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संघ और राज्यों के लेखाओं के सम्बन्ध में, नियंत्रक और महालेखापरीक्षक की शक्तियों का प्रयोग भारतीय संविधान के अनुच्छेद 149 से व्युत्पन्न है। चर्चा कीजिए कि क्या सरकार की नीति कार्यान्वयन की लेखापरीक्षा करना अपने स्वयं (नियंत्रक और महालेखापरीक्षक) की अधिकारिता का अतिक्रमण करना होगा या कि नहीं । (200 words) [UPSC 2016]
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 149 के तहत, नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (CAG) को संघ और राज्यों के लेखाओं की लेखापरीक्षा करने की शक्तियाँ प्रदान की गई हैं। CAG की मुख्य जिम्मेदारी सार्वजनिक धन के उपयोग की पारदर्शिता और अनुपालन को सुनिश्चित करना है। यह प्रश्न कि सरकार की नीति कार्यान्वयन की लेखापरीक्षा करनRead more
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 149 के तहत, नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (CAG) को संघ और राज्यों के लेखाओं की लेखापरीक्षा करने की शक्तियाँ प्रदान की गई हैं। CAG की मुख्य जिम्मेदारी सार्वजनिक धन के उपयोग की पारदर्शिता और अनुपालन को सुनिश्चित करना है। यह प्रश्न कि सरकार की नीति कार्यान्वयन की लेखापरीक्षा करना CAG की अधिकारिता का अतिक्रमण हो सकता है या नहीं, इसे समझने के लिए हमें CAG के कर्तव्यों और अधिकारिता की सीमाओं को देखना होगा।
अधिकारिता और कर्तव्य:
लेखापरीक्षा की सीमा: CAG की भूमिका मुख्य रूप से संघ और राज्य सरकारों के लेखों की लेखापरीक्षा करने तक सीमित है। इसमें यह सुनिश्चित करना शामिल है कि सार्वजनिक धन सही तरीके से और कानून के अनुसार उपयोग किया गया है।
नीति कार्यान्वयन का लेखा परीक्षण: नीति कार्यान्वयन की लेखापरीक्षा करते समय, CAG का ध्यान मुख्यतः यह देखना होता है कि निर्धारित बजट और संसाधनों का उपयोग उचित रूप से किया गया है या नहीं। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वित्तीय प्रबंधन और संसाधनों की अनुपालन में कोई चूक न हो।
अतिक्रमण की संभावनाएँ: यदि CAG की लेखापरीक्षा नीति के कार्यान्वयन के परिणामों या नीति के प्रभाव पर केंद्रित हो जाती है, तो यह उसके मूल कर्तव्यों के बाहर हो सकता है। CAG को नीति की गुणवत्ता या प्रभावशीलता पर निर्णय लेने का अधिकार नहीं होता, बल्कि उसे केवल वित्तीय प्रबंधन की जांच करनी चाहिए।
निष्कर्ष:
See lessCAG की जिम्मेदारी का मूल उद्देश्य वित्तीय पारदर्शिता और अनुपालन सुनिश्चित करना है। नीति कार्यान्वयन की लेखापरीक्षा करते समय, अगर यह वित्तीय प्रबंधन और संसाधन उपयोग की जांच पर केंद्रित रहती है, तो यह उसकी अधिकारिता के भीतर रहेगा। परंतु, यदि यह नीति के प्रभाव या गुणवत्ता की समीक्षा में प्रवेश करती है, तो यह अधिकारिता का अतिक्रमण हो सकता है। उचित संतुलन बनाए रखना आवश्यक है ताकि CAG अपनी परिधि के भीतर रहकर प्रभावी लेखापरीक्षा कर सके।
भारत में लोकतंत्र की गुणता को बढ़ाने के लिए भारत के चुनाव आयोग ने में चुनावी सुधारों का प्रस्ताव दिया है। सुझाए गए सुधार क्या हैं और लोकतंत्र को सफल बनाने में वे किस सीमा तक महत्त्वपूर्ण हैं? (250 words) [UPSC 2017]
भारत के चुनाव आयोग ने 2016 में लोकतंत्र की गुणवत्ता को सुधारने के लिए कई चुनावी सुधारों का प्रस्ताव दिया। ये सुधार पारदर्शिता, जवाबदेही, और चुनावी प्रक्रिया की अखंडता को बढ़ाने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। सुझाए गए सुधार: वोटर आईडी को आधार से जोड़ना: वोटर आईडी को आधार संख्या से जोड़ने का प्रस्ताव कियाRead more
भारत के चुनाव आयोग ने 2016 में लोकतंत्र की गुणवत्ता को सुधारने के लिए कई चुनावी सुधारों का प्रस्ताव दिया। ये सुधार पारदर्शिता, जवाबदेही, और चुनावी प्रक्रिया की अखंडता को बढ़ाने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं।
सुझाए गए सुधार:
वोटर आईडी को आधार से जोड़ना: वोटर आईडी को आधार संख्या से जोड़ने का प्रस्ताव किया गया है ताकि डुप्लिकेट और फर्जी मतदाता प्रविष्टियों को समाप्त किया जा सके। यह एक साफ-सुथरी मतदाता सूची सुनिश्चित करने में मदद करेगा।
ऑनलाइन नामांकन प्रक्रिया: उम्मीदवारों को ऑनलाइन नामांकन पत्र दाखिल करने की सुविधा देने का सुझाव दिया गया है। इससे प्रक्रिया पारदर्शी और सुगम बनेगी, और कागजी कार्रवाई कम होगी।
इलेक्ट्रॉनिक वोटर रोल सत्यापन: वोटर रोल का इलेक्ट्रॉनिक सत्यापन करने का प्रस्ताव है जिससे सटीकता बढ़ेगी और गलतियों को कम किया जा सकेगा।
राजनीतिक विज्ञापन पर नियंत्रण: राजनीतिक विज्ञापनों की निगरानी और नियमन के लिए प्रस्तावित सुधार, जिससे मीडिया के दुरुपयोग को रोका जा सके और विज्ञापनों की नैतिकता सुनिश्चित की जा सके।
राजनीति में आपराधिककरण पर अंकुश: आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों के लिए कड़ी प्रकटीकरण नीतियों का प्रस्ताव है, जिसमें विस्तृत हलफनामे और आपराधिक रिकॉर्ड का प्रकाशन शामिल है।
चुनावी वित्त में सुधार: चुनावी वित्त की पारदर्शिता को सुधारने के लिए, राजनीतिक दान और खर्च के लिए सख्त रिपोर्टिंग आवश्यकताओं का सुझाव दिया गया है।
महत्व:
चुनावी अखंडता में सुधार: वोटर आईडी को आधार से जोड़ने और इलेक्ट्रॉनिक सत्यापन से मतदाता सूची की सटीकता बढ़ेगी, जिससे धोखाधड़ी कम होगी।
पारदर्शिता में वृद्धि: ऑनलाइन नामांकन और विज्ञापनों पर नियंत्रण से चुनावी प्रक्रिया अधिक पारदर्शी होगी, जिससे मतदाता सूचित निर्णय ले सकेंगे।
जवाबदेही और ईमानदारी: आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों और चुनावी वित्त की पारदर्शिता से राजनीति में जवाबदेही बढ़ेगी और भ्रष्टाचार कम होगा।
प्रशासनिक दक्षता: सुधारों से प्रशासनिक प्रक्रियाएं सरल और तेज होंगी, जिससे चुनावी प्रक्रिया में विलंब और त्रुटियाँ कम होंगी।
निष्कर्ष:
See lessचुनाव आयोग द्वारा सुझाए गए सुधार भारतीय लोकतंत्र को मजबूत बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं। ये सुधार चुनावों की पारदर्शिता, अखंडता, और जवाबदेही को बढ़ाएंगे, जो एक सफल और प्रभावी लोकतंत्र के लिए आवश्यक हैं। इन सुधारों के लागू होने से चुनावी प्रणाली अधिक विश्वसनीय और सक्षम बनेगी।
क्या राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (एन० सी० एस० सी०) धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थानों में अनुसूचित जातियों के लिए संवैधानिक आरक्षण के क्रियान्वयन का प्रवर्तन करा सकता है? परीक्षण कीजिए। (150 words) [UPSC 2018]
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) और धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थानों में आरक्षण संवैधानिक दायित्व: राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) का मुख्य उद्देश्य अनुसूचित जातियों के अधिकारों की रक्षा करना और उनकी स्थिति में सुधार लाना है। हालांकि, धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थानों में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षRead more
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) और धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थानों में आरक्षण
संवैधानिक दायित्व: राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) का मुख्य उद्देश्य अनुसूचित जातियों के अधिकारों की रक्षा करना और उनकी स्थिति में सुधार लाना है। हालांकि, धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थानों में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण के क्रियान्वयन के संबंध में NCSC की भूमिका और अधिकार सीमित हैं।
क्रियान्वयन का प्रवर्तन:
निष्कर्ष: NCSC धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थानों में अनुसूचित जातियों के आरक्षण के क्रियान्वयन का प्रत्यक्ष प्रवर्तन नहीं कर सकता, लेकिन यह निगरानी और सिफारिशें कर सकता है। प्रवर्तन का वास्तविक कार्य अन्य कानूनी और नियामक संस्थानों के जिम्मे होता है।
See less"नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (सी० ए० जी०) को एक अत्यावश्यक भूमिका निभानी होती है।" व्याख्या कीजिए कि यह किस प्रकार उसकी नियुक्ति की विधि और शर्तों और साथ ही साथ उन अधिकारों के विस्तार से परिलक्षित होती है, जिनका प्रयोग वह कर सकता है। (150 words) [UPSC 2018]
नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (सीएजी) की भूमिका और अधिकार भुमिका: नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (सीएजी) भारत में सार्वजनिक वित्त के लेखा-जोखा और ऑडिट के लिए एक अत्यावश्यक भूमिका निभाता है। इसका मुख्य कार्य सरकारी खातों का स्वतंत्र और निष्पक्ष ऑडिट करना है, ताकि सार्वजनिक धन का उचित उपयोग सुनिश्चित किया जाRead more
नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (सीएजी) की भूमिका और अधिकार
भुमिका: नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (सीएजी) भारत में सार्वजनिक वित्त के लेखा-जोखा और ऑडिट के लिए एक अत्यावश्यक भूमिका निभाता है। इसका मुख्य कार्य सरकारी खातों का स्वतंत्र और निष्पक्ष ऑडिट करना है, ताकि सार्वजनिक धन का उचित उपयोग सुनिश्चित किया जा सके।
नियुक्ति की विधि और शर्तें:
अधिकारों का विस्तार:
निष्कर्ष: सीएजी की नियुक्ति की विधि, शर्तें, और अधिकार उसकी अत्यावश्यक भूमिका को बनाए रखने में मदद करते हैं, जो सार्वजनिक वित्त के उचित प्रबंधन और सरकारी पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हैं।
See lessभारत के वित्तीय आयोग का गठन किस प्रकार किया जाता है? हाल में गठित वित्तीय आयोग के विचारार्थ विषय (टर्म्स ऑफ रेफरेंस) के बारे में आप क्या जानते हैं? विवेचना कीजिए। (250 words) [UPSC 2018]
भारत के वित्तीय आयोग का गठन और टर्म्स ऑफ रेफरेंस वित्तीय आयोग का गठन: भारत में वित्तीय आयोग का गठन संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत किया जाता है। इसका उद्देश्य केंद्रीय और राज्य सरकारों के बीच वित्तीय संसाधनों का वितरण और संघीय वित्तीय संबंधों को व्यवस्थित करना है। वित्तीय आयोग की नियुक्ति राष्ट्रपतिRead more
भारत के वित्तीय आयोग का गठन और टर्म्स ऑफ रेफरेंस
वित्तीय आयोग का गठन:
भारत में वित्तीय आयोग का गठन संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत किया जाता है। इसका उद्देश्य केंद्रीय और राज्य सरकारों के बीच वित्तीय संसाधनों का वितरण और संघीय वित्तीय संबंधों को व्यवस्थित करना है। वित्तीय आयोग की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। आयोग में एक अध्यक्ष और एक या दो सदस्य होते हैं, जिनकी नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं। आयोग के अध्यक्ष और सदस्य आमतौर पर वित्तीय और प्रशासनिक अनुभव वाले व्यक्ति होते हैं।
हाल में गठित वित्तीय आयोग के टर्म्स ऑफ रेफरेंस:
1. वित्तीय समन्वय: आयोग को केंद्र और राज्य सरकारों के बीच वित्तीय समन्वय के लिए सुझाव देने का कार्य सौंपा गया है। इसमें राज्य सरकारों को प्रदान की जाने वाली वित्तीय सहायता और उनकी योजनाओं के लिए आवश्यक अनुदान की सिफारिश शामिल है।
2. संसाधनों का वितरण: आयोग को यह तय करने की जिम्मेदारी दी जाती है कि केंद्रीय वित्तीय संसाधनों का वितरण राज्यों के बीच किस प्रकार किया जाएगा। इसमें केंद्रीय करों के आवंटन और राज्यों को दिए जाने वाले वित्तीय हिस्से की सिफारिश करना शामिल है।
3. ऋण और अन्य वित्तीय मामलों पर सलाह: आयोग को राज्य सरकारों के ऋणों की स्थिति और उनकी वित्तीय स्थिरता पर भी सलाह देने का कार्य सौंपा गया है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि राज्यों की वित्तीय स्थिति सुदृढ़ रहे, आयोग राज्य सरकारों के ऋण प्रबंधन और वित्तीय अनुशासन पर भी विचार करता है।
4. विशेष समस्याओं पर ध्यान: आयोग को उन राज्यों या क्षेत्रों के लिए विशेष समाधान सुझाने का भी कार्य सौंपा गया है जो आर्थिक रूप से पिछड़े या विशेष समस्याओं का सामना कर रहे हैं। इसमें विशेष अनुदान और वित्तीय सहायता की सिफारिश करना शामिल हो सकता है।
5. रिपोर्ट और सिफारिशें: वित्तीय आयोग अपनी रिपोर्ट को राष्ट्रपति को प्रस्तुत करता है, जिसमें वे अपने सिफारिशों को विस्तृत रूप से बताते हैं। रिपोर्ट को सरकार द्वारा लागू करने के लिए उचित कदम उठाए जाते हैं।
उपसंहार:
वित्तीय आयोग का गठन और इसके टर्म्स ऑफ रेफरेंस भारत के संघीय वित्तीय संरचना को संतुलित और व्यवस्थित रखने के लिए महत्वपूर्ण हैं। आयोग के द्वारा की जाने वाली सिफारिशें और उनके आधार पर उठाए गए कदम केंद्रीय और राज्य सरकारों के बीच वित्तीय सहयोग को सुगम बनाते हैं और आर्थिक समन्वय को सुनिश्चित करते हैं।
See lessभारत के 14वें वित्त आयोग की संस्तुतियों ने राज्यों को अपनी राजकोषीय स्थिति सुधारने में कैसे सक्षम किया है? (150 words) [UPSC 2021]
भारत के 14वें वित्त आयोग की संस्तुतियों से राज्यों की राजकोषीय स्थिति में सुधार 1. केंद्रीय करों में बढ़ी भागीदारी: 14वें वित्त आयोग ने राज्यों को केंद्रीय करों में उनकी हिस्सेदारी 32% से बढ़ाकर 42% कर दी। इससे राज्यों को अधिक वित्तीय संसाधन प्राप्त हुए, जिससे उनके राजकोषीय स्थिति में सुधार हुआ। 2.Read more
भारत के 14वें वित्त आयोग की संस्तुतियों से राज्यों की राजकोषीय स्थिति में सुधार
1. केंद्रीय करों में बढ़ी भागीदारी: 14वें वित्त आयोग ने राज्यों को केंद्रीय करों में उनकी हिस्सेदारी 32% से बढ़ाकर 42% कर दी। इससे राज्यों को अधिक वित्तीय संसाधन प्राप्त हुए, जिससे उनके राजकोषीय स्थिति में सुधार हुआ।
2. लचीले अनुदान: आयोग ने प्रदर्शन आधारित अनुदान और बिना शर्त अनुदान की सिफारिश की, जिससे राज्यों को अपने अनुसार धन का उपयोग करने की स्वतंत्रता मिली। यह स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार खर्च करने में सहायक साबित हुआ।
3. ऋण प्रबंधन: आयोग ने राज्यों के ऋण प्रबंधन के लिए ऋण राहत कोष की सिफारिश की, जिससे राज्यों को अपने ऋण बोझ को कम करने और राजकोषीय स्थिरता बनाए रखने में मदद मिली।
4. राजकोषीय जिम्मेदारी: आयोग ने राजकोषीय जिम्मेदारी के मानदंडों का पालन करने की सिफारिश की, जिससे बेहतर वित्तीय प्रबंधन और अनुशासन को बढ़ावा मिला।
निष्कर्ष: 14वें वित्त आयोग की संस्तुतियों ने राज्यों को अधिक संसाधन, लचीलापन और बेहतर ऋण प्रबंधन के माध्यम से अपनी राजकोषीय स्थिति सुधारने में सक्षम किया।
See lessआदर्श आचार-संहिता के उद्भव के आलोक में, भारत के निर्वाचन आयोग की भूमिका का विवेचन कीजिए । (250 words) [UPSC 2022]
आदर्श आचार-संहिता के उद्भव के आलोक में, भारत के निर्वाचन आयोग की भूमिका 1. निर्वाचन आयोग की भूमिका भारत के निर्वाचन आयोग (ECI) एक स्वायत्त संवैधानिक संस्था है जो संसद, राज्य विधानसभाओं और राष्ट्रपति-उपाध्यक्ष चुनावों का आयोजन करती है। इसका मुख्य उद्देश्य चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता, निष्पक्षता, औरRead more
आदर्श आचार-संहिता के उद्भव के आलोक में, भारत के निर्वाचन आयोग की भूमिका
1. निर्वाचन आयोग की भूमिका
भारत के निर्वाचन आयोग (ECI) एक स्वायत्त संवैधानिक संस्था है जो संसद, राज्य विधानसभाओं और राष्ट्रपति-उपाध्यक्ष चुनावों का आयोजन करती है। इसका मुख्य उद्देश्य चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता, निष्पक्षता, और स्वतंत्रता को सुनिश्चित करना है।
प्रमुख जिम्मेदारियाँ:
2. आदर्श आचार-संहिता (MCC) का उद्भव और विकास
उद्भव: आदर्श आचार-संहिता (MCC) की शुरुआत 1968 में की गई थी। इसका उद्देश्य चुनावी प्रक्रिया को निष्पक्ष और व्यवस्थित बनाए रखना है और सभी राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के आचरण को नियंत्रित करना है। यह संहिता चुनावी वातावरण को अधिक प्रतिस्पर्धात्मक और पारदर्शी बनाने के लिए बनाई गई थी।
विकास:
हालिया उदाहरण: 2019 के आम चुनाव में MCC का सख्ती से पालन सुनिश्चित किया गया। निर्वाचन आयोग ने सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग और सोशल मीडिया पर अनुचित प्रचार के खिलाफ कार्रवाई की, जो MCC के विकसित स्वरूप को दर्शाता है।
निष्कर्ष: भारत के निर्वाचन आयोग की भूमिका आदर्श आचार-संहिता के माध्यम से चुनावों की निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण है। MCC का विकास और कार्यान्वयन आयोग के प्रतिबद्धता को दर्शाता है कि वह चुनावी प्रक्रिया को समय के साथ बदलती परिस्थितियों के अनुसार समायोजित करता है।
See lessराष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के सांविधिक निकाय से संवैधानिक निकाय में रूपांतरण को ध्यान में रखते हुए इसकी भूमिका की विवेचना कीजिए। (150 words)[UPSC 2022]
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) का सांविधिक निकाय से संवैधानिक निकाय में रूपांतरण भारतीय समाज में सामाजिक न्याय और समानता को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण कदम है। इस परिवर्तन से आयोग को अधिक प्रभावशाली और स्वतंत्र भूमिका मिलती है। संविधानिक स्थिति प्राप्त करने के बाद, NCBC को स्वतंत्रता और शक्ति पRead more
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) का सांविधिक निकाय से संवैधानिक निकाय में रूपांतरण भारतीय समाज में सामाजिक न्याय और समानता को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण कदम है। इस परिवर्तन से आयोग को अधिक प्रभावशाली और स्वतंत्र भूमिका मिलती है।
संविधानिक स्थिति प्राप्त करने के बाद, NCBC को स्वतंत्रता और शक्ति प्राप्त होती है कि वह अधिक प्रभावी ढंग से अनुसूचित जातियों और जनजातियों के सामाजिक और आर्थिक उन्नयन के लिए काम कर सके। आयोग का यह नया दर्जा उसे स्वतंत्र रूप से काम करने की अनुमति देता है और उसके सुझाव और सिफारिशें सरकार के लिए बाध्यकारी हो सकती हैं।
इससे आयोग की सिफारिशों की गंभीरता और महत्व में वृद्धि होगी, जिससे सामाजिक न्याय को सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी। यह बदलाव अनुसूचित जातियों और जनजातियों के अधिकारों की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देगा।
See lessअधिकरण क्या हैं? अनुच्छेद 323A, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 323B से किस प्रकार भिन्न है?(उत्तर 200 शब्दों में दें)
अधिकरण एक शक्ति या अधिकार होता है जो किसी व्यक्ति, संगठन, या सरकारी अधिकारी को निर्धारित कार्य करने की अनुमति देता है। अधिकरण संविधान, कानून, नियमों या प्रथाओं द्वारा प्राप्त किया जाता है और समाज में व्यवस्था और न्याय को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अनुच्छेद 323A और अनुच्छेद 323B Read more
अधिकरण एक शक्ति या अधिकार होता है जो किसी व्यक्ति, संगठन, या सरकारी अधिकारी को निर्धारित कार्य करने की अनुमति देता है। अधिकरण संविधान, कानून, नियमों या प्रथाओं द्वारा प्राप्त किया जाता है और समाज में व्यवस्था और न्याय को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
अनुच्छेद 323A और अनुच्छेद 323B दो संविधानीय प्रावधान हैं जो भारतीय संविधान में संबंधित हैं।
इस प्रकार, अनुच्छेद 323A और 323B दोनों वर्गीकृत सेवा संबंधित विषयों पर न्यायाधिकरण और सेवा आयोग की स्थापना के लिए विवरण प्रदान करते हैं, परंतु उनके अधिकार और कार्यक्षेत्र में भिन्नता है।
See lessयू.पी.एस.सी. की भूमिका का विवरण दीजिए। साथ ही, यू.पी.एस.सी. की स्वतंत्रता और निष्पक्ष कामकाज की सुरक्षा और उन्हें बनाए रखने के लिए संवैधानिक प्रावधानों को सूचीबद्ध कीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
यू.पी.एस.सी. (यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन) की भूमिका: यू.पी.एस.सी. भारत सरकार के अधीन संघीय सेवाओं के लिए भर्ती प्रक्रिया का प्रबंधन करने वाला अभिकरण है। इसका मुख्य उद्देश्य संविधानीय प्रक्रिया के माध्यम से उच्च गुणवत्ता और निष्पक्षता से भर्ती प्रक्रिया को संचालित करना है। यू.पी.एस.सी. की स्वतंत्रताRead more
यू.पी.एस.सी. (यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन) की भूमिका:
यू.पी.एस.सी. भारत सरकार के अधीन संघीय सेवाओं के लिए भर्ती प्रक्रिया का प्रबंधन करने वाला अभिकरण है। इसका मुख्य उद्देश्य संविधानीय प्रक्रिया के माध्यम से उच्च गुणवत्ता और निष्पक्षता से भर्ती प्रक्रिया को संचालित करना है।
यू.पी.एस.सी. की स्वतंत्रता और निष्पक्ष कामकाज की सुरक्षा:
संवैधानिक प्रावधानों की सूची:
यू.पी.एस.सी. की स्वतंत्रता और निष्पक्षता की सुरक्षा और संविधानिक प्रावधानों की महत्वपूर्ण भूमिका भारतीय संविधान में निर्धारित की गई है।
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