Home/नीतिशास्त्र/मानवीय मूल्य/Page 2
Lost your password? Please enter your email address. You will receive a link and will create a new password via email.
Please briefly explain why you feel this question should be reported.
Please briefly explain why you feel this answer should be reported.
Please briefly explain why you feel this user should be reported.
अवसाद और आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं को रोकने में गीता का निष्काय कर्मयोग किस प्रकार सहायक हो सकता हैं? विवेचना कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2019]
अवसाद और आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं को रोकने में गीता का निष्काम कर्मयोग की भूमिका 1. निष्काम कर्मयोग का सार गीता के निष्काम कर्मयोग का सिद्धांत व्यक्ति को अपने कार्यों को बिना परिणाम की चिंता के निष्पादित करने की सलाह देता है। इसका मतलब है कि व्यक्ति को अपने कर्तव्यों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, नRead more
अवसाद और आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं को रोकने में गीता का निष्काम कर्मयोग की भूमिका
1. निष्काम कर्मयोग का सार
गीता के निष्काम कर्मयोग का सिद्धांत व्यक्ति को अपने कार्यों को बिना परिणाम की चिंता के निष्पादित करने की सलाह देता है। इसका मतलब है कि व्यक्ति को अपने कर्तव्यों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, न कि उनके परिणामों पर।
2. तनाव और चिंता को कम करना
परिणाम की चिंता से मुक्ति: निष्काम कर्मयोग द्वारा व्यक्तियों को परिणामों के बारे में चिंता करने की बजाय वर्तमान कार्य पर ध्यान केंद्रित करने का प्रेरणा मिलता है। यह दृष्टिकोण उन लोगों के लिए उपयोगी है जो जीवन के प्रदर्शन दबाव से ग्रस्त होते हैं। जैसे कि विद्यार्थियों और पेशेवरों में प्रदर्शन चिंता को कम करने के लिए यह सिद्धांत सहायक हो सकता है।
3. भावनात्मक सहनशीलता में वृद्धि
कर्तव्य और उद्देश्य की भावना: यह सिद्धांत व्यक्ति को अपने कार्यों में उद्देश्य खोजने के लिए प्रोत्साहित करता है, जो अवसाद के लक्षणों जैसे निराशा और नकारात्मकता को कम कर सकता है। उदाहरण के लिए, ‘माइंडफुलनेस’ आधारित प्रथाएँ भी इसी तरह के उद्देश्य और फोकस को प्रोत्साहित करती हैं।
4. संतुलित जीवन की दिशा में योगदान
संतुलित दृष्टिकोण: निष्काम कर्मयोग जीवन के प्रति संतुलित दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करता है, जो जीवन की चुनौतियों का सामना करने में मदद कर सकता है। आधुनिक मानसिक स्वास्थ्य में भी समान दृष्टिकोण अपनाए जाते हैं, जैसे कि ‘कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (CBT)’, जो नकारात्मक सोच को चुनौती देती है और सकारात्मक कार्यों को बढ़ावा देती है।
5. वर्तमान समस्याओं में उपयोगिता
आधुनिक संदर्भ में अनुप्रयोग: गीता के निष्काम कर्मयोग को आज के संदर्भ में माइंडफुलनेस और तनाव प्रबंधन तकनीकों के माध्यम से लागू किया जा सकता है। मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर और संगठनों ने इस दृष्टिकोण को शामिल किया है, जिससे अवसाद और आत्महत्या की घटनाओं को प्रबंधित किया जा सके।
संक्षेप में, गीता का निष्काम कर्मयोग अवसाद और आत्महत्या की घटनाओं को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, क्योंकि यह व्यक्ति को कर्तव्यों पर ध्यान केंद्रित करने, परिणामों से मुक्ति, और संतुलित जीवन जीने की प्रेरणा देता है।
See lessवर्तमान समाज व्यापक विश्वास-न्यूनता से ग्रसित है। इस स्थिति के व्यक्तिगत कल्याण और सामाजिक कल्याण के सन्दर्भ में क्या परिणाम हैं? आप अपने को विश्वसनीय बनाने के लिए व्यक्तिगत स्तर पर क्या कर सकते हैं?(150 words) [UPSC 2014]
वर्तमान समाज में विश्वास-न्यूनता वर्तमान समाज में व्यापक विश्वास-न्यूनता एक गंभीर समस्या बन गई है, जिसका व्यक्तिगत और सामाजिक कल्याण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह स्थिति न केवल व्यक्तिगत संबंधों को प्रभावित करती है, बल्कि समाज की स्थिरता और समृद्धि को भी कमजोर करती है। व्यक्तिगत कल्याण पर परिणामRead more
वर्तमान समाज में विश्वास-न्यूनता
वर्तमान समाज में व्यापक विश्वास-न्यूनता एक गंभीर समस्या बन गई है, जिसका व्यक्तिगत और सामाजिक कल्याण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह स्थिति न केवल व्यक्तिगत संबंधों को प्रभावित करती है, बल्कि समाज की स्थिरता और समृद्धि को भी कमजोर करती है।
व्यक्तिगत कल्याण पर परिणाम
सामाजिक कल्याण पर परिणाम
व्यक्तिगत स्तर पर विश्वसनीयता बनाने के कदम
इन गुणों को अपनाकर, एक व्यक्ति व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर विश्वास-निर्माण में योगदान कर सकता है।
See lessजीवन में नैतिक आचरण के सन्दर्भ में आपको किस विख्यात व्यक्तित्व ने सर्वाधिक प्रेरणा दी है? उसकी शिक्षाओं का सार प्रस्तुत कीजिए। विशिष्ट उदाहरण देते हुए वर्णन कीजिए कि आप अपने नैतिक विकास के लिए उन शिक्षाओं को किस प्रकार लागू कर पाए हैं।(150 words) [UPSC 2014]
प्रेरणादायक व्यक्तित्व: मदन मोहन मालवीय शिक्षाओं का सार: मदन मोहन मालवीय, नैतिक आचरण के प्रेरणास्रोत, सत्य, अहिंसा, और सेवाभाव जैसे मौलिक सिद्धांतों पर बल दिया। उनकी शिक्षाएं 'सर्वोदय' - सभी का कल्याण, और 'सत्याग्रह' - सत्य की शक्ति और 'अहिंसा' - हिंसा रहितता को सामाजिक परिवर्तन के उपकरण के रूप मेंRead more
प्रेरणादायक व्यक्तित्व: मदन मोहन मालवीय
शिक्षाओं का सार: मदन मोहन मालवीय, नैतिक आचरण के प्रेरणास्रोत, सत्य, अहिंसा, और सेवाभाव जैसे मौलिक सिद्धांतों पर बल दिया। उनकी शिक्षाएं ‘सर्वोदय’ – सभी का कल्याण, और ‘सत्याग्रह’ – सत्य की शक्ति और ‘अहिंसा’ – हिंसा रहितता को सामाजिक परिवर्तन के उपकरण के रूप में स्थापित करती हैं।
नैतिक विकास में लागू करना:
1. सत्यवाद: मैंने सभी क्षेत्रों में ईमानदारी को अपनाया है, मुश्किल परिस्थितियों में भी, जैसे गांधी ने ब्रिटिश अत्याचार के खिलाफ नमक सत्याग्रह के दौरान अपना संकल्प दिखाया।
2. अहिंसा: शांतिपूर्ण तरीके से विवादों का समाधान करना, गांधी के अन्याय के खिलाफ आंदोलन में हिंसा का सहारा न लेते हुए, जैसे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भूमिका।
3. सेवाभाव: समुदाय सेवा के लिए स्वयं स्वेच्छा से योगदान देना और समुदाय के कल्याण को प्राथमिकता देना, जैसे गांधी का समाज के उत्थान के लिए समर्पित जीवन।
निष्कर्ष: मालवीय के नैतिक सिद्धांत मेरे नैतिक विकास की दिशा दिखाते हैं, जिससे मेरा नैतिक विकास एक अधिक धार्मिक और सामाजिक जिम्मेदार जीवन की ओर बढ़ता है।
See lessमानव जीवन में नैतिकता किस बात की प्रोन्नति करने की चेष्टा करती है? लोक-प्रशासन में यह और भी अधिक महत्त्वपूर्ण क्यों है?(150 words) [UPSC 2014]
मानव जीवन में नैतिकता की प्रोन्नति नैतिकता सच्चाई, न्याय, और सामाजिक कल्याण की प्रोन्नति करती है। यह व्यक्ति को सही और गलत के बीच अंतर समझने में मदद करती है और एक मूल्य आधारित जीवन जीने की प्रेरणा देती है। उदाहरण के लिए, सच्चाई और ईमानदारी से भरा जीवन व्यक्ति के व्यक्तिगत और पेशेवर संबंधों में विश्वRead more
मानव जीवन में नैतिकता की प्रोन्नति
नैतिकता सच्चाई, न्याय, और सामाजिक कल्याण की प्रोन्नति करती है। यह व्यक्ति को सही और गलत के बीच अंतर समझने में मदद करती है और एक मूल्य आधारित जीवन जीने की प्रेरणा देती है। उदाहरण के लिए, सच्चाई और ईमानदारी से भरा जीवन व्यक्ति के व्यक्तिगत और पेशेवर संबंधों में विश्वास और सम्मान को बढ़ाता है।
लोक-प्रशासन में नैतिकता का महत्व
इस प्रकार, नैतिकता लोक-प्रशासन में विश्वास, पारदर्शिता, और न्याय की प्रमुख भूमिका निभाती है, जो कुशल और प्रभावी शासन के लिए आवश्यक है।
See lessनैतिक मूल्यों के सुदृढ़ीकरण की क्या प्रक्रिया है? क्या नैतिक मूल्यों के सुदृढ़ीकरण से चरित्र निर्माण में सहायता प्राप्त होती हैं? विवेचना करें। (125 Words) [UPPSC 2019]
नैतिक मूल्यों के सुदृढ़ीकरण की प्रक्रिया 1. शिक्षा और जागरूकता: मूल्य शिक्षा: विद्यालयों और संगठनों में नैतिक शिक्षा का समावेश, जैसे कि सीबीएसई की मूल्य शिक्षा पाठ्यक्रम और विप्रो के नैतिक प्रशिक्षण कार्यक्रम, बच्चों और कर्मियों में नैतिक मूल्यों को सुदृढ़ करता है। 2. आदर्श उदाहरण: नेतृत्व का प्रभावRead more
नैतिक मूल्यों के सुदृढ़ीकरण की प्रक्रिया
1. शिक्षा और जागरूकता:
2. आदर्श उदाहरण:
3. आत्म-परिक्षण और आत्म-मूल्यांकन:
चरित्र निर्माण पर प्रभाव:
निष्कर्ष: नैतिक मूल्यों के सुदृढ़ीकरण के माध्यम से शिक्षा, आदर्श उदाहरण, और आत्म-परिक्षण से चरित्र निर्माण में महत्वपूर्ण सहायता मिलती है, जो नैतिक व्यवहार और व्यक्तिगत ईमानदारी को प्रोत्साहित करती है।
See less"सामाजिक मूल्य, आर्थिक मूल्यों की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण हैं।" राष्ट्र की समावेशी संवृद्धि के संदर्भ में उपरोक्त कथन पर उदाहरणों के साथ चर्चा कीजिए। (150 words) [UPSC 2015]
सामाजिक मूल्य बनाम आर्थिक मूल्य सामाजिक मूल्य और आर्थिक मूल्य दोनों महत्वपूर्ण हैं, लेकिन सामाजिक मूल्य अक्सर अधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं क्योंकि ये समावेशी संवृद्धि को सुनिश्चित करते हैं। सामाजिक मूल्य की महत्ता: उदाहरण: भारत की स्वच्छ भारत मिशन (2014) ने सामाजिक मूल्य जैसे स्वच्छता और स्वास्थ्य कोRead more
सामाजिक मूल्य बनाम आर्थिक मूल्य
सामाजिक मूल्य और आर्थिक मूल्य दोनों महत्वपूर्ण हैं, लेकिन सामाजिक मूल्य अक्सर अधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं क्योंकि ये समावेशी संवृद्धि को सुनिश्चित करते हैं।
सामाजिक मूल्य की महत्ता: उदाहरण: भारत की स्वच्छ भारत मिशन (2014) ने सामाजिक मूल्य जैसे स्वच्छता और स्वास्थ्य को बढ़ावा दिया। इससे केवल पर्यावरण की स्थिति में सुधार नहीं हुआ, बल्कि समाज में स्वच्छता के प्रति जागरूकता भी बढ़ी, जिससे आर्थिक और सामाजिक दोनों दृष्टिकोण से समावेशी विकास को बल मिला।
आर्थिक मूल्य की सीमा: उदाहरण: एक्सपोर्ट-ओरिएंटेड नीति के तहत, 2023 में भारत ने आर्थिक विकास को प्रोत्साहित किया, लेकिन इसके साथ ही गरीब और आदिवासी क्षेत्रों की अनदेखी की। इसने विकास के लाभ को पूरी तरह से समाज के सभी वर्गों तक नहीं पहुँचाया।
इन उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि सामाजिक मूल्य, जैसे समानता और समावेशिता, आर्थिक विकास के साथ मिलकर समावेशी और स्थायी विकास को सुनिश्चित करते हैं।
See lessवर्तमान समय में नैतिक मूल्यों का संकट, सद्-जीवन की संकीर्ण धारणा से जुड़ा हुआ है। विवेचना कीजिए । (150 words) [UPSC 2017]
वर्तमान समय में नैतिक मूल्यों का संकट और सद्-जीवन की संकीर्ण धारणा वर्तमान समय में नैतिक मूल्यों का संकट अक्सर सद्-जीवन की संकीर्ण धारणा से जुड़ा हुआ है, जहाँ व्यक्तिगत लाभ और भौतिक सुख की ओर अत्यधिक ध्यान केंद्रित किया जाता है। इस सीमित दृष्टिकोण में वस्त्रधारण और भौतिक समृद्धि को ही जीवन की सफलताRead more
वर्तमान समय में नैतिक मूल्यों का संकट और सद्-जीवन की संकीर्ण धारणा
वर्तमान समय में नैतिक मूल्यों का संकट अक्सर सद्-जीवन की संकीर्ण धारणा से जुड़ा हुआ है, जहाँ व्यक्तिगत लाभ और भौतिक सुख की ओर अत्यधिक ध्यान केंद्रित किया जाता है। इस सीमित दृष्टिकोण में वस्त्रधारण और भौतिक समृद्धि को ही जीवन की सफलता मान लिया जाता है, जबकि सामूहिक भलाई और दीर्घकालिक नैतिकता की अनदेखी की जाती है।
भौतिकवाद और उपभोक्तावाद: आज की उपभोक्तावादी संस्कृति, जहां समृद्धि और विलासिता को सुख की मापदंड माना जाता है, इस संकीर्ण दृष्टिकोण का उदाहरण है। उदाहरण स्वरूप, गिग इकोनॉमी में असुरक्षित रोजगार और अनुचित कामकाजी परिस्थितियाँ उभर कर सामने आई हैं, जो लाभ की प्रवृत्ति को नैतिक जिम्मेदारियों से ऊपर मानती हैं।
व्यक्तिगतता: व्यक्तिगत सफलता को सामूहिक उन्नति पर प्राथमिकता देना नैतिक गिरावट का कारण बनता है। डेटा प्राइवेसी स्कैंडल्स जैसे हालिया उदाहरण, जिसमें व्यक्तिगत या कॉर्पोरेट लाभ के लिए नैतिकता की अनदेखी की गई, इस संकीर्ण दृष्टिकोण को दर्शाते हैं।
इस संकट का समाधान सद्-जीवन की व्यापक धारणा को अपनाने में है, जो नैतिक जिम्मेदारियों और सामूहिक भलाई को प्रमुखता देती है।
See lessभारतीय समाज में परंपरागत मूल्य क्या हैं? आधुनिक मूल्यों से इसकी क्या भिन्नता है? व्याख्या कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2021]
भारतीय समाज में परंपरागत मूल्य 1. परिवार की केंद्रीयता: भारतीय परंपरागत समाज में परिवार को सामाजिक जीवन का केंद्र माना जाता है। विस्तारित परिवार, जिसमें कई पीढ़ियाँ एक साथ रहती हैं, पारंपरिक सामाजिक संरचना का हिस्सा है। यह आधुनिक समय के न्यूक्लियर परिवार से भिन्न है। 2. बुजुर्गों का सम्मान: परंपरागतRead more
भारतीय समाज में परंपरागत मूल्य
1. परिवार की केंद्रीयता: भारतीय परंपरागत समाज में परिवार को सामाजिक जीवन का केंद्र माना जाता है। विस्तारित परिवार, जिसमें कई पीढ़ियाँ एक साथ रहती हैं, पारंपरिक सामाजिक संरचना का हिस्सा है। यह आधुनिक समय के न्यूक्लियर परिवार से भिन्न है।
2. बुजुर्गों का सम्मान: परंपरागत मूल्यों में बुजुर्गों के प्रति आदर और उनके अनुभव का सम्मान महत्वपूर्ण होता है। उदाहरण के तौर पर, दिवाली जैसे त्योहारों पर बुजुर्गों का आशीर्वाद लेना इस मूल्य को दर्शाता है।
3. जाति व्यवस्था: ऐतिहासिक रूप से, जाति व्यवस्था भारतीय समाज की सामाजिक संरचना में गहरी पैठ बनाये हुए थी। हालांकि, आधुनिक भारत में जातिवाद को समाप्त करने की कोशिश की जा रही है, फिर भी कुछ स्थानों पर इसके प्रभाव देखे जाते हैं।
आधुनिक मूल्य
1. व्यक्तिवाद: आधुनिक मूल्य व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अधिकारों पर जोर देते हैं। न्यूक्लियर परिवार और कैरियर-उन्मुख जीवनशैली इसका उदाहरण हैं।
2. लिंग समानता: लिंग समानता पर बढ़ते फोकस के साथ महिलाओं के अधिकार और अवसरों में सुधार हो रहा है। समान वेतन और कार्यस्थल पर प्रतिनिधित्व का बढ़ावा इस बदलाव को दर्शाता है।
3. धर्मनिरपेक्षता: आधुनिक भारत में धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे धर्म आधारित भेदभाव कम हो रहा है। उदाहरणस्वरूप, ट्रांसजेंडर पर्सन्स (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स) एक्ट, 2019 इस मूल्य की ओर एक कदम है।
भिन्नताएँ: परंपरागत मूल्य सामूहिक जीवन और पदानुक्रम का सम्मान करते हैं, जबकि आधुनिक मूल्य व्यक्तिवादी स्वातंत्र्य और समान अधिकारों पर जोर देते हैं। यह बदलाव पारिवारिक संरचनाओं, कार्यस्थल की संस्कृति और सामाजिक नीतियों में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
See lessसहानुभूति को परिभाषित कीजिये और कमजोर वर्ग की समस्याओं के समाधान में सहानुभूति की भूमिका का विवेचना कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2021]
सहानुभूति की परिभाषा और कमजोर वर्ग की समस्याओं के समाधान में सहानुभूति की भूमिका 1. सहानुभूति की परिभाषा (Definition of Empathy): सहानुभूति किसी व्यक्ति की भावनाओं और अनुभवों को समझने और साझा करने की क्षमता है। इसमें किसी दूसरे के दृष्टिकोण को अपनाना और उनके भावनात्मक अनुभवों को महसूस करना शामिल होतRead more
सहानुभूति की परिभाषा और कमजोर वर्ग की समस्याओं के समाधान में सहानुभूति की भूमिका
1. सहानुभूति की परिभाषा (Definition of Empathy):
2. कमजोर वर्ग की समस्याओं के समाधान में सहानुभूति की भूमिका (Role of Empathy in Solving Problems of Weaker Sections):
निष्कर्ष: सहानुभूति कमजोर वर्ग की समस्याओं को प्रभावी ढंग से सुलझाने के लिए आवश्यक है, क्योंकि यह समाधान को उनकी वास्तविक जरूरतों के अनुसार अनुकूलित करती है और सहायक वातावरण बनाती है।
See lessआचरण की शुद्धि के लिये बुद्ध द्वारा बताए गए अष्टांगिक मार्ग की व्याख्या कीजिये । (200 Words) [UPPSC 2022]
आचरण की शुद्धि के लिए बुद्ध द्वारा बताए गए अष्टांगिक मार्ग की व्याख्या 1. सही समझ (सम्मा-दिट्ठि): परिभाषा: वास्तविकता और चार आर्य सत्य को समझना। उदाहरण: बुद्ध के प्रवचन में चार आर्य सत्य का ज्ञान प्राप्त करना, जैसे कि जीवन में दुख का कारण और उसे समाप्त करने का मार्ग। 2. सही इरादा (सम्मा-संकप्पा): परRead more
आचरण की शुद्धि के लिए बुद्ध द्वारा बताए गए अष्टांगिक मार्ग की व्याख्या
1. सही समझ (सम्मा-दिट्ठि):
2. सही इरादा (सम्मा-संकप्पा):
3. सही भाषण (सम्मा-वाचा):
4. सही क्रिया (सम्मा-कम्मन्ता):
5. सही जीविका (सम्मा-आजीवा):
6. सही प्रयास (सम्मा-वायामा):
7. सही सतर्कता (सम्मा-सति):
8. सही ध्यान (सम्मा-समाधि):
इन आठ तत्वों का अनुसरण करके व्यक्ति आचरण की शुद्धि और मानसिक स्पष्टता प्राप्त कर सकता है, जो अंततः आध्यात्मिक मुक्ति की ओर ले जाता है।
See less