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"विभिन प्रतियोगी क्षेत्रों और साझेदारों के मध्य नीतिगत बिरोधाभासों के परिणामस्वरूप पर्यावरण के संरक्षण तथा उसके निम्नीकरण की रोकथाम' अपर्याप्त रही है।" सुसंगत उदाहरणों सहित टिप्पणी कीजिए। (150 words) [UPSC 2018]
नीतिगत विरोधाभासों का पर्यावरण संरक्षण पर प्रभाव 1. उद्योग और पर्यावरण संरक्षण: विभिन्न प्रतियोगी क्षेत्रों के बीच नीतिगत विरोधाभासों के परिणामस्वरूप पर्यावरण संरक्षण में कमी आई है। उदाहरण के तौर पर, भारत में खनन और औद्योगिकीकरण की नीतियां अक्सर पर्यावरण नियमों के साथ टकराती हैं। मणिपुर में खनन परियRead more
नीतिगत विरोधाभासों का पर्यावरण संरक्षण पर प्रभाव
1. उद्योग और पर्यावरण संरक्षण: विभिन्न प्रतियोगी क्षेत्रों के बीच नीतिगत विरोधाभासों के परिणामस्वरूप पर्यावरण संरक्षण में कमी आई है। उदाहरण के तौर पर, भारत में खनन और औद्योगिकीकरण की नीतियां अक्सर पर्यावरण नियमों के साथ टकराती हैं। मणिपुर में खनन परियोजनाओं ने जलवायु परिवर्तन और स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है।
2. कृषि और जलवायु परिवर्तन: कृषि नीतियां और जलवायु संरक्षण के बीच असंगति के कारण जलवायु परिवर्तन पर प्रभाव पड़ा है। पंजाब और हरियाणा में अत्यधिक फसल अवशेष जलाना नीतिगत विरोधाभास का परिणाम है, जिससे वायु प्रदूषण बढ़ा और पर्यावरणीय गुणवत्ता पर असर पड़ा।
3. शहरीकरण और हरित क्षेत्रों: शहरीकरण की नीतियों और हरित क्षेत्रों के संरक्षण के बीच विरोधाभास भी पर्यावरणीय नुकसान का कारण बना है। दिल्ली में मेट्रो परियोजनाओं और हरित पट्टों के बीच की नीति असंगति ने वृक्षारोपण और वायु गुणवत्ता को प्रभावित किया।
ये उदाहरण दर्शाते हैं कि नीतिगत विरोधाभासों के कारण पर्यावरण संरक्षण और उसके निम्नीकरण की दिशा में प्रभावी कदम उठाने में चुनौतियां उत्पन्न होती हैं।
See lessक्या आप इस मत से सहमत हैं कि विकास हेतु दाता अभिकरणों पर बढ़ती निर्भरता विकास प्रक्रिया में सामुदायिक भागीदारी के महत्त्व को घटाती है? अपने उत्तर के औचित्य को सिद्ध कीजिए । (250 words) [UPSC 2022]
जर्मनी की जिम्मेदारी: दो विश्व युद्धों का कारण बनने में जर्मनी को दो विश्व युद्धों के कारणों में जिम्मेदार ठहराने का प्रश्न जटिल और बहु-आयामी है। **1. पहला विश्व युद्ध (1914-1918) पहले विश्व युद्ध में जर्मनी की भूमिका महत्वपूर्ण लेकिन एकमात्र नहीं थी। जर्मनी ने ऑस्ट्रिया-हंगरी को गारंटी दी, जो आर्कडRead more
जर्मनी की जिम्मेदारी: दो विश्व युद्धों का कारण बनने में
जर्मनी को दो विश्व युद्धों के कारणों में जिम्मेदार ठहराने का प्रश्न जटिल और बहु-आयामी है।
**1. पहला विश्व युद्ध (1914-1918)
पहले विश्व युद्ध में जर्मनी की भूमिका महत्वपूर्ण लेकिन एकमात्र नहीं थी। जर्मनी ने ऑस्ट्रिया-हंगरी को गारंटी दी, जो आर्कड्यूक फ्रांज फर्डिनेंड की हत्या के बाद युद्ध की ओर ले गई। जर्मनी का श्लीफेन योजना, जो फ्रांस पर त्वरित आक्रमण का प्रस्ताव था, युद्ध को बढ़ाने में एक प्रमुख कारण था। हालांकि, यह युद्ध कई देशों की गठबंधनों और जटिल कूटनीतिक संघर्षों का परिणाम था।
**2. दूसरा विश्व युद्ध (1939-1945)
दूसरे विश्व युद्ध में जर्मनी की भूमिका अधिक प्रत्यक्ष थी। एडॉल्फ हिटलर की नेतृत्व में, जर्मनी ने आक्रामक विस्तारवादी नीतियों को अपनाया, जिसमें पोलैंड पर आक्रमण प्रमुख था, जिसने युद्ध को शुरू किया। हिटलर की नाज़ी विचारधारा और अधिकारी शासन ने युद्ध के दौरान व्यापक उत्पीड़न और नरसंहार को जन्म दिया।
**3. वर्तमान संदर्भ और विश्लेषण
हाल के विश्लेषण और ऐतिहासिक पुनरावलोकन से पता चलता है कि जबकि जर्मनी की भूमिका महत्वपूर्ण थी, युद्धों के कारण बहुपरकारी थे। वर्साय संधि की कठोर शर्तें और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की विफलता ने जर्मनी में चरमपंथ और सैन्यवाद को बढ़ावा दिया।
अतः, जर्मनी को दोनों विश्व युद्धों के कारणों में प्रमुख माना जा सकता है, लेकिन इन युद्धों की जटिलता और अन्य वैश्विक शक्तियों की भूमिका भी महत्वपूर्ण है।
See lessसरकार की दो समांतर चलाई जा रही योजनाओं, यथा 'आधार कार्ड' और 'राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर' (एन.पी.आर.), एक स्वैच्छिक और दूसरी अनिवार्य, ने राष्ट्रीय स्तरों पर वाद-विवादों और मुकदमों को जन्म दिया है। गुणों-अवगुणों के आधार पर चर्चा कीजिए कि क्या दोनों योजनाओं को साथ-साथ चलाना आवश्यक है या नहीं है। इन योजनाओं की विकासात्मक लाभों और न्यायोचित संवृद्धि को प्राप्त करने की संभाव्यता का विश्लेषण कीजिये। (200 words) [UPSC 2014]
सरकार की दो समांतर चलाई जा रही योजनाएं: आधार कार्ड और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एन.पी.आर.) भूमिका: आधार कार्ड और एन.पी.आर. देश में नागरिकता और पहचान के प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण योजनाएं हैं, लेकिन इनकी स्वैच्छिक और अनिवार्य प्रकृति के कारण विवाद उत्पन्न हुआ है। आधार कार्ड की विशेषताएं: स्वैच्छिक पRead more
सरकार की दो समांतर चलाई जा रही योजनाएं: आधार कार्ड और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एन.पी.आर.)
भूमिका:
आधार कार्ड और एन.पी.आर. देश में नागरिकता और पहचान के प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण योजनाएं हैं, लेकिन इनकी स्वैच्छिक और अनिवार्य प्रकृति के कारण विवाद उत्पन्न हुआ है।
आधार कार्ड की विशेषताएं:
राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एन.पी.आर.) की विशेषताएं:
साथ-साथ चलाना: आवश्यक या नहीं?
निष्कर्ष:
See lessदुनिया में डेटा सुरक्षा और अधिकार का महत्व बढ़ता जा रहा है। इस दृष्टिकोण से, आधार कार्ड और एन.पी.आर. को एक संतुलित और पारदर्शी तरीके से चलाना आवश्यक है, ताकि विकासात्मक लाभ सुनिश्चित हो और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा भी हो सके।
खिलाड़ी औलंपिक्स में व्यक्तिगत विजय और देश के गौरव के लिए भाग लेता है; वापसी पर, विजेताओं पर विभिन्न संस्थाओं द्वारा नकद प्रोत्साहनों की बौछार की जाती है। प्रोत्साहन के तौर पर पुरस्कार कार्यविधि के तर्काधार के मुकाबले, राज्य प्रायोजित प्रतिभा खोज और उसके पोषण के गुणावगुण पर चर्चा कीजिये । (200 words) [UPSC 2014]
खिलाड़ी और प्रोत्साहन प्रणाली स्वर्ण और व्यक्तिगत विजय: खिलाड़ी जब ओलंपिक में भाग लेते हैं, तो उनका ध्यान व्यक्तिगत विजय पर होता है, लेकिन इससे देश का गौरव भी जुड़ा होता है। उदाहरण के लिए, नीरज चोपड़ा ने 2020 टोक्यो ओलंपिक में भाला फेंक का स्वर्ण पदक जीतकर भारत का सिर गर्व से ऊँचा किया। प्रोत्साहन पRead more
खिलाड़ी और प्रोत्साहन प्रणाली
स्वर्ण और व्यक्तिगत विजय: खिलाड़ी जब ओलंपिक में भाग लेते हैं, तो उनका ध्यान व्यक्तिगत विजय पर होता है, लेकिन इससे देश का गौरव भी जुड़ा होता है। उदाहरण के लिए, नीरज चोपड़ा ने 2020 टोक्यो ओलंपिक में भाला फेंक का स्वर्ण पदक जीतकर भारत का सिर गर्व से ऊँचा किया।
प्रोत्साहन प्रणाली: विजेताओं को विभिन्न संस्थाओं द्वारा नकद पुरस्कार की बौछार की जाती है। यह प्रोत्साहन खिलाड़ियों की मेहनत और प्रतिस्पर्धा का सम्मान करता है। हाल ही में, भारत सरकार ने ओलंपिक विजेताओं के लिए अव्वल पुरस्कार राशि में वृद्धि की, जिससे खिलाड़ियों को प्रोत्साहन मिला।
राज्य प्रायोजित प्रतिभा खोज
गुण:
अवगुण:
निष्कर्ष
खिलाड़ियों की व्यक्तिगत विजय और देश का गौरव दोनों महत्वपूर्ण हैं, परंतु राज्य प्रायोजित प्रतिभा खोज का तंत्र एवं पुरस्कार कार्यविधि का संगठित होना आवश्यक है। समग्र विकास हेतु खिलाड़ियों की पहचान, प्रशिक्षण, और उन्हें संतुलित प्रोत्साहन मिलना चाहिए।
See lessकिरायों का विनियमन करने के लिए रेल प्रशुल्क प्राधिकरण की स्थापना आमदनी बंधे (कैश स्ट्रैप्ड) भारतीय रेलवे को गैर-लाभकारी मार्गों और सेवाओं को चलाने के दायित्व के लिए सहायिकी (सब्सिडी) मांगने पर मजबूर कर देगी। विद्युत क्षेत्रक के अनुभव को सामने रखते हुए, चर्चा कीजिये कि क्या प्रस्तावित सुधार से उपभोक्ताओं, भारतीय रेलवे या कि निजी कंटेनर प्रचालकों को लाभ होने की आशा है। (200 words) [UPSC 2014]
किरायों का विनियमन और रेल प्रशुल्क प्राधिकरण: प्रस्तावित सुधार के प्रभाव भूमिका भारत रेलवे को वित्तीय समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जिसके कारण किरायों का विनियमन एवं रेल प्रशुल्क प्राधिकरण की स्थापना का प्रस्ताव रखा गया है। यह कदम रेलवे को आवश्यक सेवाएं प्रदान करने के लिए आवश्यक संसाधन जुटाने मRead more
किरायों का विनियमन और रेल प्रशुल्क प्राधिकरण: प्रस्तावित सुधार के प्रभाव
भूमिका
भारत रेलवे को वित्तीय समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जिसके कारण किरायों का विनियमन एवं रेल प्रशुल्क प्राधिकरण की स्थापना का प्रस्ताव रखा गया है। यह कदम रेलवे को आवश्यक सेवाएं प्रदान करने के लिए आवश्यक संसाधन जुटाने में मदद कर सकता है।
उपभोक्ताओं पर प्रभाव
किराये में वृद्धि या स्थिरता: किरायों का विनियमन उपभोक्ताओं को निश्चितता प्रदान कर सकता है, लेकिन यह किरायों में वृद्धि की संभावना को भी जन्म दे सकता है।
भुगतान की पारदर्शिता: प्राधिकरण द्वारा मूल्य निर्धारण में अधिक पारदर्शिता से उपभोक्ताओं को लाभ हो सकता है।
भारतीय रेलवे पर प्रभाव
आर्थिक सहारार्थ: गैर-लाभकारी रूट पर सेवाएं चलाने के लिए रेलवे को सरकारी सब्सिडी की आवश्यकता हो सकती है।
कार्य कुशलता में वृद्धि: प्राधिकरण रेलवे की लागत और प्रदर्शन की निगरानी कर सकता है, जिससे बेहतर सेवाएं सुनिश्चित हो सकती हैं।
निजी कंटेनर प्रचालकों पर प्रभाव
प्रतिस्पर्धा में सुधार: निजी प्रचालकों के लिए अधिक पारदर्शिता से प्रतिस्पर्धा बढ़ सकती है, लेकिन उन्हें किरायों के नियंत्रण के कारण आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
सेवाएं बढ़ाना: बेहतर ढांचे और सेवाओं को बढ़ावा देने की प्रेरणा मिल सकती है, जिससे ग्राहक संतोष बढ़ सकता है।
निष्कर्ष
See lessइस प्रस्तावित सुधार के साथ, संतुलन बनाना आवश्यक है ताकि उपभोक्ताओं, भारतीय रेलवे और निजी प्रचालकों के सभी लाभ सुनिश्चित किए जा सकें। सही एवं प्रभावी कार्यान्वयन से सबके लिए यह सुधार लाभकारी हो सकता है।
सत्यम् कलंकपूर्ण कार्य (2009) के प्रकाश में कॉर्पोरेट शासन में पारदर्शिता, जवाबदेही को सुनिश्चित करने के लिए लाए गए परिवर्तनों पर चर्चा कीजिए।
सत्यम् कलंकपूर्ण कार्य और कॉर्पोरेट शासन में परिवर्तन परिचय: सत्यम् कंप्यूटर सर्विसेज का मामला, जिसने 2009 में एक वित्तीय धोखाधड़ी का खुलासा किया, भारत के कॉर्पोरेट क्षेत्र में एक बड़ा संकट उत्पन्न किया। इस घटना ने स्पष्ट रूप से कॉर्पोरेट शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकता को उजागर किया। सतRead more
सत्यम् कलंकपूर्ण कार्य और कॉर्पोरेट शासन में परिवर्तन
परिचय: सत्यम् कंप्यूटर सर्विसेज का मामला, जिसने 2009 में एक वित्तीय धोखाधड़ी का खुलासा किया, भारत के कॉर्पोरेट क्षेत्र में एक बड़ा संकट उत्पन्न किया। इस घटना ने स्पष्ट रूप से कॉर्पोरेट शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकता को उजागर किया।
सत्यम का संकट: सत्यम कंप्यूटर ने 7000 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी की थी, जिसने केवल कंपनी को ही नहीं बल्कि पूरे भारतीय वित्तीय बाजार को हिलाकर रख दिया। इस धोखाधड़ी में कंपनी के CEO रामलिंगराजू ने अपने फर्जी लेखों के माध्यम से वित्तीय विवरण में हेरफेर किया।
परिवर्तन और सुधार:
निष्कर्ष: सत्यम निवेश घोटाले ने भारतीय कॉर्पोरेट क्षेत्र में आवश्यकता को स्पष्ट किया कि पारदर्शिता और जवाबदेही को सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं। सरकार और नियामक संस्थाओं ने सुधारों के माध्यम से कॉर्पोरेट governance में विश्वास को फिर से स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। लड़ाई अभी जारी है, लेकिन हालिया कदमों से रहन-सहन और प्रशासकीय प्रक्रियाओं में सकारात्मक बदलाव देखने को मिले हैं।
See less"भारतीय शासकीय तंत्र में, गैर-राजकीय कर्ताओं की भूमिका सीमित ही रही है।" इस कथन का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए । (200 words) [UPSC 2016]
भारतीय शासकीय तंत्र में गैर-राजकीय कर्ताओं की भूमिका भारतीय शासकीय तंत्र में गैर-राजकीय कर्ताओं की भूमिका का सीमित होना एक महत्वपूर्ण विषय है, हालांकि यह कहना पूरी तरह सत्य नहीं है। सामाजिक संगठनों का प्रभाव: गैर-राजकीय क्रियाकलापों में कई गैर सरकारी संगठन (NGOs) शामिल हैं जो सामाजिक कल्याण, मानवाधिRead more
भारतीय शासकीय तंत्र में गैर-राजकीय कर्ताओं की भूमिका
भारतीय शासकीय तंत्र में गैर-राजकीय कर्ताओं की भूमिका का सीमित होना एक महत्वपूर्ण विषय है, हालांकि यह कहना पूरी तरह सत्य नहीं है।
सामाजिक संगठनों का प्रभाव:
गैर-राजकीय क्रियाकलापों में कई गैर सरकारी संगठन (NGOs) शामिल हैं जो सामाजिक कल्याण, मानवाधिकार, और पर्यावरण संरक्षण में सक्रिय हैं। उदाहरण के लिए, “गिव इंडिया” जैसे संगठन ने नागरिकों को चैरिटी पर आधारित गतिविधियों में शामिल करके सरकारी प्रयासों को सहयोग प्रदान किया है।
नागरिक समाज और लब्बोलुआब:
नागरिक समाज के अभ्युदय से सरकारी निकायों को अधिक जवाबदेही का सामना करना पड़ता है। “नोटबंदी” या “कृषि कानूनों” पर विभिन्न संगठनों ने जनहित के मुद्दों को उठाया और सरकार को विवश किया कि वह जनसंवेदना को ध्यान में रखे।
राजनीतिक दबाव:
राजनीतिक पार्टियों के साथ मिलकर, गैर-राजकीय कर्ता, जैसे युवाओं का आंदोलन, आए दिन सरकार की नीतियों पर दबाव डालते हैं, जैसे CAA-NRC प्रदर्शन ने नीति निर्धारण में सामुदायिक भागीदारी को प्रतिपादित किया।
निष्कर्ष:
See lessहालांकि, सरकारी नीतियों में गैर-राजकीय कर्ताओं की भूमिका सीमित मानी जा सकती है, परंतु इनकी उपस्थिति और प्रभाव अक्सर महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन लाने में सहायक होती है। अतः, यह स्पष्ट है कि भारतीय शासकीय तंत्र में गैर-राजकीय कर्ताओं की भूमिका को अनदेखा नहीं किया जा सकता।
पुरातन प्रशासन और नव प्रशासन के बीच मुख्य अन्तर क्या है?
पुरातन प्रशासन और नव प्रशासन के बीच मुख्य अंतर 1. दृष्टिकोण और कार्यपद्धति: पुरातन प्रशासन मुख्य रूप से कठोर, नौकरशाही और नियम-आधारित था, जिसमें प्रशासनिक प्रक्रियाओं का पालन और केंद्रीकृत नियंत्रण पर जोर दिया जाता था। यह शासन प्रणाली कानूनों और आदेशों के सख्त अनुपालन पर केंद्रित थी। इसके विपरीत, नवRead more
पुरातन प्रशासन और नव प्रशासन के बीच मुख्य अंतर
1. दृष्टिकोण और कार्यपद्धति: पुरातन प्रशासन मुख्य रूप से कठोर, नौकरशाही और नियम-आधारित था, जिसमें प्रशासनिक प्रक्रियाओं का पालन और केंद्रीकृत नियंत्रण पर जोर दिया जाता था। यह शासन प्रणाली कानूनों और आदेशों के सख्त अनुपालन पर केंद्रित थी। इसके विपरीत, नव प्रशासन अधिक लचीला, विकेंद्रीकृत और उत्तरदायी है। यह जन-केंद्रित है और निर्णय लेने की प्रक्रिया में सहभागिता और सहयोग को प्रोत्साहित करता है।
2. प्रौद्योगिकी और नवाचार: नव प्रशासन का एक प्रमुख अंतर तकनीक और डिजिटल प्लेटफार्मों का उपयोग है, जो दक्षता और पारदर्शिता को बढ़ाता है। पुरातन प्रशासनिक प्रक्रिया मैन्युअल और कागजी कार्यों पर निर्भर थी, जिससे निर्णय लेने में विलंब होता था। उदाहरण के लिए, डिजिटल इंडिया (2015 में शुरू किया गया) ने ई-गवर्नेंस के माध्यम से सेवाओं को ऑनलाइन और त्वरित बना दिया है। इससे पारंपरिक प्रणाली से आधुनिक, तकनीक-संचालित प्रशासन में बदलाव आया है।
3. सार्वजनिक उत्तरदायित्व और पारदर्शिता: पुरातन प्रशासन को अक्सर अपारदर्शी और उत्तरदायित्वहीन माना जाता था, क्योंकि इसमें निर्णय-निर्माण की प्रक्रिया केंद्रित होती थी और नागरिकों को जानकारी तक सीमित पहुंच होती थी। नव प्रशासन में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व पर अधिक जोर दिया गया है, जैसे कि सूचना का अधिकार अधिनियम (2005), जिसने नागरिकों को सरकारी प्रक्रियाओं के बारे में जानकारी प्राप्त करने का अधिकार दिया है। इससे प्रशासन में जनता का विश्वास बढ़ा है।
4. सेवा वितरण और शासन: पुरातन प्रशासन का मॉडल ऊपर से नीचे (टॉप-डाउन) वाला था, जिसमें केंद्रीकृत नीति और निर्णय सभी के लिए समान रूप से लागू होते थे। इसके विपरीत, नव प्रशासन में विकेंद्रीकरण और स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार नीतियाँ बनती हैं। उदाहरण के लिए, स्मार्ट सिटी मिशन स्थानीय समस्याओं के लिए विशेष समाधान खोजने का एक उदाहरण है, जो नव प्रशासन की लचीली दृष्टिकोण को दर्शाता है।
निष्कर्ष: पुरातन प्रशासन से नव प्रशासन में बदलाव का उद्देश्य उत्तरदायी, पारदर्शी और तकनीक-संचालित प्रशासन को बढ़ावा देना है। नव प्रशासन नागरिकों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए प्रभावी सेवा वितरण, उत्तरदायित्व और प्रशासनिक सुधार की दिशा में काम कर रहा है, जो अधिक पारदर्शिता और सहभागिता को सुनिश्चित करता है।
See lessई-सरकार और ई-शासन के मध्य प्रमुख अन्तर क्या है?
ई-सरकार और ई-शासन के मध्य प्रमुख अन्तर ई-सरकार (E-Government) और ई-शासन (E-Governance) दोनों ही डिजिटल और सूचना प्रौद्योगिकी के उपयोग के माध्यम से सरकारी कार्यों और सेवाओं में सुधार करने के उद्देश्य से अपनाए जाते हैं, लेकिन उनके उद्देश्य और कार्यान्वयन में महत्वपूर्ण अंतर हैं। 1. ई-सरकार (E-GovernmeRead more
ई-सरकार और ई-शासन के मध्य प्रमुख अन्तर
ई-सरकार (E-Government) और ई-शासन (E-Governance) दोनों ही डिजिटल और सूचना प्रौद्योगिकी के उपयोग के माध्यम से सरकारी कार्यों और सेवाओं में सुधार करने के उद्देश्य से अपनाए जाते हैं, लेकिन उनके उद्देश्य और कार्यान्वयन में महत्वपूर्ण अंतर हैं।
1. ई-सरकार (E-Government)
2. ई-शासन (E-Governance)
3. प्रमुख अन्तर
निष्कर्ष
ई-सरकार और ई-शासन दोनों ही डिजिटल युग में प्रशासनिक सुधार के महत्वपूर्ण पहलू हैं, लेकिन उनके दृष्टिकोण और उद्देश्य में स्पष्ट अंतर है। ई-सरकार मुख्यतः सरकारी सेवाओं को डिजिटल रूप में उपलब्ध कराने पर केंद्रित है, जबकि ई-शासन शासन की प्रक्रिया, पारदर्शिता, और नागरिक सहभागिता में सुधार पर ध्यान देता है। इन दोनों के समन्वित उपयोग से एक प्रभावी और नागरिक-केंद्रित प्रशासनिक प्रणाली की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए जा सकते हैं।
See lessसंगठन के शास्त्रीय और आधुनिक दृष्टिकोण की विशेषताओं में अंतर करें।
संगठन के शास्त्रीय और आधुनिक दृष्टिकोण की विशेषताओं में अंतर परिचय संगठन के शास्त्रीय और आधुनिक दृष्टिकोण व्यवस्थापन और संगठनात्मक संरचनाओं को समझने के दो भिन्न दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं। जबकि शास्त्रीय दृष्टिकोण परंपरागत और औपचारिक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करता है, आधुनिक दृष्टिकोण लचीलापन और मानRead more
संगठन के शास्त्रीय और आधुनिक दृष्टिकोण की विशेषताओं में अंतर
परिचय
संगठन के शास्त्रीय और आधुनिक दृष्टिकोण व्यवस्थापन और संगठनात्मक संरचनाओं को समझने के दो भिन्न दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं। जबकि शास्त्रीय दृष्टिकोण परंपरागत और औपचारिक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करता है, आधुनिक दृष्टिकोण लचीलापन और मानव तत्वों पर जोर देता है।
शास्त्रीय दृष्टिकोण
आधुनिक दृष्टिकोण
तुलना
निष्कर्ष
शास्त्रीय और आधुनिक दृष्टिकोण संगठन के अध्ययन में भिन्न दृष्टिकोण प्रदान करते हैं। शास्त्रीय दृष्टिकोण दक्षता, संरचना, और मानकीकरण पर ध्यान केंद्रित करता है, जबकि आधुनिक दृष्टिकोण लचीलापन, मानव तत्व, और अनुकूलनशीलता पर जोर देता है। इन भिन्न दृष्टिकोणों को समझकर UPSC Mains उम्मीदवार संगठनात्मक सिद्धांतों की जटिलताओं को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं और विभिन्न संदर्भों में उचित प्रथाओं को लागू कर सकते हैं।
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