उत्तर लेखन के लिए रोडमैप 1. भूमिका प्रश्न का परिचय देते हुए आर्द्रभूमियों के महत्व को संक्षेप में उल्लेख करें। आर्द्रभूमियों का मुख्य कार्य जलवायु शमन, अनुकूलन, जैव विविधता संरक्षण और मानव स्वास्थ्य से संबंधित होने की बात करें। 2. आर्द्रभूमियों का महत्व जलवायु शमन ...
मॉडल उत्तर उत्तर भारत में पराली जलाने से उत्पन्न वायु प्रदूषण उत्तर भारत के राज्यों, विशेष रूप से हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब और राजस्थान में फसल अवशेष और पराली जलाने से वायु प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन चुकी है। यह समस्या मुख्य रूप से परंपरागत गेहूं-धान फसल चक्र और सीमित समय में अगली फसल की तैयारी कRead more
मॉडल उत्तर
उत्तर भारत में पराली जलाने से उत्पन्न वायु प्रदूषण
उत्तर भारत के राज्यों, विशेष रूप से हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब और राजस्थान में फसल अवशेष और पराली जलाने से वायु प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन चुकी है। यह समस्या मुख्य रूप से परंपरागत गेहूं-धान फसल चक्र और सीमित समय में अगली फसल की तैयारी के दबाव के कारण उत्पन्न होती है। किसानों के पास खेतों को तैयार करने के लिए सिर्फ दो से तीन सप्ताह का समय होता है, जिससे वे पराली जलाने का विकल्प चुनते हैं।
पराली जलाने के दुष्प्रभाव
1. वायु प्रदूषण:
पराली जलाने से मीथेन, कार्बन मोनोऑक्साइड, और कैंसरजनक गैसों का उत्सर्जन होता है, जो वायु को प्रदूषित करते हैं। इससे दिल्ली जैसे शहरों में धूम-कोहरा (स्मॉग) जैसी गंभीर स्थितियां उत्पन्न होती हैं।
2. मृदा उर्वरता की कमी:
पराली जलाने से मृदा के पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं, जिससे मृदा की उर्वरता में कमी आती है और मृदा अपरदन भी बढ़ता है।
3. ऊष्मा का प्रसार:
पराली जलाने से उत्पन्न ऊष्मा मृदा की आर्द्रता और सूक्ष्म जीवों को नष्ट कर देती है, जिससे कृषि की उत्पादकता प्रभावित होती है।
समग्र समाधान
1. पराली अपघटन एंजाइम का प्रयोग:
पराली को जैव-उर्वरक में बदलने के लिए अपघटन एंजाइम का प्रयोग एक प्रभावी उपाय हो सकता है, जो प्रदूषण को नियंत्रित करने में सहायक होगा।
2. एयर फिल्टर का उपयोग:
जहां पराली जलाने की घटनाएं अधिक होती हैं, वहां एयर फिल्टर लगाए जा सकते हैं, जो प्रदूषण को नियंत्रित कर सकते हैं। इसके अलावा, किसानों को पराली जलाने की सीमा निर्धारित करनी चाहिए।
3. स्वैच्छिक अनुपालन और जागरूकता:
किसान संगठनों, ग्राम पंचायतों और गैर-सरकारी संगठनों के माध्यम से स्वैच्छिक अनुपालन को बढ़ावा देना चाहिए। किसानों के बीच पराली जलाने के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाना भी जरूरी है।
4. पराली का वैकल्पिक उपयोग:
पराली का उपयोग मवेशियों के चारे, कागज निर्माण, जैव-इथेनॉल आदि में किया जा सकता है। कृषि वैज्ञानिक एम. एस. स्वामीनाथन ने ‘राइस बायो पार्क’ की स्थापना का सुझाव दिया है, जहां पराली का उपयोग किया जा सके।
5. बायोगैस संयंत्र:
पराली से बायोगैस उत्पादन के लिए संयंत्र स्थापित किए जा सकते हैं, जिससे प्रदूषण को कम किया जा सकता है और कृषि उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है।
6. प्रेरणादायक उदाहरण:
बठिंडा के बलोह गांव की ग्राम पंचायत ने खेतों में पराली जलाने पर 500 रुपये प्रति एकड़ की सब्सिडी देने की योजना शुरू की थी, जो एक आदर्श प्रथा के रूप में अपनाई जा सकती है।
निष्कर्ष
उत्तर भारत में पराली जलाने से वायु प्रदूषण को कम करने के लिए समग्र और दीर्घकालिक समाधान की आवश्यकता है। इसके लिए सरकारी नीतियों के साथ-साथ किसानों की जागरूकता और तकनीकी समाधानों की आवश्यकता है।
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मॉडल उत्तर आर्द्रभूमियों का महत्व आर्द्रभूमियाँ जलवायु शमन, अनुकूलन, जैव विविधता संरक्षण और मानव स्वास्थ्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। ये पारिस्थितिकी तंत्र न केवल जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने में मदद करते हैं, बल्कि जैव विविधता का संरक्षण भी करते हैं। आर्द्रभूमियाँ बाढ़ और सूखा रोकने, जलवायुRead more
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आर्द्रभूमियों का महत्व
आर्द्रभूमियाँ जलवायु शमन, अनुकूलन, जैव विविधता संरक्षण और मानव स्वास्थ्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। ये पारिस्थितिकी तंत्र न केवल जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने में मदद करते हैं, बल्कि जैव विविधता का संरक्षण भी करते हैं। आर्द्रभूमियाँ बाढ़ और सूखा रोकने, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने, और स्वास्थ्य सेवाओं की प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
जलवायु शमन और अनुकूलन
आर्द्रभूमियाँ, जैसे कि मेग्रोव और दलदल, कार्बन का भंडारण करती हैं और कार्बन डायऑक्साइड को अवशोषित करके जलवायु शमन में योगदान करती हैं। उदाहरण के लिए, पीटलैंड्स, जो दुनिया के सबसे बड़े कार्बन सॉक्स हैं, जंगलों की तुलना में अधिक कार्बन संग्रहित करते हैं। ये आर्द्रभूमियाँ बाढ़ और तूफानों को रोकने में मदद करती हैं, जिससे जलवायु अनुकूलन में सहारा मिलता है।
जैव विविधता का संरक्षण
आर्द्रभूमियाँ संकटग्रस्त प्रजातियों और प्रवासी पक्षियों के लिए महत्वपूर्ण आवास प्रदान करती हैं। उदाहरण के लिए, चिल्का झील और केयबुल लामजाओ झील में दुर्लभ प्रजातियाँ पाई जाती हैं। ये क्षेत्रों में पारिस्थितिकी तंत्र को सुरक्षित रखने के लिए महत्त्वपूर्ण जैविक विविधता संरक्षित होती है।
स्वास्थ्य सेवाएं
आर्द्रभूमियाँ जल शोधक के रूप में कार्य करती हैं, प्रदूषित जल को निस्संक्रामित करती हैं, जिससे यह मानव उपभोग के लिए सुरक्षित हो जाता है। इसके अलावा, कई आर्द्रभूमि पौधों में औषधीय गुण होते हैं, जैसे कि ब्राह्मी और जल तिपतिया घास, जो पारंपरिक चिकित्सा में उपयोगी हैं।
भारत में आर्द्रभूमि संरक्षण के उपाय
भारत में आर्द्रभूमि संरक्षण के लिए विभिन्न उपाय किए गए हैं:
इन प्रयासों के बावजूद, आर्द्रभूमियाँ जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और अव्यवस्थित विकास के कारण लगातार घट रही हैं। इसलिए इनकी प्राथमिकता, सुरक्षा, और पुनर्बहाली की आवश्यकता है, ताकि ये मानवता के लिए आवश्यक पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं प्रदान करती रहें।
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