भारतीय परम्परा और संस्कृति में गुप्त-काल और चोल-काल के योगदान पर चर्चा करें। (250 words) [UPSC 2022]
भारतीय मिथक, कला और वास्तुकला में सिंह और वृषभ की आकृतियों का महत्व सिंह की आकृति: मिथकीय महत्व: सिंह भारतीय मिथक और धर्म में शक्ति, संरक्षण, और साहस का प्रतीक है। सिंह भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार में प्रकट हुआ, जो अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है। यह आकृति सिंहासनों, मंदिरों और राजसी प्रतीकों मेRead more
भारतीय मिथक, कला और वास्तुकला में सिंह और वृषभ की आकृतियों का महत्व
सिंह की आकृति:
- मिथकीय महत्व: सिंह भारतीय मिथक और धर्म में शक्ति, संरक्षण, और साहस का प्रतीक है। सिंह भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार में प्रकट हुआ, जो अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है। यह आकृति सिंहासनों, मंदिरों और राजसी प्रतीकों में व्यापक रूप से उपयोग की जाती है।
- कला में सिंह: भारतीय कला में सिंह की आकृति अक्सर सजीवता और आकर्षण के प्रतीक के रूप में चित्रित की जाती है। सांची के स्तूपों और खजुराहो के मंदिरों में सिंह की शिल्पाकृतियाँ इसके महत्व को दर्शाती हैं।
- वास्तुकला में सिंह: सिंह की आकृतियाँ वास्तुकला में सुरक्षा और साम्राज्यिक शक्ति को प्रकट करने के लिए प्रयोग की जाती हैं। उदाहरण स्वरूप, कुतुब मीनार और रानी की वाव जैसे स्मारकों में सिंह की आकृतियाँ देखने को मिलती हैं।
वृषभ की आकृति:
- मिथकीय महत्व: वृषभ, जिसे बैल भी कहा जाता है, धर्म, समृद्धि, और कृषि का प्रतीक है। भगवान शिव का वाहन वृषभ (नंदी) के रूप में प्रकट होता है, जो भक्ति और आस्था का प्रतीक है।
- कला में वृषभ: वृषभ की आकृति भारतीय कला में अक्सर सृजनात्मकता और धार्मिक समर्पण के रूप में चित्रित की जाती है। उज्जैन के महाकाल मंदिर और लथान के कपालेश्वर मंदिर में वृषभ की आकृतियाँ प्रमुख हैं।
- वास्तुकला में वृषभ: वृषभ की आकृतियाँ वास्तुकला में शक्ति और पवित्रता के प्रतीक के रूप में स्थापित की जाती हैं। उदाहरण के तौर पर, द्रविड़ शैली के मंदिरों में वृषभ के अद्वितीय शिल्पांकन मिलते हैं।
निष्कर्ष: सिंह और वृषभ की आकृतियाँ भारतीय मिथक, कला और वास्तुकला में गहरी सांस्कृतिक और धार्मिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये आकृतियाँ शक्ति, सुरक्षा, समृद्धि, और भक्ति के प्रतीक हैं, जो भारतीय सांस्कृतिक विरासत की विविधता और गहराई को दर्शाती हैं।
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भारतीय परम्परा और संस्कृति में गुप्त-काल और चोल-काल के योगदान गुप्त-काल (4वीं-6वीं सदी): साहित्य और कला का उत्कर्ष: गुप्त काल को भारतीय कला और साहित्य का स्वर्ण युग माना जाता है। इस काल में कालिदास जैसे महान कवि और वराहमिहिर जैसे विद्वान पैदा हुए। "कुमारसंभव" और "अभिज्ञानशाकुंतलम्" जैसी रचनाएँ इस काRead more
भारतीय परम्परा और संस्कृति में गुप्त-काल और चोल-काल के योगदान
गुप्त-काल (4वीं-6वीं सदी):
चोल-काल (9वीं-13वीं सदी):
निष्कर्ष: गुप्त काल और चोल काल ने भारतीय परम्परा और संस्कृति को विभिन्न दृष्टिकोणों से समृद्ध किया। गुप्त काल में साहित्य और विज्ञान की उपलब्धियाँ और चोल काल में वास्तुकला और सांस्कृतिक समन्वय, दोनों ने भारतीय सभ्यता की विविधता और गहराई को दर्शाया।
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