आप ‘वाक् और अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य’ संकल्पना से क्या समझते हैं? क्या इसकी परिधि में घृणा वाक् भी आता है ? भारत में फिल्में अभिव्यक्ति के अन्य रूपों से तनिक भिन्न स्तर पर क्यों हैं ? चर्चा कीजिये। (200 words) [UPSC ...
भारत के संविधान के अनुसार, भारतीय नागरिकों को पूरे देश में निवास और विचरण करने का अधिकार प्राप्त है, जैसा कि अनुच्छेद 19(1)(d) और 19(1)(e) में स्पष्ट किया गया है। यह अधिकार नागरिकों को देश के किसी भी हिस्से में स्वतंत्र रूप से रहने और यात्रा करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है। हालांकि, ये अधिकार पूरीRead more
भारत के संविधान के अनुसार, भारतीय नागरिकों को पूरे देश में निवास और विचरण करने का अधिकार प्राप्त है, जैसा कि अनुच्छेद 19(1)(d) और 19(1)(e) में स्पष्ट किया गया है। यह अधिकार नागरिकों को देश के किसी भी हिस्से में स्वतंत्र रूप से रहने और यात्रा करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है।
हालांकि, ये अधिकार पूरी तरह से असीमित नहीं हैं। संविधान में अनुच्छेद 19(5) के तहत, इन अधिकारों पर सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता, और जनहित के आधार पर उचित प्रतिबंध लगाने की अनुमति दी गई है। उदाहरण के लिए, कुछ क्षेत्रों को सुरक्षा कारणों से प्रतिबंधित किया जा सकता है, या सामाजिक असंतुलन और आपातकालीन परिस्थितियों के चलते अधिकारों पर नियंत्रण लगाया जा सकता है।
इस प्रकार, नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं, लेकिन इन्हें समाज के व्यापक हितों के मद्देनजर सीमित किया जा सकता है।
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वाक् और अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य एक मौलिक अधिकार है, जो व्यक्ति को अपने विचारों को स्वतंत्रता से व्यक्त करने की अनुमति देता है। यह लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है, जो सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक विकास में योगदान करता है। हालांकि, इस स्वतंत्रता की सीमाएँ भी होती हैं। घृणा वाक् इस परिधि में आताRead more
वाक् और अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य
एक मौलिक अधिकार है, जो व्यक्ति को अपने विचारों को स्वतंत्रता से व्यक्त करने की अनुमति देता है। यह लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है, जो सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक विकास में योगदान करता है। हालांकि, इस स्वतंत्रता की सीमाएँ भी होती हैं।
घृणा वाक्
इस परिधि में आता है, क्योंकि यह न केवल अन्य व्यक्तियों के अधिकारों का उल्लंघन करता है, बल्कि समाज में हिंसा और असहमति को भी बढ़ावा देता है। भारत में सुप्रीम कोर्ट ने भी इस बात को स्पष्ट किया है कि घृणा वाक् को अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य का हिस्सा नहीं माना जा सकता।
भारत में फिल्में अभिव्यक्ति के अन्य रूपों से भिन्न स्तर पर हैं क्योंकि फिल्में सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक संवेदनाओं को दर्शाती हैं। भारतीय सिनेमा में सेंसरशिप और सामाजिक मानदंडों का प्रभाव अधिक होता है, जो कलाकारों को अपनी अभिव्यक्ति में सीमित करता है। इसके अलावा, व्यावसायिक लाभ और दर्शकों की संवेदनाएँ भी फिल्म निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, जिससे कुछ विषयों पर प्रतिबंध या आत्म-नियमन हो सकता है।
इसलिए, वाक् और अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य का सही उपयोग समाज में सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, जबकि घृणा वाक् का त्याग आवश्यक है।
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