सुशिक्षित और व्यवस्थित स्थानीय स्तर शासन-व्यवस्था की अनुपस्थिति में ‘पंचायतें’ और ‘समितियाँ’ मुख्यतः राजनीतिक संस्थाएँ बनी रही हैं न कि शासन के प्रभावी उपकरण। समालोचनापूर्वक चर्चा कीजिए। (200 words) [UPSC 2015]
संस्थागत गुणवत्ता आर्थिक प्रदर्शन को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, और सिविल सेवाओं की दक्षता और प्रभावशीलता लोकतंत्र की मजबूती में योगदान करती है। लोकतंत्र को सुदृढ़ करने के लिए सिविल सेवा में निम्नलिखित सुधारों पर ध्यान देना आवश्यक है: पारदर्शिता और जवाबदेही: सिविल सेवकों की नियुक्Read more
संस्थागत गुणवत्ता आर्थिक प्रदर्शन को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, और सिविल सेवाओं की दक्षता और प्रभावशीलता लोकतंत्र की मजबूती में योगदान करती है। लोकतंत्र को सुदृढ़ करने के लिए सिविल सेवा में निम्नलिखित सुधारों पर ध्यान देना आवश्यक है:
पारदर्शिता और जवाबदेही: सिविल सेवकों की नियुक्तियों, पदोन्नतियों, और कार्यों में पारदर्शिता सुनिश्चित की जानी चाहिए। इसके लिए स्वतंत्र निगरानी तंत्र और उत्तरदायित्व की स्पष्ट प्रक्रियाएँ लागू करनी चाहिए।
प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण: सिविल सेवकों के लिए निरंतर प्रशिक्षण और कौशल विकास कार्यक्रमों की व्यवस्था करनी चाहिए, ताकि वे बदलती परिस्थितियों और तकनीकी परिवर्तनों से निपट सकें।
आवश्यक सुधार और पेशेवरता: सिविल सेवा की कार्यशैली में सुधार के लिए नियमों और प्रक्रियाओं की नियमित समीक्षा और आवश्यक बदलाव करना चाहिए। पेशेवरता को बढ़ावा देने के लिए उच्च मानक और आचार संहिता को लागू करना चाहिए।
डिजिटलीकरण और तकनीकी सुधार: कार्यप्रणालियों को डिजिटलीकरण के माध्यम से सुव्यवस्थित करना और आधुनिक तकनीकी उपकरणों का उपयोग करना चाहिए, जिससे कार्य दक्षता और जवाबदेही में सुधार हो सके।
इन सुधारों से सिविल सेवाओं की गुणवत्ता और प्रभावशीलता बढ़ेगी, जिससे लोकतंत्र की मजबूत नींव तैयार होगी और आर्थिक प्रदर्शन में सुधार होगा।
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सुशिक्षित और व्यवस्थित स्थानीय स्तर शासन-व्यवस्था की अनुपस्थिति में 'पंचायतें' और 'समितियाँ': शिक्षा और प्रशिक्षण की कमी: पंचायतें और समितियाँ अक्सर अपर्याप्त शिक्षा और प्रशिक्षण से जूझती हैं। उदाहरण के लिए, बिहार और उत्तर प्रदेश के कुछ ग्रामीण इलाकों में, पंचायत सदस्य प्रशासनिक क्षमताओं की कमी के कRead more
सुशिक्षित और व्यवस्थित स्थानीय स्तर शासन-व्यवस्था की अनुपस्थिति में ‘पंचायतें’ और ‘समितियाँ’:
शिक्षा और प्रशिक्षण की कमी: पंचायतें और समितियाँ अक्सर अपर्याप्त शिक्षा और प्रशिक्षण से जूझती हैं। उदाहरण के लिए, बिहार और उत्तर प्रदेश के कुछ ग्रामीण इलाकों में, पंचायत सदस्य प्रशासनिक क्षमताओं की कमी के कारण ग्रामीण विकास परियोजनाओं का प्रभावी कार्यान्वयन नहीं कर पाते। ये सदस्य आमतौर पर राजनीतिक गतिविधियों में अधिक व्यस्त रहते हैं, जिससे प्रशासनिक कार्यकुशलता प्रभावित होती है।
राजनीतिक हस्तक्षेप: स्थानीय राजनीति अक्सर इन संस्थाओं की कार्यप्रणाली को प्रभावित करती है। हाल ही में, पंजाब में देखा गया कि पंचायत चुनावों में राजनीतिक दलों ने अपने समर्थकों को चुनकर विकास की बजाय राजनीतिक हितों को प्राथमिकता दी। इस तरह के हस्तक्षेप से पंचायतों की स्वतंत्रता और प्रभावशीलता पर नकारात्मक असर पड़ता है।
संसाधनों की कमी: पंचायतों और समितियों को आवश्यक वित्तीय और प्रशासनिक संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ता है। उदाहरण के तौर पर, मध्य प्रदेश के कई ग्रामीण क्षेत्रों में, विकास परियोजनाओं के लिए बजट की कमी ने प्रभावी कार्यान्वयन में बाधा डाली है।
संस्थागत ढांचे की कमी: इन संस्थाओं के पास एक स्पष्ट और मजबूत संगठनों की कमी होती है। इस कमी के कारण, जैसे कि झारखंड में पंचायतों में, निर्णय-निर्माण और कार्यान्वयन की प्रक्रियाएँ प्रभावी ढंग से संचालित नहीं हो पातीं।
सुधार के उपाय:
इन सुधारात्मक उपायों को अपनाकर पंचायतें और समितियाँ अपने वास्तविक उद्देश्य की ओर बढ़ सकती हैं और प्रभावी शासन के उपकरण बन सकती हैं।
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