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आप 'वाक् और अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य' संकल्पना से क्या समझते हैं? क्या इसकी परिधि में घृणा वाक् भी आता है ? भारत में फिल्में अभिव्यक्ति के अन्य रूपों से तनिक भिन्न स्तर पर क्यों हैं ? चर्चा कीजिये। (200 words) [UPSC 2014]
वाक् और अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य की संकल्पना: वाक् और अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य का तात्पर्य व्यक्ति को अपनी राय, विचार, और विश्वास को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने के अधिकार से है। यह लोकतंत्र का एक मौलिक तत्व है और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के अंतर्गत यह अधिकार प्रदान किया गया है। घृणा वाक् की पRead more
वाक् और अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य की संकल्पना: वाक् और अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य का तात्पर्य व्यक्ति को अपनी राय, विचार, और विश्वास को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने के अधिकार से है। यह लोकतंत्र का एक मौलिक तत्व है और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के अंतर्गत यह अधिकार प्रदान किया गया है।
घृणा वाक् की परिधि: हालांकि वाक् स्वातंत्र्य महत्वपूर्ण है, लेकिन इसकी सीमाएं भी हैं। अनुच्छेद 19(2) के तहत, राज्य को सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता, नैतिकता, और भारत की संप्रभुता और अखंडता की रक्षा के लिए इस अधिकार पर उचित प्रतिबंध लगाने का अधिकार है। घृणा वाक्, जो किसी समुदाय या व्यक्ति के प्रति हिंसा, विद्वेष, या द्वेष को प्रोत्साहित करता है, इन सीमाओं के अंतर्गत आता है और इसे वाक् स्वातंत्र्य का हिस्सा नहीं माना जा सकता। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने घृणा वाक् पर सख्ती से कार्रवाई की बात की है, जिससे इसका महत्व और बढ़ गया है।
फिल्में और अभिव्यक्ति के अन्य रूपों में अंतर: भारत में फिल्में अभिव्यक्ति के अन्य रूपों से अलग स्तर पर हैं क्योंकि फिल्मों का सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव अधिक व्यापक होता है। उदाहरण के लिए, ‘पठान’ और ‘द केरला स्टोरी’ जैसी फिल्मों पर विवाद और सेंसरशिप को लेकर हाल ही में चर्चाएं हुईं, जो दर्शाती हैं कि फिल्मों का समाज पर गहरा प्रभाव है। फिल्में एक सामूहिक माध्यम हैं जो व्यापक दर्शकों तक पहुंचती हैं, इसलिए उन पर अक्सर सेंसरशिप या विवाद की स्थिति बनती है।
निष्कर्ष: वाक् और अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य लोकतंत्र का एक अभिन्न अंग है, लेकिन इसकी सीमाएं भी हैं, विशेष रूप से घृणा वाक् के संदर्भ में। फिल्में, अपने व्यापक प्रभाव के कारण, अभिव्यक्ति के अन्य रूपों से अलग स्तर पर देखी जाती हैं।
See lessक्या स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार में दीवाली के दौरान पटाखे जलाने के विधिक विनियम भी शामिल हैं? इस पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के, और इस संबंध में शीर्ष न्यायालय के निर्णय/निर्णयों के, प्रकाश में चर्चा कीजिए। (200 words) [UPSC 2015]
स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार से जुड़ा है। इस अधिकार का विस्तार स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार तक किया गया है। दीवाली जैसे त्योहारों के दौरान पटाखे जलाने के विधिक विनियम इस अधिकार की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं। अनुच्छेदRead more
स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार से जुड़ा है। इस अधिकार का विस्तार स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार तक किया गया है। दीवाली जैसे त्योहारों के दौरान पटाखे जलाने के विधिक विनियम इस अधिकार की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं।
अनुच्छेद 21 और पर्यावरण का अधिकार:
अनुच्छेद 21: यह अनुच्छेद जीवन का अधिकार प्रदान करता है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने व्यापक रूप से व्याख्यायित किया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जीवन स्वस्थ और स्वच्छ पर्यावरण में जीया जा सके।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय:
वेल्लोर सिटीजन्स वेलफेयर फोरम बनाम संघ भारत (1996): इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत आता है और यह सुनिश्चित करना राज्य की जिम्मेदारी है कि प्रदूषण पर नियंत्रण रखा जाए।
See lessM.C. Mehta बनाम संघ भारत (2005): सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों से होने वाले वायु प्रदूषण पर विचार करते हुए, यह कहा कि पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए विधिक उपाय किए जाने चाहिए। अदालत ने वायु गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए पटाखों की बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध लगाने के आदेश दिए।
M.C. Mehta बनाम संघ भारत (2018): इस निर्णय में, कोर्ट ने दीवाली के दौरान पटाखों पर अतिरिक्त प्रतिबंध लागू किए ताकि वायु प्रदूषण को कम किया जा सके। अदालत ने पटाखों के निर्माण और बिक्री पर नियंत्रण के लिए आदेश दिए।
निष्कर्ष:
स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार, जो अनुच्छेद 21 के तहत आता है, दीवाली जैसे त्योहारों के दौरान पटाखों के उपयोग पर विधिक विनियम को सही ठहराता है। सुप्रीम कोर्ट ने प्रदूषण की समस्या को ध्यान में रखते हुए पटाखों पर नियंत्रण के लिए कदम उठाए हैं, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि उत्सवों के दौरान भी पर्यावरण सुरक्षित रहे।
निजता के अधिकार पर उच्चतम न्यायालय के नवीनतम निर्णय के आलोक में, मौलिक अधिकारों के विस्तार का परीक्षण कीजिए। (250 words) [UPSC 2017]
निजता का अधिकार भारत में मौलिक अधिकारों के विस्तार का एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। उच्चतम न्यायालय ने 2017 में "के. एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ" मामले में निर्णय दिया कि निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत "जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता" के मौलिक अधिकार का एक अनिवार्य हिस्सा है। यह निर्Read more
निजता का अधिकार भारत में मौलिक अधिकारों के विस्तार का एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। उच्चतम न्यायालय ने 2017 में “के. एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ” मामले में निर्णय दिया कि निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत “जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता” के मौलिक अधिकार का एक अनिवार्य हिस्सा है। यह निर्णय न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गरिमा के संरक्षण में महत्वपूर्ण है, बल्कि मौलिक अधिकारों के व्यापक स्वरूप को भी दर्शाता है।
मौलिक अधिकारों का विस्तार:
निजता का अधिकार: उच्चतम न्यायालय ने यह माना कि निजता का अधिकार व्यक्ति की गरिमा, स्वायत्तता, और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए आवश्यक है। इसके अंतर्गत, शारीरिक स्वतंत्रता, निजी संचार, जानकारी की गोपनीयता, और व्यक्तिगत निर्णय लेने की स्वतंत्रता जैसे पहलू शामिल हैं।
सूचना का अधिकार: निजता के अधिकार का विस्तार यह सुनिश्चित करता है कि सरकारी निगरानी, डेटा संग्रह, और व्यक्तिगत जानकारी के प्रसंस्करण में पारदर्शिता और वैधता हो। यह विशेष रूप से डिजिटल युग में महत्वपूर्ण है, जहाँ व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा चिंता का विषय है।
व्यक्तिगत स्वतंत्रता: इस निर्णय ने मौलिक अधिकारों के दायरे को व्यक्तिगत पहचान, यौनिकता, भोजन की पसंद, और जीवन शैली के अधिकार तक विस्तारित किया है। इसने समलैंगिकता के विरुद्ध धारा 377 को समाप्त करने और समानता के अधिकार की पुष्टि में भी योगदान दिया।
डिजिटल अधिकारों का संरक्षण: आधार योजना और अन्य सरकारी परियोजनाओं में डेटा सुरक्षा और व्यक्तिगत गोपनीयता की आवश्यकताओं को बढ़ावा दिया गया है। न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि नागरिकों की जानकारी का उपयोग केवल वैध उद्देश्यों के लिए होना चाहिए और इसके दुरुपयोग से बचने के लिए ठोस सुरक्षा उपाय आवश्यक हैं।
निष्कर्ष:
See lessइस निर्णय ने मौलिक अधिकारों को एक व्यापक और समग्र दृष्टिकोण प्रदान किया है, जिसमें आधुनिक समय की आवश्यकताओं और चुनौतियों का समावेश है। निजता का अधिकार अब भारतीय संविधान के मूल्यों और उद्देश्यों के साथ पूरी तरह से संगत हो गया है, जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गरिमा के संरक्षण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह निर्णय न केवल भारतीय न्यायिक प्रणाली की प्रगतिशीलता को दर्शाता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि मौलिक अधिकार समय के साथ प्रासंगिक बने रहें।
"भारत के सम्पूर्ण क्षेत्र में निवास करने और विचरण करने का अधिकार स्वतंत्र रूप से सभी भारतीय नागरिकों को उपलब्ध है, किन्तु ये अधिकार असीम नहीं हैं।" टिप्पणी कीजिए । (150 words)[UPSC 2022]
भारत के संविधान के अनुसार, भारतीय नागरिकों को पूरे देश में निवास और विचरण करने का अधिकार प्राप्त है, जैसा कि अनुच्छेद 19(1)(d) और 19(1)(e) में स्पष्ट किया गया है। यह अधिकार नागरिकों को देश के किसी भी हिस्से में स्वतंत्र रूप से रहने और यात्रा करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है। हालांकि, ये अधिकार पूरीRead more
भारत के संविधान के अनुसार, भारतीय नागरिकों को पूरे देश में निवास और विचरण करने का अधिकार प्राप्त है, जैसा कि अनुच्छेद 19(1)(d) और 19(1)(e) में स्पष्ट किया गया है। यह अधिकार नागरिकों को देश के किसी भी हिस्से में स्वतंत्र रूप से रहने और यात्रा करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है।
हालांकि, ये अधिकार पूरी तरह से असीमित नहीं हैं। संविधान में अनुच्छेद 19(5) के तहत, इन अधिकारों पर सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता, और जनहित के आधार पर उचित प्रतिबंध लगाने की अनुमति दी गई है। उदाहरण के लिए, कुछ क्षेत्रों को सुरक्षा कारणों से प्रतिबंधित किया जा सकता है, या सामाजिक असंतुलन और आपातकालीन परिस्थितियों के चलते अधिकारों पर नियंत्रण लगाया जा सकता है।
इस प्रकार, नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं, लेकिन इन्हें समाज के व्यापक हितों के मद्देनजर सीमित किया जा सकता है।
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