की अपर्याप्त संख्या और क्षमता की कमी के कारण काम की गुणवत्ता में गिरावट आती है।
सक्षम अधिकार और स्वायत्तता: स्थानीय निकायों को अपनी योजनाओं और कार्यों को स्वतंत्र रूप से लागू करने में कठिनाई होती है, क्योंकि कई बार राज्य और केंद्र सरकार की नीतियाँ और निर्देश स्थानीय निकायों की स्वायत्तता को प्रभावित करते हैं।
सामाजिक समावेशिता: स्थानीय निकायों को समुदायों की विविधता को समावेशी तरीके से संबोधित करने में कठिनाई होती है। विभिन्न जातियों, धर्मों, और सामाजिक वर्गों के बीच समान वितरण और प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण होता है।
भ्रष्टाचार और पारदर्शिता: भ्रष्टाचार और पारदर्शिता की कमी स्थानीय निकायों की कार्यप्रणाली को प्रभावित करती है। संसाधनों का दुरुपयोग और प्रशासनिक विफलता से विकास योजनाओं की सफलता बाधित होती है।
इन चुनौतियों को संबोधित करने के लिए, स्थानीय निकायों को वित्तीय प्रबंधन में सुधार, कर्मचारियों के प्रशिक्षण और विकास, और अधिक स्वायत्तता प्राप्त करने के लिए प्रयास करना होगा। इसके साथ ही, नागरिक भागीदारी और पारदर्शिता को बढ़ावा देने से स्थानीय प्रशासन की क्षमता और प्रभावशीलता में सुधार किया जा सकता है।
See less"चौथी औद्योगिक क्रांति (डिजिटल क्रांति) के प्रादुर्भाव ने ई-गवर्नेन्स को सरकार का अविभाज्य अंग बनाने में पहल की है"। विवेचन कीजिए। (150 words) [UPSC 2020]
चौथी औद्योगिक क्रांति, जिसे डिजिटल क्रांति भी कहा जाता है, ने ई-गवर्नेन्स को सरकार का अनिवार्य हिस्सा बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। डिजिटल क्रांति के प्रभाव: प्रभावशीलता और पारदर्शिता: ई-गवर्नेन्स के माध्यम से सरकारी सेवाओं का डिजिटलीकरण ने प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित और पारदर्शी बनाया है। यहRead more
चौथी औद्योगिक क्रांति, जिसे डिजिटल क्रांति भी कहा जाता है, ने ई-गवर्नेन्स को सरकार का अनिवार्य हिस्सा बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
डिजिटल क्रांति के प्रभाव:
प्रभावशीलता और पारदर्शिता: ई-गवर्नेन्स के माध्यम से सरकारी सेवाओं का डिजिटलीकरण ने प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित और पारदर्शी बनाया है। यह भ्रष्टाचार और देरी को कम करता है, जिससे नागरिकों को त्वरित और प्रभावी सेवाएँ प्राप्त होती हैं।
सुलभता और समावेशिता: डिजिटल प्लेटफॉर्म्स ने सरकार की सेवाओं को दूरदराज के क्षेत्रों तक पहुँचाने में मदद की है। इससे नागरिकों के लिए सरकारी योजनाओं और सूचनाओं तक पहुँच आसान हो गई है।
डेटा विश्लेषण और नीति निर्माण: डिजिटल क्रांति ने डेटा संग्रहण और विश्लेषण को सरल बना दिया है, जिससे सरकार को सटीक जानकारी पर आधारित नीतियों को लागू करने में सहायता मिलती है।
सुरक्षा और निगरानी: आधुनिक तकनीकें सुरक्षा और निगरानी तंत्र को मजबूत बनाती हैं, जिससे सार्वजनिक सुरक्षा और अपराध नियंत्रण में सुधार होता है।
इन पहलुओं ने ई-गवर्नेन्स को न केवल एक प्रशासनिक टूल के रूप में बल्कि सरकार की कार्यप्रणाली का अविभाज्य अंग बना दिया है, जिससे सार्वजनिक सेवाओं की गुणवत्ता और पहुँच में सुधार हुआ है।
See less"आर्थिक प्रदर्शन के लिए संस्थागत गुणवत्ता एक निर्णायक चालक है"। इस संदर्भ में लोकतंत्र को सुदृढ़ करने के लिए सिविल सेवा में सुधारों के सुझाव दीजिए। (150 words) [UPSC 2020]
संस्थागत गुणवत्ता आर्थिक प्रदर्शन को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, और सिविल सेवाओं की दक्षता और प्रभावशीलता लोकतंत्र की मजबूती में योगदान करती है। लोकतंत्र को सुदृढ़ करने के लिए सिविल सेवा में निम्नलिखित सुधारों पर ध्यान देना आवश्यक है: पारदर्शिता और जवाबदेही: सिविल सेवकों की नियुक्Read more
संस्थागत गुणवत्ता आर्थिक प्रदर्शन को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, और सिविल सेवाओं की दक्षता और प्रभावशीलता लोकतंत्र की मजबूती में योगदान करती है। लोकतंत्र को सुदृढ़ करने के लिए सिविल सेवा में निम्नलिखित सुधारों पर ध्यान देना आवश्यक है:
पारदर्शिता और जवाबदेही: सिविल सेवकों की नियुक्तियों, पदोन्नतियों, और कार्यों में पारदर्शिता सुनिश्चित की जानी चाहिए। इसके लिए स्वतंत्र निगरानी तंत्र और उत्तरदायित्व की स्पष्ट प्रक्रियाएँ लागू करनी चाहिए।
प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण: सिविल सेवकों के लिए निरंतर प्रशिक्षण और कौशल विकास कार्यक्रमों की व्यवस्था करनी चाहिए, ताकि वे बदलती परिस्थितियों और तकनीकी परिवर्तनों से निपट सकें।
आवश्यक सुधार और पेशेवरता: सिविल सेवा की कार्यशैली में सुधार के लिए नियमों और प्रक्रियाओं की नियमित समीक्षा और आवश्यक बदलाव करना चाहिए। पेशेवरता को बढ़ावा देने के लिए उच्च मानक और आचार संहिता को लागू करना चाहिए।
डिजिटलीकरण और तकनीकी सुधार: कार्यप्रणालियों को डिजिटलीकरण के माध्यम से सुव्यवस्थित करना और आधुनिक तकनीकी उपकरणों का उपयोग करना चाहिए, जिससे कार्य दक्षता और जवाबदेही में सुधार हो सके।
इन सुधारों से सिविल सेवाओं की गुणवत्ता और प्रभावशीलता बढ़ेगी, जिससे लोकतंत्र की मजबूत नींव तैयार होगी और आर्थिक प्रदर्शन में सुधार होगा।
See lessनगर निगमों की सीमित राजस्व सूजन क्षमता के कारण राज्यों के करों और अनुदानों पर उनकी निर्भरता बढ़ गई है। इस प्रवृत्ति से जुड़े हुए मुद्दे क्या हैं? भारत में नगर निगमों की वित्तीय स्थिति में सुधार के लिए किन उपायों की मावश्यकता है? (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
नगर निगमों की सीमित राजस्व सूजन क्षमता के कारण राज्यों के करों और अनुदानों पर निर्भरता बढ़ गई है, जिससे कई मुद्दे उत्पन्न हुए हैं: वित्तीय आत्मनिर्भरता की कमी: नगर निगमों की राजस्व-सृजन क्षमताएँ सीमित होती हैं, जिससे उन्हें राज्यों और केंद्र से अनुदानों पर निर्भर रहना पड़ता है। इससे स्थानीय विकास परRead more
नगर निगमों की सीमित राजस्व सूजन क्षमता के कारण राज्यों के करों और अनुदानों पर निर्भरता बढ़ गई है, जिससे कई मुद्दे उत्पन्न हुए हैं:
वित्तीय आत्मनिर्भरता की कमी: नगर निगमों की राजस्व-सृजन क्षमताएँ सीमित होती हैं, जिससे उन्हें राज्यों और केंद्र से अनुदानों पर निर्भर रहना पड़ता है। इससे स्थानीय विकास परियोजनाओं और सेवाओं की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
वेतन और पेंशन का दबाव: नगर निगमों को कर्मचारियों के वेतन और पेंशन के लिए सीमित संसाधनों का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी संचालन क्षमता प्रभावित होती है।
विकास कार्यों की कमी: अनुदानों पर निर्भरता से नगर निगमों को स्थायी और प्रभावी विकास योजनाओं को लागू करने में कठिनाई होती है, जो स्थानीय बुनियादी ढांचे के विकास को प्रभावित करता है।
प्रशासनिक दक्षता की कमी: लगातार वित्तीय सहायता की आवश्यकता से प्रशासनिक दक्षता और स्वायत्तता में कमी आती है, जिससे निर्णय लेने की प्रक्रियाएँ धीमी और जटिल हो जाती हैं।
नगर निगमों की वित्तीय स्थिति में सुधार के लिए निम्नलिखित उपाय आवश्यक हैं:
स्थानीय कराधान सुधार: नगर निगमों को नए स्रोतों से राजस्व उत्पन्न करने के लिए स्वायत्तता दी जानी चाहिए। जैसे, स्थानीय करों की दरों को बढ़ाना और नई कर नीतियों को अपनाना।
प्रौद्योगिकी का उपयोग: कर संग्रहण और वित्तीय प्रबंधन के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग बढ़ाना चाहिए, जैसे कि ई-गवर्नेंस और डिजिटल भुगतान प्रणालियाँ।
स्थायी वित्तीय योजना: नगर निगमों को लंबी अवधि की वित्तीय योजनाएँ तैयार करने और संसाधनों के प्रबंधन में सुधार करने की आवश्यकता है।
वित्तीय सुधार आयोग: राज्यों द्वारा वित्तीय सुधार आयोगों का गठन किया जा सकता है जो नगर निगमों के वित्तीय प्रबंधन को सुधारने के लिए सुझाव दे सकें।
केंद्र और राज्य सहायता: केंद्र और राज्य सरकारों को नगर निगमों के लिए अनुदान और सहायता की प्रक्रिया को पारदर्शी और दक्ष बनाना चाहिए, ताकि फंड की आवंटन की प्रक्रिया में सुधार हो सके।
इन उपायों से नगर निगमों को अधिक वित्तीय स्वतंत्रता और संसाधनों की स्थिरता मिलेगी, जिससे स्थानीय सेवाओं और विकास कार्यों में सुधार संभव होगा।
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