नरमपंथियों की भूमिका ने किस सीमा तक व्यापक स्वतंत्रता आन्दोलन का आधार तैयार किया ? टिप्पणी कीजिए । (250 words) [UPSC 2021]
1920 के दशक से राष्ट्रीय आंदोलन: वैचारिक विविधता और सामाजिक आधार का विस्तार 1920 के दशक में, भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन ने अपने वैचारिक धारणाओं और सामाजिक आधार को काफी विस्तारित किया। इस अवधि में, आंदोलन ने विभिन्न बौद्धिक धाराओं को अपनाया और समाज के कई वर्गों में अपनी अपील बढ़ाई। कुछ प्रमुख बिंदु और हRead more
1920 के दशक से राष्ट्रीय आंदोलन: वैचारिक विविधता और सामाजिक आधार का विस्तार
1920 के दशक में, भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन ने अपने वैचारिक धारणाओं और सामाजिक आधार को काफी विस्तारित किया। इस अवधि में, आंदोलन ने विभिन्न बौद्धिक धाराओं को अपनाया और समाज के कई वर्गों में अपनी अपील बढ़ाई। कुछ प्रमुख बिंदु और हालिया उदाहरण इस प्रकार हैं:
वैचारिक विविधता:
राष्ट्रीय आंदोलन ने कई वैचारिक दृष्टिकोणों को अपनाया, जिनमें शामिल हैं:
- गांधीवादी समाजवाद: गांधी जैसे नेताओं द्वारा प्रतिनिधित्व किया गया, यह दृष्टिकोण आत्म-निर्भरता, अहिंसा और सामाजिक सुधार पर जोर देता था।
- मार्क्सवाद और समाजवाद: रूसी क्रांति से प्रभावित, यह धारा शहरी श्रमिक वर्ग और बुद्धिजीवियों में लोकप्रिय हुई, जैसा कि 1925 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के उदय में देखा गया।
- हिंदू राष्ट्रवाद: हिंदू महासभा जैसे संगठनों द्वारा प्रतिनिधित्व किया गया, यह विचारधारा हिंदू हितों की रक्षा और हिंदू राष्ट्र की स्थापना की मांग करती है।
सामाजिक आधार का विस्तार:
1920 के दशक में, राष्ट्रीय आंदोलन ने अपने सामाजिक आधार को काफी बढ़ाया, जिसमें शामिल हैं:
- किसान आंदोलन: बरदोली सत्याग्रह और केरल में मप्पिल्ला विद्रोह जैसे आंदोलनों ने किसानों और भूमिहीन श्रमिकों को शामिल किया।
- महिला सहभागिता: असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन में सरोजिनी नायडू और कस्तूरबा गांधी जैसी महिलाओं की बढ़ती भागीदारी देखी गई।
- युवा जुड़ाव: ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन जैसे छात्र संगठनों का उदय, राष्ट्रीय आंदोलन में युवा पीढ़ी को शामिल किया।
क्षेत्रीय विविधता:
राष्ट्रीय आंदोलन ने क्षेत्रीय स्तर पर भी अलग-अलग अभिव्यक्तियों का विकास किया, जैसे कि संयुक्त प्रांतों में खिलाफत आंदोलन, तमिलनाडु में स्वराज्य आंदोलन और बंगाल में अनुशीलन समिति।
अंतरराष्ट्रीयकरण:
राष्ट्रीय आंदोलन ने वैश्विक विरोधी-औपनिवेशिक और विरोधी-साम्राज्यवादी आंदोलनों के साथ संबंध स्थापित करना शुरू कर दिया, जैसा कि लाला लाजपत राय के संयुक्त राज्य अमेरिका की यात्रा और 1931 में आयोजित ऑल एशियन महिला सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधियों की भागीदारी में देखा गया।
संगठनात्मक विकास:
राष्ट्रीय आंदोलन ने राजनीतिक दलों, श्रम संघों और किसान संघठनों जैसी संस्थागत संरचनाओं को मजबूत और विविध किया, जिसने समाज के विभिन्न वर्गों को एकजुट करने और प्रतिनिधित्व करने में मदद की।
संक्षेप में, 1920 का दशक राष्ट्रीय आंदोलन के विकास के एक महत्वपूर्ण चरण के रूप में उभरा, क्योंकि इसने वैचारिक धाराओं और सामाजिक आधारों की एक व्यापक श्रृंखला को अपनाकर, भारतीय उपमहाद्वीप में अपील और प्रभाव को बढ़ाया।
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नरमपंथियों की भूमिका और व्यापक स्वतंत्रता आन्दोलन का आधार
नरमपंथियों का उद्देश्य और दृष्टिकोण:
विस्तार और प्रभाव:
विरोध और विफलताएँ:
निष्कर्ष:
नरमपंथियों ने भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के आधार को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन उनके दृष्टिकोण की सीमाएँ और क्रांतिकारी प्रतिक्रिया ने इस आन्दोलन को कई मोर्चों पर प्रभावित किया। उनके दृष्टिकोण ने एक संवैधानिक आधार प्रदान किया, जो बाद में क्रांतिकारी और कठोर संघर्ष के साथ मिलकर एक स्वतंत्र भारत के निर्माण की दिशा में योगदान दिया।
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