आपदा प्रबन्धन में पूर्ववर्ती प्रतिक्रियात्मक उपागम से हटते हुए भारत सरकार द्वारा आरम्भ किए गए अभिनूतन उपायों की विवेचना कीजिए। (250 words) [UPSC 2020]
भू-स्खलन के कारण और प्रभाव भू-स्खलन के कारण: प्राकृतिक कारण: भौगोलिक तत्व: भू-स्खलन अक्सर उन भौगोलिक संरचनाओं की अस्थिरता के कारण होते हैं जिनमें कमजोर या दरार वाले चट्टानें होती हैं। उदाहरणस्वरूप, हिमालयी क्षेत्र में भौगोलिक अस्थिरता के कारण लगातार भू-स्खलन होते रहते हैं। मौसमी स्थिति: भारी वर्षा मRead more
भू-स्खलन के कारण और प्रभाव
भू-स्खलन के कारण:
- प्राकृतिक कारण:
- भौगोलिक तत्व: भू-स्खलन अक्सर उन भौगोलिक संरचनाओं की अस्थिरता के कारण होते हैं जिनमें कमजोर या दरार वाले चट्टानें होती हैं। उदाहरणस्वरूप, हिमालयी क्षेत्र में भौगोलिक अस्थिरता के कारण लगातार भू-स्खलन होते रहते हैं।
- मौसमी स्थिति: भारी वर्षा मृदा को संतृप्त कर देती है, जिससे उसका वजन बढ़ जाता है और भू-स्खलन का खतरा बढ़ जाता है। हाल ही में 2023 में हिमाचल प्रदेश में भारी बारिश के कारण कई भू-स्खलन हुए, जिनसे व्यापक क्षति हुई।
- भूकंप: भूकंपीय गतिविधि से मृदा और चट्टानों की स्थिरता प्रभावित होती है। 2001 का गुजरात भूकंप कई भू-स्खलनों का कारण बना, जिससे कच्छ क्षेत्र में भारी तबाही हुई।
- मानव-प्रेरित कारण:
- निर्माण गतिविधियाँ: असंगठित निर्माण कार्य जैसे कि वनस्पति की कटाई और उत्खनन, ढलानों की अस्थिरता को बढ़ाते हैं। 2022 में केरल में भू-स्खलन की घटनाएँ आंशिक रूप से अनियंत्रित खनन और निर्माण गतिविधियों के कारण हुईं।
- भूमि उपयोग में परिवर्तन: शहरीकरण और वनस्पति की कटाई मृदा क्षरण और पानी की निकासी को बढ़ाती है, जिससे ढलान अधिक संवेदनशील हो जाती हैं। उदाहरण के लिए, उत्तराखंड में वनों की कटाई के कारण भू-स्खलनों की घटनाओं में वृद्धि देखी गई है।
भू-स्खलन के प्रभाव:
- संविधानों को क्षति: भू-स्खलन सड़कों, पुलों और भवनों को नष्ट कर सकते हैं, जिससे परिवहन और संचार में रुकावट आती है। 2022 में दार्जिलिंग क्षेत्र में भू-स्खलनों ने प्रमुख सड़कों को क्षतिग्रस्त किया।
- जीवन और संपत्ति की हानि: भू-स्खलनों से जनहानि और संपत्ति की क्षति होती है। 2019 में मुनार, केरल में हुए भू-स्खलन से कई लोगों की जान गई और घरों को गंभीर क्षति पहुँची।
- पर्यावरणीय प्रभाव: भू-स्खलन मृदा क्षरण, वनस्पति की हानि और प्राकृतिक जलवृत्तियों में परिवर्तन कर सकते हैं, जिससे स्थानीय जैव विविधता पर प्रभाव पड़ता है और दीर्घकालिक पर्यावरणीय क्षति होती है।
राष्ट्रीय भू-स्खलन जोखिम प्रबंधन रणनीति के महत्त्वपूर्ण घटक:
- जोखिम मूल्यांकन: भू-स्खलन संभावित क्षेत्रों का विस्तृत मानचित्रण और मूल्यांकन ताकि संवेदनशीलता और जोखिम स्तर को समझा जा सके।
- प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली: वास्तविक समय में निगरानी और चेतावनी प्रणालियों का विकास ताकि समय पर सतर्कता प्रदान की जा सके।
- नियंत्रण उपाय: ढलानों की स्थिरता के लिए इंजीनियरिंग समाधान जैसे कि रिटेनिंग वॉल, ढलान स्थिरीकरण तकनीकें और पुनर्वनीकरण परियोजनाओं का कार्यान्वयन।
- क्षमता निर्माण: स्थानीय समुदायों और अधिकारियों को भू-स्खलन जोखिम, तैयारी और प्रतिक्रिया रणनीतियों पर प्रशिक्षण और शिक्षा।
- अनुसंधान और विकास: भू-स्खलन की प्रक्रिया पर अनुसंधान को प्रोत्साहित करना और जोखिम प्रबंधन के लिए नई प्रौद्योगिकियों का विकास।
- नीति और नियमन: भूमि उपयोग योजना और निर्माण मानकों को लागू करने के लिए नीतियाँ और नियम बनाना, जो भू-स्खलन के जोखिम को कम करें।
इन कारणों और राष्ट्रीय भू-स्खलन जोखिम प्रबंधन रणनीति के घटकों को समझकर, भू-स्खलनों के प्रभाव को कम किया जा सकता है और संवेदनशील क्षेत्रों में सुरक्षा को बढ़ाया जा सकता है।
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भारत सरकार द्वारा आपदा प्रबंधन में अभिनूतन उपाय 1. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (NDMP) 2019: प्रोएक्टिव दृष्टिकोण: NDMP 2019 ने पूर्ववर्ती प्रतिक्रियात्मक दृष्टिकोण को बदलते हुए जोखिम कम करने और सतत प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित किया है। योजना में जोखिम मूल्यांकन, सामुदायिक भागीदारी, और प्रस्तावित प्रतिRead more
भारत सरकार द्वारा आपदा प्रबंधन में अभिनूतन उपाय
1. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (NDMP) 2019:
2. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) की पहल:
3. राज्यस्तरीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण:
4. तकनीकी एकीकरण:
5. सामुदायिक भागीदारी और क्षमता निर्माण:
6. वित्तीय और संस्थागत समर्थन:
इन उपायों के माध्यम से, भारत सरकार ने आपदा प्रबंधन में एक प्रतिक्रियात्मक दृष्टिकोण से हटकर एक अधिक समन्वित, प्रोएक्टिव और प्रौद्योगिकी-संचालित दृष्टिकोण अपनाया है, जिससे आपदाओं की तैयारी और प्रतिक्रिया में सुधार हुआ है।
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