“सूक्ष्म-वित्त एक गरीबी रोधी टीका है जो भारत में ग्रामीण दरिद्र की परिसंपत्ति निर्माण और आयसुरक्षा के लिए लक्षित है”। स्वयं सहायता समूहों की भूमिका का मूल्यांकन ग्रामीण भारत में महिलाओं के सशक्तिकरण के साथ साथ उपरोक्त दोहरे उद्देश्यों के ...
आत्मनिर्भर समूह (एस.एच.जी.) बैंक अनुबंधन कार्यक्रम (एस.बी.एल.पी.) भारत का एक महत्वपूर्ण नवाचार है, जिसने निर्धनता न्यूनीकरण और महिला सशक्तीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 1990 के दशक की शुरुआत में शुरू किया गया यह कार्यक्रम गरीब और पिछड़े समुदायों को वित्तीय सेवाओं से जोड़ता है और व्यापक सामाजिकRead more
आत्मनिर्भर समूह (एस.एच.जी.) बैंक अनुबंधन कार्यक्रम (एस.बी.एल.पी.) भारत का एक महत्वपूर्ण नवाचार है, जिसने निर्धनता न्यूनीकरण और महिला सशक्तीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 1990 के दशक की शुरुआत में शुरू किया गया यह कार्यक्रम गरीब और पिछड़े समुदायों को वित्तीय सेवाओं से जोड़ता है और व्यापक सामाजिक एवं आर्थिक लाभ प्रदान करता है।
प्रमुख विशेषताएँ और प्रभाव:
वित्तीय समावेशन: एस.बी.एल.पी. कार्यक्रम के तहत, आत्मनिर्भर समूहों, जो मुख्यतः महिलाओं का समूह होते हैं, को औपचारिक बैंकों से जोड़ा जाता है। इससे उन्हें क्रेडिट, बचत और अन्य वित्तीय सेवाओं की सुविधा मिलती है जो पहले अनुपलब्ध थी। यह वित्तीय समावेशन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो गरीबों को बैंकिंग प्रणाली से जोड़ता है।
महिला सशक्तीकरण: इस कार्यक्रम का मुख्य ध्यान महिलाओं पर है। आत्मनिर्भर समूहों में महिलाओं को शामिल करके, उन्हें वित्तीय संसाधनों तक पहुँच प्रदान की जाती है, जिससे वे आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त होती हैं। महिलाओं की भागीदारी से उनकी परिवार और समुदाय में निर्णय लेने की शक्ति बढ़ती है, और वे स्वावलंबी बनती हैं।
निर्धनता न्यूनीकरण: आत्मनिर्भर समूहों को प्रदान किए गए छोटे-मोटे ऋण उन्हें व्यापार शुरू करने या विस्तार करने में मदद करते हैं। इससे उनकी आय में वृद्धि होती है और जीवन स्तर सुधारता है। समूहों का सामूहिक स्वरूप आपसी समर्थन और सहयोग को बढ़ावा देता है, जो आर्थिक जोखिमों और वित्तीय आपात स्थितियों से निपटने में सहायक होता है।
क्षमता निर्माण और सामाजिक पूंजी: इस कार्यक्रम के माध्यम से वित्तीय साक्षरता, बचत की आदतें, और समूह आधारित चर्चा को बढ़ावा मिलता है। इससे सदस्यों के वित्तीय प्रबंधन कौशल में सुधार होता है और सामाजिक पूंजी में वृद्धि होती है।
निष्कर्ष:
आत्मनिर्भर समूह बैंक अनुबंधन कार्यक्रम निर्धनता न्यूनीकरण और महिला सशक्तीकरण में अत्यधिक प्रभावी साबित हुआ है। यह गरीब समुदायों को औपचारिक वित्तीय प्रणाली से जोड़ता है, उनके आर्थिक अवसरों को बढ़ाता है, और सामाजिक एकता को प्रोत्साहित करता है। इसके सफल कार्यान्वयन ने इसे भारत के विकास प्रयासों में एक प्रमुख नवाचार बना दिया है।
सूक्ष्म-वित्त (Microfinance) और स्वयं सहायता समूह (Self-Help Groups, SHGs) ग्रामीण भारत में गरीबी रोधी उपायों के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, विशेषकर महिलाओं के सशक्तिकरण और परिसंपत्ति निर्माण के संदर्भ में। 1. महिलाओं के सशक्तिकरण: आर्थिक स्वतंत्रता: स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से महिलाएRead more
सूक्ष्म-वित्त (Microfinance) और स्वयं सहायता समूह (Self-Help Groups, SHGs) ग्रामीण भारत में गरीबी रोधी उपायों के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, विशेषकर महिलाओं के सशक्तिकरण और परिसंपत्ति निर्माण के संदर्भ में।
1. महिलाओं के सशक्तिकरण:
आर्थिक स्वतंत्रता: स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से महिलाएं छोटे-छोटे ऋण प्राप्त कर सकती हैं, जो उन्हें अपने छोटे व्यवसायों को स्थापित करने और संचालित करने की सुविधा प्रदान करते हैं। इससे वे आर्थिक रूप से स्वतंत्र होती हैं और परिवार के आर्थिक निर्णयों में भाग ले सकती हैं।
सामाजिक सशक्तिकरण: SHGs महिलाओं को सामूहिक रूप से संगठित करती हैं, जिससे वे सामाजिक मुद्दों पर चर्चा और निर्णय लेने में सक्षम होती हैं। यह उनके आत्म-सम्मान और नेतृत्व क्षमताओं को बढ़ावा देता है, जिससे वे समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।
2. परिसंपत्ति निर्माण:
स्रोतों की उपलब्धता: स्वयं सहायता समूहों द्वारा प्रदान किए गए सूक्ष्म-वित्तीय साधन, जैसे छोटे ऋण और बचत योजनाएँ, ग्रामीण गरीबों को आवश्यक पूंजी प्रदान करती हैं। इससे वे अपने छोटे व्यवसायों या कृषि कार्यों में निवेश कर सकते हैं, जो उनकी संपत्ति निर्माण में सहायक होता है।
स्थिरता और सुरक्षा: SHGs में जुड़ी महिलाएं नियमित रूप से अपनी बचत करती हैं और ऋण चुकता करती हैं, जिससे उनके पास आर्थिक सुरक्षा और स्थिरता का आधार होता है। यह दीर्घकालिक वित्तीय सुरक्षा और संपत्ति निर्माण को बढ़ावा देता है।
उदाहरण:
नरेन्द्रा मोदी की सरकार के तहत ‘प्रधानमंत्री जन धन योजना’ और ‘सुकन्या समृद्धि योजना’ जैसे कार्यक्रमों ने SHGs को वित्तीय समावेशन में योगदान दिया है। इसी तरह, ‘अन्नपूर्णा योजना’ ने SHGs को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने में मदद की है।
जिला ग्रामीण विकास एजेंसियाँ (DRDAs) और गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) ने भी SHGs के माध्यम से सूक्ष्म-वित्तीय योजनाओं को लागू किया है, जिससे ग्रामीण महिलाओं को लाभ हुआ है और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है।
निष्कर्ष:
See lessस्वयं सहायता समूहों की भूमिका ग्रामीण भारत में महिलाओं के सशक्तिकरण और परिसंपत्ति निर्माण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। वे न केवल आर्थिक अवसर प्रदान करते हैं बल्कि सामाजिक और सामुदायिक सशक्तिकरण में भी योगदान करते हैं। इन समूहों द्वारा किए गए प्रयासों से ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी कम करने और विकास को गति देने में मदद मिलती है।