गुप्तकाल को प्राचीन भारतीय इतिहास का ‘स्वर्ण युग’ क्यों कहा जाता है ? (200 Words) [UPPSC 2022]
प्राचीन भारतीय ज्ञान के उन बिन्दुओं को स्पष्ट करिये जिनके आधार पर भारत को 'विश्वगुरु' अभिहित किया गया प्राचीन भारतीय ज्ञान का योगदान विश्व में広caster हुआ है। निम्न मुख्य बिंदु प्राचीन भारतीय ज्ञान के उन बिन्दुओं की स्पष्ट करते हैं जिनके आधार पर भारत को 'विश्वगुरु' अभिहित किया गया: धार्मिक और आध्यात्Read more
प्राचीन भारतीय ज्ञान के उन बिन्दुओं को स्पष्ट करिये जिनके आधार पर भारत को ‘विश्वगुरु’ अभिहित किया गया
प्राचीन भारतीय ज्ञान का योगदान विश्व में広caster हुआ है। निम्न मुख्य बिंदु प्राचीन भारतीय ज्ञान के उन बिन्दुओं की स्पष्ट करते हैं जिनके आधार पर भारत को ‘विश्वगुरु’ अभिहित किया गया:
धार्मिक और आध्यात्मिक योगदान
- वेद और उपनिषद: वेद, ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद, साथ ही उपनिषद, प्राचीन भारतीय धर्मशास्त्र और आध्यात्मिक सिद्धांतों के मौलिक सिद्धांत शामिल हैं।
- बौद्ध धर्म और जैन धर्म: गौतम बुद्ध और महावीर (जैन धर्म) ने इन धर्मों की स्थापना की, जिन्होंने पूर्वी चिंतन और प्रथा पर बड़ा प्रभाव छोड़ा है।
- योग और मeditation: योग की अवधारणा, पातंजलि के योग सूत्रों में वर्णित, ग्लोबल फ Phenomena बन गई है, जिसमें शारीरिक आसन, सायण और ध्यान शामिल हैं।
विज्ञान और गणित के योगदान
- शून्य और दशमलव सिस्टम: भारत के शून्य की खोज ने गणित और सчис्रण में революकिए शामिल हैं।
- आस्त्रonomi और गणित: प्राचीन भारतीय आस्त्रономर्स जैसे अर्यभट्ट और भास्करचार्य ने आस्त्रonomi और गणित में बड़ा योगदान दिया है।
- चिकित्सा और आयुर्वेद: प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति, आयुर्वेद, ने Wellness and Health में एक holistic Approach दिया है।
कलात्मक और सांस्कृतिक योगदान
- नृत्य और संगीत: भारतीय क्लासिकल डांस जैसे Bharatanatyam, Kathakali और Odissi ने ग्लोबल डांस फॉर्म्स पर बड़ा प्रभाव छोड़ा है।
- लिटरेचर और Philosophy: भारतीय लिटरेचर, महाभारत और रामायण जैसे, ने विश्व लिटरेचर पर बड़ा प्रभाव छोड़ा है।
- अर्किटेक्चर और आईकोनोग्राफी: भारतीय अर्किटेक्चर स्टाइल, ताज महल जैसे, ने ग्लोबल अर्किटेक्चर डिजाइन्स पर बड़ा प्रभाव छोड़ा है।
इन प्राचीन भारतीय ज्ञान के योगदान ने विश्व में एक बड़ा प्रभाव छोड़ा है, जिसके आधार पर भारत को ‘विश्वगुरु’ अभिहित किया गया है।
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प्राचीन भारतीय इतिहास में गुप्तकाल (320 ई. से 550 ई.) को 'स्वर्ण युग' कहा जाता है, क्योंकि: राजनीतिक स्थिरता गुप्त साम्राज्य प्राचीन भारत का सबसे बड़ा और सबसे स्थिर साम्राज्य था। वे राजनीतिक एकता बनाए रखने और उपमहाद्वीप भर में सापेक्षतः दीर्घकालीन शांति और समृद्धि सुनिश्चित करने में सक्षम थे, जैसा कRead more
प्राचीन भारतीय इतिहास में गुप्तकाल (320 ई. से 550 ई.) को ‘स्वर्ण युग’ कहा जाता है, क्योंकि:
राजनीतिक स्थिरता
गुप्त साम्राज्य प्राचीन भारत का सबसे बड़ा और सबसे स्थिर साम्राज्य था। वे राजनीतिक एकता बनाए रखने और उपमहाद्वीप भर में सापेक्षतः दीर्घकालीन शांति और समृद्धि सुनिश्चित करने में सक्षम थे, जैसा कि मौर्य साम्राज्य के दौरान देखा गया था।
आर्थिक समृद्धि
गुप्तकाल में व्यापार, वाणिज्य और कृषि का विकास हुआ, जिससे आर्थिक समृद्धि और शहरी केंद्रों का विकास हुआ, जैसा कि दिल्ली सल्तनत और मुगल साम्राज्य के दौरान देखा गया था।
सांस्कृतिक पुनर्जागरण
गुप्तकाल को कला, साहित्य, विज्ञान और दर्शन में उल्लेखनीय उपलब्धियों के लिए जाना जाता है। इस युग में कामसूत्र, कालिदास के नाटक और आर्यभट्ट के गणितीय अविष्कार जैसे भारत के सबसे प्रसिद्ध कार्य प्रकाशित हुए, जैसा कि विजयनगर साम्राज्य के दौरान देखा गया था।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी में प्रगति
गुप्तकाल में खगोल, गणित, चिकित्सा और धातुकर्म जैसे विभिन्न विज्ञान क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रगति हुई, जैसा कि अकबर के शासनकाल में मुगल साम्राज्य के दौरान देखा गया था।
धार्मिक सद्भाव
गुप्त शासकों ने हिंदूवाद, बौद्धवाद और जैनवाद जैसी विभिन्न धार्मिक परंपराओं का समर्थन किया, जो सांस्कृतिक समृद्धि का योगदान था, जैसा कि अकबर द्वारा मुगल साम्राज्य में धार्मिक बहुलता को बढ़ावा दिया गया था।
इस प्रकार, गुप्त काल को उसकी राजनीतिक स्थिरता, आर्थिक समृद्धि, सांस्कृतिक पुनर्जागरण, वैज्ञानिक प्रगति और धार्मिक सद्भाव के कारण प्राचीन भारतीय इतिहास का ‘स्वर्ण युग’ माना जाता है, जो कि अन्य साम्राज्यों के उपलब्धियों के समकक्ष है।
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