आप ‘वाक् और अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य’ संकल्पना से क्या समझते हैं? क्या इसकी परिधि में घृणा वाक् भी आता है ? भारत में फिल्में अभिव्यक्ति के अन्य रूपों से तनिक भिन्न स्तर पर क्यों हैं ? चर्चा कीजिये। (200 words) [UPSC ...
स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार से जुड़ा है। इस अधिकार का विस्तार स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार तक किया गया है। दीवाली जैसे त्योहारों के दौरान पटाखे जलाने के विधिक विनियम इस अधिकार की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं। अनुच्छेदRead more
स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार से जुड़ा है। इस अधिकार का विस्तार स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार तक किया गया है। दीवाली जैसे त्योहारों के दौरान पटाखे जलाने के विधिक विनियम इस अधिकार की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं।
अनुच्छेद 21 और पर्यावरण का अधिकार:
अनुच्छेद 21: यह अनुच्छेद जीवन का अधिकार प्रदान करता है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने व्यापक रूप से व्याख्यायित किया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जीवन स्वस्थ और स्वच्छ पर्यावरण में जीया जा सके।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय:
वेल्लोर सिटीजन्स वेलफेयर फोरम बनाम संघ भारत (1996): इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत आता है और यह सुनिश्चित करना राज्य की जिम्मेदारी है कि प्रदूषण पर नियंत्रण रखा जाए।
M.C. Mehta बनाम संघ भारत (2005): सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों से होने वाले वायु प्रदूषण पर विचार करते हुए, यह कहा कि पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए विधिक उपाय किए जाने चाहिए। अदालत ने वायु गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए पटाखों की बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध लगाने के आदेश दिए।
M.C. Mehta बनाम संघ भारत (2018): इस निर्णय में, कोर्ट ने दीवाली के दौरान पटाखों पर अतिरिक्त प्रतिबंध लागू किए ताकि वायु प्रदूषण को कम किया जा सके। अदालत ने पटाखों के निर्माण और बिक्री पर नियंत्रण के लिए आदेश दिए।
निष्कर्ष:
स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार, जो अनुच्छेद 21 के तहत आता है, दीवाली जैसे त्योहारों के दौरान पटाखों के उपयोग पर विधिक विनियम को सही ठहराता है। सुप्रीम कोर्ट ने प्रदूषण की समस्या को ध्यान में रखते हुए पटाखों पर नियंत्रण के लिए कदम उठाए हैं, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि उत्सवों के दौरान भी पर्यावरण सुरक्षित रहे।
वाक् और अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य एक मौलिक अधिकार है, जो व्यक्ति को अपने विचारों को स्वतंत्रता से व्यक्त करने की अनुमति देता है। यह लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है, जो सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक विकास में योगदान करता है। हालांकि, इस स्वतंत्रता की सीमाएँ भी होती हैं। घृणा वाक् इस परिधि में आताRead more
वाक् और अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य
एक मौलिक अधिकार है, जो व्यक्ति को अपने विचारों को स्वतंत्रता से व्यक्त करने की अनुमति देता है। यह लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है, जो सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक विकास में योगदान करता है। हालांकि, इस स्वतंत्रता की सीमाएँ भी होती हैं।
घृणा वाक्
इस परिधि में आता है, क्योंकि यह न केवल अन्य व्यक्तियों के अधिकारों का उल्लंघन करता है, बल्कि समाज में हिंसा और असहमति को भी बढ़ावा देता है। भारत में सुप्रीम कोर्ट ने भी इस बात को स्पष्ट किया है कि घृणा वाक् को अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य का हिस्सा नहीं माना जा सकता।
भारत में फिल्में अभिव्यक्ति के अन्य रूपों से भिन्न स्तर पर हैं क्योंकि फिल्में सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक संवेदनाओं को दर्शाती हैं। भारतीय सिनेमा में सेंसरशिप और सामाजिक मानदंडों का प्रभाव अधिक होता है, जो कलाकारों को अपनी अभिव्यक्ति में सीमित करता है। इसके अलावा, व्यावसायिक लाभ और दर्शकों की संवेदनाएँ भी फिल्म निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, जिससे कुछ विषयों पर प्रतिबंध या आत्म-नियमन हो सकता है।
इसलिए, वाक् और अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य का सही उपयोग समाज में सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, जबकि घृणा वाक् का त्याग आवश्यक है।
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