मौर्योत्तर काल के शासकों का वास्तुकला पर क्या प्रभाव पड़ा? उनके योगदान और संरक्षण के प्रयासों पर चर्चा करें।
खगोलशास्त्र और गणित: आचार्य आर्यभट ने अपनी काव्य-रचना "आर्यभटीय" में ग्रहों की गति और सौरमंडल की संरचना का विस्तार से वर्णन किया। शून्य और दशमलव प्रणाली की अवधारणाएँ भी इसी काल की देन हैं। आयुर्वेद: आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली में प्राकृतिक औषधियों और उपचार विधियों का विवरण मिलता है। "सुष्रुतRead more
- खगोलशास्त्र और गणित: आचार्य आर्यभट ने अपनी काव्य-रचना “आर्यभटीय” में ग्रहों की गति और सौरमंडल की संरचना का विस्तार से वर्णन किया। शून्य और दशमलव प्रणाली की अवधारणाएँ भी इसी काल की देन हैं।
- आयुर्वेद: आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली में प्राकृतिक औषधियों और उपचार विधियों का विवरण मिलता है। “सुष्रुतसंहिता” में सर्जरी और चिकित्सा के अद्वितीय विधियों का उल्लेख है।
- वास्तुशास्त्र: प्राचीन वास्तुशास्त्र और मंदिर निर्माण में भौगोलिक और ध्वनिक विज्ञान का उपयोग किया गया, जो वास्तुकला के विज्ञान को दर्शाता है।
- धातु विज्ञान: दिल्ली का लौह स्तम्भ, जो जंग रहित है, प्राचीन धातु विज्ञान की उन्नति को प्रदर्शित करता है।
इन पहलुओं से प्राचीन भारतीय ज्ञान और वैज्ञानिक उपलब्धियों की गहराई का पता चलता है।
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मौर्योत्तर काल के शासकों का वास्तुकला पर गहरा प्रभाव था, और उनके संरक्षण तथा निर्माण कार्यों ने भारतीय स्थापत्य कला को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया। इस काल में विभिन्न शासकों, विशेषकर कुषाण, शुंग, सातवाहन, गुप्त, और चोल राजवंशों ने धार्मिक, सांस्कृतिक, और राजनीतिक कारणों से वास्तुकला को प्रोत्साहन दिया।Read more
मौर्योत्तर काल के शासकों का वास्तुकला पर गहरा प्रभाव था, और उनके संरक्षण तथा निर्माण कार्यों ने भारतीय स्थापत्य कला को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया। इस काल में विभिन्न शासकों, विशेषकर कुषाण, शुंग, सातवाहन, गुप्त, और चोल राजवंशों ने धार्मिक, सांस्कृतिक, और राजनीतिक कारणों से वास्तुकला को प्रोत्साहन दिया। इन शासकों के योगदान से बौद्ध, जैन, और हिंदू धर्म के धार्मिक स्थलों की स्थापना हुई, और कला, मूर्तिकला, तथा वास्तुकला में नयापन आया। उन्होंने न केवल नए मंदिरों, गुफाओं और स्तूपों का निर्माण कराया, बल्कि पुरानी इमारतों का संरक्षण और विस्तार भी किया।
1. वास्तुकला के विकास में शासकों की भूमिका:
(i) कुषाण शासक:
कुषाण शासक, विशेषकर कनिष्क, बौद्ध धर्म के महान संरक्षक थे और उनके काल में बौद्ध स्थापत्य कला का विकास तेजी से हुआ। कुषाण काल में बौद्ध धर्म की महायान शाखा का उदय हुआ, जिससे स्तूपों और मठों (विहारों) के निर्माण को बढ़ावा मिला।
(ii) शुंग राजवंश:
शुंग राजाओं ने मौर्य काल की वास्तुकला की परंपराओं को जारी रखा और विशेषकर बौद्ध स्थापत्य कला में योगदान दिया। हालांकि वे हिंदू धर्म के संरक्षक थे, उन्होंने बौद्ध धर्म के स्तूपों और मठों का भी संरक्षण किया।
(iii) सातवाहन राजवंश:
सातवाहन शासक, विशेष रूप से गौतमीपुत्र सातकर्णी, बौद्ध धर्म के संरक्षक थे और उनकी शासन अवधि में गुफा वास्तुकला का व्यापक विकास हुआ।
(iv) गुप्त काल:
गुप्त साम्राज्य को भारतीय स्थापत्य कला का स्वर्णिम युग कहा जाता है। गुप्त शासकों ने हिंदू, बौद्ध, और जैन धर्मों के वास्तुकला का भरपूर समर्थन किया। इस काल में मंदिर वास्तुकला का विकास चरम पर पहुँचा और नागर शैली का उदय हुआ।
(v) चोल राजवंश:
मौर्योत्तर काल के अंत में चोल शासकों ने दक्षिण भारतीय द्रविड़ स्थापत्य शैली को बढ़ावा दिया। चोल काल में बड़े-बड़े शैव और वैष्णव मंदिरों का निर्माण हुआ, जो वास्तुकला, मूर्तिकला, और धार्मिक शक्ति का प्रतीक थे।
2. संरक्षण और संरक्षण के प्रयास:
मौर्योत्तर काल के शासकों ने न केवल नए निर्माण कराए, बल्कि पुराने मंदिरों, स्तूपों, और गुफाओं का संरक्षण भी किया। इस संरक्षण के प्रयासों में धार्मिक स्थलों का पुनर्निर्माण और विस्तार शामिल था।
(i) धार्मिक स्थलों का संरक्षण:
शुंग और सातवाहन शासकों ने मौर्य काल के बौद्ध स्थलों, जैसे सांची और भरहुत के स्तूपों का संरक्षण किया। उन्होंने इन स्थलों का विस्तार किया और नई सजावटी संरचनाएँ जोड़ीं, जिससे इनकी धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता और बढ़ गई।
(ii) भित्ति चित्रकला का संरक्षण:
अजंता और एलोरा की गुफाओं में भित्ति चित्रकला के संरक्षण का श्रेय सातवाहनों और गुप्त शासकों को दिया जा सकता है। इन गुफाओं में चित्रकला और मूर्तिकला का विस्तार उनके शासनकाल में हुआ और धार्मिक कथा-वस्त्रों का सजीव चित्रण हुआ।
(iii) धार्मिक सहिष्णुता:
कई शासकों ने विभिन्न धर्मों के प्रति सहिष्णुता का परिचय दिया और बौद्ध, जैन, और हिंदू धर्म के स्थलों का निर्माण और संरक्षण किया। उदाहरण के लिए, एलोरा की गुफाएँ हिंदू, बौद्ध, और जैन धर्मों की सहअस्तित्व को दर्शाती हैं।
3. वास्तुकला में शासकों के योगदान के प्रभाव:
मौर्योत्तर काल के शासकों का स्थापत्य कला पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ा। उनके योगदान से भारतीय वास्तुकला में विविधता आई और अलग-अलग धर्मों और शैलियों का विकास हुआ। इन शासकों के संरक्षण और योगदान से यह कला प्राचीन भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक बन गई।
निष्कर्ष:
मौर्योत्तर काल के शासकों का वास्तुकला पर महत्वपूर्ण प्रभाव था। उनके संरक्षण और निर्माण कार्यों ने भारतीय स्थापत्य कला को समृद्ध किया और विभिन्न धर्मों के धार्मिक स्थलों का निर्माण और संरक्षण किया। उनके योगदान से न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्रों का विकास हुआ, बल्कि स्थापत्य कला की विविधता और उत्कृष्टता भी बढ़ी, जो भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
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