1920 के दशक से राष्ट्रीय आंदोलन ने कई वैचारिक धाराओं को ग्रहण किया और अपना सामाजिक आधार बढ़ाया। विवेचना कीजिए। (250 words) [UPSC 2020]
होमरूल आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का महत्वपूर्ण अध्याय था जो 1942 में आयोजित किया गया था। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य से आजादी प्राप्त करना था। होमरूल आंदोलन का उद्देश्य ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध प्रकट करना और स्वतंत्रता की मांग को मजबूत करना था। इस आंदोलन का आरंभ गांधीजी कRead more
होमरूल आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का महत्वपूर्ण अध्याय था जो 1942 में आयोजित किया गया था। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य से आजादी प्राप्त करना था।
होमरूल आंदोलन का उद्देश्य ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध प्रकट करना और स्वतंत्रता की मांग को मजबूत करना था। इस आंदोलन का आरंभ गांधीजी के आह्वान पर हुआ था और यह अंग्रेजों के खिलाफ विरोध और स्वतंत्रता की मांग को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न राष्ट्रीय संगठनों द्वारा समर्थित किया गया।
होमरूल आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया और इसने भारतीय जनता की सामर्थ्य और एकता को दिखाया। इस आंदोलन ने भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन को एक मजबूत संदेश दिया कि भारतीय लोग विद्रोह और स्वतंत्रता के लिए एकजुट हो सकते हैं।
See less
1920 के दशक से राष्ट्रीय आंदोलन: वैचारिक विविधता और सामाजिक आधार का विस्तार 1920 के दशक में, भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन ने अपने वैचारिक धारणाओं और सामाजिक आधार को काफी विस्तारित किया। इस अवधि में, आंदोलन ने विभिन्न बौद्धिक धाराओं को अपनाया और समाज के कई वर्गों में अपनी अपील बढ़ाई। कुछ प्रमुख बिंदु और हRead more
1920 के दशक से राष्ट्रीय आंदोलन: वैचारिक विविधता और सामाजिक आधार का विस्तार
1920 के दशक में, भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन ने अपने वैचारिक धारणाओं और सामाजिक आधार को काफी विस्तारित किया। इस अवधि में, आंदोलन ने विभिन्न बौद्धिक धाराओं को अपनाया और समाज के कई वर्गों में अपनी अपील बढ़ाई। कुछ प्रमुख बिंदु और हालिया उदाहरण इस प्रकार हैं:
वैचारिक विविधता:
राष्ट्रीय आंदोलन ने कई वैचारिक दृष्टिकोणों को अपनाया, जिनमें शामिल हैं:
सामाजिक आधार का विस्तार:
1920 के दशक में, राष्ट्रीय आंदोलन ने अपने सामाजिक आधार को काफी बढ़ाया, जिसमें शामिल हैं:
क्षेत्रीय विविधता:
राष्ट्रीय आंदोलन ने क्षेत्रीय स्तर पर भी अलग-अलग अभिव्यक्तियों का विकास किया, जैसे कि संयुक्त प्रांतों में खिलाफत आंदोलन, तमिलनाडु में स्वराज्य आंदोलन और बंगाल में अनुशीलन समिति।
अंतरराष्ट्रीयकरण:
राष्ट्रीय आंदोलन ने वैश्विक विरोधी-औपनिवेशिक और विरोधी-साम्राज्यवादी आंदोलनों के साथ संबंध स्थापित करना शुरू कर दिया, जैसा कि लाला लाजपत राय के संयुक्त राज्य अमेरिका की यात्रा और 1931 में आयोजित ऑल एशियन महिला सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधियों की भागीदारी में देखा गया।
संगठनात्मक विकास:
राष्ट्रीय आंदोलन ने राजनीतिक दलों, श्रम संघों और किसान संघठनों जैसी संस्थागत संरचनाओं को मजबूत और विविध किया, जिसने समाज के विभिन्न वर्गों को एकजुट करने और प्रतिनिधित्व करने में मदद की।
संक्षेप में, 1920 का दशक राष्ट्रीय आंदोलन के विकास के एक महत्वपूर्ण चरण के रूप में उभरा, क्योंकि इसने वैचारिक धाराओं और सामाजिक आधारों की एक व्यापक श्रृंखला को अपनाकर, भारतीय उपमहाद्वीप में अपील और प्रभाव को बढ़ाया।
See less