“जिस समय हम भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश (डेमोग्राफ़िक डिविडेंड) को शान से प्रदर्शित करते हैं, उस समय हम रोजगार योग्यता की पतनशील दरों को नज़रअन्दाज़ कर देते हैं।” क्या हम ऐसा करने में कोई चूक कर रहे हैं? भारत को ...
भारत में संरचनात्मक बेरोजगारी: संरचनात्मक बेरोजगारी भारत में एक महत्वपूर्ण समस्या है, जिसका मुख्य कारण श्रमिकों की क्षमताओं और नौकरी बाजार की आवश्यकताओं के बीच असंगति है। यह बेरोजगारी अक्सर लंबे समय तक बनी रहती है और आर्थिक, तकनीकी, और शैक्षिक परिवर्तन के कारण होती है। बेरोजगारी की गणना के लिए अपनाईRead more
भारत में संरचनात्मक बेरोजगारी:
- संरचनात्मक बेरोजगारी भारत में एक महत्वपूर्ण समस्या है, जिसका मुख्य कारण श्रमिकों की क्षमताओं और नौकरी बाजार की आवश्यकताओं के बीच असंगति है। यह बेरोजगारी अक्सर लंबे समय तक बनी रहती है और आर्थिक, तकनीकी, और शैक्षिक परिवर्तन के कारण होती है।
बेरोजगारी की गणना के लिए अपनाई गई पद्धति:
- श्रम बल सर्वेक्षण (Labour Force Survey – LFS): श्रम और रोजगार मंत्रालय द्वारा संचालित यह सर्वेक्षण वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (Current Weekly Status – CWS) और सामान्य स्थिति (Usual Status – PS) के आधार पर बेरोजगारी की गणना करता है। यह सक्रिय रूप से रोजगार की तलाश करने वाले और काम के लिए उपलब्ध व्यक्तियों की संख्या को मापता है।
- पीरियाडिक लेबर फोर्स सर्वे (Periodic Labour Force Survey – PLFS): 2017 से, PLFS ने श्रम बाजार संकेतकों पर अधिक विस्तृत और तात्कालिक अपडेट प्रदान करना शुरू किया है, जिसमें बेरोजगारी दर, रोजगार पैटर्न, और क्षेत्रीय वितरण शामिल हैं। यह सर्वेक्षण शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों को कवर करता है और त्रैमासिक और वार्षिक आंकड़े प्रदान करता है।
- एनएसएसओ डेटा (NSSO Data): राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) भी रोजगार और बेरोजगारी पर सर्वेक्षण करता है, जो विभिन्न जनसांख्यिकीय और आर्थिक कारकों पर डेटा प्रदान करता है।
सुधार के सुझाव:
- वास्तविक समय डेटा संग्रहण: डिजिटल तकनीकों का उपयोग करके वास्तविक समय डेटा संग्रहण प्रणाली को लागू किया जा सकता है ताकि बेरोजगारी सांख्यिकी अधिक सटीक और तात्कालिक हो सके। उदाहरण के लिए, नौकरी पोर्टलों और रोजगार एक्सचेंजों से डेटा एकत्र करने से आंकड़ों की सटीकता में सुधार हो सकता है।
- स्किल मैपिंग और प्रशिक्षण: नियमित रूप से कौशल मैपिंग की जा सकती है और शैक्षिक पाठ्यक्रमों को उद्योग की आवश्यकताओं के साथ मेल किया जा सकता है। प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) जैसी पहल व्यावसायिक कौशल को सुधारने के लिए हैं, लेकिन इसे और अधिक व्यापक रूप से लागू किया जाना चाहिए।
- क्षेत्रीय विवरण: बेरोजगारी के आंकड़ों को क्षेत्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर अधिक विस्तृत तरीके से प्रदान किया जाना चाहिए ताकि लक्षित नीतियां बनाई जा सकें। उदाहरण के लिए, उत्तर-पूर्वी भारत में बेरोजगारी की विशिष्ट समस्याओं को संबोधित करने के लिए विशिष्ट नीतियां बनाई जा सकती हैं।
- श्रम बाजार संस्थानों को मजबूत करना: नौकरी placement और कैरियर काउंसलिंग से संबंधित संस्थानों की क्षमता को बढ़ाना चाहिए ताकि बेहतर नौकरी मिलान हो सके और बेरोजगारी कम हो सके।
हालिया उदाहरण:
- कोविड-19 महामारी का प्रभाव: महामारी के दौरान विभिन्न क्षेत्रों में व्यवधान ने संरचनात्मक बेरोजगारी को बढ़ा दिया, जिससे बेहतर डेटा और लक्षित हस्तक्षेप की आवश्यकता स्पष्ट हुई। सरकार की आत्मनिर्भर भारत पहल छोटे और मध्यम उद्यमों के समर्थन और नौकरी सृजन के उपायों को शामिल करती है।
निष्कर्ष: भारत में बेरोजगारी की गणना के लिए अपनाई गई पद्धति विभिन्न सर्वेक्षणों और डेटा संग्रहण पर निर्भर करती है, लेकिन वास्तविक समय डेटा सटीकता, कौशल संरेखण, क्षेत्रीय विश्लेषण, और संस्थागत समर्थन में सुधार की आवश्यकता है। इन क्षेत्रों को संबोधित करके संरचनात्मक बेरोजगारी को कम किया जा सकता है और श्रमिकों को बाजार की मांग के साथ बेहतर ढंग से संरेखित किया जा सकता है।
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भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश और रोजगार योग्यता की चुनौतियाँ: 1. चूक और समस्याएँ: रोजगार योग्यता में कमी: भारत का बड़ा युवा जनसंख्या को जनसांख्यिकीय लाभांश के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, परंतु यह रोजगार योग्यता में कमी को नज़रअंदाज़ करता है। NASSCOM की रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में इंजीनियरिंग ग्रेजुRead more
भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश और रोजगार योग्यता की चुनौतियाँ:
1. चूक और समस्याएँ:
2. जॉब्स के स्रोत:
हालिया उदाहरण:
निष्कर्ष: भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश को लेकर गर्व करते समय, रोजगार योग्यता की कमी को नजरअंदाज़ करना एक महत्वपूर्ण चूक है। सभी स्तरों पर कौशल सुधार, औद्योगिक और सेवा क्षेत्रों में निवेश, उद्यमिता को प्रोत्साहन, और इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास से रोजगार के अवसर उत्पन्न किए जा सकते हैं।
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