Home/जैव विविधता एवं पर्यावरण/पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण
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"नगरपालिका ठोस अपशिष्ट, ऊर्जा क्रय को कम करने में सहायक हो सकता है" पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
नगरपालिका ठोस अपशिष्ट और ऊर्जा कमी परिचय नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (MSW) वह अपशिष्ट है जो घरों, व्यवसायों और संस्थानों द्वारा रोजाना फेंका जाता है, जैसे कि खाद्य अवशेष, पैकेजिंग, और पुराने उपकरण। इस अपशिष्ट का प्रभावी प्रबंधन केवल अपशिष्ट में कमी लाने का अवसर ही नहीं प्रदान करता, बल्कि ऊर्जा पुनः प्राप्Read more
नगरपालिका ठोस अपशिष्ट और ऊर्जा कमी
परिचय नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (MSW) वह अपशिष्ट है जो घरों, व्यवसायों और संस्थानों द्वारा रोजाना फेंका जाता है, जैसे कि खाद्य अवशेष, पैकेजिंग, और पुराने उपकरण। इस अपशिष्ट का प्रभावी प्रबंधन केवल अपशिष्ट में कमी लाने का अवसर ही नहीं प्रदान करता, बल्कि ऊर्जा पुनः प्राप्ति के माध्यम से बाहरी ऊर्जा पर निर्भरता कम करने का भी एक तरीका है।
ऊर्जा पुनः प्राप्ति से लाभ
फायदे और लाभ
हाल की प्रगति और चुनौतियाँ
निष्कर्ष
नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (MSW) वास्तव में ऊर्जा खरीद को कम करने में सहायक हो सकता है, क्योंकि यह विभिन्न पुनः प्राप्ति प्रौद्योगिकियों के माध्यम से ऊर्जा का एक स्थायी स्रोत प्रदान करता है। वैश्विक स्तर पर सफल उदाहरण और हाल की प्रगति इस बात को दर्शाती है कि MSW प्रबंधन ऊर्जा बचत, पर्यावरण संरक्षण, और संसाधन पुनः प्राप्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। लेकिन इसके साथ जुड़ी चुनौतियों को प्रभावी ढंग से हल करना आवश्यक है ताकि इन लाभों को अधिकतम किया जा सके।
See lessई-वेस्ट क्या है?
ई-वेस्ट: एक अवलोकन परिभाषा और क्षेत्र ई-वेस्ट (E-waste) या इलेक्ट्रॉनिक कचरा उन इलेक्ट्रॉनिक या विद्युत उपकरणों को संदर्भित करता है जो अब उपयोग में नहीं हैं या जिनकी जीवन अवधि समाप्त हो चुकी है। इसमें कंप्यूटर, स्मार्टफोन्स, टेलीविजन, रेफ्रिजरेटर्स, और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण शामिल हैं। ई-वेस्ट का अRead more
ई-वेस्ट: एक अवलोकन
परिभाषा और क्षेत्र ई-वेस्ट (E-waste) या इलेक्ट्रॉनिक कचरा उन इलेक्ट्रॉनिक या विद्युत उपकरणों को संदर्भित करता है जो अब उपयोग में नहीं हैं या जिनकी जीवन अवधि समाप्त हो चुकी है। इसमें कंप्यूटर, स्मार्टफोन्स, टेलीविजन, रेफ्रिजरेटर्स, और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण शामिल हैं। ई-वेस्ट का असंगठित निपटान पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरों को जन्म देता है क्योंकि इनमें हानिकारक सामग्री होती है।
ई-वेस्ट के घटक:
हाल के उदाहरण और प्रभाव
चुनौतियाँ और भविष्य की दिशा
असंगठित निपटान प्रथाएँ:
विस्तारित निर्माता जिम्मेदारी (EPR) की आवश्यकता:
जन जागरूकता और शिक्षा:
निष्कर्ष ई-वेस्ट एक बढ़ता हुआ वैश्विक मुद्दा है जिसका पर्यावरण और स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव है। इसका समाधान करने के लिए पुनर्नवीनीकरण तकनीकों, सख्त नियमों, और जन जागरूकता में सुधार की आवश्यकता है। हाल के नवाचार और अंतर्राष्ट्रीय प्रयास, जैसे कि WEEE Directive और नवीनतम पुनर्नवीनीकरण तकनीकें, आशाजनक समाधान प्रदान करती हैं, लेकिन ई-वेस्ट को स्थायी रूप से प्रबंधित करने और इसके प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिए निरंतर प्रयास आवश्यक हैं।
See lessविश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) द्वारा हाल ही में जारी किए गए संशोधित वैश्विक वायु गुणवत्ता दिशानिर्देशों (ए.क्यू.जी.) के मुख्य बिन्दुओं का वर्णन कीजिए। विगत 2005 के अद्यतन से, ये किस प्रकार भिन्न हैं ? इन संशोधित मानकों को प्राप्त करने के लिए, भारत के राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम में किन परिवर्तनों की आवश्यकता है ? (150 words) [UPSC 2021]
संशोधित वैश्विक वायु गुणवत्ता दिशानिर्देशों (ए.क्यू.जी.) के मुख्य बिन्दु डब्ल्यू.एच.ओ. द्वारा 2021 में जारी किए गए संशोधित वैश्विक वायु गुणवत्ता दिशानिर्देशों में प्रमुख बिन्दु निम्नलिखित हैं: सख्त मानक: PM2.5 के लिए मानक 10 µg/m³ से घटाकर 5 µg/m³ और PM10 के लिए 20 µg/m³ से घटाकर 15 µg/m³ कर दिए गएRead more
संशोधित वैश्विक वायु गुणवत्ता दिशानिर्देशों (ए.क्यू.जी.) के मुख्य बिन्दु
डब्ल्यू.एच.ओ. द्वारा 2021 में जारी किए गए संशोधित वैश्विक वायु गुणवत्ता दिशानिर्देशों में प्रमुख बिन्दु निम्नलिखित हैं:
2005 के अद्यतन से भिन्नताएँ
2021 के दिशानिर्देश 2005 की तुलना में अधिक सख्त हैं, जो स्वास्थ्य पर कम प्रदूषण स्तरों के प्रभाव को लेकर बढ़ी हुई वैज्ञानिक जानकारी को दर्शाते हैं। PM2.5 और NO2 के लिए सख्त सीमाएं स्वास्थ्य सुरक्षा के प्रति एक सख्त दृष्टिकोण को उजागर करती हैं।
भारत के राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम में आवश्यक परिवर्तन
इन संशोधित मानकों को प्राप्त करने के लिए, भारत को निम्नलिखित परिवर्तनों की आवश्यकता है:
ये बदलाव भारत में अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य मानकों को पूरा करने और वायु गुणवत्ता सुधारने में महत्वपूर्ण होंगे।
See lessयूट्रोफिकेशन (सुपोषण) से आप क्या समझते हैं?
यूट्रोफिकेशन एक प्रक्रिया है जिसमें जलाशयों या जल निकायों में अत्यधिक पोषक तत्वों का संचय हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप शैवाल और अन्य जलपरी किस्मों की अत्यधिक वृद्धि होती है। यह प्रक्रिया जल की गुणवत्ता, जलीय पारिस्थितिक तंत्र और कुल पर्यावरणीय स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। मुख्य बिंदुRead more
यूट्रोफिकेशन एक प्रक्रिया है जिसमें जलाशयों या जल निकायों में अत्यधिक पोषक तत्वों का संचय हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप शैवाल और अन्य जलपरी किस्मों की अत्यधिक वृद्धि होती है। यह प्रक्रिया जल की गुणवत्ता, जलीय पारिस्थितिक तंत्र और कुल पर्यावरणीय स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।
मुख्य बिंदु:
निष्कर्ष
यूट्रोफिकेशन, जल में अत्यधिक पोषक तत्वों के संचित होने से उत्पन्न होती है, जिससे शैवाल और जलपरी की अत्यधिक वृद्धि होती है। इसके परिणामस्वरूप ऑक्सीजन की कमी, जैव विविधता की हानि, और जल की गुणवत्ता में गिरावट हो सकती है। हाल के उदाहरण, जैसे लेक एरी, चिलिका लेक, और डेड सी, इस मुद्दे की वैश्विक प्रासंगिकता को उजागर करते हैं। यूट्रोफिकेशन से निपटने के लिए प्रभावी प्रबंधन रणनीतियाँ, जैसे पोषक तत्व नियंत्रण, बेहतर सीवेज उपचार, और पुनर्स्थापना परियोजनाएँ, आवश्यक हैं ताकि जल पारिस्थितिक तंत्र की सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित की जा सके।
See lessनिरंतर उत्पन्न किए जा रहे फेंके गए ठोस कचरे की विशाल मात्राओं का निस्तारण करने में क्या-क्या बाधाएँ हैं? हम अपने रहने योग्य परिवेश में जमा होते जा रहे जहरीले अपशिष्टों को सुरक्षित रूप से किस प्रकार हटा सकते हैं? (150 words) [UPSC 2018]
फेंके गए ठोस कचरे का निस्तारण करने में बाधाएँ: **1. अपर्याप्त अवसंरचना: प्रबंधन सुविधाओं की कमी: कई क्षेत्रों में कचरा संग्रहण, पृथक्करण और निस्तारण के लिए आवश्यक अवसंरचना का अभाव है। उदाहरण के लिए, दिल्ली और अन्य बड़े शहरों में अपर्याप्त कचरा प्रबंधन प्रणाली के कारण कचरे का सही तरीके से निस्तारण नहRead more
फेंके गए ठोस कचरे का निस्तारण करने में बाधाएँ:
**1. अपर्याप्त अवसंरचना:
**2. कचरे का मिश्रण:
**3. बढ़ती कचरा उत्पादन:
जहरीले अपशिष्टों को सुरक्षित रूप से हटाने के उपाय:
**1. सही उपचार विधियाँ:
**2. कानूनी ढांचा:
**3. जन जागरूकता और भागीदारी:
इन बाधाओं को दूर करने और प्रभावी प्रबंधन प्रथाओं को अपनाने से ठोस और जहरीले कचरे के पर्यावरणीय प्रभाव को कम किया जा सकता है।
See lessइसके निर्माण, प्रभाव और शमन को महत्त्व देते हुए फोटोकेमिकल स्मॉग की विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए । 1999 के गोथेनबर्ग प्रोटोकॉल को समझाइए । (150 words)[UPSC 2022]
फोटोकेमिकल स्मॉग: निर्माण, प्रभाव और शमन **1. निर्माण: फोटोकेमिकल स्मॉग तब बनता है जब सूरज की रोशनी वायुमंडल में नाइट्रोजन ऑक्साइड्स (NOx) और वोलाटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंड्स (VOCs) के साथ प्रतिक्रिया करती है। इससे ओज़ोन (O3) और अन्य हानिकारक यौगिक उत्पन्न होते हैं। उदाहरण के लिए, दिल्ली और लॉस एंजेलिस मRead more
फोटोकेमिकल स्मॉग: निर्माण, प्रभाव और शमन
**1. निर्माण:
**2. प्रभाव:
**3. शमन उपाय:
1999 का गोथेनबर्ग प्रोटोकॉल
**1. परिचय:
**2. लक्ष्य और प्रभाव:
गोथेनबर्ग प्रोटोकॉल और शमन उपाय फोटोकेमिकल स्मॉग के प्रभावी प्रबंधन और मानव स्वास्थ्य तथा पर्यावरण की सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
See lessपृथ्वी की सतह पर प्रति वर्ष बड़ी मात्रा में वनस्पति पदार्थ, सेलुलोस, जमा हो जाता है। यह सेलुलोस किन प्राकृतिक प्रक्रियाओं से गुज़रता है जिससे कि वह कार्बन डाइऑक्साइड, जल तथा अन्य अंत्य उत्पादों में परिवर्तित हो जाता है ? (150 words)[UPSC 2022]
सेलुलोस के प्राकृतिक विघटन की प्रक्रियाएँ **1. सूक्ष्मजीवों द्वारा विघटन: सेलुलोस का पहला चरण सूक्ष्मजीवों जैसे बैक्टीरिया और फंगस द्वारा विघटन होता है। उदाहरण के लिए, सोरलिया जैसे फंगस वनों में सेलुलोस को छोटे-छोटे यौगिकों में तोड़ते हैं। **2. ह्यूमस का निर्माण: सूक्ष्मजीवों द्वारा विघटन के बाद, ह्Read more
सेलुलोस के प्राकृतिक विघटन की प्रक्रियाएँ
**1. सूक्ष्मजीवों द्वारा विघटन:
**2. ह्यूमस का निर्माण:
**3. सेलुलोस किण्वन:
**4. कार्बन संचयन और उत्सर्जन:
हालिया उदाहरण:
इन प्राकृतिक प्रक्रियाओं के माध्यम से सेलुलोस को कार्बन डाइऑक्साइड, जल और अन्य अंत्य उत्पादों में परिवर्तित किया जाता है, जो वैश्विक कार्बन चक्र और मृदा स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
See lessइलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाना दुनिया भर में तेजी से बढ़ रहा है। कार्बन उत्सर्जन को कम करने में इलेक्ट्रिक वाहन कैसे योगदान करते हैं और पारंपरिक दहन इंजन वाहनों की तुलना में वे क्या प्रमुख लाभ प्रदान करते हैं? (250 words) [UPSC 2023]
इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) का कार्बन उत्सर्जन को कम करने में योगदान कार्बन उत्सर्जन को कम करने में योगदान: कम टेलपाइप उत्सर्जन: इलेक्ट्रिक वाहनों में कोई टेलपाइप उत्सर्जन नहीं होता, जिससे कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) और नाइट्रोजन ऑक्साइड्स (NOx) जैसे प्रदूषकों की मात्रा में कमी आती है। 2023 में इंटरनेशनल काRead more
इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) का कार्बन उत्सर्जन को कम करने में योगदान
कार्बन उत्सर्जन को कम करने में योगदान:
पारंपरिक दहन इंजन वाहनों की तुलना में प्रमुख लाभ:
संक्षेप में, इलेक्ट्रिक वाहन कार्बन उत्सर्जन को महत्वपूर्ण रूप से कम करने में योगदान करते हैं और पारंपरिक दहन इंजन वाहनों की तुलना में कम संचालन लागत, बेहतर वायु गुणवत्ता, और सरकारी प्रोत्साहन जैसे प्रमुख लाभ प्रदान करते हैं।
See lessतेल प्रदूषण क्या है? समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर इसके प्रभाव क्या हैं? भारत जैसे देश के लिए किस तरह से तेल प्रदूषण विशेष रूप से हानिकारक है? (150 words)[UPSC 2023]
तेल प्रदूषण: तेल प्रदूषण तब होता है जब पेट्रोलियम उत्पाद, विशेषकर समुद्री तेल के रिसाव, जहाजों, ऑफशोर ड्रिलिंग रिग्स, या दुर्घटनाओं के कारण जलस्रोतों में मिल जाते हैं। यह प्रदूषण समुद्री और स्थलीय दोनों पर्यावरणों को प्रभावित कर सकता है। समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव: समुद्री जीवन को खतरा: तेRead more
तेल प्रदूषण: तेल प्रदूषण तब होता है जब पेट्रोलियम उत्पाद, विशेषकर समुद्री तेल के रिसाव, जहाजों, ऑफशोर ड्रिलिंग रिग्स, या दुर्घटनाओं के कारण जलस्रोतों में मिल जाते हैं। यह प्रदूषण समुद्री और स्थलीय दोनों पर्यावरणों को प्रभावित कर सकता है।
समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव:
भारत के लिए विशेष हानि:
निष्कर्ष: तेल प्रदूषण समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर विनाशकारी प्रभाव डालता है और भारत जैसे देश के लिए, जिसकी तटीय क्षेत्रीय और संसाधनों पर बड़ी निर्भरता है, इसके परिणाम विशेष रूप से गंभीर हो सकते हैं।
See lessभारत में जैव-चिकित्सा अपशिष्ट (BMW) प्रबंधन में विद्यमान चुनौतियों की विवेचना कीजिए। साथ ही, इस संदर्भ में जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2018 की मुख्य विशेषताओं को रेखांकित कीजिए। (उत्तर 250 शब्दों में दें)
भारत में जैव-चिकित्सा अपशिष्ट (BMW) प्रबंधन में चुनौतियाँ: अवसंरचना की कमी: कई स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों में जैव-चिकित्सा अपशिष्ट के सही संग्रहण, पृथक्करण और निपटान के लिए आवश्यक अवसंरचना और सुविधाओं की कमी है। अपशिष्ट प्रबंधन उपकरण और सुविधाएं अक्सर अपर्याप्त होती हैं। पृथक्करण की कमी: जैव-चिकित्सRead more
भारत में जैव-चिकित्सा अपशिष्ट (BMW) प्रबंधन में चुनौतियाँ:
अवसंरचना की कमी: कई स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों में जैव-चिकित्सा अपशिष्ट के सही संग्रहण, पृथक्करण और निपटान के लिए आवश्यक अवसंरचना और सुविधाओं की कमी है। अपशिष्ट प्रबंधन उपकरण और सुविधाएं अक्सर अपर्याप्त होती हैं।
पृथक्करण की कमी: जैव-चिकित्सा अपशिष्ट को अन्य सामान्य कचरे से पृथक रूप से संग्रहित नहीं किया जाता, जिससे संदूषण का खतरा बढ़ जाता है और प्रभावी निपटान में कठिनाई होती है।
प्रशिक्षण की कमी: स्वास्थ्य देखभाल कर्मियों और अन्य संबंधित व्यक्तियों को जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन के सही तरीके के बारे में पर्याप्त प्रशिक्षण नहीं मिलता, जो प्रबंधन की दक्षता को प्रभावित करता है।
विधानिक अनुपालन की कमी: कई संस्थानों में नियमों और मानकों का पालन नहीं होता, जिससे अपशिष्ट प्रबंधन के मानक पूरे नहीं हो पाते।
जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2018 की मुख्य विशेषताएँ:
क्लासिफिकेशन और रूटीन अपडेट: अपशिष्ट के प्रकार और प्रबंधन के लिए अद्यतन वर्गीकरण प्रदान करता है, और अपशिष्ट की प्रबंधन प्रक्रिया में सुधार के लिए नवीनतम प्रौद्योगिकी को प्रोत्साहित करता है।
ऑनलाइन रिपोर्टिंग और ट्रैकिंग: नियमों के तहत, स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों को अपशिष्ट प्रबंधन की गतिविधियों की ऑनलाइन रिपोर्टिंग और ट्रैकिंग करने की आवश्यकता होती है। यह पारदर्शिता और निगरानी में सुधार करता है।
स्वच्छता मानक और प्रशिक्षण: अपशिष्ट प्रबंधन के लिए नए स्वच्छता मानक निर्धारित किए गए हैं और स्वास्थ्य कर्मियों के लिए प्रशिक्षण प्रोटोकॉल को अनिवार्य किया गया है।
निपटान प्रक्रियाओं में सुधार: अपशिष्ट निपटान के लिए स्वीकृत प्रक्रियाओं को मजबूत किया गया है, जिसमें जलाने, ठोस अपशिष्ट के लिए सुरक्षित निपटान और पुनः उपयोग की विधियाँ शामिल हैं।
इन नियमों का उद्देश्य जैव-चिकित्सा अपशिष्ट के सुरक्षित प्रबंधन को सुनिश्चित करना और स्वास्थ्य जोखिमों को कम करना है, जिससे पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को संरक्षित किया जा सके।
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