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विकास योजना के नव-उदारी प्रतिमान के संदर्भ में, आशा की जाती है कि बहु-स्तरी योजनाकरण संक्रियाओं को लागत प्रभावी बना देगा और अनेक क्रियान्वयन रुकावटों को हटा देगा ।' चर्चा कीजिए । (250 words) [UPSC 2019]
विकास योजना और बहु-स्तरी योजनाकरण परिचय: विकास योजना के नव-उदारी प्रतिमान के संदर्भ में, आशा की जाती है कि बहु-स्तरी योजनाकरण संक्रियाओं को लागत प्रभावी बना देगा और अनेक क्रियान्वयन रुकावटों को हटा देगा। लागत प्रभावी: नव-उदारी प्रतिमान में, जो की बाजार-निर्धारित नीतियों और निजी क्षेत्र की भागीदारी कRead more
विकास योजना और बहु-स्तरी योजनाकरण
परिचय:
विकास योजना के नव-उदारी प्रतिमान के संदर्भ में, आशा की जाती है कि बहु-स्तरी योजनाकरण संक्रियाओं को लागत प्रभावी बना देगा और अनेक क्रियान्वयन रुकावटों को हटा देगा।
लागत प्रभावी:
नव-उदारी प्रतिमान में, जो की बाजार-निर्धारित नीतियों और निजी क्षेत्र की भागीदारी को बल देता है, बहु-स्तरी योजनाकरण से संसाधन विनियोजन की अनुकूलन करने में मदद मिल सकती है और परियोजना के क्रियान्वयन में लागत प्रभावी बना सकती है।
स्थानीय सहभागिता:
बहु-स्तरी योजनाकरण में निर्णय लेने की प्रक्रियाओं की विस्तारित सहभागिता से, स्थानीय समस्याओं के लिए उपाय ढूंढने और संसाधनों के बेहतर उपयोग की सुनिश्चित करने में सहायक हो सकता है।
क्रियान्वयन की अधिकता:
निर्णय शक्ति को स्थानीय स्तरों में सौंपकर, बहु-स्तरी योजनाकरण क्रियान्वयन की अधिकता में मदद कर सकता है, ब्यूरोक्रेटिक बाधाओं को कम करके और स्थानीय मुद्दों के त्वरित समाधान को सुनिश्चित करके।
हाल के उदाहरण:
नव-उदारी प्रतिमान के अंतर्गत, जैसे की भारत की स्मार्ट सिटीज मिशन और अमृत (अटल मिशन फॉर रिजुविनेशन एंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन), बहु-स्तरी योजनाकरण को महत्व दिया जा रहा है जो शहरी बुनियादी संरचना को सुदृढ़ करने में मदद करता है, दिखाते हैं की यह उपाय क्रियान्वयन की अधिकता में सहायक है।
चुनौतियाँ और विचार:
बहु-स्तरी योजनाकरण के द्वारा आए लाभों को पूरी तरह से प्राप्त करने के लिए विभिन्न स्तरों के बीच समन्वय समस्याएं और स्थानीय स्तरों पर क्षमता निर्माण की आवश्यकता है।
निष्कर्ष:
See lessसमाप्ति रूप में, नव-उदारी विकास संदर्भ में, बहु-स्तरी योजनाकरण विकास संक्रियाओं को लागत प्रभावी बनाने और क्रियान्वयन रुकावटों को हटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस दृष्टिकोण को अपनाने से संसाधनों का अधिक उपयोग हो सकता है और स्थानीय आवश्यकताओं के साथ बेहतर संयोजन साधित किया जा सकता है, जिससे सतत विकास को प्रोत्साहित किया जा सकता ह।
क्या कमज़ोर और पिछड़े समुदायों के लिए आवश्यक सामाजिक संसाधनों को सुरक्षित करने के द्वारा, उनकी उन्नति के लिए सरकारी योजनाएं, शहरी अर्थव्यवस्थाओं में व्यवसायों की स्थापना करने में उनको बहिष्कृत कर देती हैं ? (200 words) [UPSC 2014]
परिचय सरकारी योजनाएं, जो कमज़ोर और पिछड़े समुदायों की उन्नति के लिए आवश्यक सामाजिक संसाधनों को सुरक्षित करती हैं, अक्सर वित्तीय सहायता, कौशल प्रशिक्षण और अन्य समर्थन प्रदान करती हैं। हालांकि, ये योजनाएं कभी-कभी इन समुदायों के शहरी अर्थव्यवस्थाओं में व्यवसाय स्थापित करने में बाधा डाल सकती हैं। उद्यमिRead more
परिचय
सरकारी योजनाएं, जो कमज़ोर और पिछड़े समुदायों की उन्नति के लिए आवश्यक सामाजिक संसाधनों को सुरक्षित करती हैं, अक्सर वित्तीय सहायता, कौशल प्रशिक्षण और अन्य समर्थन प्रदान करती हैं। हालांकि, ये योजनाएं कभी-कभी इन समुदायों के शहरी अर्थव्यवस्थाओं में व्यवसाय स्थापित करने में बाधा डाल सकती हैं।
उद्यमिता कौशल पर ध्यान की कमी
अधिकांश सरकारी योजनाएं जैसे प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY) और दीनदयाल अंत्योदय योजना – राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (DAY-NULM) तात्कालिक वित्तीय सहायता और मूलभूत संसाधन प्रदान करती हैं, लेकिन उद्यमिता कौशल और व्यवसाय प्रबंधन पर पर्याप्त ध्यान नहीं देतीं। उदाहरण के लिए, स्टार्ट-अप इंडिया योजना ने स्टार्टअप्स को समर्थन दिया है, लेकिन इसके जटिल आवेदन प्रक्रिया के कारण पिछड़े समुदायों तक इसका लाभ पहुंचने में समस्याएं रही हैं।
प्रशासनिक बाधाएं
मुद्रा योजना जैसी योजनाओं के अंतर्गत प्राप्त लाभ के लिए जटिल प्रशासनिक प्रक्रियाओं की वजह से छोटे व्यवसायी अक्सर ब्यूरोक्रेटिक अड़चनों का सामना करते हैं। इस प्रक्रिया की जटिलता संभावित उद्यमियों को परेशान कर सकती है और उनका समर्थन कम कर सकती है।
सामाजिक पूर्वाग्रह और भेदभाव
वित्तीय सहायता के बावजूद, पिछड़े समुदायों के उद्यमियों को सामाजिक पूर्वाग्रह और भेदभाव का सामना करना पड़ता है। इस तरह की बाधाएं उन्हें शहरी व्यापारिक नेटवर्क में एकीकृत होने और व्यवसाय स्थापित करने में मुश्किलें पैदा कर सकती हैं।
निष्कर्ष
सरकारी योजनाओं की प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए, इनमें उद्यमिता प्रशिक्षण, सरल पहुँच प्रक्रियाएं, और सामाजिक भेदभाव के खिलाफ उपाय शामिल करने की आवश्यकता है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि पिछड़े समुदाय शहरी अर्थव्यवस्थाओं में सफलतापूर्वक स्थापित हो सकें, एक समग्र दृष्टिकोण आवश्यक है।
See lessग्रामीण क्षेत्रों में विकास कार्यक्रमों में भागीदारी की प्रोन्नति करने में स्वावलंबन समूहों (एस.एच.जी.) के प्रवेश को सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। परीक्षण कीजिये। (200 words) [UPSC 2014]
स्वावलंबन समूह (एस.एच.जी.) ग्रामीण विकास कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन इनकी प्रभावशीलता सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाओं के कारण प्रभावित हो सकती है। पहली बाधा सांस्कृतिक परंपराओं की होती है। ग्रामीण इलाकों में पारंपरिक मान्यताएँ और जातिगत भेदभाव एस.एच.जी. के कार्यों में हस्तक्षेप करRead more
स्वावलंबन समूह (एस.एच.जी.) ग्रामीण विकास कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन इनकी प्रभावशीलता सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाओं के कारण प्रभावित हो सकती है।
पहली बाधा सांस्कृतिक परंपराओं की होती है। ग्रामीण इलाकों में पारंपरिक मान्यताएँ और जातिगत भेदभाव एस.एच.जी. के कार्यों में हस्तक्षेप कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, महिलाओं के नेतृत्व वाले समूहों को कभी-कभी पुरुष प्रधान समाज द्वारा संदेह की नजर से देखा जाता है, जो उनके प्रभावशीलता को कम कर सकता है।
दूसरी बाधा सामाजिक संरचनाओं की है। कुछ गांवों में मजबूत जातिगत या समुदायिक विभाजन होता है, जो एस.एच.जी. के भीतर सहयोग और एकता को प्रभावित कर सकता है। विभिन्न जातियों या वर्गों के बीच मतभेद और असमानताएँ समूह की प्रभावशीलता को बाधित कर सकती हैं।
तीसरी बाधा शिक्षा और जागरूकता की कमी है। ग्रामीण क्षेत्रों में, लोगों को एस.एच.जी. के लाभ और उनके कार्यप्रणाली के बारे में जानकारी की कमी हो सकती है, जिससे उनकी भागीदारी और समर्थन में कमी आ सकती है।
इन बाधाओं को दूर करने के लिए, सामाजिक-सांस्कृतिक संवेदनशीलता के साथ कार्यक्रमों का निर्माण करना आवश्यक है, जिससे कि ग्रामीण क्षेत्रों में एस.एच.जी. की भूमिका को बेहतर ढंग से निभाया जा सके।
See lessपर्यावरण की सुरक्षा से संबंधित विकास कार्यों के लिए भारत में गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका को किस प्रकार मज़बूत बनाया जा सकता है? मुख्य बाध्यताओं पर प्रकाश डालते हुए चर्चा कीजिए। (200 words) [UPSC 2015]
भारत में गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) की भूमिका को मज़बूत करने के उपाय और मुख्य बाध्यताएँ **1. वित्तीय संसाधनों और समर्थन में वृद्धि: उपाय: एनजीओ को पर्यावरणीय परियोजनाओं के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन और तकनीकी सहायता उपलब्ध कराना चाहिए। उदाहरण: "ग्रामीन विकास के लिए एनजीओ के पास सीमित फंड होते हैं,Read more
भारत में गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) की भूमिका को मज़बूत करने के उपाय और मुख्य बाध्यताएँ
**1. वित्तीय संसाधनों और समर्थन में वृद्धि:
**2. क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण:
**3. नीति और नियामक समर्थन:
**4. सहयोग और नेटवर्किंग:
**5. जन जागरूकता और प्रचार:
निष्कर्ष: भारत में एनजीओ की पर्यावरणीय विकास कार्यों में प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए वित्तीय, क्षमता निर्माण, नियामक, सहयोग, और जागरूकता के क्षेत्रों में सुधार आवश्यक हैं। इन बाध्यताओं को पार करके, एनजीओ पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।
See lessआत्मनिर्भर समूह (एस० एच० जी०) बैंक अनुबंधन कार्यक्रम (एस० बी० एल० पी०), जो कि भारत का स्वयं का नवाचार है, निर्धनता न्यूनीकरण और महिला सशक्तीकरण कार्यक्रमों में एक सर्वाधिक प्रभावी कार्यक्रम साबित हुआ है। सविस्तार स्पष्ट कीजिए। (200 words) [UPSC 2015]
आत्मनिर्भर समूह (एस.एच.जी.) बैंक अनुबंधन कार्यक्रम (एस.बी.एल.पी.) भारत का एक महत्वपूर्ण नवाचार है, जिसने निर्धनता न्यूनीकरण और महिला सशक्तीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 1990 के दशक की शुरुआत में शुरू किया गया यह कार्यक्रम गरीब और पिछड़े समुदायों को वित्तीय सेवाओं से जोड़ता है और व्यापक सामाजिकRead more
आत्मनिर्भर समूह (एस.एच.जी.) बैंक अनुबंधन कार्यक्रम (एस.बी.एल.पी.) भारत का एक महत्वपूर्ण नवाचार है, जिसने निर्धनता न्यूनीकरण और महिला सशक्तीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 1990 के दशक की शुरुआत में शुरू किया गया यह कार्यक्रम गरीब और पिछड़े समुदायों को वित्तीय सेवाओं से जोड़ता है और व्यापक सामाजिक एवं आर्थिक लाभ प्रदान करता है।
प्रमुख विशेषताएँ और प्रभाव:
वित्तीय समावेशन: एस.बी.एल.पी. कार्यक्रम के तहत, आत्मनिर्भर समूहों, जो मुख्यतः महिलाओं का समूह होते हैं, को औपचारिक बैंकों से जोड़ा जाता है। इससे उन्हें क्रेडिट, बचत और अन्य वित्तीय सेवाओं की सुविधा मिलती है जो पहले अनुपलब्ध थी। यह वित्तीय समावेशन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो गरीबों को बैंकिंग प्रणाली से जोड़ता है।
महिला सशक्तीकरण: इस कार्यक्रम का मुख्य ध्यान महिलाओं पर है। आत्मनिर्भर समूहों में महिलाओं को शामिल करके, उन्हें वित्तीय संसाधनों तक पहुँच प्रदान की जाती है, जिससे वे आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त होती हैं। महिलाओं की भागीदारी से उनकी परिवार और समुदाय में निर्णय लेने की शक्ति बढ़ती है, और वे स्वावलंबी बनती हैं।
निर्धनता न्यूनीकरण: आत्मनिर्भर समूहों को प्रदान किए गए छोटे-मोटे ऋण उन्हें व्यापार शुरू करने या विस्तार करने में मदद करते हैं। इससे उनकी आय में वृद्धि होती है और जीवन स्तर सुधारता है। समूहों का सामूहिक स्वरूप आपसी समर्थन और सहयोग को बढ़ावा देता है, जो आर्थिक जोखिमों और वित्तीय आपात स्थितियों से निपटने में सहायक होता है।
क्षमता निर्माण और सामाजिक पूंजी: इस कार्यक्रम के माध्यम से वित्तीय साक्षरता, बचत की आदतें, और समूह आधारित चर्चा को बढ़ावा मिलता है। इससे सदस्यों के वित्तीय प्रबंधन कौशल में सुधार होता है और सामाजिक पूंजी में वृद्धि होती है।
निष्कर्ष:
See lessआत्मनिर्भर समूह बैंक अनुबंधन कार्यक्रम निर्धनता न्यूनीकरण और महिला सशक्तीकरण में अत्यधिक प्रभावी साबित हुआ है। यह गरीब समुदायों को औपचारिक वित्तीय प्रणाली से जोड़ता है, उनके आर्थिक अवसरों को बढ़ाता है, और सामाजिक एकता को प्रोत्साहित करता है। इसके सफल कार्यान्वयन ने इसे भारत के विकास प्रयासों में एक प्रमुख नवाचार बना दिया है।
विदेशी अभिदाय (विनियमन) अधिनियम (एफ० सी० आर० ए०), 1976 के अधीन गैर-सरकारी संगठनों के विदेशी वित्तीयन के नियंत्रक नियमों में हाल के परिवर्तनों का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए। (200 words) [UPSC 2015]
विदेशी अभिदाय (विनियमन) अधिनियम (एफ.सी.आर.ए.), 1976 के तहत गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) के विदेशी वित्तीयन के नियंत्रक नियमों में हाल के परिवर्तनों ने महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। ये बदलाव, विशेष रूप से 2020 में किए गए संशोधनों और नए नियमों के माध्यम से, एनजीओ की कार्यप्रणाली और उनके विदेशी दानदाताओं केRead more
विदेशी अभिदाय (विनियमन) अधिनियम (एफ.सी.आर.ए.), 1976 के तहत गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) के विदेशी वित्तीयन के नियंत्रक नियमों में हाल के परिवर्तनों ने महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। ये बदलाव, विशेष रूप से 2020 में किए गए संशोधनों और नए नियमों के माध्यम से, एनजीओ की कार्यप्रणाली और उनके विदेशी दानदाताओं के साथ संबंधों पर प्रभाव डाल रहे हैं।
प्रमुख परिवर्तन और समालोचनात्मक परीक्षण:
विदेशी फंडिंग पर प्रतिबंध:
परिवर्तन: 2020 के संशोधन ने विदेशी फंडिंग पर सख्त नियम लागू किए हैं, जिनमें दानदाताओं की निगरानी और फंडिंग स्रोतों की जांच शामिल है।
समालोचनात्मक दृष्टिकोण: यह कदम एनजीओ की स्वतंत्रता और प्रभावशीलता को प्रभावित कर सकता है, और सामाजिक मुद्दों को संबोधित करने की उनकी क्षमता पर असर डाल सकता है।
आधार लिंकिंग की अनिवार्यता:
परिवर्तन: एनजीओ को विदेशी फंड प्राप्त करने वाले बैंक खातों को आधार से जोड़ने की आवश्यकता है।
समालोचनात्मक दृष्टिकोण: यह प्रावधान गोपनीयता और नौकरशाही में देरी की समस्याएं पैदा कर सकता है, विशेषकर दूरदराज के क्षेत्रों में जहां आधार इंफ्रास्ट्रक्चर सीमित हो सकता है।
प्रशासनिक खर्चों पर सीमा:
परिवर्तन: विदेशी फंड्स के प्रशासनिक खर्चों पर एक सीमा निर्धारित की गई है।
समालोचनात्मक दृष्टिकोण: यह परिवर्तन एनजीओ की संचालनात्मक लचीलापन को सीमित कर सकता है और परियोजनाओं की निगरानी में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
बढ़ी हुई अनुपालन और रिपोर्टिंग:
परिवर्तन: अधिक पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए अनुपालन और रिपोर्टिंग की जिम्मेदारियाँ बढ़ाई गई हैं।
See lessसमालोचनात्मक दृष्टिकोण: जबकि यह कदम दान की निगरानी में मददगार हो सकता है, बढ़े हुए पेपरवर्क और अनुपालन के बोझ से एनजीओ की मूल गतिविधियाँ प्रभावित हो सकती हैं।
निष्कर्ष:
एफ.सी.आर.ए. के तहत हाल के परिवर्तनों का उद्देश्य पारदर्शिता बढ़ाना और विदेशी फंडिंग के दुरुपयोग को रोकना है। हालांकि, ये परिवर्तनों ने एनजीओ की स्वायत्तता, गोपनीयता, और संचालनात्मक क्षमता पर चिंता जताई है। इन नियमों का संतुलन बनाना और एनजीओ की प्रभावशीलता को बनाए रखना एक महत्वपूर्ण चुनौती है।
"वर्तमान समय में स्वयं सहायता समूहों का उद्भव राज्य के विकासात्मक गतिविधियों से धीरे परंतु निरंतर पीछे हटने का संकेत है।" विकासात्मक गतिविधियों में स्वयं सहायता समूहों की भूमिका का एवं भारत सरकार द्वारा स्वयं सहायता समूहों को प्रोत्साहित करने के लिए किए गए उपायों का परीक्षण कीजिए। (250 words) [UPSC 2017]
स्वयं सहायता समूहों (SHGs) का उद्भव और उनका विकास, विशेष रूप से ग्रामीण भारत में, राज्य के विकासात्मक गतिविधियों से धीरे-धीरे पीछे हटने का संकेत देता है। SHGs ने विकास के कई पहलुओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जो कभी राज्य के द्वारा प्रत्यक्ष रूप से की जाती थीं। विकासात्मक गतिविधियों में SHGs कीRead more
स्वयं सहायता समूहों (SHGs) का उद्भव और उनका विकास, विशेष रूप से ग्रामीण भारत में, राज्य के विकासात्मक गतिविधियों से धीरे-धीरे पीछे हटने का संकेत देता है। SHGs ने विकास के कई पहलुओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जो कभी राज्य के द्वारा प्रत्यक्ष रूप से की जाती थीं।
विकासात्मक गतिविधियों में SHGs की भूमिका:
आर्थिक सशक्तिकरण: SHGs ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों, खासकर महिलाओं, को संगठित कर उन्हें लघु ऋण उपलब्ध कराकर छोटे व्यवसाय शुरू करने और कृषि गतिविधियों में निवेश करने के अवसर दिए हैं। इससे न केवल उनकी आय में वृद्धि हुई है बल्कि उनकी गरीबी भी कम हुई है।
सामाजिक सशक्तिकरण: SHGs ने सामाजिक समावेशन को बढ़ावा दिया है। महिलाएं संगठित होकर सामूहिक निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल हो रही हैं, जिससे उनकी सामाजिक स्थिति मजबूत हुई है और वे समुदाय की गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग ले रही हैं।
कौशल विकास और क्षमता निर्माण: SHGs सदस्यों को विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण और कौशल विकास कार्यक्रमों से लाभान्वित कर रहे हैं। इससे उन्हें रोजगार के नए अवसर मिलते हैं और वे अपने आर्थिक संसाधनों का बेहतर प्रबंधन कर पाती हैं।
सरकारी योजनाओं तक पहुँच: SHGs ने ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी योजनाओं का लाभ लोगों तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वे स्वास्थ्य, स्वच्छता, शिक्षा, और अन्य कल्याणकारी योजनाओं को जमीनी स्तर तक पहुँचाने में सहायक हैं।
SHGs को प्रोत्साहित करने के लिए भारत सरकार के उपाय:
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM): 2011 में शुरू हुआ NRLM, SHGs को वित्तीय सहायता, प्रशिक्षण और बैंक ऋण तक पहुँच प्रदान करने के लिए बनाया गया था। इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका के सतत साधन तैयार करना है।
दीनदयाल अंत्योदय योजना: इस योजना का उद्देश्य SHGs के माध्यम से गरीबी उन्मूलन है। यह योजना SHGs संघों को बढ़ावा देती है और उनके उत्पादों के विपणन, मूल्य संवर्धन और बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए समर्थन प्रदान करती है।
SHG-बैंक लिंकेज कार्यक्रम (SBLP): NABARD द्वारा 1992 में शुरू किया गया यह कार्यक्रम, SHGs को बैंकों से जोड़कर उन्हें औपचारिक वित्तीय सेवाएँ, ऋण और बीमा उत्पाद प्रदान करता है।
प्रशिक्षण और रोजगार कार्यक्रम (STEP): इस योजना का उद्देश्य SHGs की महिलाओं को कौशल विकास और आय सृजन गतिविधियों में शामिल करना है।
निष्कर्ष:
See lessSHGs का उदय राज्य के विकासात्मक गतिविधियों से धीरे-धीरे पीछे हटने का संकेत देता है, लेकिन SHGs ने राज्य के प्रयासों को पूरक बनाते हुए विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। SHGs और सरकारी पहलों के बीच की यह सहभागिता समावेशी और सतत विकास के लिए महत्वपूर्ण है।
नागरिक समाज संगठन (CSOs) न केवल धर्मार्थ कार्यों में लगे हुए हैं, बल्कि न्यायसंगत, शांतिपूर्ण, मानवीय नौर संधारणीय भविष्य के निर्माण के लिए राजनीतिक प्रक्रियानों में भी शामिल हैं। उदाहरण सहित चर्चा कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
नागरिक समाज संगठन (CSOs) का महत्व केवल धर्मार्थ कार्यों तक सीमित नहीं है; वे राजनीतिक प्रक्रियाओं में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये संगठन समाज के विभिन्न मुद्दों को उजागर करने, नीति निर्माण में योगदान देने और लोकतंत्र को मजबूत करने में सक्रिय रहते हैं। उदाहरण: मानवाधिकार: मानवाधिकार संगठनों नेRead more
नागरिक समाज संगठन (CSOs) का महत्व केवल धर्मार्थ कार्यों तक सीमित नहीं है; वे राजनीतिक प्रक्रियाओं में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये संगठन समाज के विभिन्न मुद्दों को उजागर करने, नीति निर्माण में योगदान देने और लोकतंत्र को मजबूत करने में सक्रिय रहते हैं।
उदाहरण:
मानवाधिकार: मानवाधिकार संगठनों ने राजनीतिक प्रक्रियाओं को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उदाहरण के लिए, एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कई देशों में मानवाधिकार उल्लंघनों के खिलाफ अभियान चलाए हैं और इससे संबंधित मामलों को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर उठाया है। इन अभियानों ने दबाव बनाने में मदद की है, जिससे सरकारों ने सुधारात्मक कदम उठाए हैं।
पर्यावरण संरक्षण: पर्यावरण संगठनों जैसे ग्रीनपीस ने जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संरक्षण के मुद्दों पर जागरूकता फैलाने और नीति निर्धारण में योगदान देने के लिए सक्रिय रूप से काम किया है। ग्रीनपीस की पहल के परिणामस्वरूप कई देशों में सख्त पर्यावरणीय नियम और नीतियाँ लागू की गई हैं।
महिलाओं के अधिकार: समानता की ओर जैसी CSOs ने महिलाओं के अधिकारों को प्रोत्साहित करने और लैंगिक समानता की दिशा में राजनीतिक सुधारों को प्रभावित करने के लिए काम किया है। उनके अभियानों के कारण कई देशों में समान वेतन और महिला सुरक्षा से संबंधित कानूनों में बदलाव किए गए हैं।
इन उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि CSOs न केवल समाज की सेवा करते हैं, बल्कि वे नीति निर्माण, कानूनी सुधार, और सामाजिक न्याय के मामलों में भी सक्रिय रूप से योगदान करते हैं। ये संगठन व्यापक मुद्दों पर ध्यान आकर्षित करने, साक्षात्कार और सुझाव प्रदान करने, और नीति निर्माता को प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनके प्रयास लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को मजबूती प्रदान करते हैं और समग्र समाज के लिए बेहतर भविष्य की दिशा में योगदान करते हैं।
See lessNGO क्षेत्रक को आगे बढ़ाने और लाभार्थियों के लिए आउटकम्स को बेहतर बनाने में प्रौद्योगिकी की भूमिका महत्वपूर्ण है। उदाहरण सहित विवेचना कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दें)
NGO क्षेत्र में प्रौद्योगिकी की भूमिका और लाभार्थियों के लिए आउटकम्स में सुधार प्रौद्योगिकी NGO क्षेत्र को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। डेटा प्रबंधन और विश्लेषण: प्रौद्योगिकी के माध्यम से NGOs प्रभावी डेटा प्रबंधन और विश्लेषण कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, Google.org ने DataKind के साRead more
NGO क्षेत्र में प्रौद्योगिकी की भूमिका और लाभार्थियों के लिए आउटकम्स में सुधार
प्रौद्योगिकी NGO क्षेत्र को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
इस प्रकार, प्रौद्योगिकी NGO क्षेत्र को अधिक प्रभावी और परिणाममुखी बनाने में सक्षम बनाती है।
See lessसुभेद्य वर्गों के लिए क्रियान्वित की जाने वाली कल्याण योजनाओं का निष्पादन उनके बारे में जागरूकता के न होने और नीति प्रक्रम की सभी अवस्थाओं पर उनके सक्रिय तौर पर सम्मिलित न होने के कारण इतना प्रभावी नहीं होता है। चर्चा कीजिए । (250 words) [UPSC 2019]
सुभेद्य वर्गों के लिए क्रियान्वित की जाने वाली कल्याण योजनाओं का निष्पादन अक्सर सीमित प्रभावी होता है, और इसके पीछे जागरूकता की कमी और नीति प्रक्रम की सभी अवस्थाओं में सक्रिय भागीदारी की कमी एक महत्वपूर्ण कारण हैं। इस स्थिति की चर्चा निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से की जा सकती है: 1. जागरूकता की कमी:Read more
सुभेद्य वर्गों के लिए क्रियान्वित की जाने वाली कल्याण योजनाओं का निष्पादन अक्सर सीमित प्रभावी होता है, और इसके पीछे जागरूकता की कमी और नीति प्रक्रम की सभी अवस्थाओं में सक्रिय भागीदारी की कमी एक महत्वपूर्ण कारण हैं। इस स्थिति की चर्चा निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से की जा सकती है:
1. जागरूकता की कमी:
सुभेद्य वर्गों के बीच कल्याण योजनाओं के प्रति जागरूकता की कमी एक प्रमुख बाधा है। इन वर्गों में अक्सर गरीब, साक्षरता की कमी वाले और दूरदराज के इलाकों में रहने वाले लोग शामिल होते हैं, जिनके पास योजनाओं की जानकारी और उनके लाभों के बारे में पूरी जानकारी नहीं होती। इसके परिणामस्वरूप, ये वर्ग योजनाओं का लाभ नहीं उठा पाते हैं।
2. नीति प्रक्रम में भागीदारी की कमी:
सुभेद्य वर्गों को नीति निर्माण और कार्यान्वयन के प्रक्रमों में उचित प्रतिनिधित्व और भागीदारी नहीं मिलती। यदि इन वर्गों को नीति निर्माण के दौरान शामिल नहीं किया जाता है, तो उनकी वास्तविक आवश्यकताओं और समस्याओं को ध्यान में नहीं रखा जाता, जिससे योजनाएं प्रभावी ढंग से लागू नहीं होती हैं।
3. प्रशासनिक समस्याएँ:
अक्सर, कल्याण योजनाओं के निष्पादन में प्रशासनिक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं, जैसे कि धन की कमी, भ्रष्टाचार, और कार्यान्वयन में ढिलाई। ये समस्याएँ योजनाओं की प्रभावशीलता को प्रभावित करती हैं और सुभेद्य वर्गों को लाभ पहुँचाने में बाधक बनती हैं।
4. प्रवर्तन की कमी:
योजना कार्यान्वयन के दौरान प्रवर्तन और निगरानी की कमी भी एक महत्वपूर्ण समस्या है। यदि योजनाओं की निगरानी और मूल्यांकन उचित ढंग से नहीं किया जाता, तो योजनाओं की गुणवत्ता और उनके लाभ पहुँचाने की प्रक्रिया प्रभावित होती है।
5. सांस्कृतिक और भाषाई अवरोध:
सुभेद्य वर्गों में सांस्कृतिक और भाषाई विविधता होती है, जिससे योजना के कार्यान्वयन में समस्या उत्पन्न हो सकती है। यदि योजनाएं स्थानीय सांस्कृतिक और भाषाई संदर्भ को ध्यान में नहीं रखती हैं, तो उनका प्रभाव सीमित होता है।
उपाय:
इन समस्याओं का समाधान करने के लिए, कल्याण योजनाओं को सुभेद्य वर्गों के लिए अधिक सुलभ और समावेशी बनाने की आवश्यकता है। इसमें जागरूकता अभियानों का आयोजन, नीति निर्माण में भागीदारी, और प्रशासनिक सुधार शामिल हैं। साथ ही, स्थानीय समुदायों को योजनाओं के क्रियान्वयन में शामिल करना और प्रभावी निगरानी सुनिश्चित करना आवश्यक है।
इस प्रकार, सुभेद्य वर्गों के लिए कल्याण योजनाओं की प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिए इन चुनौतियों को दूर करना और सुधारात्मक कदम उठाना आवश्यक है।
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