महात्मा गाँधी की सात पापों की संकल्पना की विवेचना कीजिए । (150 words) [UPSC 2016]
पोचोर दोस्तोवेमकी का उद्धरण, "बुद्धिमानी से कार्य करने के लिए बुद्धिमत्ता से अधिक की आवश्यकता होती है," यह दर्शाता है कि किसी भी कार्य को सही ढंग से और प्रभावी रूप से करने के लिए केवल अकादमिक या तर्कशील बुद्धिमत्ता ही पर्याप्त नहीं होती। इसके लिए एक विशेष प्रकार की समझ, अनुभव, और सूझ-बूझ की भी आवश्यRead more
पोचोर दोस्तोवेमकी का उद्धरण, “बुद्धिमानी से कार्य करने के लिए बुद्धिमत्ता से अधिक की आवश्यकता होती है,” यह दर्शाता है कि किसी भी कार्य को सही ढंग से और प्रभावी रूप से करने के लिए केवल अकादमिक या तर्कशील बुद्धिमत्ता ही पर्याप्त नहीं होती। इसके लिए एक विशेष प्रकार की समझ, अनुभव, और सूझ-बूझ की भी आवश्यकता होती है, जिसे हम ‘बुद्धिमानी’ के रूप में पहचानते हैं।
बुद्धिमत्ता, ज्ञान और तथ्यों की समझ है, जबकि बुद्धिमानी का मतलब है कि इस ज्ञान का सही और सारगर्भित तरीके से उपयोग कैसे किया जाए। जीवन में समस्याओं का समाधान और निर्णय लेने के लिए हमें केवल जानकारी नहीं चाहिए, बल्कि हमें यह भी जानना होता है कि उस जानकारी को किस प्रकार लागू किया जाए। उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति जो गणित में बहुत अच्छा है, वह संभवतः एक पेचीदा गणितीय समस्या को हल कर सकता है, लेकिन उसे सामाजिक या व्यावसायिक समस्याओं को सही तरीके से सुलझाने के लिए मानसिक तत्परता और व्यावहारिक बुद्धिमत्ता की भी आवश्यकता होगी।
इसलिए, इस उद्धरण का मुख्य संदेश यह है कि सही निर्णय लेने और प्रभावी कार्य करने के लिए हमें ज्ञान के साथ-साथ अनुभव और सूझ-बूझ भी चाहिए, जो कि हमें बुद्धिमानी से प्राप्त होती है।
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महात्मा गाँधी की सात पापों की संकल्पना 1. श्रम के बिना संपत्ति: व्याख्या: गाँधी ने संपत्ति अर्जित करने की आलोचना की, जब इसे बिना श्रम या सेवा के प्राप्त किया जाए। यह शोषण और अन्यायपूर्ण माना जाता है। उदाहरण: व्यापारी कर चोरी और मुनाफाखोरी का मामला इसमें आता है। 2. विवेक के बिना आनंद: व्याख्या: आनंदRead more
महात्मा गाँधी की सात पापों की संकल्पना
1. श्रम के बिना संपत्ति:
2. विवेक के बिना आनंद:
3. ज्ञान के बिना चरित्र:
4. नैतिकता के बिना व्यापार:
5. विज्ञान के बिना मानवता:
6. पूजा के बिना बलिदान:
7. नीति के बिना राजनीति:
निष्कर्ष: गाँधी की सात पापों की संकल्पना जीवन के विभिन्न पहलुओं में नैतिकता और ईमानदारी की आवश्यकता को उजागर करती है, और सामाजिक व व्यक्तिगत जीवन में नैतिक दिशानिर्देश प्रदान करती है।
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