उत्तर लेखन के लिए रोडमैप परिचय (Introduction) भूस्खलन की परिभाषा और इसका महत्व। पश्चिमी घाट और हिमालय का पृष्ठभूमि विवरण और भूस्खलनों का संदर्भ। भौगोलिक विशेषताएँ (Geographical Features) पश्चिमी घाट और हिमालय की भूगर्भीय और जलवायु संबंधी विशेषताएँ। उनके भू-विज्ञान एवं स्थलाकृति का संक्षिप्त वर्णन। भूस्खलन के ...
मॉडल उत्तर 1991 में भारत को भुगतान संतुलन संकट और बढ़ती मुद्रास्फीति का सामना करना पड़ा, जिससे व्यापक आर्थिक सुधारों की आवश्यकता महसूस हुई। ये सुधार उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (LPG) के रूप में जाने जाते हैं। उदारीकरण (Liberalisation) लाइसेंसिंग में कटौती: अधिकांश उद्योगों के लिए लाइसेंस की आवश्यRead more
मॉडल उत्तर
1991 में भारत को भुगतान संतुलन संकट और बढ़ती मुद्रास्फीति का सामना करना पड़ा, जिससे व्यापक आर्थिक सुधारों की आवश्यकता महसूस हुई। ये सुधार उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (LPG) के रूप में जाने जाते हैं।
उदारीकरण (Liberalisation)
- लाइसेंसिंग में कटौती: अधिकांश उद्योगों के लिए लाइसेंस की आवश्यकता समाप्त कर दी गई, जिससे केवल कुछ ही उद्योग सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित रह गए, जैसे कि परमाणु ऊर्जा उत्पादन।
- MRTP अधिनियम में बदलाव: नए उद्योगों के विस्तार के लिए अब सरकार की पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं है। इसने उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा पर जोर दिया।
- पूंजी बाजार का उदारीकरण: SEBI के तहत, कंपनियाँ बिना सरकारी अनुमति के शेयर और डिवेंचर जारी कर सकती हैं।
- लचीला विदेशी मुद्रा बाजार: 1993-94 में, रुपये को विदेशी मुद्रा के संदर्भ में पूरी तरह से परिवर्तनीय बना दिया गया, जिससे बाजार की ताकतें विनिमय दर निर्धारित करने लगीं।
निजीकरण (Privatisation)
सरकार ने सार्वजनिक उपक्रमों की इक्विटी बेचकर विनिवेश की प्रक्रिया शुरू की। इसका उद्देश्य वित्तीय अनुशासन में सुधार और आधुनिकीकरण को बढ़ावा देना था, जिससे निजी क्षेत्र की दक्षता का लाभ लिया जा सके।
वैश्वीकरण (Globalisation)
इन सुधारों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ एकीकृत करने का मार्ग प्रशस्त किया। कई सेवाएँ, जैसे BPO, लेखांकन, और अन्य, विकसित देशों द्वारा भारत में आउटसोर्स की जा रही हैं।
निष्कर्ष
इन सुधारों ने भारत के लिए ‘लाइसेंस परमिट-कोटा’ शासन से एक नए आर्थिक मॉडल की ओर बढ़ने का अवसर प्रदान किया, जिसमें सरकार एक सुविधाकर्ता की भूमिका निभाती है और निजी क्षेत्र को आर्थिक विकास में सक्रियता से भाग लेने के लिए प्रेरित करती है।
See less
मॉडल उत्तर भूस्खलन के कारण हिमालय पर्वत में भूस्खलनों का मुख्य कारण विवर्तनिक गतिविधियां हैं। यह क्षेत्र भूकंपीय गतिविधियों के अधीन है, जो कि इससे बनी भूगर्भीय संरचनाओं को कमजोर बनाती हैं। भारतीय प्लेट का उत्तर की ओर गति करना भी शैल को भुरभुरी और कमजोर करता है, जिससे भूस्खलन का खतरा बढ़ता है (SourceRead more
मॉडल उत्तर
भूस्खलन के कारण
हिमालय पर्वत में भूस्खलनों का मुख्य कारण विवर्तनिक गतिविधियां हैं। यह क्षेत्र भूकंपीय गतिविधियों के अधीन है, जो कि इससे बनी भूगर्भीय संरचनाओं को कमजोर बनाती हैं। भारतीय प्लेट का उत्तर की ओर गति करना भी शैल को भुरभुरी और कमजोर करता है, जिससे भूस्खलन का खतरा बढ़ता है (Source: भारतीय भूगर्भीय सर्वेक्षण)।
इसके विपरीत, पश्चिमी घाट में भूस्खलन का प्रमुख कारण मानसुन के दौरान अत्यधिक वर्षा होती है, जिससे भूजल स्तर बढ़ता है और मिट्टी तक बेहद संतृप्त हो जाती है (Source: भारतीय मौसम विज्ञान विभाग)।
भूस्खलन की प्रकृति
हिमालय में भूस्खलन बड़े पैमाने पर होते हैं और अक्सर चट्टानों एवं मिट्टी की एक बड़ी मात्रा को प्रभावित करते हैं। यह ज्यादातर भूकंप के कारण होते हैं (Source: Earth Surface Processes and Landforms)। दूसरी ओर, पश्चिमी घाट में भूस्खलन छोटे पैमाने पर होते हैं और आमतौर पर कीचड़ के रूप में प्रकट होते हैं।
घटना की बारंबारता
हिमालयी क्षेत्र में भूस्खलनों की घटनाएं अधिक सामान्य हैं, जबकि पश्चिमी घाट में यह घटना कम होती है (Source: NDMA)। यह हिमालय की ऊबड़-खाबड़ स्थलाकृति और अपरिपक्व ढलानों के कारण है।
ढाल अस्थिरता
कुल मिलाकर, हिमालय में उच्च ढाल अस्थिरता पाई जाती है, जबकि पश्चिमी घाट भूगर्भीय रूप से अधिक स्थिर है, जिससे भूस्खलनों की घटनाएं कम होती हैं (Source: Journal of Mountain Science)।
निष्कर्ष
हालांकि भूस्खलनों के कारण और प्रकृति विभिन्न हैं, लेकिन दोनों क्षेत्रों में मानवजनित गतिविधियाँ जैसे अवसंरचना विकास और खनन भूस्खलनों के लिए खतरा बढ़ा रही हैं। इसलिए, प्रभावी प्रबंधन के लिए सभी संबंधित पक्षों के साथ समन्वित प्रयास आवश्यक हैं (Source: NDMA वार्षिक रिपोर्ट)।
See less